संध्या का समय था। सूरज ढल चुका था, और हल्की-हल्की हवा खिड़की के परदे हिला रही थी। राघव अपनी पुरानी अलमारी की सफाई कर रहा था। धूल से ढके कागज़, किताबें और कुछ पुराने फोटो... सब एक-एक करके उसके सामने आ रहे थे। तभी उसे एक लिफ़ाफ़ा दिखा — पीला पड़ चुका था, कोनों से मुड़ा हुआ। उस पर लिखा था —
“प्रिय राघव के लिए — साक्षी”
राघव के हाथ ठिठक गए। उसकी आँखों में एक पल के लिए वही पुरानी चमक लौट आई। कॉलेज के दिन, बारिश की वो शामें, और साक्षी की हँसी — सब याद आ गया।
उसने धीरे से लिफ़ाफ़ा खोला। अंदर एक ख़त था, लेकिन वह अधूरा था। आख़िरी लाइन पर बस इतना लिखा था —
“शायद ये आख़िरी बार हो जब मैं तुम्हें लिख रही हूँ...”
और आगे कुछ नहीं। बस ख़ाली पन्ना।
राघव की उंगलियाँ कांप उठीं। बीते दस सालों में उसने कई बार इस लिफ़ाफ़े को देखा था, लेकिन कभी पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। आज न जाने क्यों, उसे लगा कि उसे जवाब मिलना चाहिए।
वह खिड़की के पास गया, और बाहर आसमान को देखने लगा। उसे याद आया — साक्षी हमेशा कहती थी, “जब तुम्हें मेरी याद आए, आसमान देखना... वहाँ मैं ज़रूर रहूँगी।”
कॉलेज के बाद दोनों की राहें अलग हो गई थीं। साक्षी अपने सपनों के पीछे किसी दूसरे शहर चली गई थी, और राघव अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों में खो गया था। दोनों के बीच न कोई झगड़ा था, न कोई अलविदा — बस एक अधूरापन।
उस रात राघव ने ख़त को मेज़ पर रखा और अपनी डायरी खोली। उसने लिखा —
“प्रिय साक्षी, तुम्हारा अधूरा ख़त आज भी पूरा नहीं हुआ, लेकिन शायद अब मैं इसे पूरा कर दूँ...”
उसने उन शब्दों को लिखा जो कभी कह नहीं पाया था —
“मैंने कभी तुम्हें रोका नहीं, क्योंकि मैं चाहता था कि तुम अपने सपने पूरे करो। लेकिन शायद तुम्हारे जाने के बाद ही समझ पाया कि कुछ लोग हमारे जीवन से नहीं, हमारे भीतर बस जाते हैं।”
उसके आँसू कागज़ पर गिर गए, पर उसने लिखा —
“आज भी जब बारिश होती है, तुम्हारी हँसी सुनाई देती है। और जब भी कोई किताब खोलता हूँ, तुम्हारा चेहरा दिख जाता है — जैसे तुम हर अधूरी कहानी में छिपी हो।”
उसने ख़त पूरा किया, और नीचे लिखा —
“अब ये ख़त अधूरा नहीं रहा, क्योंकि तुम्हारी यादों ने इसे पूरा कर दिया।”
राघव ने ख़त को उसी पुराने लिफ़ाफ़े में रखा, और अलमारी में नहीं, बल्कि अपने मेज़ पर रखा — जहाँ रोज़ सुबह उसकी नज़र पड़ती थी।
अगली सुबह वह पास के पार्क में गया। आसमान में हल्के बादल थे, और हवा में सर्दी की मिठास। राघव ने आसमान की ओर देखा और मुस्कुराया —
“साक्षी, तुम्हारा ख़त मिल गया... अब मैं भी ठीक हूँ।”
हवा में पत्ते हिले — जैसे किसी ने जवाब दिया हो।
राघव ने महसूस किया — कुछ रिश्ते शब्दों में नहीं, एहसासों में पूरे होते हैं। और कुछ ख़त कभी पहुँचने के लिए नहीं लिखे जाते... बस याद दिलाने के लिए कि मोहब्बत अधूरी होकर भी अमर हो सकती है।
मोहब्बत तो मरते हुए इंसान को जिंदा और जिंदा इंसान को मार सकती है