स्कूल की प्रार्थना सभा चल रही थी। सब बच्चे एक लाइन में खड़े थे — कोई बात कर रहा था, कोई हँस रहा था।
सिर्फ एक बच्चा चुप था — आर्यन।
वो अक्सर दूसरों से थोड़ा अलग रहता था, पर उसे अपनी सोच पर पूरा भरोसा था।
उस दिन प्रिंसिपल सर ने घोषणा की —
“अगले हफ्ते हमारा वार्षिक विज्ञान प्रदर्शनी (Science Exhibition) होगा। जो भी टीम बनाना चाहता है, आज ही नाम दे दे।”
पूरी क्लास में हलचल मच गई। सबने अपनी-अपनी टीमें बना लीं।
आर्यन अकेला रह गया।
कुछ बच्चों ने हँसकर कहा,
“तेरे साथ कौन बनेगा टीम में? तू तो हर चीज़ अपने हिसाब से करता है।”
आर्यन मुस्कुराया और बोला,
“ठीक है, मैं अकेला ही बनाऊँगा।”
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अगले दिन से सबने अपने-अपने प्रोजेक्ट शुरू कर दिए।
किसी ने रोबोट बनाया, किसी ने ज्वालामुखी।
आर्यन ने एक पुरानी साइकिल को खोलकर कुछ जोड़ना शुरू किया।
सबको वो पागल लग रहा था।
“ये क्या बना रहा है?” रोहन ने पूछा।
आर्यन बोला, “एक साइकिल जो खुद बैलेंस करेगी। कोई गिर नहीं पाएगा।”
रोहन हँस पड़ा, “इतना बड़ा आइडिया? तू अकेला क्या कर लेगा?”
आर्यन ने जवाब दिया, “कभी-कभी अकेलापन ही सबसे बड़ी ताकत बन जाता है।”
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दिन-रात मेहनत करते हुए आर्यन ने अपने सारे पॉकेट मनी से पुराने पार्ट्स खरीदे।
कई बार साइकिल गिर जाती, वायर जल जाते, और पड़ोसी कहते — “छोड़ दे बेटा, टाइम बरबाद कर रहा है।”
पर आर्यन का जवाब हमेशा एक ही होता —
“नेता वही होता है जो तब भी चलता रहे जब सब रुक जाएँ।”
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प्रदर्शनी का दिन आया।
सारे स्टॉल सज चुके थे — रंगीन चार्ट, चमकती लाइट्स और भीड़।
सबकी निगाहें बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स पर थीं, पर आर्यन का कोना शांत था।
उसकी साइकिल एक कोने में रखी थी, सादी और साधारण दिखती हुई।
जज वहाँ पहुँचे। उन्होंने पूछा,
“बेटा, ये क्या है?”
आर्यन बोला, “सर, ये एक ऐसी साइकिल है जो गिरने नहीं देगी। बैलेंस अपने आप बनता है।”
जज ने मुस्कराते हुए कहा,
“दिखाओ कैसे?”
आर्यन ने साइकिल को छोड़ा — वो थोड़ी डगमगाई, फिर अपने आप सीधी हो गई।
सारे बच्चे जो अब तक हँस रहे थे, अचानक ताली बजाने लगे।
जज बोले, “कमाल है! यह तो असली इनोवेशन है!”
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पर असली पल तब आया जब प्रिंसिपल सर स्टेज पर गए और बोले,
“इस बार का Best Innovation Award जाता है... आर्यन को!”
पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा।
वो वही बच्चे थे जिन्होंने कहा था कि “तू अकेला क्या करेगा।”
आर्यन मंच पर गया, और माइक संभालकर बोला —
“धन्यवाद सर... लेकिन मैं ये ट्रॉफी उन सबके लिए रखता हूँ जो अकेले सपने देखने की हिम्मत रखते हैं।
नेता बनने का मतलब सिर्फ आगे चलना नहीं होता —
नेता वो होता है जो तब रास्ता दिखाए जब बाकी सब अंधेरे में खड़े हों।”
भीड़ चुप थी, पर हर चेहरा सोच में डूबा था।
रोहन ने पास आकर कहा,
“भाई, तू सच में लीडर है। हम सब तो बस भीड़ थे।”
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कुछ महीने बाद, स्कूल ने आर्यन के प्रोजेक्ट को राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भेजा।
वहाँ भी उसने पहला स्थान पाया।
अखबार में उसकी तस्वीर छपी — “14 साल के छात्र ने बनाई सेल्फ-बैलेंसिंग साइकिल।”
लेकिन आर्यन को उस अखबार से ज़्यादा खुशी उस लाइन से मिली जो उसने अपनी नोटबुक के पहले पन्ने पर लिखी थी —
> “अगर भीड़ के साथ चलोगे तो भीड़ में खो जाओगे।
अगर रास्ता खुद बनाओगे, तो दुनिया पीछे आएगी।”
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संदेश:
👉 सच्चा लीडर वही है जो लोगों को नहीं, अपने सपनों को फॉलो करता है।
जो सबके रुक जाने पर भी चलता रहता है — क्योंकि उसे मंज़िल नहीं, दिशा दिखानी होती है।