राख से उठती चिंगारी
शहर की सुबह हमेशा की तरह शोर से भरी थी,
पर उस शोर में भी नैना की ज़िंदगी सन्नाटे में डूबी हुई थी।
दिल्ली के पुराने मोहल्ले की एक संकरी गली में वो रोज़ अपने छोटे से कमरे की खिड़की से आसमान को देखती,
जहाँ उसके सारे सपने धुएँ में खो जाते थे।
नैना एक साधारण लड़की थी — न ज़्यादा हसीन, न बहुत अमीर।
पर आँखों में हज़ारों सपने,
और दिल में एक उम्मीद कि शायद एक दिन उसके संघर्ष का सूरज भी उगेगा।
उसके पिता एक छोटे दर्जी थे, और माँ की मौत तब हो गई थी जब नैना बस बारह साल की थी।
तब से उसने सीखा था —
“प्यार और दर्द, दोनों मेहनत से कमाने पड़ते हैं।”
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दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उसकी मुलाकात आर्यन से हुई —
आर्यन, जो खुद एक सपने की तरह था —
स्मार्ट, हँसमुख, और दुनिया से बिल्कुल अलग सोच रखने वाला लड़का।
वो नैना के संघर्ष को समझता नहीं था, पर उसकी आँखों की थकान में कुछ खोजता था।
शुरुआती मुलाक़ातों में बस हल्की बातें हुईं,
पर कुछ ही हफ्तों में दोनों के बीच एक अजीब-सी खामोशी जन्म ले चुकी थी —
जो शब्दों से नहीं, नज़रों से बातें करती थी।
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एक दिन कॉलेज के गेट पर, जब बारिश हो रही थी,
आर्यन ने अपनी जैकेट उतारकर नैना को दी।
वो पल शायद मामूली था, पर नैना के लिए जैसे वक्त ठहर गया था।
उसे लगा — पहली बार कोई उसके भीतर झाँकने की कोशिश कर रहा है।
लेकिन ज़िंदगी को प्यार पसंद नहीं था…
उसे संघर्ष की कहानी लिखनी थी।
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नैना के पिता की तबीयत अचानक बिगड़ गई।
घर का सारा बोझ, फीस, इलाज — सबकुछ नैना के कंधों पर आ गया।
वो कॉलेज और काम के बीच झूलती रही,
जबकि आर्यन अपने सपनों की दुनिया में खोया था — एक startup शुरू करने में लगा हुआ।
धीरे-धीरे दूरी बढ़ती गई।
एक शाम, नैना ने उससे कहा —
> “प्यार तभी अच्छा लगता है, जब पेट भरा हो आर्यन…”
आर्यन चुप रहा, क्योंकि उसके पास कोई जवाब नहीं था।
उसने बस इतना कहा —
> “तुम्हारे सपने अधूरे नहीं रहेंगे, मैं वादा करता हूँ।”
पर वक़्त वादों से नहीं चलता।
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कुछ महीनों बाद, नैना के पिता गुजर गए।
और उस रात नैना के भीतर की वो चिंगारी बुझ गई —
जो कभी सपनों से जलती थी।
आर्यन ने कोशिश की उसे संभालने की,
पर नैना ने दीवार खड़ी कर ली —
क्योंकि अब उसके लिए प्यार एक विलासिता था,
जिसकी कीमत वो चुका नहीं सकती थी।
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ज़िंदगी की दो राहें
दिल्ली की सर्द हवाओं में आज कुछ बदला-सा था।
कभी जो शहर नैना को अपने सपनों का रास्ता लगता था,
अब वही उसे बोझ-सा लगने लगा था।
पिता की मौत के बाद सब कुछ जैसे थम गया था—
हर सुबह वही पुरानी चाय की खुशबू, वही खाली कुर्सी, और वही सन्नाटा।
नैना ने तय किया कि अब वो किसी पर निर्भर नहीं रहेगी।
कॉलेज खत्म होने से पहले ही उसने एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में काम पकड़ लिया।
दिन में ऑफिस, रात में फ्रीलांस डिज़ाइनिंग —
उसकी ज़िंदगी अब एक रेस बन चुकी थी,
जहाँ मंज़िल नहीं, बस टिके रहना ज़रूरी था।
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आर्यन की दुनिया
उधर आर्यन का startup “DreamByte” अब उड़ान भरने लगा था।
लोग उसे young achiever कहने लगे थे,
पर उसके अंदर कहीं खालीपन था—
वो खालीपन जो सिर्फ़ नैना भर सकती थी।
कई बार उसने फोन उठाया, नंबर डायल किया,
पर कॉल बटन दबाने से पहले ही उँगलियाँ कांप गईं।
उसे लगता था,
> “वो अब मुझसे बहुत आगे बढ़ चुकी होगी…”
पर सच्चाई उलटी थी—
नैना अभी भी उसी गली में रहती थी,
जहाँ हर दीवार पर उसके अधूरे सपनों की परछाइयाँ थीं।
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संघर्ष की शुरुआत
ऑफिस में बॉस मिस्टर कपूर उसकी मेहनत की कद्र करते थे,
लेकिन दुनिया इतनी आसान नहीं थी।
महिला होना, अकेला होना, और महत्वाकांक्षी होना —
तीनों चीज़ें समाज को खटकती हैं।
एक दिन देर रात ऑफिस में प्रोजेक्ट खत्म करते वक्त
मिस्टर कपूर ने नैना के करीब आने की कोशिश की।
नैना ने बिना सोचे उन्हें थप्पड़ मार दिया।
उस एक थप्पड़ ने उसकी नौकरी, उसकी इज़्ज़त, और उसकी शांति सब छीन ली।
अगले दिन खबर फैल चुकी थी —
“नैना ने बॉस पर झूठा इल्ज़ाम लगाया है।”
लोग बातें बना रहे थे, और वो अकेली पड़ती जा रही थी।
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वो मोड़ जहाँ रास्ते मिले
उसी हफ्ते एक इवेंट में आर्यन की कंपनी का प्रोजेक्ट था।
नैना, इवेंट टीम का हिस्सा बनकर वहाँ पहुँची।
चार साल बाद जब दोनों की नज़रें मिलीं —
तो वक़्त फिर से वहीँ लौट आया जहाँ सब अधूरा रह गया था।
आर्यन ने बस इतना कहा —
> “तुम अब भी वही हो…”
नैना मुस्कुराई —
“नहीं आर्यन, अब मैं वो नहीं रही जो सपनों में जीती थी।”
आर्यन समझ नहीं पाया,
पर उसके अंदर की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
उसने उसी रात नैना के पास जाकर कहा —
> “मुझे तुम्हारी मदद करने दो।”
नैना ने दृढ़ आवाज़ में कहा —
“मुझे मदद नहीं, मौका चाहिए… अपने दम पर कुछ करने का।”
उसकी आँखों में वो पुरानी चिंगारी फिर से चमकी थी।
आर्यन ने महसूस किया —
संघर्ष ने उसे तोड़ा नहीं, तराश दिया है।
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एक नया कदम
आर्यन ने अपने startup में नैना को Creative Head की पेशकश की।
पहले तो नैना ने मना कर दिया,
पर फिर सोचा —
> “अगर ज़िंदगी दोबारा मौका दे रही है, तो भागना क्यों?”
नई शुरुआत हुई।
आर्यन और नैना अब एक टीम थे —
लेकिन उनके बीच अनकहा अतीत दीवार बनकर खड़ा था।
हर शाम जब ऑफिस की छत पर हवा चलती,
तो दोनों खामोश रहते, पर नज़रें बहुत कुछ कहतीं।
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दिल की दहलीज़ पर
ऑफिस की छत पर ठंडी हवा चल रही थी।
रात के ग्यारह बज चुके थे, लेकिन आर्यन और नैना अब भी वहीं बैठे थे—
एक पुराने प्रोजेक्ट की बातें करते हुए,
या शायद अपने दिल के पुराने पन्ने पलटते हुए।
आर्यन ने पहली बार इतने करीब से नैना को देखा।
अब वो पहले जैसी मासूम लड़की नहीं रही थी।
चेहरे पर आत्मविश्वास था, पर आँखों में अब भी वही गहराई —
जहाँ दर्द और प्यार दोनों साथ रहते थे।
> “तुम बदली नहीं हो, बस और मज़बूत हो गई हो,”
आर्यन ने धीरे से कहा।
नैना मुस्कुरा दी।
> “और तुम अब भी वही हो — सपनों में खोए रहने वाले।
ज़िंदगी तुम्हारे हिसाब से आसान लगती है, आर्यन,
पर मेरे लिए हर कदम जंग है।”
आर्यन के पास जवाब नहीं था।
वो जानता था —
नैना के हर शब्द के पीछे एक कहानी है,
जो वो अभी तक सुन नहीं पाया।
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बीते लम्हों की परछाइयाँ
दिन बीतते गए।
DreamByte में नैना ने अपनी मेहनत से सबका दिल जीत लिया।
क्लाइंट्स उसकी क्रिएटिव सोच के दीवाने हो गए थे।
आर्यन को लगता था कि उसकी कंपनी अब सच में “DreamByte” बन गई है —
क्योंकि अब उसमें उसका सपना और नैना की हकीकत दोनों थे।
एक शाम, जब ऑफिस खाली हो चुका था,
आर्यन ने धीरे से पूछा —
> “नैना, क्या तुम्हें कभी लगता है कि हम… फिर से वहीं जा सकते हैं?”
नैना कुछ पल चुप रही।
फिर बोली —
> “आर्यन, मैं अब उस रास्ते पर नहीं लौट सकती,
जहाँ से मैंने खुद को तोड़ा था।”
उसकी आवाज़ में सख्ती थी, पर आँखों में नमी थी।
आर्यन ने महसूस किया,
प्यार अब भी है,
बस वो दिल की दहलीज़ पर अटका हुआ है —
अंदर जाने से डरता, बाहर रहने से तड़पता।
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मुक़ाबला
एक नया प्रोजेक्ट कंपनी के लिए निर्णायक साबित होने वाला था —
एक बड़ी कंपनी का करोड़ों का कॉन्ट्रैक्ट।
नैना इस प्रोजेक्ट की लीड थी,
पर उसे क्या पता था कि सामने वाली कंपनी का CEO वही मिस्टर कपूर है,
जिस पर उसने सालों पहले हाथ उठाया था।
जब वो मीटिंग रूम में दाखिल हुई,
तो कपूर की आँखों में वही अहंकार था।
वो मुस्कुराया,
> “काफ़ी वक्त बाद मिल रही हो मिस नैना... अभी भी उतनी ही तेज़ लगती हो।”
नैना ने शांति से कहा —
> “काम की बात करें मिस्टर कपूर।”
कपूर ने एक शर्त रखी —
अगर प्रोजेक्ट उसकी शर्तों पर नहीं हुआ,
तो वो आर्यन की कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर देगा।
नैना जानती थी —
ये पेशेवर नहीं, निजी बदला था।
आर्यन ने कहा —
> “हम समझौता नहीं करेंगे।”
पर नैना ने रुककर कहा —
“हम हारेंगे भी नहीं।”
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साहस की आवाज़
अगले दो हफ्तों में नैना ने दिन-रात मेहनत की।
टीम उसके साथ थी, पर उसकी लड़ाई अकेली थी —
कपूर से नहीं, अपने अतीत से।
प्रेज़ेंटेशन के दिन, उसने पूरे आत्मविश्वास से
प्रोजेक्ट पेश किया।
उसकी आवाज़ में इतना दम था कि कपूर भी चुप रह गया।
अंत में क्लाइंट्स खड़े होकर ताली बजाने लगे।
आर्यन ने पहली बार उस मंच पर जाकर कहा —
> “इस प्रोजेक्ट की सच्ची हीरो नैना है —
उसने हमें सिर्फ काम करना नहीं, सम्मान के साथ जीतना सिखाया है।”
सारी दुनिया के सामने नैना की आँखों से आँसू बह निकले।
वो पल सिर्फ जीत का नहीं था,
वो आत्म-सम्मान की वापसी थी।
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दिल के दरवाज़े पर
उस रात आर्यन और नैना फिर उसी छत पर मिले।
आर्यन ने कहा —
> “अब तो तुम मुझसे भी मज़बूत हो गई हो।”
नैना ने हँसते हुए कहा —
“संघर्ष ने मुझे सिखाया है,
कि प्यार अगर सच्चा हो,
तो वो कभी कमज़ोर नहीं बनाता।”
आर्यन ने आगे बढ़कर धीरे से उसका हाथ थाम लिया।
नैना ने कोई विरोध नहीं किया,
बस आसमान की तरफ देखा —
जहाँ चाँद पूरा था,
जैसे उनकी कहानी का कोई टुकड़ा आखिर पूरा हो गया हो।
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वक़्त का इम्तिहान
सर्दियों की उस सुबह, जब दिल्ली की हवा में कोहरा घुला हुआ था,
DreamByte में सब कुछ बदलने वाला था।
कंपनी अब तेजी से बढ़ रही थी,
नए निवेशक, नए कॉन्ट्रैक्ट्स — और हर जगह बस एक नाम गूंज रहा था: नैना।
पर जहाँ सफलता आती है,
वहाँ इम्तिहान भी पीछे नहीं रहते।
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नई राह, पुराना डर
एक दिन एक बड़ा विदेशी निवेशक आया — Ethan Carter,
जिसे भारत में पार्टनरशिप करनी थी।
वो नैना की आइडियाज़ से बेहद प्रभावित हुआ।
बैठक के बाद उसने आर्यन से कहा,
> “We’d like to take her to London for the new global project.”
यानी — नैना को लंदन भेजने का प्रस्ताव मिला था,
जहाँ उसे कंपनी की International Creative Head बनाया जा सकता था।
आर्यन के चेहरे पर मुस्कान थी,
पर दिल में बेचैनी भी।
उसे डर था —
अगर नैना चली गई, तो वो सिर्फ़ कंपनी नहीं,
अपने दिल का एक हिस्सा भी खो देगा।
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प्यार या पहचान
उस शाम दोनों छत पर बैठे थे,
जहाँ कभी सपनों की बातें होती थीं,
अब हकीकत की गूंज थी।
नैना बोली —
> “आर्यन, ये मौका मेरी ज़िंदगी बदल सकता है…
पर अगर मैं चली गई, तो तुम्हारी कंपनी…?”
आर्यन ने बात काट दी —
> “नैना, ये हमारी कंपनी है।
अगर तुम आगे बढ़ोगी, तो हम सब आगे बढ़ेंगे।”
नैना ने उसकी आँखों में देखा,
> “और अगर मैं तुम्हारी ज़िंदगी से चली गई तो?”
आर्यन चुप रहा।
कुछ पलों तक सिर्फ हवा थी, और आँखों में वो सवाल,
जिसका जवाब दोनों जानते थे,
पर कह नहीं पा रहे थे।
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दूरी का डर
लंदन जाने से पहले की आख़िरी रात।
ऑफिस में सबने नैना के लिए फेयरवेल रखा।
हँसी, फूल, और यादें — सब कुछ था,
पर आर्यन वहाँ नहीं था।
नैना ने खुद उसे कॉल किया,
> “तुम आए नहीं?”
आर्यन ने धीमे से कहा,
“शायद तुम्हें अलविदा कहने की हिम्मत नहीं है।”
फोन कट गया।
नैना की आँखें नम थीं, पर होंठ मुस्कुरा रहे थे।
कभी-कभी प्यार का मतलब साथ रहना नहीं,
किसी को उड़ान देना होता है।
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छह महीने बाद...
लंदन की सड़कों पर बर्फ गिर रही थी।
नैना अब एक बड़ी क्रिएटिव डायरेक्टर बन चुकी थी।
अंतरराष्ट्रीय मीटिंग्स, इंटरव्यूज़, और शोहरत —
सबकुछ मिल गया था।
पर जब भी रात को वो खिड़की से बाहर देखती,
तो दिल में वही पुराना नाम गूंजता — आर्यन।
एक दिन उसे DreamByte की वेबसाइट पर खबर मिली —
“कंपनी आर्थिक संकट में है, आर्यन गायब है।”
उसका दिल धड़क उठा।
बिना सोचे, उसने अगले ही दिन भारत लौटने का फैसला किया।
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वक़्त का सामना
दिल्ली लौटकर उसने सबसे पहले ऑफिस का दरवाज़ा खोला।
कमरे में वही पुराना माहौल था,
पर दीवारों पर धूल जम चुकी थी।
कर्मचारी बोले —
“सर पिछले महीने से नहीं आए… उन्होंने सब छोड़ दिया।”
नैना की आँखों में आँसू आ गए।
वो उसी छत पर पहुँची, जहाँ उनकी आख़िरी बातें हुई थीं।
वहीं, एक कोने में बैठा आर्यन मिला —
थका हुआ, टूटा हुआ, पर अब भी मुस्कुराता हुआ।
> “मैंने कंपनी बचाने की कोशिश की,”
उसने कहा,
“पर शायद तुम्हारे बिना ये सपना अधूरा रह गया।”
नैना ने धीरे से कहा,
> “सपने तब पूरे होते हैं, जब दो लोग साथ हों…
तुम भूल गए थे, आर्यन — हम साथ शुरू हुए थे।”
आर्यन ने उसकी तरफ देखा —
और पहली बार, वो चुप्पी जो सालों से थी,
टूट गई।
दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया —
जैसे वक़्त ने आखिरकार हार मान ली हो।
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अधूरे सपनों की सुबह
सूरज की पहली किरणों ने जब दिल्ली की धूल भरी खिड़कियों को छुआ,
तो नैना और आर्यन दोनों उसी छत पर बैठे थे —
जहाँ कभी प्यार अधूरा रह गया था,
और जहाँ अब उम्मीदें लौट आई थीं।
आर्यन ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा —
> “नैना, मैंने हमेशा तुम्हें खोने के डर में जीया…
पर तुमने हर बार मुझे जीतना सिखाया।”
नैना मुस्कुराई —
> “और मैंने हर बार तुम्हारे कारण हार से डरना छोड़ दिया।”
वो मुस्कान, जो सालों से छिपी थी,
आज फिर उनके चेहरों पर थी।
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नई शुरुआत
आर्यन ने अपने लैपटॉप की स्क्रीन खोली —
DreamByte की पुरानी फाइलें अब भी वहीं थीं,
पर अब नैना की नज़र एक नए आइडिया पर पड़ी —
एक क्रिएटिव इनिशिएटिव, “Sapno Ki Lakeer” नाम से।
नैना ने कहा —
> “हम इसे फिर से शुरू करते हैं —
उन लोगों के लिए जो सपने देखना छोड़ चुके हैं।”
आर्यन ने हाँ में सिर हिलाया।
इस बार DreamByte सिर्फ़ एक कंपनी नहीं,
एक मिशन बनने वाली थी।
दोनों ने फिर साथ काम शुरू किया —
नफरतों के बिना, झगड़ों के बिना,
बस एक-दूसरे के सम्मान और भरोसे के साथ।
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प्यार की परिभाषा
दिन बीतते गए।
नैना की मेहनत और आर्यन के नेतृत्व ने कंपनी को फिर ऊँचाई दी।
इंटरव्यूज़ में लोग पूछते,
> “आप दोनों का रिश्ता क्या है?”
नैना बस मुस्कुरा देती —
> “हम दोनों वो हैं, जिन्होंने अधूरे सपनों को साथ मिलकर पूरा किया है।”
प्यार अब उनके बीच इज़हार से नहीं,
एक एहसास बन चुका था।
वो एहसास जो शब्दों की ज़रूरत नहीं रखता।
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वो सुबह…
एक साल बाद,
DreamByte ने देश का सबसे बड़ा Social Innovation Award जीता।
स्टेज पर नैना और आर्यन दोनों साथ खड़े थे।
फ्लैश लाइट्स चमक रही थीं,
और तालियों की गूंज में नैना ने माइक उठाया —
> “ये जीत सिर्फ हमारी नहीं है।
ये हर उस इंसान की है जिसने हार मानने के बाद भी
अपने सपनों को पलकों से गिरने नहीं दिया।”
तालियाँ गूँज उठीं।
आर्यन ने धीरे से कहा —
> “अब तो सब कुछ पूरा हो गया, नैना।”
नैना ने उसकी तरफ देखा और बोली —
> “नहीं आर्यन, ये तो बस शुरुआत है।”
और उसी वक्त सूरज की एक किरण उन दोनों पर पड़ी —
मानो खुद वक़्त कह रहा हो,
“अब कोई सपना अधूरा नहीं रहेगा।”
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समापन
वक़्त बीत गया,
पर पलकों पर अधूरे सपने की वो कहानी
लोगों के दिलों में ज़िंदा रही।
कभी किसी के संघर्ष में,
तो कभी किसी की मोहब्बत में।
क्योंकि —
> “प्यार वो नहीं जो सब आसान कर दे,
प्यार वो है जो हर मुश्किल में साथ खड़ा रहे।”
-By Tanya Singh