Aashiqui - 2 in Hindi Drama by vaishnavi books and stories PDF | आशिकी.....अब तुम ही हो। - 2

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आशिकी.....अब तुम ही हो। - 2

अध्याय: २

केशवनगर सोसाइटी: जहां श्रद्धा का परिवार रहता है । वहा के लोग भी श्रद्धा से बहुत प्यार करते है !

और क्यों न करे वो है भी इतनी प्यारी सबका दिल जीत लेने वाली !!!

वैसे कुछ लोग ऐसे भी होते है जो आपको हमेशा नापसंद करते है !आप चाहे जितना अच्छा होले।।उनके साथ!!!!

केशवनगर सोसाइटी में भी कुछ लोग है जो श्रद्धा से जलते है। आपकी मुलाकात जिनसे आगे होगी!!!

(इधर श्रद्धा और प्रीति मंदिर पहुंचती है ! पहले वे राधाकृष्ण जी के दर्शन करती हैं ! फिर पुजारी जी के पास पहुंचती हैं!!)

श्रद्धा: हरी काका !

(पुजारी जी पीछे मुड़ते है) 

पुजारी जी: अरे श्रद्धा बिटिया!! आ गई??आओ !!

(श्रद्धा और प्रीति पंडित हरी प्रसाद तिवारी (मंदिर के पुजारी) के पाव छूती हैं!)

पुजारी जी:खुश रहो बेटा!!

श्रद्धा: (मासूमियत से) हरी काका माफ कीजियेगा थोड़ी देर हो गई! !!

हरी प्रसाद: कोई बात नही बेटा!! आओ तुमसे बात करनी थी!!

(तीनों मंदिर की सीढ़ियों पर बैठते है!!)

(दृश्य : केशवनगर सोसाइटी से थोड़ी ही दूरी पर: अमृत शर्मा की दुकान जिसपर लिखा था बड़े बड़े शब्दो में श्रद्धा जनरल स्टोर जोकि बहुत खूबसूरती से डिजाइज्ड है!!)

(अभय:अमृत के दुकान पर काम  करने वाला 28 वर्ष का लड़का!! )

अभय:चाचा जी...!!वो जन्माष्टमी के सामान का स्टॉक आ गया है!

अमृत:अच्छा....ठीक है ।सामान कों गोदाम में रखवा दो ! बाद में देखते है!!

(तभी एक ग्राहक आता है!!)

ग्राहक: नमस्ते शर्मा जी!!

अमृत: नमस्ते नमस्ते कैसे हैं आप!!

ग्राहक:हम ठीक है आप बताए कैसा चल रहा है सब!!

अमृत: कान्हा जी की कृपा से सब ठीक चल रहा है !!आप बताए कैसे आना हुआ??

ग्राहक:अरे.. जन्माष्टमी आ रही है न तो वही कुछ सजावट का  सामान और कान्हा के वस्त्र चाहिए थे!!

अमृत: अच्छा अच्छा रुकिए...!!! (बुलाते हुए)अभय !!

अभय:जी!!(समझ जाता है और सामान निकालने चला जाता है !!)

ग्राहक:(well designed..और अच्छे से सजी हुई दुकान देखकर) वाह..!!!शर्मा जी क्या बात है!!दुकान तो बहुत अच्छी सजा रखी है!!

(वही खूबसूरत क्राफ्टिंग और पेंटिंग्स लगी होती है!!) इतनी सुंदर चीजे!!!

अमृत: अरे ..!!ये सब श्रद्धा का कमाल है सब उसी ने ही बनाया है!!

ग्राहक: अरे वाह !! वो तो बड़ी अच्छी कलाकार है!

अमृत: (खुश होकर / गर्व के साथ) हा! बहुत बड़ी डिजाइनर बनने का सपना है ...उसका !! हर चीज़ में खूबसूरती ढूंढ लेती है और नही मिलती तो उसे खूबसूरत बना देती हैं!!

अभय:(सामान लाकर देते हुए ) श्रद्धा जैसा तो पूरी सोसाइटी में ही नही पूरे शहर में भी न मिले!!

(अमृत अपनी बेटी की बड़ाई सुन कर गर्व करते हुए बहुत खुश होता है!!)

(उधर मंदिर में....!!)

हरी प्रसाद:तू तो जानती हैं!!बेटा अभी जन्माष्टमी आ रही है !!

श्रद्धा: हा काका!!

हरी प्रसाद: वही बताना था !! बेटा ..तुझे मंदिर में होने वाले आयोजनों की तैयारी करनी है!! हर बार की तरह...!!!

श्रद्धा:(खुश होकर) उसकी चिंता मत कीजिए ! इस बार का आयोजन ऐसा होगा की पूरा लखनऊ शहर देखेगा!!

हरी प्रसाद: तभी तो ये काम में हमेशा तुझे ही देता हूं और हा श्रीराधारानी के कार्यक्रम की तैयारी भी करनी है !!

श्रद्धा:(थोड़ा मायूस होकर)...हरी काका , इस बार मैं नही ...!!! आप किसी और को राधा बना दीजिए !!

प्रीति: पर क्यूं??  ...हमेशा तू ही तो बनती हैं!!

(आज बस इतना ही.....आगे हम जानेंगे की श्रद्धा क्यूं मना कर रही राधा बनने से)....!!