रेलवे स्टेशन पर शाम का वक्त था।
प्लेटफॉर्म पर चाय की ख़ुशबू, announcements की आवाज़ें और भागते हुए लोगों की भीड़ —
सब कुछ हमेशा जैसा था, लेकिन आरव के लिए नहीं।
वो आज किसी और ही सोच में था, जैसे किसी पुराने वादे की ओर बढ़ रहा हो।
ट्रेन में अपनी सीट पर बैठकर उसने खिड़की से बाहर देखा।
बारिश की हल्की बूँदें शीशे पर गिर रही थीं, और वो अपने पुराने headphones में धीमे गाने सुन रहा था।
कभी-कभी खामोशियाँ भी गानों से ज़्यादा कुछ कह जाती हैं।
उसी वक्त किसी ने हल्की आवाज़ में पूछा —
“Excuse me, ये सीट खाली है?”
आरव ने सिर उठाया, और पहली बार उसे देखा।
लड़की — हल्के नीले कुर्ते में, गले में सफेद दुपट्टा, हाथ में किताब ‘The Alchemist’।
चेहरे पर थकान भी थी और सुकून भी।
“हाँ, हाँ, बैठिए।” — आरव थोड़ा सकुचाकर बोला।
दोनों कुछ देर तक चुप रहे। ट्रेन चलने लगी, पहिए धीरे-धीरे ट्रैक पर घूमने लगे।
फिर उसने कहा —
“मैं नेहा हूँ, दिल्ली जा रही हूँ। आप?”
“आरव… और हाँ, दिल्ली ही,” उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
एक औपचारिक बातचीत थी, जो धीरे-धीरे सच्चाई में बदल गई।
नेहा बात करती थी तो लगता था कि वो हर शब्द महसूस करके कह रही है।
आरव ने पहली बार किसी से इतने सुकून से बातें कीं —
न दिखावा, न बनावट, बस सादगी।
वो दोनों किताबों से शुरू हुए और ज़िंदगी तक पहुँच गए।
बातों में पता चला कि नेहा पेंटिंग करती है,
और आरव को शब्दों का शौक है।
दोनों को कॉफी और बारिश पसंद थी —
और दोनों ने कभी किसी पर भरोसा करना छोड़ दिया था।
“तुम्हें नहीं लगता कि कभी-कभी हम अपने ही डर से भागते हैं?” — नेहा ने पूछा।
आरव ने मुस्कुराकर कहा,
“लगता है… पर शायद भागना भी एक तरीका है ज़िंदा रहने का।”
दोनों कुछ देर चुप रहे।
कभी-कभी दो अजनबी भी इतने समझदार लगते हैं, जैसे बरसों से जानते हों।
बाहर बारिश तेज़ हो गई थी।
नेहा ने खिड़की के पास हाथ रखा और बूँदें पकड़ने लगी।
“मुझे बारिश में कॉफी बहुत पसंद है।”
आरव बोला — “तो अगली बार बारिश में कॉफी मैं पिलाऊँगा।”
वो हँसी — एक हल्की, सच्ची हँसी, जिसमें कोई दिखावा नहीं था।
समय तेज़ी से बीत गया। ट्रेन मंज़िल के करीब थी।
आरव को पहली बार लगा कि वो चाहता है कि सफ़र थोड़ा लंबा हो जाए।
जाने का समय आ गया था।
नेहा ने किताब बंद की और बोली —
“आपसे बात करके अच्छा लगा।”
आरव ने कहा — “अच्छा नहीं… सुकूनदायक लगा।”
वो मुस्कुराई, “हर किसी को सुकून नहीं मिलता। आप lucky हैं।”
और फिर भीड़ में खो गई।
आरव खिड़की से देखता रहा —
बारिश अब भी हो रही थी, पर उसे अब भीगना अच्छा लगने लगा था।
कभी-कभी कुछ लोग हमारी ज़िंदगी में आते हैं बिना किसी वजह के,
और चले जाते हैं बिना कुछ कहे,
पर जो एहसास वो छोड़ जाते हैं, वो किसी रिश्ते से कम नहीं होते।
कुछ महीने बीत गए।
ज़िंदगी वापस अपने रफ़्तार में आ गई —
ऑफिस, काम, deadlines, सब पहले जैसा।
पर कभी-कभी जब बारिश होती,
तो आरव अनजाने में खिड़की के पास बैठ जाता और कॉफी मंगवा लेता।
उसने कॉफी का एक घूंट लिया और मुस्कुरा दिया।
वेटर ने पूछा — “सर, आज अकेले?”
आरव ने कहा — “हाँ, पर आज भी साथ है कोई… यादों में।”
वो जानता था, वो मुलाक़ात बस कुछ घंटों की थी,
पर उसमें जो सच्चाई थी, वो किसी उम्रभर के रिश्ते से गहरी थी।
नेहा शायद अब किसी और शहर में होगी,
किसी और सफ़र में, किसी और कहानी में।
पर उसके अंदर का वो हिस्सा, जो लोगों से डर गया था,
अब थोड़ा भरोसा करना सीख गया था।
कभी-कभी ज़िंदगी कुछ पल देती है जो हमेशा के लिए याद बन जाते हैं।
वो मुलाक़ात कोई रिश्ता नहीं थी,
वो एक याद थी — सच्ची, बिना वादे की, बिना नाम की।
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🌧️ अंत की पंक्तियाँ:
> पहली मुलाक़ातें अजीब होती हैं —
वो ज़्यादा नहीं बोलतीं, पर सब कुछ कह जाती हैं।
वो दिल के उस हिस्से को छू जाती हैं,
जहाँ उम्मीद फिर से जन्म लेती है।
> कुछ लोग ज़िंदगी में दोबारा नहीं मिलते,
पर उनकी एक मुस्कान,
पूरी ज़िंदगी का सुकून बन जाती है।