अनोखी दवा
अमृत शर्मा ने अपनी प्रयोगशाला की खिड़की से बाहर देखा। मुंबई की भीड़-भाड़ वाली सड़कें उसे हमेशा की तरह व्यस्त दिखाई दीं। लेकिन आज उसका मन कहीं और था। पिछले तीन वर्षों से वह एक ऐसी खोज में लगा था जो मानवता के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकती थी—एक ऐसी दवा जो कैंसर को जड़ से खत्म कर सके।
डॉक्टर अमृत शर्मा देश के सबसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों में से एक थे। मात्र पैंतीस वर्ष की आयु में उन्होंने अनेक शोध पत्र प्रकाशित किए थे और कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीते थे। लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि अभी आनी बाकी थी।
"सर, परिणाम तैयार हैं," उनकी सहायक रीना ने दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा।
अमृत की धड़कनें तेज हो गईं। यह वह क्षण था जिसका उन्हें महीनों से इंतजार था। उन्होंने रीना से रिपोर्ट ली और ध्यान से पढ़ने लगे। उनकी आँखें चौड़ी हो गईं।
"यह... यह तो अविश्वसनीय है," वे बुदबुदाए। "परीक्षण सफल रहा। कैंसर कोशिकाएं पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं, और स्वस्थ कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं हुआ।"
रीना ने खुशी से ताली बजाई। "सर, यह तो इतिहास रचने वाली खोज है! हमें तुरंत इसे प्रकाशित करना चाहिए।"
लेकिन अमृत चुप थे। उनके चेहरे पर विचारों की रेखाएं उभर आई थीं।
"क्या हुआ सर? आप खुश नहीं हैं?" रीना ने पूछा।
"खुश हूँ, रीना। लेकिन मैं सोच रहा हूँ... यह खोज इतनी महत्वपूर्ण है कि इसे सही हाथों में होना चाहिए।"
उसी शाम, अमृत को एक फोन आया। कॉल करने वाला राजीव मल्होत्रा था—देश की सबसे बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनी के मालिक।
"डॉक्टर शर्मा, मैंने आपकी सफलता के बारे में सुना है," मल्होत्रा की आवाज में व्यावसायिक मिठास थी। "मैं आपसे मिलना चाहता हूँ। कल मेरे ऑफिस आइए।"
अगले दिन, अमृत मल्होत्रा की भव्य ऑफिस में पहुंचे। शीशे की दीवारों वाला कमरा शहर के सबसे खूबसूरत दृश्य प्रस्तुत करता था। मल्होत्रा ने उन्हें गर्मजोशी से स्वागत किया।
"डॉक्टर साहब, आपकी खोज अमूल्य है," मल्होत्रा ने कहा। "मैं आपको पांच करोड़ रुपये देने के लिए तैयार हूँ। बस आपको अपनी खोज का पेटेंट मुझे बेचना होगा।"
अमृत सकते में आ गए। "पांच करोड़? यह तो बहुत बड़ी रकम है।"
"और आप इसके हकदार हैं," मल्होत्रा मुस्कुराए। "सोचिए, आप अपने परिवार को कितनी सुख-सुविधाएं दे सकते हैं। अपनी बूढ़ी माँ को सबसे अच्छा इलाज मिल सकेगा।"
अमृत के मन में अपनी माँ की छवि उभरी। वे बीमार रहती थीं और उनका इलाज महंगा था। लेकिन फिर भी कुछ उन्हें रोक रहा था।
"मुझे सोचने के लिए कुछ समय चाहिए," उन्होंने कहा।
"बिल्कुल, लेकिन ज्यादा देर मत कीजिए," मल्होत्रा ने चेतावनी दी। "और लोग भी इस खोज में रुचि दिखा रहे हैं।"
अमृत घर लौटे तो उनका मन भारी था। उन्होंने अपने पिता से बात की, जो एक सेवानिवृत्त शिक्षक थे।
"बेटा, पैसा जरूरी है, लेकिन यह मत भूलो कि तुमने यह खोज किस उद्देश्य से की थी," पिता ने समझाया। "तुम्हारा लक्ष्य सिर्फ पैसा कमाना तो नहीं था, है ना?"
उनकी बात ने अमृत को सोचने पर मजबूर कर दिया।
कुछ दिनों बाद, एक और फोन आया। इस बार कॉल करने वाले डॉक्टर सुनील खन्ना थे, जो एक गैर-लाभकारी संस्था चलाते थे जो गरीब कैंसर मरीजों का मुफ्त इलाज करती थी।
"डॉक्टर शर्मा, मैं जानता हूँ कि आपको कई प्रस्ताव मिल रहे होंगे," डॉक्टर खन्ना ने कहा। "लेकिन मैं आपसे एक निवेदन करना चाहता हूँ। हमारे अस्पताल में हर रोज दर्जनों मरीज आते हैं जो इलाज का खर्च नहीं उठा सकते। अगर आप अपनी खोज हमारे साथ साझा करें, तो हम इसे सस्ती दरों पर उपलब्ध करा सकते हैं।"
"लेकिन डॉक्टर खन्ना, आप मुझे कितना दे सकते हैं?" अमृत ने पूछा।
"सच कहूँ तो कुछ नहीं," डॉक्टर खन्ना की आवाज में ईमानदारी थी। "हमारे पास सिर्फ आपका और हजारों गरीब मरीजों का आशीर्वाद होगा। मैं जानता हूँ यह आपके लिए मुश्किल फैसला है।"
अमृत ने फोन रख दिया और गहरी सांस ली। वे अपनी प्रयोगशाला में गए और पुरानी तस्वीरें देखने लगे। एक तस्वीर में वे अपनी छोटी बहन के साथ थे, जिसे बचपन में कैंसर ने छीन लिया था। यही वह क्षण था जब उन्होंने कसम खाई थी कि वे कैंसर को हराने का तरीका खोजेंगे।
"दीदी, मैंने वादा किया था कि मैं ऐसी दवा बनाऊंगा जो तुम्हारे जैसे और लोगों को बचा सके," वे बुदबुदाए।
उसी रात, अमृत ने अपना फैसला कर लिया।
अगले दिन, उन्होंने मल्होत्रा को फोन किया।
"मि. मल्होत्रा, मैंने सोच लिया है। मैं आपको अपनी खोज नहीं बेचूंगा।"
लाइन के दूसरी तरफ से चुप्पी छा गई, फिर गुस्से भरी आवाज आई। "डॉक्टर शर्मा, आप गलती कर रहे हैं। आप इतना पैसा ठुकरा रहे हैं? क्या आप पागल हो गए हैं?"
"शायद," अमृत मुस्कुराए। "लेकिन कुछ चीजें पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं।"
अमृत ने अपनी खोज को सार्वजनिक कर दिया। उन्होंने अपने शोध के सभी विवरण एक अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किए, जिससे दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर काम कर सकें। उन्होंने डॉक्टर खन्ना के अस्पताल के साथ साझेदारी की और यह सुनिश्चित किया कि दवा गरीब मरीजों के लिए सस्ती हो।
खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। मीडिया ने अमृत को "जन-नायक" और "त्यागी वैज्ञानिक" कहकर सम्मानित किया। लेकिन उनके इस फैसले की आलोचना भी हुई।
"आप बेवकूफ हैं," उनके एक पुराने सहयोगी ने कहा। "आप अरबपति बन सकते थे।"
"पैसा कमाना गलत नहीं है," अमृत ने जवाब दिया। "लेकिन जब किसी खोज में लाखों लोगों की जिंदगी बचाने की क्षमता हो, तो उसे मुनाफे का साधन बनाना गलत है।"
महीने बीतते गए। अमृत की दवा का उत्पादन शुरू हो गया। पहले बैच की दवाएं डॉक्टर खन्ना के अस्पताल में पहुंचीं। अमृत खुद वहां गए जब पहली मरीज को यह दवा दी गई—एक आठ साल की बच्ची, जिसे ब्लड कैंसर था।
उस बच्ची का नाम आरती था। उसके माता-पिता गरीब मजदूर थे जो अपनी बेटी का इलाज कराने के लिए सब कुछ बेच चुके थे। जब डॉक्टर खन्ना ने उन्हें बताया कि अब इलाज मुफ्त होगा, तो उनकी आँखों में आंसू आ गए।
"भगवान आपको लंबी उम्र दे, डॉक्टर साहब," आरती की माँ ने अमृत के पैर छुए।
अमृत ने उन्हें उठाया। "यह मेरा कर्तव्य था। और आरती जल्द ही ठीक हो जाएगी।"
तीन महीने बाद, आरती के कैंसर के सभी लक्षण गायब हो गए थे। वह स्वस्थ हो चुकी थी। यह खबर सुनकर अमृत की आँखों में खुशी के आंसू आ गए। उन्हें अपनी बहन की याद आई।
"दीदी, आखिरकार मैंने अपना वादा पूरा कर दिया।"
लेकिन सब कुछ आसान नहीं था। मल्होत्रा और दूसरी बड़ी कंपनियों ने अमृत के खिलाफ कानूनी लड़ाई छेड़ दी। उन्होंने दावा किया कि अमृत ने अपनी खोज को सार्वजनिक करके बौद्धिक संपदा कानूनों का उल्लंघन किया है। मामला अदालत में पहुंच गया।
अदालत में, अमृत ने अपना पक्ष रखा।
"माननीय न्यायाधीश, मैं मानता हूँ कि मैंने पैसा कमाने का एक बड़ा मौका गंवाया। लेकिन मैंने विज्ञान में करियर इसलिए नहीं चुना था कि मैं अमीर बनूं। मैंने इसलिए चुना था क्योंकि मैं लोगों की मदद करना चाहता था। अगर मेरी खोज से सिर्फ अमीर लोग ही फायदा उठा सकते हैं, तो इसका क्या मतलब?"
उनकी बात सुनकर पूरा कोर्टरूम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
न्यायाधीश ने फैसला सुनाया, "डॉक्टर शर्मा ने कोई कानून नहीं तोड़ा। उन्होंने अपनी खोज को मानवता की भलाई के लिए समर्पित किया है। यह स्वार्थ नहीं, बल्कि सच्ची देशभक्ति और मानवता की सेवा है।"
अमृत ने केस जीत लिया।
एक साल बाद, अमृत की दवा पूरे देश में उपलब्ध थी। हजारों मरीजों की जान बच चुकी थी। सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा।
पुरस्कार समारोह में, अमृत ने अपने भाषण में कहा, "यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं है। यह उन सभी वैज्ञानिकों का है जो पैसे से ज्यादा मानवता को महत्व देते हैं। यह उन डॉक्टर खन्ना जैसे लोगों का है जो बिना किसी स्वार्थ के गरीबों की सेवा करते हैं। और यह उन सभी मरीजों का है जिन्होंने कभी हार नहीं मानी।"
उस रात, जब अमृत घर लौटे, तो उनकी माँ ने उन्हें गले लगाया।
"तुमने सही किया, बेटा। तुम्हारी बहन को भी गर्व होता अगर वह यहाँ होती।"
अमृत मुस्कुराए। उन्हें पता था कि उनकी बहन उन्हें देख रही थी, और गर्व महसूस कर रही थी।
उनकी अनोखी खोज सिर्फ एक दवा नहीं थी—यह मानवता, त्याग और सच्चे उद्देश्य की खोज थी। अमृत शर्मा ने साबित कर दिया कि सच्ची सफलता पैसे में नहीं, बल्कि लोगों की सेवा में है।
और इस तरह, एक साधारण वैज्ञानिक ने एक असाधारण उदाहरण पेश किया—कि कभी-कभी सबसे बड़ी खोज यह होती है कि हम अपने जीवन का असली उद्देश्य क्या है।
समाप्त
Vijay Sharma Erry