अब तक आपने देखा होगा कि निधि कैसे एक लड़की को जन्म देती है । जहां से कहानी की शुरुआत हुई
कहानी का भाग दिखाते हैं
तो शुरुआत करते हैं जहां से निधि और सुधांशु की जीवन की नई शुरुआत हुई
शादी की लंबी रस्में पूरी हो चुकी थीं। सजी-धजी, आँखों में अनगिनत सपने और होंठों पर हल्की-सी मुस्कान लिए निधि जब विदाई की कार में बैठी, तो मन में सिर्फ एक ही बात थी—
“अब मेरा अपना घर… अपना परिवार…”
निधि को क्या पता था कि जिस घर को वह ‘अपना’ सोचकर चली आ रही है—वहीं से उसके धैर्य और सहनशीलता की पहली परीक्षा शुरू होने वाली है।
गाड़ी से उतरते ही पहला ताना
जैसे ही गाड़ी रुकी, नंदों और रिश्तेदारों की भीड़ जमा थी। रस्म के मुताबिक ननद को उतरते ही कुछ उपहार देना होता है।
निधि ने मुस्कुराते हुए चांदी का एक बड़ा सिक्का और ₹5000 बढ़ाए।
पर उसी पल—
मिस्सी ने होंठ टेढ़े करके कहा,
“इतना कम? भाभीजी, ये कोई उपहार होता है? देखो, जब निशा भाभी आई थीं, मुझे पूरे बीस हज़ार दिए थे!”
मनोरमा ने भी हँसते हुए जोड़ दिया,
“हाँ भैया, ये तो बड़ी कंजूस निकली आपकी दुल्हन!”
भीड़ खिलखिला उठी।
और निधि… चुप।
सिर्फ उसकी आँखें पहली बार ‘नए घर’ की हक़ीक़त पढ़ने लगीं।
गृह प्रवेश – मुस्कान के पीछे छिपी कड़वाहट
एक बुज़ुर्ग महिला ने माहौल संभालते हुए कहा,
“छोड़ो, छोड़ो… आगे और भी रस्में होंगी, और भी उपहार मिलेंगे।”
निधि ने कलश गिराया, दहलीज़ पार की—
पर उसके कदमों का कंपन सिर्फ घूंघट के नीचे छुपा रह गया।
अंदर बैठते ही रिश्तेदार उसे घेरे बैठे थे—
मिस्सी, राधा, मनोरमा, निशि, और एक लड़की जो सबके बीच भी जैसे चुपचाप आग उगल रही थी…
वह लड़की: देविका
देविका—खूबसूरत, तीखी नज़र वाली।
पहली ही बात ताना बनकर आई—
“अरे भाभी, आप तो बहुत सुंदर हैं… हालांकि निशा भाभी जितनी नहीं। देखा था ना? कितनी ग़ज़ब लगती थीं!”
बात सतह पर तारीफ थी, पर भीतर जलन का ज्वार।
निधि अनजान थी…
लेकिन क्यों नहीं?
यह सवाल उस घर की हवा में छिपा एक ऐसा राज़ था, जो किसी पहेली की तरह हर चेहरे पर तैर रहा था।
निधि के प्रति पहली नफ़रत
राधा ने भी हँसते हुए कहा,
“भाभी, कुछ खाइए ना… या फिर शर्म कर रही हैं?”
निधि बस हल्की मुस्कान देकर रह गई—नई बहू, नए लोग, नया माहौल… और हर तरफ अनजानी नज़रें।
साड़ियों का ताना
तभी निधि की चाची-सास ने साड़ियों से भरा बक्सा खोलकर कहा,
“बस इतनी-सी साड़ियाँ लाई हो मायके से?
हमारी शादी में तो 40 साड़ियाँ आई थीं।
मैं तो एक दिन में 10-10 बदल लेती थी!”
कुछ लड़कियाँ फिर हँस पड़ीं—
“लगता है मायका भी कंजूस है… नंगा घर का मामला है!”
शब्द तो हल्के थे, लेकिन वार गहरे।
निधि ने सिर झुका लिया।
दिल में कहीं कुछ चुभ रहा था—
पर बोलना उसकी परवरिश में नहीं था।
उधर, देविका हर ताने पर मुस्कुरा रही थी, जैसे किसी अनदेखी जीत का स्वाद ले रही हो।
अंदर बैठते ही रिश्तेदार उसे घेरे बैठे थे—
मिस्सी, राधा, मनोरमा, निशि, और एक लड़की जो सबके बीच भी जैसे चुपचाप आग उगल रही थी…
वह लड़की: देविका
देविका—खूबसूरत, तीखी नज़र वाली।
पहली ही बात ताना बनकर आई—
“अरे भाभी, आप तो बहुत सुंदर हैं… हालांकि निशा भाभी जितनी नहीं। देखा था ना? कितनी ग़ज़ब लगती थीं!”
आखिर यह देविका कौन थी?जो निधि से इतनी जल रही थी ।
बाकी की कहानी अगले भाग में