mysterious book in Hindi Fiction Stories by govind yadav books and stories PDF | रहस्यमी किताब

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रहस्यमी किताब

शहर के पुराने हिस्से में एक छोटी-सी लाइब्रेरी थी — “कैलाश पुस्तकालय”।
यहाँ धूल जमी अलमारियों में ऐसी-ऐसी किताबें थीं जिनके नाम तक अब कोई नहीं जानता था।
स्कूल का छात्र अर्णव, जिसे रहस्यमयी चीज़ों का बहुत शौक था, रोज़ वहाँ नई किताबें ढूँढने आता।

एक दिन वह एक कोने में रखी टूटी हुई लकड़ी की अलमारी के पास पहुँचा।
वहाँ एक किताब थी — काली जिल्द, सुनहरे अक्षर, और ऊपर लिखा था —
“जिसे यह किताब पढ़ेगा, वो खुद कहानी बन जाएगा।”

अर्णव हँस पड़ा, “वाह, यह तो कोई डरावनी फिल्म की लाइन लगती है।”
जिज्ञासा से उसने किताब खोली।
पहले पन्ने पर लिखा था —
“हर शब्द में एक दरवाज़ा है। सोच समझकर पढ़ना।”

किताब के पन्ने खाली थे।
अर्णव ने मुस्कराकर कहा, “झूठी किताब।”
लेकिन जैसे ही उसने अगला पन्ना पलटा, वहाँ उसका नाम लिखा था —
“अर्णव, पृष्ठ 2 पर तुम्हारा इंतज़ार है।”

वह चौंक गया। उसने आसपास देखा — कोई नहीं था।
उसने पन्ना पलटा — अब उस पर उसके घर की तस्वीर उभर आई थी!
उसी समय, बाहर बिजली कड़की और रोशनी चली गई।

डर के बावजूद अर्णव किताब अपने बैग में डालकर घर चला गया।


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रात को उसने किताब फिर खोली।
इस बार उसमें लिखा था —
“अगर सच जानना है, तो आज आधी रात पुराने कुएँ के पास आना।”

वो घबरा गया। पर उसकी जिज्ञासा डर से बड़ी थी।
आधी रात, वो टॉर्च लेकर लाइब्रेरी के पीछे वाले पुराने कुएँ तक पहुँचा।
वहाँ एक ठंडी हवा चल रही थी।
अचानक उसे किताब के पन्ने अपने-आप खुलते दिखे, और उसमें लिखा आने लगा —
“पीछे देखो।”

उसने काँपते हुए पीछे देखा — एक बुज़ुर्ग आदमी वहाँ खड़ा था, सफ़ेद दाढ़ी, हाथ में वही किताब।

“तुमने इसे क्यों खोला, बेटा?” वो भारी आवाज़ में बोला।
अर्णव बोला, “मैंने बस पढ़ना चाहा था... ये किताब अपने आप मेरा नाम लिखने लगी!”

बुज़ुर्ग ने गहरी साँस ली —
“यह किताब उस लेखक की है जो अपनी अधूरी कहानी में कैद हो गया था।
जो भी इसे पढ़ता है, वो उस कहानी का हिस्सा बन जाता है।
अब अगर तुम इसे बंद नहीं करोगे, तो तुम्हारा नाम भी इसके अगले अध्याय में जुड़ जाएगा।”

अर्णव डर गया, पर उसने साहस जुटाया और पूछा,
“कैसे बंद करूँ इसे?”

बुज़ुर्ग बोला,
“हर कहानी के दो अंत होते हैं — डर वाला और हिम्मत वाला।
अगर तुम इसे बंद करने से पहले एक ‘अपना अंत’ लिख दो, तो किताब का जादू टूट जाएगा।”

अर्णव ने काँपते हुए पेन निकाला और लिखा —
“यह कहानी अब खत्म होती है, क्योंकि सच्ची कहानियाँ किताबों में नहीं, इंसान के दिल में रहती हैं।”

जैसे ही उसने आख़िरी शब्द लिखा, तेज़ हवा चली, पन्ने चमकने लगे, और सब कुछ शांत हो गया।
जब उसने आँखें खोलीं — वो फिर लाइब्रेरी में था।
किताब गायब थी, सिर्फ़ एक नोट पड़ा था —
“तुमने हिम्मत चुनी। कहानी अब तुम्हारी है।”


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अगले दिन अर्णव जब लाइब्रेरी पहुँचा, तो मैनेजर ने कहा,
“अरे बेटा, तुम कल यहाँ थे क्या? वो अलमारी तो सालों से बंद है!”

अर्णव मुस्कुरा दिया।
उसने अपनी जेब से वो नोट निकाला —
“कहानी अब तुम्हारी है।”
और धीरे से बोला,
“शायद अब मैं भी एक नई कहानी लिखूँ — पर इस बार, किसी किताब में नहीं… ज़िंदगी में।”


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संदेश:
👉 कभी-कभी जिज्ञासा हमें रहस्य तक ले जाती है, और डर हमें वहाँ से सिखाता है कि असली कहानी हम खुद लिखते हैं।