Elusive forest in Hindi Adventure Stories by Vijay Erry books and stories PDF | मायावी जंगल

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मायावी जंगल

# मायावी जंगल

**लेखक: विजय शर्मा एरी**

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गांव के बुजुर्ग हमेशा कहते थे कि घने जंगल की सीमा के पार एक ऐसा स्थान है जहां समय ठहर जाता है, जहां पेड़ फुसफुसाते हैं और छाया चलती है। उस जंगल का नाम था 'मायावी जंगल'। कोई भी गांव वाला उस ओर जाने की हिम्मत नहीं करता था।

अर्जुन एक जिज्ञासु युवक था। उसकी आंखों में सवाल और दिल में साहस था। जब उसकी छोटी बहन मीरा रहस्यमय बीमारी से ग्रस्त हो गई, तो गांव के वैद्य ने बताया कि केवल मायावी जंगल में खिलने वाला 'नीलकमल' ही उसे बचा सकता है। वह फूल केवल पूर्णिमा की रात को खिलता है और उसकी चमक चांदी जैसी होती है।

अर्जुन ने फैसला कर लिया। पूर्णिमा की रात, वह मशाल और एक पुरानी तलवार लेकर निकल पड़ा। जंगल का प्रवेश द्वार दो विशाल बरगद के पेड़ों के बीच था, जिनकी जड़ें आपस में इस तरह उलझी थीं मानो किसी ने जानबूझकर एक द्वार बनाया हो।

जैसे ही अर्जुन ने जंगल में कदम रखा, हवा बदल गई। ठंडी, नम और किसी अज्ञात सुगंध से भरी। पेड़ इतने घने थे कि चांदनी भी मुश्किल से जमीन तक पहुंच पाती थी। हर कदम पर सूखे पत्तों की आवाज गूंजती, जैसे कोई चेतावनी दे रहा हो।

थोड़ी दूर चलने के बाद, अर्जुन को एक अजीब दृश्य दिखा। एक हिरण, बिल्कुल स्थिर, पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ा था। उसकी आंखें खुली थीं, लेकिन उसमें जीवन नहीं था। अर्जुन ने सावधानी से उसे छुआ - ठंडा, कठोर। यह कोई साधारण जंगल नहीं था।

आगे बढ़ते हुए, उसे फुसफुसाहटें सुनाई दीं। कोई स्पष्ट शब्द नहीं, बस आवाजों की एक अनवरत धारा। "अर्जुन... अर्जुन..." उसका नाम हवा में घुल गया। उसने चारों ओर देखा, लेकिन कोई नहीं था। मशाल की रोशनी में छायाएं नाचने लगीं, और हर छाया एक अलग रूप लेती थी - कभी इंसान, कभी जानवर, कभी कुछ और।

तभी सामने एक बूढ़ी औरत प्रकट हुई। उसके बाल चांदी जैसे सफेद थे और आंखें गहरी नीली। वह मुस्कुराई, लेकिन उस मुस्कान में कोई गर्मजोशी नहीं थी।

"तुम नीलकमल की तलाश में हो?" उसकी आवाज़ कर्कश थी।

अर्जुन ने हामी भरी। "मेरी बहन की जान खतरे में है।"

बूढ़ी औरत ने अपनी उंगली से एक दिशा की ओर इशारा किया। "झील के पार, जहां चांदनी सबसे तेज चमकती है। लेकिन सावधान रहना - इस जंगल में हर चीज़ वैसी नहीं जैसी दिखती है। तुम्हारी सबसे बड़ी परीक्षा अभी बाकी है।"

इतना कहकर वह धुएं की तरह गायब हो गई। अर्जुन ने हिम्मत जुटाई और आगे बढ़ा।

झील तक पहुंचने का रास्ता कठिन था। रास्ते में विशाल मकड़ी के जाले थे, जो इतने मजबूत थे कि तलवार से काटने पर भी मुश्किल से टूटते थे। एक बार तो उसे लगा कि पेड़ों की शाखाएं उसे पकड़ने के लिए झुक रही हैं।

आखिरकार, वह झील के किनारे पहुंचा। पानी एकदम साफ और स्थिर था, जैसे कांच का टुकड़ा हो। और वहां, झील के बीचोबीच एक छोटे से टापू पर, चांदी की तरह चमकता नीलकमल खिला था। उसकी रोशनी इतनी तेज थी कि आसपास का अंधेरा भी पीछे हट गया।

अर्जुन ने तैरने की सोची, लेकिन तभी पानी में हलचल हुई। एक विशाल सांप उभरा, उसकी आंखें लाल अंगारों की तरह जल रही थीं। "यह फूल तुम्हारा नहीं है," सांप ने कहा। उसकी आवाज़ गहरी और खतरनाक थी।

"मेरी बहन मर रही है," अर्जुन ने दृढ़ता से कहा। "मुझे वह फूल चाहिए।"

सांप ने सिर हिलाया। "हर कोई कुछ न कुछ चाहता है। लेकिन यह फूल सिर्फ उसी को मिलता है जो अपने सबसे बड़े डर का सामना कर सके। तुम्हारा सबसे बड़ा डर क्या है, युवक?"

अर्जुन ने सोचा। उसे ऊंचाई से डर नहीं लगता, अंधेरे से भी नहीं। फिर उसे एहसास हुआ - उसका सबसे बड़ा डर था असफल होना, अपने परिवार को खो देना।

"मैं अपने डर को स्वीकार करता हूं," अर्जुन ने कहा। "लेकिन मैं उससे पीछे नहीं हटूंगा।"

सांप ने उसे गौर से देखा। फिर धीरे-धीरे पानी में वापस समा गया। "तुम्हारा साहस सच्चा है। जाओ, फूल लो।"

अर्जुन ने तैरकर टापू तक पहुंचा और सावधानी से नीलकमल को तोड़ा। फूल को छूते ही एक गर्म ऊर्जा उसके शरीर में दौड़ गई। झील का पानी अचानक शांत हो गया, और जंगल में एक अजीब सी रोशनी फैल गई।

वापसी का रास्ता आसान था। जैसे जंगल ने उसे स्वीकार कर लिया हो। वे पत्थर बने जानवर फिर से जीवित हो गए, पेड़ों ने रास्ता दिया, और छायाएं गायब हो गईं।

जब अर्जुन गांव पहुंचा, तो सूरज उग रहा था। उसने मीरा को नीलकमल की पंखुड़ियों का रस पिलाया। कुछ ही मिनटों में उसके गालों में रंग लौट आया और उसने आंखें खोल दीं।

"भैया," मीरा ने मुस्कुराते हुए कहा।

अर्जुन ने राहत की सांस ली। उसने पीछे मुड़कर जंगल की ओर देखा। दूर से, उसे बूढ़ी औरत की मुस्कान दिखाई दी, इस बार सच्ची और गर्म। फिर वह भी हवा में घुल गई।

मायावी जंगल ने अपना रहस्य बरकरार रखा, लेकिन अर्जुन ने सीख लिया कि असली जादू साहस और प्रेम में है। और कभी-कभी, सबसे गहरे अंधेरे में भी, आशा की एक किरण मिल ही जाती है।

गांव वालों ने उस रात की कहानी पीढ़ियों तक सुनाई, और मायावी जंगल का नाम अब डर के साथ-साथ सम्मान से भी लिया जाने लगा।

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**समाप्त**