# गुमशुदा हवा
**लेखक: विजय शर्मा एरी**
## पहला अध्याय: खोया हुआ आकाश
रमन ने अपनी खिड़की से बाहर झाँका। आकाश वैसा नहीं था जैसा कल था। रंग तो वही नीला था, लेकिन कुछ गायब था। हवा। वह हवा जो सुबह उसके बालों में उलझती थी, जो पत्तों को सरसराती थी, जो उसकी माँ की साड़ी को लहराती थी - वह गायब थी।
"माँ!" रमन ने आवाज़ लगाई। "हवा नहीं चल रही!"
उसकी माँ रसोई से बाहर आई, माथे पर चिंता की लकीरें। "हाँ बेटा, मैंने भी देखा। पूरे गाँव में एक भी पत्ता नहीं हिल रहा। यह बहुत अजीब है।"
रमन बारह साल का था, लेकिन उसकी जिज्ञासा किसी वैज्ञानिक से कम नहीं थी। वह बाहर भागा। गाँव का मैदान सन्नाटे में डूबा था। पेड़ बिल्कुल स्थिर खड़े थे, मानो किसी ने उन्हें तस्वीर में जकड़ दिया हो। पक्षी चहचहा रहे थे, लेकिन उनकी आवाज़ें कुछ अधूरी लग रही थीं।
गाँव के बुज़ुर्ग चौपाल पर इकट्ठे थे। दादा जी सबसे बड़े थे और सबसे ज्ञानी भी।
"दादा जी," रमन ने पूछा, "हवा कहाँ गई?"
दादा जी ने अपनी सफ़ेद दाढ़ी पर हाथ फेरा। "बेटा, मैंने अपने सत्तर सालों में ऐसा कभी नहीं देखा। हवा का गायब होना... यह तो प्रकृति का कोई संदेश है।"
"या फिर कोई समस्या," रमन ने सोचते हुए कहा।
## दूसरा अध्याय: पहला सुराग
रमन अपने दोस्त अर्जुन के घर गया। अर्जुन गाँव का सबसे तेज़ धावक था, लेकिन आज वह भी परेशान था।
"यार रमन, मैंने आज सुबह दौड़ने की कोशिश की। पता है क्या हुआ? मुझे ऐसा लगा जैसे किसी भारी कंबल में लिपटा हूँ। हवा के बिना दौड़ना कितना मुश्किल है!"
रमन ने सोचा। "हवा सिर्फ़ पत्तों को हिलाने के लिए नहीं है। यह हमारी साँसों में है, पक्षियों की उड़ान में है, बादलों की यात्रा में है।"
तभी छोटी राधा दौड़ती हुई आई। "रमन भैया! गाँव के बाहर, पहाड़ी के पास... वहाँ एक अजीब चमक दिख रही है!"
तीनों बच्चे भागे। पहाड़ी के पास पहुँचकर उन्होंने देखा - एक विशाल, पारदर्शी गुंबद जैसी चीज़ पूरे गाँव को घेरे हुए थी। वह इतनी पारदर्शी थी कि पहली नज़र में दिखती ही नहीं थी। लेकिन जब सूरज की रोशनी उस पर पड़ती, तो वह इंद्रधनुष की तरह चमक उठती।
"यह क्या है?" अर्जुन ने फुसफुसाते हुए पूछा।
रमन ने एक पत्थर उठाया और उस गुंबद की तरफ़ फेंका। पत्थर एक अदृश्य दीवार से टकराकर वापस गिर गया।
"हम क़ैद हैं," राधा ने डर के साथ कहा।
"नहीं," रमन ने उसका हाथ थामा, "हम बंद ज़रूर हैं, लेकिन हर समस्या का समाधान होता है। हमें यह पता करना होगा कि यह गुंबद किसने बनाया और क्यों।"
## तीसरा अध्याय: रहस्यमयी बूढ़ा
शाम को, रमन गाँव के सबसे पुराने मंदिर में गया। वहाँ एक साधु रहते थे जिन्हें लोग पागल समझते थे। लेकिन रमन को लगता था कि वे कुछ जानते हैं।
"स्वामी जी," रमन ने कहा, "आप जानते हैं ना कि क्या हो रहा है?"
बूढ़े साधु ने आँखें खोलीं। उनकी आँखें गहरी और रहस्यमय थीं।
"हवा का देवता रुष्ट है, बेटे," उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा। "सालों पहले, इस गाँव में एक संत आए थे। उन्होंने यहाँ एक पवित्र वृक्ष लगाया था - वायु वृक्ष। वह वृक्ष हवा को शुद्ध रखता था, प्रकृति का संतुलन बनाए रखता था। लेकिन दस साल पहले, गाँव के लोगों ने उस जगह पर एक नया घर बनाने के लिए वह पेड़ काट दिया।"
रमन की आँखें चौड़ी हो गईं। "और तब से?"
"तब से वायु देवता प्रतीक्षा कर रहे थे। आज, पूर्णिमा की रात, उन्होंने यह गुंबद बनाया है। यह एक परीक्षा है। अगर गाँव वाले अपनी ग़लती नहीं सुधारेंगे, तो हवा कभी नहीं लौटेगी।"
"लेकिन हम क्या कर सकते हैं?" रमन ने पूछा।
साधु ने एक पुराना नक्शा निकाला। "इस गाँव के उत्तर में, घने जंगल में, एक गुफा है। उस गुफा में वायु देवता का मंदिर है। वहाँ तुम्हें वायु मणि मिलेगी। उसे लाकर उस जगह पर रखना होगा जहाँ वायु वृक्ष था। केवल तभी यह शाप टूटेगा।"
## चौथा अध्याय: ख़तरनाक यात्रा
रमन, अर्जुन और राधा रात के अंधेरे में निकल पड़े। गुंबद के अंदर से निकलना मुश्किल था, लेकिन साधु ने उन्हें एक रास्ता बताया - एक पुरानी सुरंग जो गाँव के नीचे से जंगल की तरफ़ जाती थी।
सुरंग अंधेरी और डरावनी थी। रमन ने अपनी मशाल ऊँची की। दीवारों पर पुराने चित्र बने थे - हवा के देवता, पक्षी, और उड़ते हुए बादल।
"देखो," राधा ने एक चित्र की तरफ़ इशारा किया, "यहाँ लिखा है: 'जो हवा की क़द्र नहीं करता, वह जीवन की क़द्र नहीं करता।'"
वे आगे बढ़े। सुरंग का अंत जंगल के बीचों-बीच था। चाँदनी रात में जंगल और भी रहस्यमय लग रहा था। हवा के बिना, जंगल में सन्नाटा इतना गहरा था कि उनके क़दमों की आवाज़ें गूंज रही थीं।
"गुफा उत्तर दिशा में होनी चाहिए," रमन ने अपना कंपास देखते हुए कहा।
अचानक, एक तेज़ आवाज़। एक विशाल उल्लू उनके सामने आकर बैठ गया। उसकी आँखें सुनहरी चमक रही थीं।
"तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए हो?" उल्लू ने पूछा।
तीनों बच्चे चौंक गए। एक बोलने वाला उल्लू!
"हम... हम वायु मणि खोज रहे हैं," रमन ने हिम्मत करके कहा।
उल्लू ने सिर हिलाया। "मैं वायु देवता का दूत हूँ। मैं तुम्हारी परीक्षा लूँगा। अगर तुम सच्चे हृदय से आए हो, तो मैं तुम्हें रास्ता दिखाऊँगा।"
## पाँचवाँ अध्याय: परीक्षा
उल्लू ने तीन प्रश्न पूछे:
"पहला प्रश्न: हवा दिखती नहीं, फिर भी सबसे शक्तिशाली क्यों है?"
रमन ने सोचा। "क्योंकि हवा हर जगह है। वह जीवन देती है, बदलाव लाती है, और किसी सीमा में नहीं बँधती।"
उल्लू मुस्कुराया।
"दूसरा प्रश्न: अगर तुम्हें चुनना हो - अपनी जान बचाना या पूरे गाँव को हवा वापस देना, तो क्या चुनोगे?"
अर्जुन ने बिना सोचे कहा, "गाँव को हवा वापस दूँगा। एक जान से ज़्यादा ज़रूरी हैं सैकड़ों लोगों की साँसें।"
उल्लू ने सिर हिलाया।
"तीसरा प्रश्न: प्रकृति से सबसे बड़ा पाप क्या है?"
राधा ने कहा, "उसकी क़द्र न करना। जो हमें मुफ़्त मिलता है, उसे हम भूल जाते हैं। हवा, पानी, पेड़ - हम इन्हें तब याद करते हैं जब ये खो जाते हैं।"
उल्लू के पंख फैल गए। "तुम तीनों पास हो गए। मेरे पीछे आओ।"
## छठा अध्याय: वायु मणि
गुफा के अंदर एक अद्भुत दृश्य था। दीवारों पर हज़ारों छोटे-छोटे दीपक जल रहे थे। बीच में एक पत्थर की वेदी पर एक नीली मणि रखी थी। वह मणि हवा की तरह लहरा रही थी, जैसे उसके अंदर तूफ़ान क़ैद हो।
"यह वायु मणि है," उल्लू ने कहा। "लेकिन याद रखो - इसे केवल वही छू सकता है जिसका हृदय शुद्ध हो।"
रमन आगे बढ़ा। उसने गहरी साँस ली और मणि को छुआ। एक तेज़ हवा का झोंका उठा, लेकिन रमन ने मणि को मज़बूती से पकड़े रखा।
"अब जल्दी करो," उल्लू ने कहा। "सूरज उगने से पहले इसे वायु वृक्ष की जगह पर रखना होगा, वरना सब व्यर्थ हो जाएगा।"
तीनों बच्चे दौड़े। समय कम था और रास्ता लंबा। लेकिन उनके क़दमों में दृढ़ता थी।
## सातवाँ अध्याय: मुक्ति
जब वे गाँव पहुँचे, तो सूरज की पहली किरण उग रही थी। पूरा गाँव जाग चुका था। लोग डरे हुए थे - हवा के बिना एक पूरा दिन गुज़ारना कितना मुश्किल था।
रमन उस जगह पर पहुँचा जहाँ कभी वायु वृक्ष खड़ा था। अब वहाँ एक नया घर था। घर के मालिक शर्मा जी बाहर खड़े थे।
"शर्मा अंकल," रमन ने कहा, "हमें इस घर के नीचे मणि रखनी होगी।"
शर्मा जी ने पूरी कहानी सुनी। उनकी आँखों में आँसू आ गए। "मैंने वह पेड़ काटा था। मुझे नहीं पता था कि इतना बड़ा नुक़सान होगा। लो, तोड़ दो इस घर को।"
लेकिन रमन ने मना कर दिया। "हमें घर तोड़ने की ज़रूरत नहीं। हमें बस इस मणि को यहाँ की ज़मीन में गाड़ना है और एक नया वायु वृक्ष लगाना है।"
पूरे गाँव ने मिलकर काम किया। उन्होंने मणि को गाड़ा और एक नन्हा पौधा रोपा। रमन ने अपनी आँखें बंद कीं और प्रार्थना की।
"हे वायु देवता, हम अपनी ग़लती समझ गए हैं। हम वादा करते हैं कि अब हम प्रकृति का सम्मान करेंगे।"
एक पल के लिए सब कुछ स्थिर रहा। फिर, अचानक, एक हल्की सी हवा चली। फिर थोड़ी तेज़। और फिर, एक मज़बूत झोंका जो पूरे गाँव को जीवन से भर गया।
गुंबद धीरे-धीरे गायब हो गया। पत्ते फिर से हिलने लगे। पक्षी गाने लगे। लोगों ने राहत की साँस ली।
## अंतिम अध्याय: सबक
उस दिन के बाद, गाँव ने एक नियम बनाया - हर महीने की पूर्णिमा को वायु वृक्ष की पूजा की जाएगी। बच्चों को प्रकृति के महत्व के बारे में सिखाया जाएगा।
रमन अक्सर उस पेड़ के नीचे बैठता और हवा को महसूस करता। वह अब जानता था कि जो चीज़ें हम हर दिन देखते हैं, वे ही सबसे अनमोल हैं।
एक दिन राधा ने पूछा, "रमन भैया, अगर फिर कभी ऐसा हुआ तो?"
रमन मुस्कुराया। "अब नहीं होगा। क्योंकि अब हम जानते हैं कि प्रकृति का सम्मान करना कितना ज़रूरी है। हवा, पानी, पेड़ - ये सब हमें मुफ़्त नहीं मिलते। ये भगवान का उपहार हैं।"
उस छोटे से गाँव ने एक बड़ा सबक सीखा - गुमशुदा हवा ने उन्हें सिखाया कि जो हमारे पास है, उसकी क़द्र करो, क्योंकि जब वह चला जाता है, तो पूरा जीवन थम जाता है।
और वायु वृक्ष बढ़ता रहा, हर दिन, हर साल, अपनी हरी-भरी शाखाओं से यह याद दिलाता हुआ कि प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहना ही सच्ची समझदारी है।
---
**समाप्त**