🌟 छुपा हुआ इश्क़ — एपिसोड 2
“रत्नावली का रहस्य”
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भाग 1 – हवेली के भीतर पलायन
बाहर बारिश और तेज़ हो चुकी थी। बिजली की गड़गड़ाहट हवेली की दीवारों में गूंज रही थी।
आदिल ने माया का हाथ कसकर थामा, और दोनों हवेली के भीतर की ओर भागे — उन संकरे, धूल भरे गलियारों से होते हुए जहाँ हर दीवार जैसे किसी रहस्य की पहरेदारी कर रही थी।
दीवारों पर पुरानी नक्काशियाँ थीं — कुछ अस्पष्ट, कुछ लगभग मिट चुकीं।
लेकिन तभी माया की नज़र एक पैटर्न पर पड़ी।
वो वही चिन्ह था… जो उसके sketchbook में बना था।
तीन वृतों के बीच एक अधखिला कमल, और उसके चारों ओर कुछ अजीब लिपियाँ।
“आदिल… ये देखो!”
उसने काँपती आवाज़ में कहा।
आदिल दीवार के पास झुका, और हाथ की टॉर्च से उस पर रोशनी डाली।
“ये वही चिन्ह है जो पेंटिंग में था…” उसने फुसफुसाया। “मतलब… हवेली की हर दीवार इस रहस्य का हिस्सा है।”
माया का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।
अब डर से ज़्यादा, उसके भीतर एक बेचैन जिज्ञासा जल रही थी।
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भाग 2 – तहखाने का रहस्य
वे एक टूटी सीढ़ी से नीचे उतरे — जहाँ सीलन और अगरबत्ती की मिली-जुली गंध हवा में घुली थी।
दीवारों पर पीले पड़े दीये अब भी हल्की लौ लिए टिमटिमा रहे थे।
“यह जगह तो जैसे किसी ने हाल ही में इस्तेमाल की हो,” माया ने कहा, आँखें चौड़ी करते हुए।
तहखाने के कोने में एक पुरानी लकड़ी की पेटी रखी थी।
आदिल ने झुककर उसे खोला — चरमराहट के साथ अंदर से कुछ पुरानी तस्वीरें, ताम्रपत्र और एक कागज़ निकला।
उस पर वही तारीख लिखी थी… “18 अगस्त 1897”।
“यह वही तारीख है जो उस नोट में थी,” आदिल ने धीरे से कहा।
माया ने तस्वीर उठाई —
तस्वीर में एक औरत थी, वही चेहरा, वही आँखें…
बस फर्क इतना कि उसके माथे पर वही चिन्ह था जो दीवार पर उकेरा गया था।
अचानक माया के सिर में दर्द की लहर उठी।
उसने तस्वीर गिरा दी, और उसके होंठों से धीमे स्वर निकले —
“वो… मैं थी…”
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भाग 3 – जवेन की खोज
ऊपर से आवाज़ आई —
“उन्हें ढूँढो! वो यहीं कहीं होंगे!”
जवेन की ठंडी, डरावनी आवाज़ हवेली में गूंज उठी।
आदिल ने तुरंत टॉर्च बुझाई और माया को एक कोने में खींच लिया।
उसकी साँसें तेज़ थीं, और पास में माया का काँपना महसूस हो रहा था।
“वो तुम्हें ढूँढ रहा है… क्योंकि तुम ही उस रहस्य की चाबी हो,” आदिल ने कहा।
माया ने उसकी ओर देखा —
“और तुम? तुम्हें कैसे पता ये सब?”
आदिल की चुप्पी ने माया को बेचैन कर दिया।
“क्या तुम भी इसमें शामिल हो, आदिल? क्या तुमने मुझे यहाँ किसी मकसद से लाया है?”
उसकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि गुस्सा था।
और आदिल बस एक पल को उसे देखता रहा —
फिर बोला, “अगर मैं सच बताऊँ, तो शायद तुम मुझ पर कभी भरोसा न कर सको…”
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भाग 4 – रहस्य और रोमांस
माया ने पीछे हटने की कोशिश की, तभी ऊपर से छत का एक भारी हिस्सा गिरने लगा।
आदिल ने बिना सोचे झपटकर उसे अपनी बाँहों में खींच लिया।
दोनों जमीन पर गिरे, धूल उड़ गई, हवा में बस उनके तेज़ साँसों की आवाज़ थी।
माया ने अपनी आँखें खोलीं —
उसका सिर आदिल के सीने पर था, और उसकी बाहें उसे कसकर थामे हुए थीं।
“मैंने कहा था न… मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा,” आदिल की आवाज़ धीमी और भावनाओं से भरी थी।
वो पल जैसे समय से बाहर था —
खतरे के बीच, दो धड़कनों का मिलना।
माया की आँखों में अब डर नहीं, एक भरोसा था… एक अनकहा एहसास।
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भाग 5 – नया सूत्र
तभी माया ने दीवार के कोने में कुछ हलचल देखी।
एक ईंट हटी, और उसके पीछे से एक गुप्त रास्ता दिखाई दिया।
“यह… यह रास्ता कहाँ जाता है?” माया ने पूछा।
आदिल ने दीवार के भीतर झाँकते हुए कहा,
“रत्नावली मंदिर — वही जगह जहाँ यह सब शुरू हुआ था… और जहाँ सबका अंत होगा।”
दोनों उस अँधेरे रास्ते में उतरने लगे —
दीवारों पर वही चिन्ह, वही कमल, और दूर कहीं से आती घंटियों की हल्की आवाज़।
और ठीक उसी वक़्त, हवेली के बाहर…
जवेन फ़ोन पर किसी अज्ञात शख्स से कह रहा था —
> “अब खेल शुरू हुआ है…
माया को सच तक पहुँचने मत देना।”
हवा में बिजली कौंधी, और आसमान में गड़गड़ाहट गूंज उठी —
जैसे भाग्य ने एक नया अध्याय खोल दिया हो।