Sudan's bloody war in Hindi Anything by Mayuresh Patki books and stories PDF | सूडान का खूनी संग्राम

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सूडान का खूनी संग्राम

सूडान का गृहयुद्ध आज अफ्रीका के सबसे बड़े संकटों में से एक बन चुका है। यह युद्ध 2023 में शुरू हुआ था और अब तक लाखों लोगों की जान ले चुका है। सूडान के उत्तरी हिस्से में दो सशस्त्र गुटों के बीच यह लड़ाई जारी है। एक तरफ है सूडानी सेना यानी एसएएफ (Sudanese Armed Forces) और दूसरी तरफ है आरएसएफ (Rapid Support Forces), जो एक अर्धसैनिक संगठन है। यह युद्ध सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं है, बल्कि एक देश की पहचान, उसकी एकता और लोगों के भविष्य का संघर्ष है।

सूडान में इस संघर्ष की जड़ें बहुत गहरी हैं। जब ओमर अल-बशीर का लंबे समय का शासन 2019 में खत्म हुआ, तब लोगों को उम्मीद थी कि देश में लोकतंत्र आएगा। लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद सेना और अर्धसैनिक बलों के बीच असहमति बढ़ने लगी। आरएसएफ को नियमित सेना में शामिल करने की प्रक्रिया पर मतभेद हुआ। सेना चाहती थी कि आरएसएफ जल्द से जल्द विलय हो जाए, जबकि आरएसएफ का नेता हेमेड्टी चाहता था कि उसे स्वतंत्र पहचान और शक्ति बनी रहे। यही टकराव धीरे-धीरे सशस्त्र संघर्ष में बदल गया।

इसके अलावा आर्थिक और संसाधन संबंधी विवाद भी बड़ा कारण बने। आरएसएफ को सूडान के सोने और खनिज खदानों से भारी मुनाफा होता था। उसके पास हथियार खरीदने और अपनी सेना बनाए रखने के लिए भरपूर पैसा था। वहीं नियमित सेना, एसएएफ, को सरकारी संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता था। इस असमानता ने दोनों पक्षों के बीच अविश्वास और प्रतियोगिता को और बढ़ा दिया।

सूडान का सामाजिक ढांचा भी इस युद्ध के पीछे की एक वजह है। यह देश कई जातीय और जनजातीय समूहों से बना है, जिनके बीच पहले से ही तनाव मौजूद था। डारफुर क्षेत्र में आरएसएफ पर आरोप है कि उसने गैर-अरब समुदायों, खासकर मासालित जनजाति के लोगों पर हमले किए और जातीय सफाए जैसे अपराध किए। सेना पर भी नागरिक इलाकों पर बमबारी के आरोप लगे हैं। दोनों पक्षों के बीच यह संघर्ष धीरे-धीरे आम जनता की त्रासदी में बदल गया।

युद्ध की शुरुआत अप्रैल 2023 में हुई जब आरएसएफ ने राजधानी खार्तूम और आसपास के इलाकों में सेना पर हमला किया। उसके बाद से देश के कई हिस्से युद्ध क्षेत्र बन गए। खार्तूम, ओमदुर्मान और डारफुर जैसे इलाके सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए। दोनों गुटों के बीच बार-बार इलाकों का नियंत्रण बदलता रहा। कई बार सेना ने बढ़त ली, तो कई बार आरएसएफ ने। आज स्थिति यह है कि पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा में डूबा हुआ है।

इस युद्ध ने सूडान को मानवीय दृष्टि से भी तबाह कर दिया है। लाखों लोग अपने घर छोड़कर भागने को मजबूर हुए। हजारों लोग पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं। जिनके पास कहीं जाने की जगह नहीं है, वे भुखमरी और बीमारी से जूझ रहे हैं। अस्पताल, स्कूल और सरकारी संस्थान लगभग ठप हो चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार सूडान के कई इलाकों में अब अकाल जैसे हालात बन गए हैं।

सिर्फ आंतरिक कारण ही नहीं, बाहरी शक्तियों ने भी इस संघर्ष को बढ़ावा दिया है। माना जाता है कि संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, तुर्की और ईरान जैसे देश किसी-न-किसी रूप में दोनों पक्षों को सहायता दे रहे हैं। हथियारों की आपूर्ति, वित्तीय मदद और रणनीतिक समर्थन ने युद्ध को लंबा खींच दिया है। इस वजह से कई विशेषज्ञ इसे एक “प्रॉक्सी वॉर” यानी परोक्ष युद्ध कह रहे हैं, जिसमें स्थानीय संघर्ष को बाहरी शक्तियाँ अपने स्वार्थ के लिए भड़का रही हैं।

मानवाधिकार संगठनों ने दोनों पक्षों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। आरएसएफ पर नागरिकों की हत्या, बलात्कार, और जातीय हिंसा जैसे अपराधों में शामिल होने का आरोप है। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने आरएसएफ को नरसंहार और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में दोषी ठहराया है। वहीं सेना पर भी बमबारी और नागरिक क्षेत्रों पर हमले के आरोप हैं। इस तरह, किसी भी पक्ष को पूरी तरह निर्दोष नहीं कहा जा सकता।

आज सूडान में हालात बेहद गंभीर हैं। देश का आर्थिक ढांचा पूरी तरह टूट चुका है। खेत-खलिहान उजड़ गए हैं, उत्पादन बंद है, व्यापार रुक गया है, और सरकार नाम की चीज़ लगभग खत्म हो चुकी है। हर रोज़ नई हत्याओं और विस्थापनों की खबरें आती हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, महिलाएँ असुरक्षित हैं और पूरा समाज भय में जी रहा है।

शांति की कोशिशें कई बार की गईं लेकिन दोनों पक्ष एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते। बातचीत अक्सर टूट जाती है या एक पक्ष अनुपस्थित रहता है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठन युद्धविराम की अपील कर चुके हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक नागरिक शासन को सशक्त नहीं किया जाता और सभी पक्षों को बातचीत में शामिल नहीं किया जाता, तब तक यह संघर्ष खत्म नहीं होगा।

सूडान का यह गृहयुद्ध दुनिया के लिए एक चेतावनी भी है। यह दिखाता है कि अगर सत्ता, जातीयता और संसाधन-लालच का संतुलन टूट जाए तो एक देश कैसे बिखर सकता है। यह सिर्फ सूडान की नहीं, बल्कि उन तमाम देशों की कहानी है जो लोकतंत्र की ओर बढ़ते हुए भी भीतर से कमजोर हैं।

आखिर में यही कहा जा सकता है कि सूडान को आज सबसे ज्यादा जरूरत है शांति, नागरिक शासन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की। जब तक हथियारों की जगह संवाद नहीं लेता, तब तक सूडान के लोगों की पीड़ा खत्म नहीं होगी। यह युद्ध सिर्फ दो सेनाओं के बीच नहीं है, यह पूरे सूडान के अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है।