Adhuri Kitaab - 48 in Hindi Horror Stories by kajal jha books and stories PDF | अधुरी खिताब - 48

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अधुरी खिताब - 48

🌌 एपिसोड 48 — “नीली रूह का पहला पन्ना”

(सीरीज़: अधूरी किताब)


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1. हवेली में लौटती साँसें — जब रूहें जागने लगती हैं

दरभंगा की हवेली उस रात वैसी नहीं थी
जैसी कल थी।

आज उसकी दीवारों पर
हल्की-हल्की धड़कनें चल रही थीं —
जैसे हवेली खुद जीवित हो गई हो।

नेहा ने ध्यान से सुना।
दीवारें साँस ले रही थीं।
हाँ… सचमुच साँस।

कमरों से एक ठंडी खुशबू आ रही थी—
नीली धुंध, स्याही की नमी,
और कहीं दूर से आती
एक लड़की की धीमी आवाज़:

> “दीदी… इस बार मत डरना।”



नेहा का शरीर सिहर गया।
ये आवाज़ उसकी बहन की थी —
वही रूह
जो वक़्त की कलम का हिस्सा बन चुकी थी।

आरव ने उसकी ओर देखा।
“तेरी बहन… आज पहली बार
हवेली की सीमा तोड़कर बाहर आने वाली है।”

नेहा ने गहरी सांस ली।
“मतलब… आज मैं उसे पूरा देखने वाली हूँ?”

आरव ने सिर हिलाया।
“हाँ। और शायद…
उसकी मौत का सच भी।”


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2. कमरा जो खुद खुल गया — जैसे किसी के आने की तैयारी हो

हवेली के दाहिनी ओर
एक पुराना गलियारा था —
जहाँ कोई रोशनी नहीं पहुँचती थी।

पर आज…
उसी गलियारे में
धीमे-धीमे नीला उजाला फैलने लगा।

दरवाज़े अपने आप खुलने लगे।
फर्श पर रखी धूल
किसी अदृश्य ताकत से हटती चली गई।

नेहा ने फुसफुसाकर कहा—
“हवेली… हमारे लिए रास्ता साफ कर रही है।”

आरव ने कहा—
“तेरी बहन की रूह
अब खुद को छुपाना नहीं चाहती।”

गलियारे के अंत में
एक लकड़ी का दरवाज़ा था।
उस पर नीली स्याही का हाथ छपा था —
जैसे किसी ने अपनी आखिरी सांसों में
उस दरवाज़े को पकड़ा हो।

जैसे… कोई बचने की कोशिश कर रहा हो।

नेहा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
“क्या मेरी बहन… इसी कमरे में…?”

आरव ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा।
“हाँ। यहाँ से सब शुरू हुआ था।
और शायद… यहाँ ही खत्म भी होगा।”


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3. रूह का प्रकट होना — नीली लौ का आकार

दरवाज़ा खुलते ही
अंदर से एक तेज़ नीली हवा निकली।
कोई रोशनी नहीं—
बस नीली धड़कनें।

फिर…
हवा में एक आकृति बनने लगी।

पहले उंगलियाँ,
फिर बालों की लटें,
फिर आँखें—
जिनमें वही चमक थी
जिसे नेहा ने कभी आईने में देखा था।

रूह पूरी तरह प्रकट हुई।

एक लड़की।
नेहा जैसी,
पर ज़्यादा शांत।
ज़्यादा टूटी हुई।

उसने नेहा को देखा
और मुस्कुराती हुई बोली—

> “दीदी… आज मैं पूरी हूँ।”



नेहा की आँखें भर आईं।
“तू… पहले से ज़्यादा खूबसूरत लग रही है।”

रूह ने हल्की हँसी हँसी—
“मैं खूबसूरत तब होती थी
जब तू मेरी बाँहों को पकड़कर
आधी रात तक कहानियाँ सुनाती थी।”

नेहा काँप गई।
“मुझे कुछ याद नहीं…
पर दिल कह रहा है कि ये सच है।”

रूह और करीब आई।
“स्मृति लेने से
दिल की धड़कनें नहीं ली जातीं, दीदी।”


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4. रूह के अतीत का खुलासा — वो रात जब सब खत्म हो गया

नीली रूह ने अपना हाथ उठाया।
हवेली की दीवारें चमकीं।
और अचानक—
पूरा कमरा एक दृश्य में बदल गया।

जैसे किसी ने वक़्त को पीछे घुमा दिया हो।

नेहा ने देखा—
वहीं फर्श पर दो बहनें थीं।
एक नेहा खुद।
और दूसरी… उसकी बहन।

दोनों एक पुरानी किताब पढ़ रही थीं—
“अधूरी रूहें” नाम से।

नेहा (अतीत वाली) ने कहा—
“अगर ये किताब सच हुई ना,
तो मैं तुझे हर जन्म में ढूँढ लूँगी।”

उसकी बहन हँसी—
“और अगर वक़्त ने तुझे रोका तो?”

नेहा ने उसके बालों में उंगली घुमाई—
“तो मैं वक़्त को लिख दूँगी।”

अगला दृश्य—
तेज़ हवा।
किताब के पन्ने तेजी से पलटते हुए।
हवेली की दीवारें काँपती हुईं।

नीली रोशनी तेज़ हुई।
नेहा की बहन उठकर खिड़की बंद करने गई—
पर अचानक बाहर से एक रूहानी चीख गूँजी।

और खिड़की का शीशा टूट गया।

काँच के टुकड़े
उसकी बहन की गर्दन पर लगे।

खून।
नीली रोशनी।
गिरती हुई रूह।

नेहा सन्न।
“ये… ये कैसे…?”

रूह ने धीमे से कहा—
“मुझे किसी इंसान ने नहीं मारा, दीदी।”

नेहा ने काँपते हुए पूछा—
“फिर किसने…?”


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5. वक़्त की रूह — जिसने पहली बार इंसान को छुआ

कमरे की दीवारें फिर नीली चमकीं।
और एक नया दृश्य उभरा।

एक अँधेरी आकृति—
जो इंसान नहीं थी।
वक़्त की रूह।

उसकी आँखें दो नीली ज्वालाएँ थीं।
उसकी आवाज़ गूंजती थी—
भोली नहीं,
स्याही जैसी गहरी।

उसने नेहा और उसकी बहन को देखा।

> “तुम दोनों ने मुझे लिखने की कोशिश की है।”



अतीत वाली नेहा बोली—
“कहानी वक़्त को कैद नहीं करती…
वक़्त कहानी को जीवित करता है।”

रूह ने तड़पकर कहा—
“और जिसने मुझे लिखने की कोशिश की…
वो बच नहीं पाई।”

नीली हवा तेज़ हुई।
वक़्त की रूह ने हाथ बढ़ाया।
उसकी बहन चीख उठी।

> “नेहा! भाग!”



नेहा की बहन को
उस रूह ने खींच लिया—
उसकी रूह को अलग कर दिया।

और उसी पल…
उसकी जान चली गई।

वर्तमान वाली नेहा ने देखा—
और उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
“मैं… मैं उसे बचा क्यों नहीं पाई?”

रूह ने कहा—
“क्योंकि तू मर जाती।”

नेहा ने फुसफुसाकर पूछा—
“फिर वक़्त की रूह ने…
मुझसे स्मृति क्यों ली?”

नीली रूह ने कहा—

> “क्योंकि वो तुझे इस्तेमाल करना चाहता था।
तू भविष्य लिख सकती थी।
और मैं… उसके बीच अटक गई।”




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6. वक़्त की रूह का गुस्सा लौटता है

कमरा अचानक काँपने लगा।
हवा भारी, तेज़ और जलती हुई।

आरव चिल्लाया—
“नेहा! सावधान!”

एक नीली लपटें चारों तरफ फैल गईं।
हवेली की दीवारें फटने लगीं।

वक़्त की वही काली रूह
धीरे-धीरे आकार लेते हुए सामने आई।
और उसकी आवाज़ गूँजी—

> “तूने जो लिखना शुरू किया है, नेहा…
वो मुझे पसंद नहीं।”



नेहा डरकर पीछे हटी।
रूह की बहन उसका हाथ पकड़कर बोली—
“भाग मत, दीदी।
वक़्त डरता है…
तुझसे।”

ARAV आगे बढ़ा।
“वक़्त की रूह… तेरी असल दुश्मन यही है!”

वक़्त की रूह गूँजी—
“तू इंसान नहीं।
तू गलती है।”

नेहा ने गुस्से से कहा—
“और तू?
तू बस एक पन्ना है…
जिसे मैं मिटा सकती हूँ।”

रूह चिल्लाई—
और पूरा कमरा फट गया।


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7. जब वक़्त ने नेहा को चुना — और खतरा सच हुआ

नीली आँधी सबको घेरने लगी।
आरव ने नेहा को पकड़ लिया।

रूह की बहन चिल्लाई—
“दीदी! अपनी कलम उठा!”

नेहा ने तुरंत “रूह की कलम” उठाई।
नीली लौ तेज़ हुई।

वक़्त की रूह चीख उठी—

> “रोक दो उसे!”



बहन की रूह बोली—
“दीदी, आज तू लिख नहीं रही…
आज तू हमें बचा रही है!”

नेहा ने पन्ने पर जल्दी से लिखा—

“Time cannot touch her again.”
(वक़्त उसे दोबारा छू नहीं सकता)

पन्ना जल उठा।
नीली आग फैल गई।
वक़्त की रूह पीछे हट गई—
कमज़ोर पड़ती हुई।


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8. अंतिम दृश्य — जब नया अध्याय खुलने का इशारा देता है

आँखों के सामने सब शांत हो गया।
हवेली की दीवारें स्थिर।
धड़कनें धीमी।

नेहा की बहन की रूह
हल्की मुस्कान के साथ बोली—

> “दीदी… आज पहली बार
मैं आज़ाद महसूस कर रही हूँ।”



नेहा ने उसे थामने की कोशिश की—
“मत जा… अभी मत जा।”

रूह ने कहा—
“मैं नहीं जा रही।
मेरी कहानी… अभी बाकी है।”

और हवा में मिलते हुए बोली—

> “अगली बार, मैं तुझे
अपना जन्म-सच बताऊँगी।”



नेहा सन्न रह गई।
“जन्म-सच…?”

रूह ने धीरे से कहा—

> “क्योंकि मैं…
सिर्फ़ तेरी बहन नहीं थी।”



कमरा नीला हुआ—
और रूह गायब।

नेहा घुटनों पर बैठ गई।
आरव ने उसे थामा।

“क्या मतलब… सिर्फ़ बहन नहीं?”

नेहा ने पन्ने को देखा
जिस पर आग लगी थी—
और बीच में एक लाइन बची थी:

> “Her birth was written before your own.”
(उसका जन्म… तेरे जन्म से पहले लिखा गया था)



नेहा ने काँपकर कहा—

“इसका मतलब… मेरी बहन
मुझसे पहले की रूह थी…?”

आरव ने गंभीर होकर कहा—

“और शायद…
तेरी असली कहानी उसी से शुरू होती है।”