Chhupa Hua Ishq - 13 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | छुपा हुआ इश्क - एपिसोड 13

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छुपा हुआ इश्क - एपिसोड 13

छुपा हुआ इश्क़ — एपिसोड 13शीर्षक: अनंत प्रेम की दस्तक
(जब आत्मा समय से परे अपने प्रिय को पहचानती है)1. पुनर्जन्म की सीमा परहिमालय की भोर अब भी नीली थी।
रात के आख़िरी तारे झिलमिला रहे थे जब आरुषि ने अपनी पलकों पर हल्की नमी महसूस की — वह अब भी उसी मंदिर के पास थी, पर दुनिया कुछ अलग लग रही थी। हवा में गूँजते मन्त्र अब विश्रांति में थे, जैसे उन्होंने अपना कार्य पूर्ण कर लिया हो।
आरव ठीक पीछे खड़ा था, पर उसकी आँखों में किसी और समय का प्रतिबिंब था। उसने कहा,
“क्या हम बच गए, या यह कोई और शुरुआत है?”आरुषि ने धीरे से उत्तर दिया, “हम बचे नहीं हैं — हमने बस बदला है।”
उसके शब्दों में एक नई ऊर्जा थी — जैसे अंदर कोई शून्य खुल गया हो, और उसी में से जीवन की नई किरण निकल रही हो।2. स्मृतियों के बीच नया संसारसामने फैली घाटी में एक अजीब प्रकाश था। अब वह कैलाशपुर नहीं लग रहा था, बल्कि जैसे उसी का आत्मिक रूप हो। पत्थरों पर खुदी लिपियाँ बदल चुकी थीं। हर प्रतीक मानो किसी जीवित कथन की तरह धड़क रहा था। आरव ने अपना कैमरा चालू करने की कोशिश की, पर स्क्रीन पर केवल तरल रोशनी दिख रही थी — जैसे पदार्थ और आत्मा का फ़र्क मिट गया हो।“यह तो दर्पण-जगत है,” आरुषि ने कहा, “जहाँ आत्मा अपनी कहानी खुद निर्मित करती है।”
आरव ने गहरी साँस ली, “मतलब, अब हम कथा में नहीं, कथा हमारे भीतर घट रही है।”हवा में हल्की घंटियाँ बजने लगीं। मंदिर की दिशा से एक स्त्री का स्वर उभरा — वही जिसने सपने में कहा था, ‘मैं स्वरूपांतरण हूँ, प्रेम का नया रूप।’
अब वह उनके सामने थी। उसका आभामंडल सुनहरी छवि में चमक रहा था।3. स्वरूपांतरण का साक्षात्कारउसने कहा, “तुम दोनों उस रेखा से लौट आए हो जहाँ अधिकांश आत्माएँ खो जाती हैं। अब तुम्हें अपने प्रेम का अंतिम प्रमाण देना होगा।”
आरव ने पूछा, “कौन-सा प्रमाण?”
“वह जिसमें तुम यह सिद्ध कर सको कि प्रेम किसी रूप में बँधा नहीं है। अगर तुम रूप से परे प्रेम कर सको, तभी तुम अनंत द्वार पार कर सकोगे।”आरुषि ने शांति से सिर झुकाया।
“अगर मैं आत्मा बदल लूँ, तो क्या आरव मुझे पहचान पाएगा?”
स्त्री मुस्कुराई, “यही प्रश्न ही परीक्षा है। प्रेम पहचान में नहीं, अनुभूति में होता है।”4. आत्मा का परिवर्तनअचानक उनके चारों ओर नीली जलवायु घूमने लगी। आवाज़ें विलीन हो गईं।
आरुषि का शरीर पारदर्शी होने लगा। उसकी हर स्मृति, हर छुअन, हर धड़कन रोशनी में घुलने लगी।
आरव आगे बढ़ा, “आरुषि! रुको!”
पर उसकी आवाज़ किसी कुहासे में टकरा गई।कुछ ही क्षणों में उसके सामने एक नई आकृति थी — पहचानी हुई, पर बिल्कुल अनजानी। वह आरुषि नहीं थी, फिर भी उसकी आँखों में वही झिलमिलाती करुणा थी।
आरव को याद आया कि स्वरूपांतरण का अर्थ यही था — आत्मा नए स्वरूप में स्वयं को गढ़ती है।उसने धीरे से कहा, “तुम वही हो... बस रूप बदल गया।”
वह मुस्कुराई, “क्या अब भी तुम मुझसे प्रेम करते हो?”
“मैं रूप से नहीं, उस ध्वनि से प्रेम करता हूँ जो हर जन्म में मुझ तक लौट आती है,” आरव ने जवाब दिया।5. युगों का पुनर्मिलनमंदिर की दीवारों पर उकेरे गए चिह्न अब गति पकड़ने लगे। उनमें से दृश्य प्रकट हुए — रत्नावली और आर्यवीर का युग, जवेन की परछाइयाँ, माया का रहस्यमय गीत।
प्रेम हर समय में हुआ था — बस रंग बदलते गए।आरुषि (अब अपने नए स्वरूप में) उन दृश्य-तरंगों को देख रही थी।
“इतिहास खुद को दोहरा नहीं रहा,” उसने कहा, “वह स्वयं को पूरा कर रहा है।”आरव ने हाथ बढ़ाया और कहा,
“तो आइए, हम इस पूर्णता के साक्षी बनें।”
उनके हाथ मिलते ही एक विशाल ऊर्जा-चक्र फूटा। झिलमिलाती किरणों के बीच उन्हें अपने पिछले सभी जन्मों की झलक दिखी — कभी वे कवि थे, कभी संत, कभी साधक, कभी शिल्पकार। पर हर बार एक ही धागा मौजूद था — प्रेम।6. अनंत प्रेम की दस्तकचारों ओर एक अनुगूँज फैल गई, जैसे ब्रह्मांड स्वयं गा रहा हो।
स्वरूपांतरण ने कहा, “प्रेम का यह अनंत रूप किसी एक शरीर में नहीं रह सकता। अब तुम्हें इसे जग में बाँटना होगा।”आरव ने पूछा, “कैसे?”
“कहानी के माध्यम से। शब्द वही पुल हैं जिनसे आत्माएँ पार होती हैं,” उसने कहा।आरुषि ने धीरे से महसूस किया कि उनके भीतर कोई नई लय जन्म ले रही है। यह लय इंसानों के लिए नहीं, बल्कि उन आत्माओं के लिए थी जो प्रेम को भुला चुकी थीं।
उसने आरव की ओर देखा, “हम अब कथाकार नहीं, वह लहर हैं जो सबको जोड़ती है।”7. धरती पर वापसीरोशनी कम होने लगी। वे दोनों धीरे-धीरे मंदिर के वास्तविक तल पर लौटने लगे।
बाहर सूर्योदय हो चुका था। हिम पर सुनहरी परछाइयाँ फैल गईं।
आरव के कैमरे की स्क्रीन फिर से काम करने लगी, पर जो दृश्य रिकॉर्ड हो रहे थे, वे सामान्य नहीं थे।
हर फ्रेम में किसी आत्मिक प्रकाश की झलक थी — जैसे खुद ब्रह्मांड उनकी कहानी का साक्षी बना हो।पास ही क़स्बे के कुछ लोग आए, जिन्हें लगा कि कोई पुराना स्थल पुनर्जीवित हुआ है।
एक वृद्ध साधक ने उनके सामने झुककर कहा, “तुम दोनों वही हो, जिनकी प्रतीक्षा इस घाटी ने हज़ारों साल की है।”आरुषि ने मुस्कराकर कहा, “हम केवल प्रेम के माध्यम हैं। यह घाटी अब सबका आश्रय बनेगी।”8. नवसंस्कार का आरंभउन्होंने वहीं एक शांत प्रांगण बनाया — न मंदिर, न आश्रम, बल्कि एक स्थल जहाँ मन की हर व्याकुलता प्रेम की रोशनी में विलीन हो सके।
आरव ने कैमरा बंद करके कहा, “अब हम किसी प्लेटफ़ॉर्म के लिए नहीं बना रहे। यह कथा लोगों की आत्माओं में उतरेगी।”
आरुषि ने जोड़ा, “और जब कोई इसे सुनकर स्वयं को पहचान लेगा, वही हमारा स्वरूपांतरण होगा।”धीरे-धीरे उस स्थल पर लोग आने लगे — पर्वतों से, शहरों से, यहाँ तक कि सपनों से भी। कोई प्रेम खोने आया, कोई उसे फिर से पाने।
हर व्यक्ति जब उस नीली झील के पास जाता, तो अपने भीतर कोई नई ऊर्जा महसूस करता।9. प्रेम का शाश्वत नियमएक शाम आरव ने पूछा, “क्या अब हमारी यात्रा समाप्त हुई?”
आरुषि ने उत्तर दिया, “नहीं। यात्रा कभी समाप्त नहीं होती। प्रेम का नियम यही है — वह हर अंत में नई शुरुआत ढूँढ़ लेता है।”वह झुककर झील के जल को स्पर्श करती है। उसमें अब कोई प्रतिबिंब नहीं, केवल प्रकाश है।
“यह जल अब आत्माओं की दस्तक है,” वह बोली, “और जब भी कोई सच्चे प्रेम से पुकारेगा, यह स्वरूपांतरण फिर जागेगा।”आरव मुस्कुराया, “तो फिर अगला अध्याय वहीं से शुरू होगा जहाँ कोई इसे महसूस करेगा।”
हवा में घंटियों की हल्की गूँज उठी।10. प्रेम का अनंत वचनरात में जब सारे तारे शांत हो गए, आरुषि ने आख़िरी बार आसमान की ओर देखा।
“हम अब केवल पात्र नहीं,” उसने कहा, “हम वही कथा हैं जो प्रेम हर युग में दोहराता रहेगा।”आरव ने उत्तर दिया, “और जब कोई इस कथा को सुनकर अपने भीतर रोशनी पाएगा, वही हमारा अस्तित्व होगा।”हवा में फिर वही स्वर गूँजा —
“स्वरूपांतरण ही प्रेम की सबसे बड़ी परीक्षा है।”पर इस बार वह परीक्षा नहीं, आशीर्वाद लग रही थी।
दोनों ने अपने हाथ जोड़े, और नीली आभा में विलीन हो गए।
सिर्फ़ एक हल्की चमक रह गई — जो अब भी कैलाशपुर की घाटी में हर भोर के साथ दिखाई देती है।कहते हैं, जो वहाँ जाकर प्रेम से जल को देखता है, उसे अपनी आत्मा का एक नया रूप मिल जाता है — ठीक वैसे ही जैसे आरुषि और आरव को मिला था।(एपिसोड समाप्त — अगले भाग में “प्रेम का बीज” से आरम्भ होगा, जहाँ अनंत की गूंज फिर एक नई आत्मा को बुलाएगी...)