Sone ka Pinjra - 23 in Hindi Adventure Stories by Amreen Khan books and stories PDF | सोने का पिंजरा - 23

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सोने का पिंजरा - 23

पच्चीस साल बाद जब कबीर अपने राजसी महल से निकलकर अपने गाँव लौटा, तो हवाओं में एक अलग ही ठंडक थी. गाँव की पगडंडी पर उसकी गाडी धीरे- धीरे सरक रही थी. बाहर के शीशे से झाँकते ही उसे वही खेत, वही पेड और वही कच्चे घर दिखाई दिए, जिनसे उसका बचपन जुडा था.

गाडी रुकी तो कबीर ने पहली बार अपने पैरों तले गाँव की मिट्टी को महसूस किया. उसने झुककर मुट्ठी भर मिट्टी उठाई, और होंठों से हल्की मुस्कान निकली—
यही तो है असली दौलत. जिसकी खुशबू यूरोप या दुबई की हवाओं में कहाँ मिलती है।

गाँव के बीचों- बीच उसके किले जैसे खेत फैले थे. चारों तरफ हरे- भरे गन्ने, सरसों की सुनहरी चादर, और दूर- दूर तक आम और अमरूद के बाग. हर पेड जैसे उसे पहचान रहा हो, हर पगडंडी जैसे उसे पुकार रही हो.

कबीर अपने खेतों की सैर करता हुआ आगे बढा. उसके मजदूर और पुराने किसान उसे देखकर चौंक उठे—
मालिक. आप?
कबीर ने बस मुस्कुराकर कहा—
हाँ. तुम्हारा मालिक पच्चीस साल बाद वापस आया है।

इसी दौरान उसकी नजर एक ओर पडी— बाग में एक लडकी पेड से आम तोड रही थी. सफेद सलवार- कुर्ता, सिर पर हल्की- सी दुपट्टे की छाया, और चेहरे पर सुबह की धूप की तरह चमकती मासूम मुस्कान. उसकी आँखें बडी- बडी और झील जैसी गहरी थीं.

वो थी शहवार खान.

उसकी चाल में इतनी सादगी थी कि कबीर अनायास ही ठिठक गया. एक पल को उसे लगा जैसे हवेली का सारा वैभव फीका पड गया हो और सिर्फ उस लडकी की मासूमियत ही उसकी दुनिया को रोशन कर रही हो.

शहवार ने कबीर को देखा तो हल्की- सी झिझक के साथ सलाम किया—
अस्सलामुअलेकुम, साहब।
कबीर के होंठों पर अनजाने ही मुस्कान आ गई. उसने जवाब दिया—
वालेकुम अस्सलाम. तुम्हारा नाम?

लडकी ने नजरें झुका लीं—
शहवार. शहवार खान।

उसका नाम जैसे किसी शायरी की तरह कबीर के कानों में गूँज गया. एक अजीब- सी बेचैनी और खुमारी ने उसे घेर लिया. वो उसी पल समझ गया—
दौलत, शौहरत, हवेली. ये सब अपनी जगह हैं. लेकिन असली खेल तो अब शुरू हुआ है.

शहवार की मासूमियत में एक ऐसा जादू था, जिसने कबीर जैसे कठोर और दुनियादार इंसान को भी पहली नजर में बेकाबू कर दिया. उसकी नजरें बार- बार उसी की ओर जाती थीं, और दिल अनजाने में कह रहा था—
कबीर. ये वही है जिसके लिए तू गाँव वापस लौटा है।



राजसी हवेली, महंगे झूमर और imported सजावटों से भरा कबीर का जीवन, किसी सपनों के साम्राज्य से कम नहीं था. मगर उस दिन, सुबह की ठंडी हवा के साथ जब उसकी कार गाँव की तरफ मुडी, तो उसके दिल में एक अजीब- सी बेचैनी थी.

पच्चीस साल बाद वह लौट रहा था — उसी गाँव में, जहाँ उसने बचपन के दिन बिताए थे. वही मिट्टी, वही खेत, वही लोग. मगर अब सब कुछ बदल चुका होगा, ये सोचकर उसका दिल बार- बार धडक उठता.

कार गाँव की सीमा पर पहुँची. सडक अब पक्की नहीं थी, बल्कि कच्ची धूल भरी पगडंडी में बदल गई थी. कबीर ने शीशे से बाहर झाँका तो उसे दूर- दूर तक फैले खेत नजर आए. सरसों के खेतों में सुनहरी लहरें हिल रही थीं. गन्ने हवा के साथ सरसराते थे और दूर बागों में आम के पेड झूम रहे थे.

कबीर ने गहरी साँस ली —
यही तो है असली दौलत. यही तो है जडें।




गाँव में प्रवेश

जैसे ही कार गाँव में पहुँची, बच्चे दौडकर पीछे- पीछे चलने लगे. औरतें दरवाजों से झाँकने लगीं. बूढे लोग अपनी लाठी टेकते हुए चौपाल की ओर बढे. किसी ने धीरे से कहा —
अरे. ये तो कबीर है! हमारा कबीर. पच्चीस साल बाद लौटा है।

गाडी जब रुकी, कबीर ने दरवाजा खोला और मिट्टी पर कदम रखा. उसके जूते धूल से भर गए, मगर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई. उसने झुककर मुट्ठी भर मिट्टी उठाई और माथे से लगाई.

गाँव वाले उसकी ओर बढे.
मालिक.
साहब लौट आए!

कबीर ने सबको गले लगाया. उसने महसूस किया कि ये अपनापन किसी महल या शहर की शानो- शौकत में नहीं मिलता.




खेतों और बागों का दृश्य

कबीर खेतों की ओर बढा. उसके साथ गाँव वाले भी चल पडे. खेतों में हल्की हवा बह रही थी. गन्नों की ऊँचाई से धूप छन- छनकर नीचे गिर रही थी. सरसों के फूलों से महक उठी धरती. कबीर के कदम जैसे थम- थम कर चल रहे थे, हर दृश्य को आँखों में उतारते हुए.

आगे आम और अमरूद के बाग थे. बाग के पेडों पर पके हुए फल लटक रहे थे. हवा में आम के फूलों की खुशबू थी. कबीर ने मुस्कुराकर कहा —
यही तो मेरी असली दौलत है. हवेली में सोना- चाँदी है, लेकिन ये मिट्टी. ये सब्जी की खुशबू, ये हीरे से कम नहीं।

गाँव के बुजुर्ग ने सिर हिलाया—
सही कहते हो मालिक. दौलत तो मिट्टी से है. हवेली की नींव भी यहीं की मिट्टी से बनी है।




शहवार खान का पहला दृश्य

इसी दौरान कबीर की नजर एक बाग की ओर गई. वहाँ एक लडकी पेड से आम तोड रही थी. उसका चेहरा सुबह की धूप में नहाया हुआ था. उसने साधारण- सा सफेद सलवार- कुर्ता पहन रखा था. सिर पर हल्के रंग का दुपट्टा, और पैरों में चप्पल.

उसकी चाल में शराफत थी, उसके हाव- भाव में मासूमियत. चेहरे पर ऐसी सादगी थी कि जैसे किसी दर्पण में कुदरत ने खुद अपनी तस्वीर उतारी हो.

वो थी शहवार खान.

कबीर की साँसें अटक गईं. उसने अपनी आँखें मल लीं जैसे यकीन ही न हो कि इतनी खूबसूरत तस्वीर हकीकत में हो सकती है.

शहवार ने आम तोडे और अपनी झोली में रख लिए. अचानक उसकी नजर कबीर पर पडी. उसकी बडी- बडी आँखें कुछ पल को ठिठक गईं. वो हल्का- सा मुस्कुराई, फिर झिझकते हुए बोली —
अस्सलामुअलेकुम, साहब।

कबीर जैसे उसकी आवाज में खो गया. वह जवाब देना भूल गया. फिर उसने धीमे स्वर में कहा —
वालेकुम अस्सलाम. तुम्हारा नाम?

लडकी ने नजरें झुका लीं.
शहवार. शहवार खान।

नाम सुनते ही कबीर को लगा जैसे हवाओं ने शायरी की कोई पंक्ति दोहरा दी हो. उस पल उसने समझ लिया कि उसकी सारी शानो- शौकत, imported chandeliers, luxury cars, महंगी शराबें — सब बेमानी हैं. असली दौलत तो ये मासूमियत है, ये सादगी है.




कबीर का दिल बेकाबू

कबीर के दिल में हलचल होने लगी. उसके होंठों पर अजीब- सी मुस्कान थी. उसने मन ही मन कहा —
कबीर, तूने दुनिया की हर दौलत देखी. मगर आज तूने वो देखा है, जो तेरी जिंदगी को नया रंग देने वाला है।

शहवार ने झोली सँभाली और जाने लगी. मगर कबीर की नजरें उसका पीछा करती रहीं.

गाँव का एक बुजुर्ग बोला—
ये शहवार है, खान साहब की बेटी. बहुत नेक और सादा लडकी है. काम में लगी रहती है, किसी से ज्यादा बोलती भी नहीं।

कबीर ने बस सिर हिलाया. मगर उसके दिल में कुछ और ही ख्वाहिशें जाग चुकी थीं.




गाँव वालों का स्वागत समारोह

शाम को गाँव वालों ने कबीर के स्वागत के लिए चौपाल पर एक छोटा- सा कार्यक्रम रखा. ढोलक की थाप और बच्चों की खिलखिलाहट से माहौल जीवंत था.

कबीर सबके बीच बैठा, मगर उसकी नजरें बार- बार भीड में शहवार को तलाश रही थीं. और जब उसने देखा कि शहवार अपने पिता खान साहब के साथ खडी है, तो उसके दिल में अजीब- सी धडकन बढ गई.

शहवार साधारण- सी नीली सलवार- कुर्ता पहने थी. मगर उसकी सादगी में भी इतना नूर था कि कबीर अपनी नजरें हटा न सका.




पहली बातचीत

कार्यक्रम खत्म हुआ. लोग कबीर के आस- पास जुटे रहे. मगर जब सब थोडा छँट गए, कबीर ने एक बहाना बनाकर शहवार को पुकारा.

तुम्हारा नाम शहवार है न?
लडकी ने झिझकते हुए सिर हिलाया.
जी. साहब।

कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा—
साहब मत कहो. मैं भी इसी गाँव का बेटा हूँ।

शहवार की आँखों में मासूमियत थी. उसने धीरे से कहा—
मगर आपके बारे में सब कहते हैं. आप तो बहुत बडे आदमी हैं।

कबीर हँसा.
बडा आदमी वही होता है, जिसके दिल में सच्चाई हो. बाकी सब तो खेल है, शौहरत है।

शहवार चुप रही. उसकी नजरें जमीन पर थीं. मगर उसके चेहरे की मासूम मुस्कान ने कबीर के दिल को जैसे बाँध लिया.




कबीर की बेचैनी

रात को जब कबीर अपनी हवेली में लौटा, तो चारों तरफ imported फर्नीचर, महंगे परदे और चमकते झूमर थे. मगर उसका मन कहीं और था.

उसके कानों में बार- बार वही आवाज गूँजती—" अस्सलामुअलेकुम, साहब।
उसकी आँखों में वही मासूम चेहरा तैरता रहा.

कबीर ने खुद से कहा—
कबीर. तूने पच्चीस साल तक दुनिया की हर खुशी देखी. मगर आज जो तूने पाया है, वो अनमोल है. ये खेल अब सिर्फ दौलत का नहीं रहा. अब इसमें दिल भी दाँव पर है।




कहानी का मोड

कबीर जानता था कि शहवार सिर्फ एक साधारण गाँव की लडकी नहीं है. उसमें वो मासूमियत थी, जो लाखों की भीड में अलग खडी हो.

उस रात कबीर ने अपने दिल में ठान लिया —
मैं शहवार को अपने दिल की रानी बनाऊँगा. चाहे इसके लिए मुझे कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पडे।




To Be Continued.



गाँव में हल्की- हल्की ठंडी हवाएँ चल रही थीं. रात का सन्नाटा, कहीं दूर झींगुरों की आवाज, और ऊपर आसमान में टिमटिमाते तारे. चौपाल से लौटते हुए कबीर का मन अजीब- सी बेचैनी में था. वह सीधा हवेली जाने के बजाय अपने खेतों की ओर निकल पडा.

खेतों में चाँदनी दूध की तरह बिखरी थी. गन्नों की कतारें हवा के साथ झूम रही थीं. अचानक उसे सरसराहट सुनाई दी. उसने मुडकर देखा — वही शहवार, पानी से भरी बाल्टी उठाए आ रही थी.

कबीर चौंक गया —
इतनी रात गए? तुम अकेली?

शहवार हल्का मुस्कुराई —
गाँव में तो रातें भी सुरक्षित होती हैं, साहब. हमें डरने की आदत नहीं।

कबीर ने सिर झुकाया, उसकी सादगी पर मुस्कुराते हुए कहा —
मैंने कहा था न. मुझे साहब मत कहो।

शहवार झिझक गई.
तो क्या कहूँ?

कबीर ने हल्की हँसी के साथ जवाब दिया —
बस. कबीर।




मासूम बातचीत

दोनों खेत की पगडंडी पर साथ चलने लगे. चाँदनी उनकी छाया को लंबा करती हुई पीछे- पीछे चल रही थी.

कबीर ने पूछा —
तुम रोज रात को भी काम करती हो?

शहवार ने शांत स्वर में कहा —
गाँव की जिंदगी आसान नहीं होती, कबीर साहब. ओह, माफ करना, कबीर. यहाँ दिन- रात का फर्क नहीं होता. खेत ही हमारी दौलत हैं, और मेहनत ही हमारी शानो- शौकत।

कबीर रुक गया. उसकी आँखों में चमक थी.
तुम जानती हो? मैंने अरबों की दौलत देखी है, दुनिया की सबसे बडी हवेलियाँ, सबसे महंगे कपडे, लेकिन जो सुकून तुम्हारी बातों में है, वो कभी कहीं नहीं मिला।

शहवार उसकी बात सुनकर हैरान हुई.
आप जैसे बडे आदमी को मेरी बातों में सुकून? ये तो अजीब है।

कबीर ने गहरी साँस ली.
अजीब तो ये है कि दुनिया के शोरगुल में रहते हुए भी मेरा दिल खाली था. और आज, तुम्हारी मासूम हँसी ने उसे भर दिया।

शहवार की पलकों पर झिझक उतर आई. उसने नजरें झुका लीं.




दिल की धडकनों का इजहार

दोनों आम के पेड के नीचे आकर रुक गए. चाँद की रोशनी उसकी आँखों में चमक रही थी.

कबीर धीरे से बोला —
शहवार. तुम्हें देख कर लगता है जैसे कोई दुआ कुबूल हो गई हो. तुम्हारी सादगी, तुम्हारी मासूमियत. सब कुछ मुझे बाँध लेता है।

शहवार का चेहरा लाल हो गया.
आप. आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?

कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा —
क्योंकि मैं झूठ बोलना नहीं जानता. मैं कबीर हूँ. और कबीर जब किसी को देख ले, तो नजरें फेर नहीं सकता।

शहवार ने हल्की हँसी में जवाब दिया —
मगर आप बडे लोग होते हैं. आपके लिए हम गाँव की लडकियाँ बस कहानी की किरदार होती हैं।

कबीर ने तुरंत कहा —
नहीं, शहवार. तुम कहानी का किरदार नहीं हो. तुम तो वो किताब हो, जिसे मैं बार- बार पढना चाहता हूँ।

उसके लफ्जों ने शहवार को नि: शब्द कर दिया.




मासूम हँसी और अपनापन

बाल्टी जमीन पर रखते हुए शहवार ने कहा —
आप शहर से आए हैं. वहाँ की जिंदगी यहाँ की मिट्टी से बहुत अलग है. आपको ये सादगी कितने दिन तक अच्छी लगेगी?

कबीर ने हौले से उसकी ओर देखा.
शहवार, सादगी खरीदी नहीं जा सकती. और न ही ये कभी पुरानी होती है. मैं शहर में सब कुछ पाकर भी खाली था, और यहाँ मिट्टी की खुशबू, तुम्हारी बातें, सब कुछ मुझे पूरा कर रही हैं।

शहवार की आँखों में हल्की नमी थी.
आपका दिल इतना नर्म है, ये मैंने सोचा नहीं था।

कबीर मुस्कुराया.
दिल तो हमेशा नर्म था. बस लोगों ने उस पर दौलत और शौहरत की चादर डाल दी थी. तुमने वो चादर हटा दी है।




खामोशी में बातें

कुछ देर दोनों चुप रहे. सिर्फ हवा की सरसराहट थी और कहीं दूर से आती बांसुरी की आवाज.

शहवार ने धीमे से कहा —
कबीर. आप फिर से गाँव में रहेंगे या लौट जाएँगे?

कबीर ने बिना सोचे कहा —
अगर तुम चाहो. तो मैं यहीं रह जाऊँगा।

शहवार ने चौंककर उसकी ओर देखा.
इतनी बडी बातें मत कीजिए।

कबीर हँस पडा.
मेरे लिए ये बडी नहीं, सच्ची बातें हैं।




पलकों में बसी तस्वीर

वक्त जैसे ठहर गया था. शहवार ने बाल्टी उठाई और धीरे- धीरे चल दी. मगर जाते- जाते उसकी आँखें पल भर के लिए कबीर से टकराईं. उस एक नजर में जितनी मासूमियत और खामोशी थी, उतनी किसी किताब में नहीं मिल सकती.

कबीर वहीं खडा रहा, दिल में बस यही सोचते हुए —
ये खेल अब सिर्फ हवेली और दौलत का नहीं. ये तो दिल का है. और इस खेल की बाजी मैं हर हाल में जीतना चाहता हूँ।




To Be Continued.




एक) गाँव की सुबह और नयी मुलाकात)

अगली सुबह गाँव में हल्की धूप खिली थी. कबीर खेतों के बीचों- बीच खडा था, सूरज की पहली किरणें उसकी आँखों में चमक ला रही थीं. हवेली के बजाय उसने आज खेत की ओर कदम बढाया.

खेत में पहुँचते ही उसने शहवार को काम करते देखा — हल्की धूप में उसका चेहरा और भी निखरा हुआ लग रहा था. वह खेत के बीचों- बीच गन्ने तोड रही थी. कबीर ने हलके कदमों से उसकी ओर बढते हुए पूछा —
तुम इतनी सुबह क्यों काम कर रही हो?

शहवार ने सिर उठाकर मुस्कुराई —
कबीर, खेत हमारे लिए जीवन हैं. सुबह- शाम मेहनत में ही सुकून है।

कबीर ने उसकी तरफ देखते हुए कहा —
तुम्हारी बातों में एक जादू है. मैं हर बार सुनना चाहता हूँ।

शहवार ने शर्म से सिर झुका लिया.




दो) अान्या का फ्लैशबैक)

कबीर का मन अचानक कहीं और पहुँच गया — शहर में अान्या के साथ बिताए पलों में.

वो याद आया जब अान्या पहली बार उसकी हवेली में आई थी — उसके designer कपडे, चमकदार smile, और हर gesture में confidence। अान्या की आवाज अब भी कानों में गूंज रही थी —
कबीर, तुम इतनी दौलत लेकर भी खाली क्यों हो?

उस समय कबीर चुप रह गया था. अान्या ने उसके दिल में एक सवाल छोड दिया था जिसे वह अब तक समझ नहीं पाया था.

लेकिन गाँव में शहवार से मिलने के बाद. वह सवाल अब और गहरा हो गया था.

क्या ये दौलत है, या प्यार? — कबीर के दिल में यही लडाई चल रही थी.




तीन) कबीर और शहवार की नजदीकियाँ बढना)

दिन बीतते गए. कबीर गाँव में दिन- रात शहवार के साथ समय बिताने लगा. दोनों खेतों में, आम के पेडों के नीचे, और चौपाल पर बैठकर बातें करते.

एक दिन शहवार ने पूछा —
कबीर, आप इतनी दौलत छोडकर यहाँ क्यों आए?

कबीर ने ठहरकर कहा —
शहवार, दौलत और शौहरत तो हासिल कर ली है. लेकिन मैं यहाँ कुछ और ढूँढ रहा हूँ — सुकून।

शहवार ने मुस्कुराते हुए कहा —
और आपको लगता है कि ये सुकून यहाँ है?

कबीर ने बिना हिचक कहा —
हाँ. तुम्हारे साथ।

शहवार की आँखें बडी हुईं. वह कुछ पल चुप रही और फिर हल्की हँसी के साथ बोली —
कबीर. ये बहुत बडी बात है।




चार) अान्या की वापसी और कबीर की दुविधा)

इसी बीच शहर से खबर आई कि अान्या गाँव आ रही है. कबीर के दिल में हलचल मच गई. अान्या का नाम सुनते ही उसके अंदर पुरानी यादें जाग उठीं.

अान्या गाँव में आई तो कबीर से मिलना चाहती थी. वह आई — designer dress में, city glamour के साथ, उसकी आँखों में वही चमक थी जो पहले थी.

अान्या ने मुस्कुराते हुए कहा —
कबीर. मैं सोचती रही कि तुम मुझे भूल गए हो।

कबीर चुप रहा. उसकी नजरें अनजाने में शहवार की तरफ चली गईं.

अान्या ने आगे कहा —
मैं जानती हूँ, तुम बदल गए हो. लेकिन मैं तुम्हारे दिल में कौन हूँ, ये जानना चाहती हूँ।

कबीर ने धीरे से कहा —
अान्या. तुम खूबसूरत हो, मगर शहवार में कुछ है जो मुझे रोकता है. जो मैं छोड नहीं सकता।




पाँच) कबीर का दिल और शहवार का इजहार)

एक शाम, खेत के किनारे, कबीर ने शहवार को बुलाया. हवा में खामोशी थी, सिर्फ चिडियों की आवाज और दूर से आती बांसुरी की धुन.

कबीर ने शहवार से कहा —
शहवार. मैं तुम्हें अपने दिल में पा चुका हूँ. तुम्हारी सादगी, तुम्हारा मुस्कुराना, सब कुछ मेरे लिए एक दुनिया है।

शहवार ने धीरे से कहा —
कबीर, मैं. बस एक गाँव की लडकी हूँ।

कबीर ने उसका हाथ थामा —
तुम सिर्फ एक लडकी नहीं. तुम मेरा सुकून हो।

शहवार की आँखों में आँसू थे, वह चुपचाप कबीर की आँखों में देखती रही.




छह) अान्या का सामना)

अगले दिन अान्या ने कबीर से अकेले में बात करने की कोशिश की. उसने कहा —
कबीर. मैं जानती हूँ कि तुम बदल चुके हो. पर मैं नहीं मान सकती कि तुम मुझे भूल गए हो।

कबीर ने धीरे कहा —
अान्या. मैं तुम्हें भूल नहीं सकता. लेकिन मेरा दिल शहवार के साथ है।

अान्या ने आँसू छुपाते हुए कहा —
तो ये मेरा खेल है. जिसे मैं हार चुकी हूँ?

कबीर ने सच्चाई से कहा —
हाँ. क्योंकि सच्चा प्यार दौलत और शोहरत से बडा होता है।




सात) दिल की जीत और नयी शुरुआत)

कबीर ने तय कर लिया कि अब उसका रास्ता सिर्फ शहवार के साथ होगा. अान्या से उसने विनम्रता से कहा —
अान्या. मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ, लेकिन मेरी मंजिल शहवार है।

अान्या ने मुस्कुराते हुए कहा —
फिर तुम्हें खुश रहना चाहिए. और मैं यही चाहती हूँ।

कबीर ने शहवार का हाथ थामते हुए कहा —
शहवार. मैं यहाँ तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ, इस गाँव में, इस मिट्टी में, इस प्यार में।

शहवार ने आँसुओं के साथ सिर हिलाया.




आठ) To Be Continued.

गाँव में चाँदनी रात थी. खेतों की खुशबू, हवाओं की सरसराहट, और दो दिलों का मिलन — यही कहानी का असली रोमांच था.
अान्या की वापसी ने कहानी में रंग भरे थे, लेकिन कबीर ने अपने दिल की जीत को चुन लिया था.

कबीर और शहवार के लिए यह सिर्फ एक प्यार की कहानी नहीं, बल्कि एक नई जिंदगी की शुरुआत थी.




एक) गाँव में एक हल्की सुबह)

गाँव में सूरज की पहली किरणें थीर- थीर आती थीं. हवाओं में खेतों की मिट्टी की खुशबू और सरसों के फूलों की मीठी महक घुली हुई थी. कबीर हवेली से निकलकर सीधे खेतों की ओर चला आया. उसका मन बेचैन था. आज का दिन कुछ अलग सा था — अान्या का आगमन और शहवार से उसकी बढती नजदीकियों ने उसका दिल उलझा दिया था.

खेत के बीचों- बीच शहवार आम के पेड के नीचे बैठी, गन्ने की पत्तियाँ बीन रही थी. उसकी सादगी, उसकी मुस्कान, और उसकी मासूमियत कबीर को हर बार खींच लेती थी.

कबीर ने उसके पास जाकर कहा —
शहवार. तुम इतनी जल्दी क्यों काम में लग जाती हो?

शहवार ने हल्की हँसी के साथ जवाब दिया —
कबीर, मेहनत ही हमारी पहचान है. और ये पहचान हमें मजबूत बनाती है।

कबीर ने आँखों में मुस्कान लिए कहा —
और तुम्हारी ये सादगी मुझे हर रोज खींचती है. मैं इसे भूल नहीं सकता।

शहवार ने सिर झुका लिया, और उसके होंठों पर हल्की मुस्कान खिल गई.




दो) अान्या का शहर से वापसी का दृश्य)

इसी बीच गाँव में खबर फैली कि अान्या आज गाँव आएगी. शहर से आई अान्या का नाम आते ही लोगों के बीच हलचल मच गई. अान्या. वह लडकी जिसने कबीर के दिल में जगह बना ली थी.

अान्या की एंट्री गाँव की चौपाल में हुई — designer कपडे, perfect makeup और city glamour के साथ. उसकी मुस्कान में एक confidence था जो हर किसी को प्रभावित करता था. अान्या की नजरें कबीर पर पडीं — एक लंबा पल चुप्पी थी, फिर वह मुस्कुरा दी.

कबीर. मैं सोचती रही तुम मुझे भूल गए हो, अान्या ने धीमे स्वर में कहा.

कबीर ने उसकी तरफ देखा, मगर उसकी नजरें अनजाने में शहवार की तरफ लौट गईं.




तीन) तीनों के बीच टकराव)

शहवार ने अान्या को देखा, उसका चेहरा गंभीर हो गया. वह वहाँ से उठी और कबीर के पास आई.

कबीर. तुम क्या कर रहे हो? शहवार ने पूछा, उसकी आवाज में हल्की चिंता थी.

कबीर ने धीमे से कहा —
शहवार. अान्या यहाँ आई है. मुझे नहीं पता कि मेरा दिल क्या कह रहा है।

अान्या मुस्कुराई —" तो ये वही है, कबीर. जो मैं जानती थी. तुम दो दुनिया में फँस चुके हो।

शहवार ने टोकते हुए कहा —
कबीर, तुम जानते हो मैं तुम्हें. दिल से चाहती हूँ. क्या तुम इसे नजरअंदाज कर सकते हो?

कबीर ने आँखें बंद कर लीं — उसकी सांसें तेज हो गईं. वह चुप रहा.




चार) कबीर का दिल खुलना)

रात को, खेत के किनारे, चाँदनी में तीनों खडे थे. हवा में खामोशी थी, केवल दूर से आती बांसुरी की धुन और हवा की सरसराहट थी.

कबीर ने गहरी साँस ली और कहा —
मैं आप दोनों को एक साथ नहीं खोना चाहता. लेकिन मेरा दिल कहता है कि सच्चा प्यार सिर्फ एक के लिए होता है।

अान्या ने धीरे कहा —
तो किसके लिए कहता है ये दिल?

कबीर ने शहवार की ओर देखते हुए कहा —
शहवार. तुम्हारे लिए।

शहवार की आँखों में आँसू थे. उसने धीरे से कहा —
मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न हो।

अान्या ने कुछ पल चुप रहकर कहा —
मैं समझ गई. तुमने फैसला कर लिया है।




पाँच) दिल की जीत और नए सफर की शुरुआत)

अगले दिन, गाँव के एक छोटे से मंदिर में, कबीर और शहवार ने हाथ थामकर एक- दूसरे से वादा किया — कि चाहे जो भी हो, वो एक- दूसरे के साथ रहेंगे.

कबीर ने कहा —
शहवार. मैं तुम्हें अपनी जिंदगी देना चाहता हूँ, इस गाँव को अपना घर बनाना चाहता हूँ।

शहवार ने मुस्कुराते हुए कहा —
और मैं इसे अपने दिल से स्वीकार करती हूँ, कबीर।

गाँव वालों ने भी उनके लिए खुशियाँ मनाई. अान्या चुपचाप दूर से सब देख रही थी — उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में एक दर्द था.

कबीर ने शहवार को गले लगाते हुए कहा —
ये केवल एक प्यार की कहानी नहीं. ये हमारी जिंदगी की नई शुरुआत है।




छह) To Be Continued.

चाँदनी रात में खेत, हवाओं की सरसराहट, दो दिलों का मिलन, और एक तीसरे का दर्द — यही था कहानी का असली रोमांच.

कबीर ने अपने दिल का फैसला कर लिया था — मोहब्बत की बाजी शहवार के नाम. अान्या की वापसी ने कहानी में drama भर दिया था, लेकिन उसका प्यार शहवार पर भारी पडा.

गाँव की मिट्टी में एक नई कहानी लिखी जा रही थी — प्यार, विश्वास और एक नई शुरुआत की कहानी.


एक) गाँव में सुबह का दृश्य)

गाँव में सूरज धीरे- धीरे उग रहा था. धूप की पहली किरणें खेतों की हरियाली पर पड रही थीं. हवा में मिट्टी और फूलों की मीठी खुशबू थी. कबीर हवेली से निकलकर सीधे खेतों की ओर चला आया.

आज उसका दिल कुछ हल्का सा बेचैन था. शहवार के साथ बीते पल उसके दिल में गूंज रहे थे, लेकिन अान्या की याद भी उसे पीछे- पीछे खींच रही थी.

खेत के किनारे शहवार आम के पेड के नीचे बैठी थी, हल्की मुस्कान के साथ. उसने कबीर को देखते ही कहा —
तुम सुबह- सुबह यहाँ कैसे आ गए, कबीर?

कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा —
शहवार. तुम्हें देखने की आदत हो गई है।

शहवार ने शर्म से नजरें झुका लीं, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी.




दो) खेत में बातचीत)

दोनों खेत की पगडंडी पर साथ- साथ चलने लगे. हवा में चिडियों की आवाज थी और दूर कहीं बांसुरी की हल्की धुन.

कबीर ने पूछा —
तुम्हें पता है, शहवार. तुम्हारी सादगी में एक जादू है।

शहवार मुस्कुराई —
जादू? मैं सिर्फ एक गाँव की लडकी हूँ, कबीर।

कबीर ने गहरी सांस लेकर कहा —
ना. तुम सिर्फ गाँव की लडकी नहीं हो. तुम वो जादू हो जो दौलत और शोहरत से भी बडा है।

शहवार चुप हो गई. उसकी आँखों में हल्की नमी थी, लेकिन वह मुस्कुराती रही.




तीन) अान्या का प्रवेश)

उस दिन गाँव में हलचल थी. शहर से अान्या आ रही थी. अान्या, जिसकी खूबसूरती और आधुनिकता कबीर के दिल में पहले ही जगह बना चुकी थी.

जैसे ही अान्या गाँव में आई, वह सीधी कबीर से मिलने चली आई. उसका अंदाज, उसका confidence और उसकी मुस्कान — सब कुछ अलग था.

कबीर. मैं सोचती रही कि तुम मुझे भूल चुके हो, अान्या ने धीमे स्वर में कहा.

कबीर ने उसकी तरफ देखा, मगर उसकी नजरें अनजाने में शहवार की तरफ लौट गईं.

अान्या ने हल्की हँसी के साथ कहा —
तो तुमने फैसला कर लिया है. तुमने किसे चुना है?

कबीर चुप रहा. उसका दिल बेचैन था.




चार) दिल की लडाई)

रात को, आम के पेड के नीचे, कबीर और शहवार अकेले थे. चाँदनी उनकी बातें सुन रही थी.

कबीर ने कहा —
शहवार. अान्या आ गई है, और मेरा दिल उलझा हुआ है।

शहवार ने धीरे पूछा —
तो तुम क्या चाहते हो?

कबीर ने उसकी आँखों में देख कर कहा —
मैं नहीं जानता. मगर ये जानता हूँ कि तुम्हारे साथ मैं खुश हूँ।

शहवार की आँखों में आँसू थे, लेकिन वह मुस्कुरा दी.




पाँच) अान्या का सामना)

अगले दिन अान्या ने कबीर से अकेले में बात की. उसने कहा —
कबीर. मैं जानती हूँ कि तुम बदल चुके हो. पर क्या तुम मुझे पूरी तरह भूल गए हो?

कबीर ने धीमे स्वर में कहा —
अान्या. मैं तुम्हें भूल नहीं सकता, लेकिन मेरा दिल शहवार के साथ है।

अान्या ने एक लंबी साँस ली और कहा —
तो ये मेरा खेल है. जिसे मैं हार चुकी हूँ?

कबीर ने बिना झिझक कहा —
हाँ. क्योंकि सच्चा प्यार दौलत और शोहरत से बडा होता है।




छह) शहवार और कबीर की नजदीकियाँ)

गाँव में दिन- रात बदल रहे थे, और कबीर शहवार के करीब होता जा रहा था. वह अक्सर खेत में उसका हाथ थाम लेता, उसकी आँखों में खो जाता.

एक शाम कबीर ने शहवार को खेत के किनारे बुलाया. हवा में खामोशी थी, केवल चिडियों की आवाज थी.

शहवार. मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ, कबीर ने कहा.

क्या बात? शहवार ने नर्म आवाज में पूछा.

मैं जानता हूँ कि दौलत और शोहरत सब कुछ नहीं होते. असली दौलत प्यार है. और मैं चाहता हूँ कि वह दौलत मैं तुम्हें दूँ।

शहवार ने आँखें नम कर लीं और बोली —
कबीर. मैं भी तुम्हें अपने दिल से चाहती हूँ।




सात) अान्या की वापसी का असर)

अान्या की वापसी ने गाँव में हलचल पैदा कर दी थी. कबीर और शहवार के बीच बढती नजदीकियाँ अान्या के लिए एक सवाल बन गईं.

एक दिन अान्या ने कबीर से पूछा —
क्या तुम मुझे भूल गए हो, कबीर?

कबीर ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा —
ना. लेकिन मेरा दिल अब शहवार के साथ है।

अान्या ने धीरे से कहा —
तो तुम्हारा प्यार उसकी तरफ है. मैं इसे मानती हूँ।




आठ) दिल की जीत)

अंत में कबीर ने तय कर लिया कि उसका रास्ता सिर्फ शहवार के साथ है. उसने अान्या से कहा —
अान्या. मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ, लेकिन मेरी मंजिल शहवार है।

अान्या ने मुस्कुराते हुए कहा —
मैं तुम्हारी खुशी चाहती हूँ, कबीर।

कबीर ने शहवार का हाथ थामते हुए कहा —
शहवार. मैं तुम्हें अपनी जिंदगी देना चाहता हूँ।

शहवार ने सिर हिलाया —" मैं तैयार हूँ.




नौ) गाँव में नई कहानी)

गाँव में चाँदनी रात थी. खेतों में हवाओं की सरसराहट थी, और दो दिल एक- दूसरे में खो चुके थे. अान्या दूर से यह सब देख रही थी — उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में दर्द भी था.

कबीर और शहवार के प्यार ने गाँव में एक नई कहानी लिख दी थी —




एक) अान्या का नजदीकी कदम)

रात की चुप्पी गाँव पर छाई हुई थी. चाँदनी हल्की- हल्की हवाओं में खेल रही थी. कबीर हवेली के बरामदे में खडा था, अपने दिल की उलझनों को समझने की कोशिश कर रहा था. तभी अान्या उसके पास आई.

उसका चेहरा गंभीर था, और आँखों में कुछ कहना था. उसने धीमे स्वर में कहा —
कबीर. मैं जानती हूँ कि तुमने शहवार को चुना है. पर मैं तुमसे एक वादा चाहती हूँ।

कबीर ने उसे देखा, थोडी चौंकते हुए —
कौन सा वादा?

अान्या ने गहरी साँस ली —
मैं चाहती हूँ कि तुम शहवार से अपनी कहानी खुद तय करो. और चाहे जो हो, मुझे सच बताओ।

कबीर चुप रहा. उसकी आँखों में अजीब सी उलझन थी.




दो) शहवार का शक)

अगले दिन शहवार ने कबीर को खेत में अकेला पकडा. उसकी आँखों में सवाल और हल्की चिंता थी.

कबीर. अान्या तुम्हारे पास क्यों आई थी रात को? उसने पूछा.

कबीर ने थोडी देर चुप्पी साधी और कहा —
शहवार. अान्या ने मुझसे सच पूछा. उसने मुझसे एक वादा लिया।

शहवार की आवाज में हल्की काँप थी —
क्या वादा?

कबीर ने धीरे कहा —
कि मैं तुम्हारे साथ अपने दिल का सच बाँटूँगा।

शहवार ने उसकी आँखों में देखा और बोली —
तो बताओ कबीर. तुम्हारा दिल किसके साथ है?

कबीर चुप रहा. उसकी आँखों में अतीत और भविष्य का संघर्ष झलक रहा था.




तीन) अान्या की चुनौती)

अान्या गाँव के तालाब के किनारे कबीर से मिलने आई. उसकी आँखों में दर्द और इरादा दोनों थे.

कबीर. मैं तुम्हें नहीं रोक सकती, उसने कहा, पर तुम्हें अपने दिल से देखना होगा कि तुम सच में किसे चाहते हो।

कबीर ने गहरी साँस ली —
अान्या. मैं उलझन में हूँ. शहवार ने मेरे दिल को छू लिया है, लेकिन तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी अधूरी है।

अान्या ने धीरे कहा —
तो फिर तुम्हें तय करना होगा. वरना ये कहानी हमें तोड देगी।

कबीर चुप रहा. उसकी आँखों में अश्रु थे, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा.




चार) शहवार का इम्तिहान)

गाँव में शहवार ने कबीर को अकेला बुलाया. हवा में हल्की ठंडक थी, और चाँदनी दोनों के चेहरे पर उतर रही थी.

To Be Continued.