Glass dreams in Hindi Love Stories by Tanya Singh books and stories PDF | काँच के सपने

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काँच के सपने

लेखिका: Tanya Singh

कभी-कभी ज़िन्दगी वो सब छीन लेती है, जिसके बिना जीने की हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती।
पर शायद… वहीं से एक नई कहानी शुरू होती है।


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1. शहर और धूल के बीच

नैना ने शीशे में खुद को देखा — बाल बिखरे हुए, आँखों के नीचे काले घेरे, होंठों पर थकी हुई मुस्कान।
वो पहले जैसी नहीं रही थी।
कभी उसकी हँसी पूरे घर में गूंजती थी, अब बस खामोशी दीवारों पर टंगी रहती थी।

दिल्ली की सुबह का शोरगुल खिड़की से अंदर आ रहा था। बसें, हॉर्न, ठेले, सब कुछ वही था — बस नैना नहीं थी जो पहले सब पर हँस देती थी।

वो कॉलेज की सबसे तेज़ छात्रा हुआ करती थी — सपनों में मुंबई की चमक थी, अपने नाम की पहचान थी, और माता-पिता के लिए एक गर्व भरा भविष्य।
लेकिन अब… वो दिल्ली के एक छोटे से दफ्तर में टाइपिंग का काम करती थी, और महीने के आखिर में बस इतना बचता कि अगले महीने का किराया दे सके।

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2. ज़िन्दगी का पहला झटका

तीन साल पहले —
नैना की शादी अरुण से हुई थी।
अरुण पढ़ा-लिखा, स्मार्ट और खुशमिज़ाज लड़का था। दोनों ने लव मैरिज की थी।
माँ-बाप ने थोड़ी नराज़गी ज़रूर दिखाई थी, मगर नैना को लगा — प्यार सब जीत लेता है।

लेकिन प्यार तभी तक चलता है, जब दोनों साथ चलें।
अरुण को पैसा और शोहरत की भूख थी, और नैना को बस साथ चाहिए था।
धीरे-धीरे बातों का लहजा बदला, फिर ताने, फिर चुप्पी…
और एक दिन, सिर्फ़ एक लाइन में सब ख़त्म कर दिया गया —
“मुझे तुमसे अब कोई उम्मीद नहीं, नैना।”

उस रात नैना ने सिर्फ़ कपड़े नहीं, अपनी उम्मीदें भी सूटकेस में भर लीं।
और वापस उसी दिल्ली में आ गई, जहाँ से कभी बड़े सपनों के साथ निकली थी।

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3. अकेलेपन का शहर

किराये के छोटे से कमरे में नैना और उसका अकेलापन रहते थे।
रात में खिड़की से दिखती थी — एक अधूरी बिल्डिंग की छत, जहाँ मजदूरों का एक समूह दिनभर की थकान मिटाता था।
वो अक्सर सोचती — “कम से कम उन्हें पता है कि कल क्या करना है… मेरे पास तो वो भी नहीं।”

ऑफिस की ज़िन्दगी नीरस थी।
टाइपिंग, रिपोर्ट, फाइलें, और सीनियर की डांट।
लेकिन इसी बीच, एक नई कहानी धीरे-धीरे शुरू हो रही थी।

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4. नई पहचान

एक दिन दफ्तर में एक नया इंटर्न आया — राघव।
शांत, सुलझा हुआ, और हर बात में विनम्र।
वो दूसरों की तरह नैना की हालत पर दया नहीं करता था, बस सामान्य बात करता था।
और शायद यही बात उसे अलग बनाती थी।

धीरे-धीरे दोनों में बात बढ़ी।
कॉफी, ऑफिस के छोटे ब्रेक, और कभी-कभी शाम की मेट्रो तक साथ।
राघव अक्सर कहता — “आप बहुत कुछ झेल चुकी हैं, लेकिन अब भी टूटीं नहीं।”
और नैना मुस्कुरा देती — “टूटे हुए काँच भी कभी-कभी रोशनी फैला देते हैं।”

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5. राघव का सच

नैना को लगा, शायद ये उसकी ज़िन्दगी का नया मोड़ है।
लेकिन हर कहानी में एक परछाई होती है।

एक शाम, ऑफिस के बाहर उसे किसी और लड़की के साथ देखा।
हाथों में हाथ, और हँसी वही थी जो कभी उसके पास थी।

उसने कुछ कहा नहीं।
वो बस अगले दिन से ऑफिस में कम बोलने लगी।
राघव ने पूछा तो बोली —
“कभी-कभी दिल को भी आराम चाहिए… ज़रूरी नहीं कि हर मुस्कान किसी के लिए हो।”

राघव चुप हो गया।
कुछ दिनों बाद उसने नैना को एक लिफ़ाफ़ा दिया — “मुझे बाहर जाना है, माँ बीमार हैं। शायद लौटूँ या नहीं।”
और वो चला गया।

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6. खुद से मुलाक़ात

कभी-कभी, किसी के जाने से जो खालीपन आता है — वही हमें खुद तक ले आता है।

राघव के जाने के बाद, नैना ने खुद को फिर से लिखना शुरू किया।
वो छोटी-छोटी बातें जो कभी डायरी में अधूरी रह गई थीं, अब कहानी बन रही थीं।
वो ब्लॉग लिखने लगी — “काँच के सपने” के नाम से।

धीरे-धीरे उसके शब्द पढ़ने वाले बढ़ने लगे।
लोग उसे नहीं जानते थे, पर उसके शब्दों से जुड़ने लगे।

एक दिन, किसी ने कमेंट किया —
“आपकी कहानी ने मुझे जीने की वजह दी। धन्यवाद।”
नैना मुस्कुरा दी — यही तो उसे चाहिए था, किसी के दिल तक पहुँच जाना।

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7. किस्मत का मोड़

छह महीने बाद —
नैना की एक कहानी ऑनलाइन मैगज़ीन में छपी।
फोन आया — “हमें आपका इंटरव्यू लेना है।”

वो वही आवाज़ थी — राघव की।
“मैं अब उसी मैगज़ीन में काम करता हूँ। माँ अब ठीक हैं।”

नैना हँस दी, “तो अब तुम मेरी कहानी छापोगे?”
राघव बोला, “नहीं… मैं सिर्फ़ दुनिया को बताऊँगा कि टूटा हुआ काँच भी चमक सकता है।”

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8. नया सवेरा

उस दिन के बाद, नैना ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उसने न किसी को दोष दिया, न किसी से बदला लिया।
वो बस आगे बढ़ती रही — अपने शब्दों, अपने काम, और अपनी हिम्मत के साथ।

हर सुबह जब सूरज की किरण खिड़की पर पड़ती, वो मुस्कुरा देती —
“ये रोशनी मेरी है।”

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9. आख़िरी पंक्तियाँ

कभी-कभी हम सोचते हैं कि ज़िन्दगी ने हमें बहुत तोड़ा है।
पर सच तो ये है — वो हमें नया रूप देने के लिए तोड़ती है।
काँच का सपना जब टूटता है, तो उसके टुकड़े भी चमक छोड़ते हैं।

नैना अब भी अकेली रहती है, लेकिन अब उसे उस अकेलेपन से डर नहीं लगता।
क्योंकि उसने खुद को पा लिया है।

और यही उसकी सबसे बड़ी जीत थी।


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समाप्त
- Tanya Singh