कोरोना महामारी के दौर पर आधारित लघु उपन्यास: यशस्विनी: अध्याय 27: समापन भाग
उधर यशस्विनी अपनी चेतना धीरे-धीरे खोने लगी …..यह जागरण है या स्वप्न?..... उसे लगा जैसे उसकी सांसें उखड़ रही हैं…..उसे तेज ज्वर का अनुभव हुआ …..उसे सीने में जकड़न का एहसास हुआ। लगा जैसे पूरा कमरा घूम रहा है और कमरे से बाहर बैठे रोहित की आकृति भी अब धुंधली होने लगी। वह समझ नहीं पा रही है कि क्या हो रहा है उसने रोहित को आवाज देना चाहा लेकिन मुंह से आवाज भी नहीं निकल पाई ।यशस्विनी ने ध्यान में डूबने की कोशिश की लेकिन वह ध्यान लगाना ही जैसे भूल गई हो। मूलाधार…………..स्वाधिष्ठान, आज्ञा चक्र नहीं….नहीं पहले मूलाधार……. वह मूर्छित होने लगी।सपने में बचपन की अनेक बातें याद आने लगी। पांच साल की उम्र की यशस्विनी महेश बाबा का हाथ पकड़े भगवान बांके बिहारी जी और राधा जी की मूर्ति के सामने खड़ी है। वह पूछ रही है-ये जगत माता पिता हैं लेकिन क्या ये मेरे भी माता-पिता हैं?
……हां यशस्विनी…
तो ये मेरे पुकारने पर मेरे सामने क्यों नहीं आते ?
…….नहीं ऐसा नहीं है बेटी…वे कभी अदृश्य आकर सहायता करते हैं, कभी किसी और रूप में आ जाते हैं और कभी-कभी तो प्रत्यक्ष भी होते हैं ।बस हमें उन्हें देखने के लिए दृष्टि चाहिए।
…….. यशस्विनी की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। वह ध्यान में डूबने की कोशिश करने लगी। उसे थोड़ी ही देर बाद अद्भुत दृश्य दिखाई देने लगे। ध्यान मुद्रा में बैठे हुए त्रिशूल और डमरूधारी भगवान महादेव और मां पार्वती दिखाई पड़े। आदिदेव और आदिशक्ति कैलाश के उच्च शिखर पर विराजमान……… उन्हें वहां देखकर यशस्विनी दंडवत हो गई है।उठ कर जैसे ही उसने अपनी आंखें खोली……. उसे प्रेम और सौंदर्य के सबसे बड़े स्रोत भगवान बांके बिहारी जी और राधिका जी दिखाई पड़े………. बांसुरी बजाते हुए मोर पंखधारी बांके बिहारी जी और उनके साथ खड़ी हुई नीले वस्त्रों में राधिका जी ……..फिर एक बार आनंद का अद्भुत लोक।यशस्विनी के दोनों हाथ जुड़ गए।आंखों से आंसू बहने लगे। बहुत देर तक यशस्विनी जागरण और स्वप्न दोनों की अवस्था में ……इसी भाव लोक में रही।रोहित भी कमरे से बाहर उसी अर्ध जागरण की अवस्था में उनींदे लेटा हुआ था ।जब वह कुछ क्षण को चैतन्य होता तो उसे लगता यशस्वी के सानिध्य में भी वह योग साधना और ध्यान में अधिक मेहनत नहीं कर पाया और अभी भी बहुत सी चीजें उसे सीखनी है और ध्यान में वह बहुत पीछे चल रहा है ……..अचानक अंदर से यशस्विनी के चीखने की आवाज आई….. रोहित घबरा कर उठा और तेजी से सभी कोरोना पाबंदियों को दरकिनार करते हुए भीतर की ओर भागा….यशस्विनी बिस्तर पर अचेत सी पड़ी थी….. उसकी आंखें बार-बार खुल और बंद हो रही थीं….
रोहित ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,"चिंता मत करो यशस्विनी मैं आ गया हूं….."
कराहते हुए यशस्विनी ने कहा,"तुम भीतर क्यों आए रोहित? तुम वापस जाओ?..."
रोहित ने संयत होते हुए रुंधे गले से कहा, "....इसलिए... इसलिए यशस्विनी कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूं…."
जैसे यशस्विनी के ओंठ बुदबुदाए,
".... मैं भी रोहित…. तुम्हें….।"
इतना कहकर यशस्विनी की आंखें बंद होने लगीं….. रोहित ने जाँचा…. बुखार 102 क्रॉस कर रहा था... ऑक्सीजन लेवल गिरकर 55 से नीचे और पल्स भी असामान्य…... यह देखकर रोहित घबरा गया।उसने यशस्विनी के सिर को हल्के से झिंझोड़ा…. यशस्विनी ने बड़ी मुश्किल से आंखें खोली और कहा,
" मैं जा रही हूं रोहित... तुम अपना ध्यान रखना….. महेश बाबा का भी और आश्रम के बच्चों और अन्य लोगों का भी….."
रोहित ने मेडिकल इमरजेंसी के लिए फोन लगाना चाहा तो यशस्विनी ने इशारे से मना कर दिया और कहा, "मेरे पास समय कम है…."
" ऐसा मत कहो यशस्विनी…. मैं अभी भगवान बांके बिहारी का ध्यान करता हूं।योग चक्र में तो मैं अधिक ऊपर नहीं उठ पाया लेकिन उनकी कृपा से उनके ध्यान से एक क्षण में ही वे मुझे सारे चक्र पार कराकर अपने पास सहस्त्रार में पहुंचा देंगे और मैं अगले ही पल वहां उनसे तुम्हारा तुरंत स्वस्थ होना मांग लूंगा …..बस अभी कुछ ही सेकंड में……. तुम बस अपनी चेतना बनाए रखना……….. भगवान बांके बिहारी कृपा अवश्य करेंगे…और... तब तक एंबुलेंस भी आ जाएगी…. हमारे मेडिकल साइंस और प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में भी सभी चीजों का हल है….. बस तुम धैर्य बनाए रखो…. भगवान बांके बिहारी इतना बड़ा अन्याय नहीं होने देंगे…. बस तुम स्वयं को कुछ देर के लिए ही जाग्रत रखो... उनकी कृपा अवश्य होगी।"
कोरोना ने कहीं पर तो कोई नुकसान नहीं किया ,केवल स्पर्श कर ही निकल गया तो कहीं प्रभावित लोगों को इलाज करवा कर स्वस्थ होने का मौका भी दे दिया और कहीं-कहीं तो कुछ ही घंटों में स्थिति पूरी तरह से बिगड़ गई …….जैसा एकदम स्वस्थ यशस्विनी के साथ अचानक हो रहा है। यही इस महामारी की एकदम अनिश्चित प्रकृति है। कोविड-19 से संघर्ष को अभी 5 से 6 महीने ही हुए हैं। जुलाई 2020 और ना जाने कोई दूसरी लहर, जिसकी वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं, आएगी तो आगे क्या-क्या दिन देखने पड़ेंगे ।शायद इस कोविड-19 पर फिलहाल किसी का बस नहीं है। बस हम सब बचे हैं तो बचे हुए हैं।मास्क,सैनिटाइजर, सुरक्षित दूरी तब तक जरूरी है,जब तक वैक्सीन नहीं आती है ।अभी तो इसके लिए अनुसंधान अपने प्रारंभिक दौर में है और शायद वैक्सीन आने के बाद भी आगे कई वर्षों तक मानवता को सतर्कता और सावधानियों के साथ ही जीना होगा।
कमरे में वातावरण अत्यंत भावुक है और पढ़े-लिखे रोहित को सूझ नहीं रहा है कि वह क्या करे।शायद उसके लिए यह अपने प्राणों से भी प्रिय यशस्विनी के चिर विछोह की बेला है। शायद कुछ ही सेकंड में सब कुछ बदल जाने वाला है। बड़ी कठिनाई से रोहित का हाथ अपने हाथों में लेते हुए यशस्विनी ने कहा, "मुझे प्रॉमिस करो कि मैं रहूं या ना रहूं,तुम सामान्य जीवन जीओगे… विवाह…. जनसेवा…. आदि सभी जीवन के संस्कार और लक्ष्य पूरे करोगे…... हमेशा सकारात्मक रहोगे…. कभी टूटोगे नहीं…. योग और सादगी के भारतीय परंपरागत संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करोगे ।भारत को सफल, सक्षम,समर्थ बनाते रहोगे…..।"
यशस्विनी के आखिरी के कुछ वाक्यों और अस्पष्ट वाणी को रोहित ने केवल उसके होठों की गति के आधार पर समझा…डबडबाई आंखों से रोहित ने कहा हां-हां यशस्विनी…। इसके बाद रोहित के शब्दों से वाक्य पूरा होते-होते यशस्विनी की आत्मा भगवान बांके बिहारी जी के दिव्य लोक के लिए प्रस्थान करने लगी। उसकी पुण्य आत्मा ऊपर बहुत ऊपर उठी। ऊपर आकाश में बांके बिहारी जी की विशालकाय छवि उभरी और यशस्विनी की आत्मा का चमकीला प्रकाश देखते ही देखते इसमें समा गया……… यशस्विनी इस दुनिया और सांसारिक संबंधों से ऊपर….. बहुत ऊपर उठ चुकी थी…….।
15 दिनों के बाद श्री कृष्ण प्रेमालय में गेरुए वस्त्र पहने रोहित को महेश बाबा ने अपने चरणों से उठाया और कहा,
"ठीक है रोहित….. तुम साधना के लिए हिमालय क्षेत्र के मठों में जाना चाहते हो तो जाओ…. लेकिन मैं तुम्हें केवल 6 महीने दूंगा। ठीक 6 महीने बाद तुम्हें वापस मेरे पास यहां आकर अपनी उपस्थिति देनी होगी।"
रोहित ने हाथ जोड़कर प्रणामकर और पुनः झुकते हुए कहा,"जो आज्ञा गुरुवर।"
10 दिनों के बाद रोहित हिमालय क्षेत्र में दुर्गम ऊंचाई पर स्थित एक मठ की ओर पैदल चढ़ाई कर रहे हैं। बाएं हाथ में लाठी है और उसने दाहिने हाथ से पीठ में टंगे अपने थैले को पकड़ रखा है ।अगस्त 2020 का महीना है। मानसूनी हवाओं और बारिश के प्रभाव से अब तक अछूते रहने वाले इस हिमालयी क्षेत्र में हमेशा ठंडक बनी रहती है। ऊंचे हिमालय की एक झील के पास रोहित को ब्रह्म कमल खिले हुए मिले, जिनका दिखना दुर्लभ होता है। रोहित ने चढ़ाई में काम आने वाली अपनी लाठी एक पत्थर पर टिकाई ।पोटली को किनारे रख झील के किनारे बैठकर इन कमलों को निहारते हुए रोहित का मन थोड़ी देर के लिए प्रकृति से गहरे तादात्म्य की अनुभूति में डूब गया।झील के पास में धवल पर्वतों की ऊंचाई में उसे ऐसा लगा,जैसे यशस्विनी मुस्कुरा रही हो। मानो कह रही हो…. मैं तुम्हारे ही आसपास हूं रोहित …..और मेरी संवेदनाएं सदैव तुम्हारे साथ हैं….. और तुम पर कभी कोई विपत्ति आएगी ना रोहित,तो भगवान बांके बिहारी की अनुमति लेकर उनके चरणों से उठकर दौड़कर सीधे तुम्हारे पास पहुंच जाया करूंगी। अचानक रोहित को एक अद्भुत अनुभूति हुई।रोहित ने यशस्विनी को अपनी धमनियों में,शिराओं में, नस - नस में अनुभव किया। यशस्विनी की पवित्र आत्मा का एक अंश मानो सदा - सदा के लिए रोहित की आत्मा से एकाकार हो उठा हो। रोहित ने यशस्विनी को स्वयं में अनुभव किया।वह एक नई ऊर्जा और आंतरिक शक्ति से भर उठा।यशस्विनी के आभास वाली दिशा की ओर रोहित का दाहिना हाथ आसमान में अनायास गया….. जैसे रोहित यशस्विनी का अभिवादन कर रहा हो…….।
( समाप्त)
डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय
(पूर्णतः काल्पनिक रचना। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पद, स्थान, साधना पद्धति या अन्य रीति रिवाज, नीति, समूह, निर्णय, कालावधि, घटना, धर्म, जाति आदि से अगर कोई भी समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र ही होगी।)
( कृपया वर्णित योग,ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यासों, मार्शल आर्ट आदि का बिना योग्य गुरु की उपस्थिति और मार्गदर्शन के अनुसरण व अभ्यास न करें। वर्णित योग ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यास, मार्शल आर्ट आदि की सटीकता का दावा नहीं है। लेखक ने अपने अध्यय, सामान्य ज्ञान तथा सामान्य अनुभवों के आधार पर उनकी साहित्यिक प्रस्तुति की है)
(लेखक कोविड-19 समेत समस्त रोगों के उपचार में एलोपैथी,आयुर्वेद और होम्योपैथी समेत सभी मान्य चिकित्सा पद्धतियों के उपचार का समर्थन करता है और भारत की केंद्रीय सरकार तथा विभिन्न प्रदेशों की सरकारों के समस्त कोविडरोधी प्रोटोकॉल का पालन करता है।इस काल्पनिक उपन्यास के किसी भी अंश के विवरण का रोगों के इलाज आदि में मानक रूप में अनुसरण न किया जाए। सदैव डॉक्टरों की सलाह का पालन किया जाए।)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय