Sone ka Pinjra - 22 in Hindi Adventure Stories by Amreen Khan books and stories PDF | सोने का पिंजरा - 22

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सोने का पिंजरा - 22

सीन एक: हवेली का तहखाना
काली अंधेरी सुरंग में कबीर अकेला खडा था. हाथ में टॉर्च और दस्तावेज. टॉर्च की रोशनी बार- बार झपक रही थी जैसे कोई ताकत उसे बुझाने की कोशिश कर रही हो.
दीवारों पर पुराने चित्र बने थे, जिन पर लाल रंग से सिर्फ एक अक्षर लिखा था—“ R”

कबीर( धीमे स्वर में)
ये अक्षर हर जगह क्यों है? आखिर R कौन है.

जैसे ही उसने दस्तावेज पलटा, अचानक पीछे से कदमों की आहट आई.
वो मुडा, मगर वहाँ कोई नहीं था.




सीन दो: वेरिका और आरव
ऊपर हवेली के ड्रॉइंग Room में वेरिका बेचैनी से आरव का इंतजार कर रही थी.
आरव अंदर आया, उसके चेहरे पर ठंडी मुस्कान थी.

वेरिका( काँपते हुए)
आरव. ये R कौन है? हवेली में सब डरे हुए हैं।

आरव धीरे- धीरे करीब आया और बोला—
तुम्हें डरना चाहिए, वेरिका. क्योंकि R का मतलब सिर्फ रहस्य नहीं. बल्कि रक्त है. और वो रक्त तुम्हारे परिवार का है।

वेरिका पीछे हट गई. उसकी आँखों में डर और शक दोनों थे.




सीन तीन: तहखाने में धमाका
अचानक तहखाने से एक जोरदार धमाका हुआ. हवेली की दीवारें हिल उठीं.
कबीर ने दस्तावेज कसकर पकडा. उसमें लिखा था—

R= विरासत का असली उत्तराधिकारी।

कबीर की साँसें थम गईं.
क्या R. मेरे परिवार का हिस्सा है?




सीन चार: आरव का राज
आरव अपने कमरे में अकेला खडा था. उसने आईने में खुद को देखा. आईने पर धुंधला- सा एक नाम उभर आया—" रूद्र"

आरव मुस्कुराया:
हाँ. मैं ही हूँ R. रूद्र. इस हवेली का असली वारिस. और कबीर, अब तुम्हारा खेल खत्म।

उसकी आँखों में खून जैसी लाल चमक थी.




सीन पाँच: आमना- सामना
कबीर और आरव आमने- सामने खडे थे. हवेली का हॉल अंधेरे में डूबा हुआ था.
आरव ने धीमी आवाज में कहा—
कबीर. तुम्हें हमेशा लगता था कि तुम ही इस खेल के मालिक हो. लेकिन अब वक्त बदल चुका है. R का युग शुरू होने वाला है।

कबीर मुस्कुराया:
तुम सोचते हो कि सच को छुपाकर जीत जाओगे? नहीं, आरव. खेल अभी खत्म नहीं हुआ।

दोनों की आँखों में टकराहट थी— एक तरफ बदला, दूसरी तरफ सच की तलाश.




सीन छह: हवेली का श्राप
तभी हवेली की छत से पुराना झूमर हिला और भारी आवाज के साथ नीचे गिरा.
धूल और अंधेरे में, हवेली की दीवारों पर खून जैसे धब्बे उभर आए.

दीवारों से एक आवाज गूँजी—
खेल की असली शुरुआत अब होगी.



कैमरा धीरे- धीरे तहखाने में घूमता है. दीवारें नमी से भरी हैं, मकडी के जाले हवा में लहरा रहे हैं. दूर से पानी टपकने की आवाज गूँजती है।

कबीर हाथ में दस्तावेज थामे खडा था. टॉर्च की रोशनी काँप रही थी. उसने दस्तावेज खोला. उसमें लिखा था—

R का जन्म उसी खून से हुआ है जिसने इस हवेली को श्राप दिया. जब तक हवेली का वारिस असली सच नहीं जान लेता, तब तक मौत और धोखे का खेल चलता रहेगा।

कबीर बुदबुदाया—" यानी R का सच सिर्फ एक नाम नहीं. ये पूरा श्राप है।

अचानक पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा.
कबीर चौंका और मुडा.
वेरिका थी. उसके चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी.

वेरिका( काँपते हुए)
भैया. आरव ने मुझे कहा कि R का मतलब रक्त है. और उसने खुद को. रूद्र बताया. क्या ये सच है?

कबीर की आँखें सख्त हो गईं.
अगर आरव सच में रूद्र है, तो वो हमारे खून का हिस्सा नहीं. बल्कि दुश्मन है।




सीन दो: हवेली का हॉल

कैमरा ऊपर के हॉल में cut करता है. पुरानी दीवारों पर लगी तस्वीरें. एक बडी पेंटिंग पर किसी ने लाल रंग से R लिख दिया है।

आरव, यानी रूद्र, अकेला खडा है. उसकी आँखें चमक रही हैं.
वो धीरे- धीरे हवेली की दीवारों से बात करता है—

तुम सब सोचते हो कि ये हवेली तुम्हारी है. लेकिन असली वारिस मैं हूँ.
तुम्हारे बाप- दादा ने मेरे परिवार को धोखा दिया था.
अब वक्त आ गया है. बदला पूरा होगा।

दीवार से मानो कोई ठंडी हवा उठी और झूमर हिलने लगा.
आरव हँसा—
श्राप मेरे साथ है. और श्राप ही मेरी ताकत।




सीन तीन: कबीर की रणनीति

कबीर, वेरिका और हवेली के पुराने नौकर रामदीन तहखाने के एक हिस्से में बैठे थे.
कबीर ने दस्तावेज मेज पर फैलाए.

कबीर:
इस दस्तावेज में साफ लिखा है कि हवेली के असली वारिस की पहचान तभी होगी जब वो श्राप को तोडेगा.
और श्राप तोडने का सिर्फ एक तरीका है— हवेली के गुप्त कमरे को खोलना।

रामदीन हक्का- बक्का रह गया.
बाबूजी. वो कमरा? जो पिछले सौ सालों से बंद है? जहाँ से चीखें सुनाई देती हैं?

वेरिका डर से काँप गई.
भैया. अगर वो कमरा खोला तो. हम सब मर जाएँगे।

कबीर ने ठंडी आवाज में कहा—
मरना तो वैसे भी पडेगा, अगर हमने सच को रोका. लेकिन अगर सच को उजागर किया, तो खेल खत्म हो जाएगा।




सीन चार: हवेली का रहस्यमयी कमरा

क्लोज शॉट— एक भारी लोहे का दरवाजा, जिस पर जंग लगी है. दरवाजे पर अजीब निशान बने हैं, और बीच में एक बडा- सा R उभरा है।

कबीर, वेरिका और रामदीन धीरे- धीरे उस दरवाजे के पास पहुँचे.
कबीर ने हाथ आगे बढाया. दरवाजा ठंडा था, जैसे बर्फ का टुकडा.

अचानक दरवाजे से आवाज आई—
जो इस कमरे को खोलेगा, वही वारिस कहलाएगा. लेकिन कीमत. उसकी जान होगी।

वेरिका चीख उठी—
भैया. मत खोलो इसे!

कबीर ने दृढ स्वर में कहा—
अगर ये खेल खत्म करना है, तो मुझे ये दरवाजा खोलना ही होगा।

उसने दस्तावेज में लिखे मंत्र पढे और दरवाजे को धक्का दिया.
एक भारी गडगडाहट हुई. दरवाजा धीरे- धीरे खुला.




सीन पाँच: कमरे का सच

अंदर अंधेरा था.
कमरे में सिर्फ एक पुरानी किताब और टूटी- फूटी मूर्तियाँ थीं.
किताब के पहले पन्ने पर लिखा था—

R= रूद्र.
पर रूद्र कौन? असली वारिस या धोखेबाज?

कबीर ने पन्ने पलटे. उसमें लिखा था—
सौ साल पहले विराज के पूर्वजों ने रूद्र के परिवार से हवेली छीनी थी. उसी दिन से रूद्र वंश ने बदला खाने की कसम खाई.
हर पीढी में एक ‘र’ जन्म लेता है. जिसका काम होता है श्राप पूरा करना।

कबीर का दिल तेज धडकने लगा.
यानी आरव. सिर्फ एक मोहरा है. असली R शायद अभी सामने नहीं आया।




सीन छह: आरव का हमला

कैमरा cut करता है— हवेली के आँगन में तूफानी हवा चल रही है. आसमान में बिजली चमक रही है।

आरव तलवार लिए खडा है. उसकी आँखें लाल हो चुकी हैं.
वो चिल्लाता है—
कबीर. बाहर आओ! आज खेल का अंत होगा!

कबीर कमरे से बाहर निकला.
उसके चेहरे पर निडरता थी.

कबीर:
अगर तू रूद्र है, तो आ. लेकिन याद रख, हवेली का वारिस खून से नहीं, हक से तय होता है।

दोनों आमने- सामने खडे हो गए.
हवेली की दीवारें काँपने लगीं.




सीन सात: मौत का खेल

कैमरा स्लो- मोशन में लडाई दिखाता है. आरव तलवार से हमला करता है. कबीर उसके वार रोकता है. दोनों की साँसें तेज हैं।

आरव:
तू मुझसे जीत नहीं सकता, कबीर. श्राप मेरे साथ है!

कबीर:
श्राप डरपोक को ताकत देता है. लेकिन मुझे सच का साथ है. और सच हमेशा जीतता है।

कबीर ने दस्तावेज की किताब हवा में उठाई.
उसमें लिखा मंत्र जोर से पढा.

अचानक हवेली हिलने लगी. दीवारों से खून जैसे धब्बे बहने लगे.
आरव की आँखों की चमक बुझने लगी.

आरव दर्द से चीखा—
नहीं. ये मुमकिन नहीं!




सीन आठ: श्राप का टूटना

कमरे की किताब आग पकडने लगी.
हवेली की दीवारें टूटने लगीं.
मोमबत्तियाँ अपने- आप जल गईं.

कबीर ने वेरिका का हाथ पकडा और बाहर खींचा.
रामदीन उनके पीछे- पीछे भागा.

आरव जमीन पर गिरा. उसकी आवाज गूँजी—
खेल. अभी. खत्म नहीं हुआ. अगली पीढी में. फिर R आएगा।

उसकी साँसें थम गईं.




सीन नौ: अंत का संकेत

हवेली की छत से झूमर गिरा और जोरदार धमाका हुआ.
धूल और आग के बीच कबीर, वेरिका और रामदीन बाहर आ गए.

कबीर ने आसमान की तरफ देखा.
श्राप अभी टूटा नहीं है. आरव गया, लेकिन उसकी छाया. अभी बाकी है।

वेरिका काँपते हुए बोली—
भैया. अब आगे क्या होगा?

कबीर की आँखों में सख्ती थी.
अब हमें सच की अगली परत ढूँढनी होगी. असली R अभी भी छिपा है. और जब तक वो सामने नहीं आता. खेल जारी रहेगा।




एपिसोड सोलह खत्म — To Be Continued.

अगले एपिसोड में: असली R का चेहरा, हवेली का श्राप पूरी तरह उजागर होगा और कबीर का नया संघर्ष शुरू होगा।



सीन एक: हवेली के बाहर रात

कैमरा ऊपर से हवेली को दिखाता है— धुंध, टूटी दीवारें, और हवा में सन्नाटा. दूर पेडों के बीच चमकती बिजली और कौओं की आवाज।

कबीर हवेली के बरामदे में खडा था. उसकी आँखें थकान और गुस्से से भरी थीं.
वेरिका और रामदीन उसके पीछे खडे थे.

कबीर( धीमे स्वर में)
आरव चला गया. लेकिन उसकी आखिरी बात कानों में गूँज रही है— असली R अभी भी जिंदा है.
यानी सब कुछ अभी खत्म नहीं हुआ।

वेरिका डरते हुए बोली—
भैया. क्या हम फिर से उसी डर में जीने वाले हैं? क्या हवेली हमें कभी चैन से रहने देगी?

कबीर ने उसकी तरफ देखा और ठंडी आवाज में कहा—
चैन तब आएगा जब सच पूरी तरह सामने आएगा. और वो सच मैं निकालकर रहूँगा।




सीन दो: हवेली की पुरानी लाइब्रेरी

कैमरा हवेली के अंदर जाता है. दीवारों पर धूल भरी अलमारियाँ, जिनमें पुरानी किताबें और फटे- पुराने दस्तावेज भरे हैं।

कबीर ने टॉर्च जलाकर किताबें खँगालनी शुरू कीं.
रामदीन उसके साथ था.

रामदीन:
बाबूजी, यहाँ सदियों से कोई नहीं आया. इन किताबों में शायद हवेली का सारा सच छुपा हो।

कबीर ने एक मोटी किताब उठाई.
उसके कवर पर खून से लिखे अक्षर उभरे—" वंश कथा"

कबीर ने किताब खोली.
पहले पन्ने पर लिखा था—

हवेली का श्राप तब खत्म होगा जब असली वारिस अपने खून से दरवाजा खोलेगा.
पर ध्यान रहे— हर पीढी में एक R जन्म लेता है, जो खेल को जिंदा रखता है।

कबीर की आँखें चौडी हो गईं.
इसका मतलब. आरव सिर्फ मोहरा था. कोई और है. जो असली वारिस है।




सीन तीन: वेरिका का डर

कट— हवेली के एक कमरे में वेरिका अकेली बैठी है. मोमबत्ती टिमटिमा रही है. बाहर हवा चीख रही है।

अचानक खिडकी अपने आप खुल गई. ठंडी हवा अंदर आई और मोमबत्ती बुझ गई.
वेरिका ने काँपते हुए कहा—
कौन है वहाँ?

कमरे में अंधेरे से एक परछाईं निकली.
उसने फुसफुसाकर कहा—
R तुम्हारे खून में है, वेरिका. तुम चाहो या न चाहो. तुम्हें उसका हिस्सा बनना होगा।

वेरिका चीख पडी और दरवाजे की ओर भागी.




सीन चार: कबीर का संकल्प

कबीर ने वेरिका की चीख सुनी और दौडकर उसके कमरे में पहुँचा.
वेरिका उसके गले लग गई.

वेरिका:
भैया! कोई था यहाँ. उसने कहा कि R मेरे खून में है!

कबीर ने उसकी आँखों में देखा.
यानी असली खेल खून का है. R हमारे परिवार से जुडा है. शायद हमारे किसी अपने ने ही ये नकाब पहना है।

उसकी आँखों में आग थी.
मैं कसम खाता हूँ, वेरिका. चाहे सच कितना भी डरावना क्यों न हो, मैं उसे उजागर करूँगा।




सीन पाँच: हवेली का गुप्त मार्ग

रामदीन ने कबीर को हवेली की लाइब्रेरी की दीवार के पीछे एक पुराना दरवाजा दिखाया.
बाबूजी, मेरे बाप- दादा कहते थे कि हवेली में एक गुप्त मार्ग है. वही हमें असली R तक ले जा सकता है।

कबीर ने मशाल जलाई और दरवाजा खोला.
अंदर संकरी सुरंग थी, जिसमें अंधेरा और अजीब- सी गंध थी.

कबीर:
चलो. सच की तरफ रास्ता यहीं से जाता है।




सीन छह: सुरंग का रहस्य

कैमरा सुरंग के अंदर घूमता है— दीवारों पर पुराने चित्र, जिनमें खून से लथपथ चेहरे बने हैं।

वेरिका दीवार पर उकेरी हुई एक तस्वीर देखती है—
उसमें एक आदमी तलवार थामे खडा है, और उसके ऊपर लिखा है—" रूद्र"

वेरिका( काँपते हुए)
भैया. ये वही नाम है. यानी रूद्र हमारे वंश का हिस्सा था।

कबीर ने गहरी साँस ली.
हाँ. और शायद असली रूद्र अभी तक जीवित है।

अचानक सुरंग से चीख गूँजी.
किसी ने कहा—
तुम सच के करीब आ गए हो, कबीर. लेकिन सच जानना मौत को बुलाना है।




सीन सात: हवेली का गुप्त कक्ष

सुरंग एक बडे हॉल में खुली.
हॉल के बीचों- बीच एक विशाल पत्थर की वेदी थी, जिस पर खून के निशान जमे थे.

वेदी पर एक पुराना ताबूत रखा था.
उस पर लिखा था—" R"

कबीर धीरे- धीरे ताबूत के पास पहुँचा.
उसने ढक्कन हटाया.

ताबूत के अंदर हड्डियाँ थीं. और एक पन्ना रखा था.
पन्ने पर लिखा था—

R= रूद्र.
लेकिन असली रूद्र की आत्मा कभी मरती नहीं.
वो हर पीढी में नए शरीर में लौटती है।

कबीर की आँखें ठंडी हो गईं.
तो असली R. हमारे बीच ही है।




सीन आठ: असली R का चेहरा

अचानक पीछे से ठंडी हवा चली. मशाल बुझ गई.
अंधेरे में एक गहरी आवाज गूँजी—

तुम सच के करीब आ गए हो, कबीर.
लेकिन क्या तुम मुझे पहचान पाओगे?

मशाल दोबारा जल उठी.
कबीर ने पीछे मुडकर देखा.

वहाँ रामदीन खडा था.
उसके चेहरे पर अजीब- सी मुस्कान थी, और उसकी आँखें लाल चमक रही थीं.

रामदीन( धीमी, डरावनी आवाज में)
हाँ, कबीर. मैं ही हूँ असली R।
सालों से मैं तुम्हारे परिवार की सेवा करता रहा, लेकिन असल में मैं इस हवेली का वारिस हूँ.
मेरा खून ही वो खून है. जिसने श्राप को जन्म दिया।

वेरिका स्तब्ध रह गई.
रामदीन. तुम?

रामदीन हँसा—
मैं सिर्फ रामदीन नहीं. मैं रूद्र का वारिस हूँ.
तुम्हारे पूर्वजों ने मेरे परिवार से ये हवेली छीनी थी.
आज मैं उसका बदला पूरा करूँगा।




सीन नौ: कबीर बनाम R

कबीर आगे बढा.
उसकी आँखों में आग थी.

तो तू असली R है.
लेकिन याद रख— तेरा खेल यहीं खत्म होगा।

रामदीन ने वेदी पर रखी तलवार उठा ली.
खेल अभी शुरू हुआ है, कबीर.
तेरी जान मेरी होगी. और हवेली भी।

दोनों आमने- सामने खडे हो गए.
हवेली की दीवारें काँपने लगीं.
मोमबत्तियाँ अपने आप जल उठीं.




सीन दस: मौत की लडाई

कैमरा स्लो- मोशन में— कबीर और रामदीन की भयंकर लडाई।
तलवारें टकराईं, चिंगारियाँ निकलीं.
वेरिका चिल्लाई—
भैया! सावधान!

रामदीन( हँसते हुए)
तू मुझे नहीं हरा सकता, कबीर. श्राप मेरी ताकत है।

कबीर( गुस्से से)
श्राप झूठा है. सच ही असली ताकत है!

उसने दस्तावेज की किताब उठाई और वेदी पर पटक दी.
किताब से तेज रोशनी निकली.

रामदीन की आँखें जलने लगीं.
वो चीखा—
आआह्ह्ह. नहीं.




सीन ग्यारह: श्राप का टूटना

वेदी पर बनी लाल रेखाएँ मिटने लगीं.
हवेली की दीवारें हिल गईं.
रामदीन जमीन पर गिर पडा.

उसकी आखिरी आवाज गूँजी—
खेल. अभी. खत्म नहीं हुआ.
हर पीढी में. R लौटेगा.

और उसकी साँसें थम गईं.




सीन बारह: नए सवेर की शुरुआत

सुबह का उजाला हवेली में पहली बार चमका.
सालों से अंधेरे में डूबी हवेली जैसे रोशनी को देख रही थी.

कबीर बरामदे में खडा था.
वेरिका उसके पास आई.

वेरिका:
भैया. क्या अब श्राप खत्म हो गया?

कबीर ने आसमान की तरफ देखा और धीमे स्वर में बोला—
शायद. लेकिन याद रखो वेरिका, असली लडाई अभी बाकी है.
क्योंकि जब तक हवेली का सच पूरी तरह उजागर नहीं होता. R की छाया लौट सकती है।




एपिसोड सत्रह खत्म — To Be Continued.

अगले एपिसोड में: कबीर को पता चलेगा कि श्राप की जड हवेली से बाहर भी फैली हुई है. और R की छाया सिर्फ परिवार तक सीमित नहीं— बल्कि पूरे कस्बे तक फैली हुई है।




सीन एक: हवेली पर सुबह का उजाला

कैमरा हवेली के ऊपर घूमता है — धूप की पहली किरण टूटी खिडकियों से अंदर जाती है, हवा में धूल तैर रही है।

कबीर बरामदे में खडा था. उसके चेहरे पर रात की थकान थी, लेकिन आँखों में जीत की चमक.
उसके सामने खडी थी वेरिका.

वेरिका( धीमे स्वर में)
भैया. ये हवेली अब आपकी है. आप ही इसके असली मालिक हैं।

कबीर ने गहरी साँस ली.
हाँ, वेरिका. लेकिन ये हवेली सिर्फ ईंट- पत्थर नहीं. ये हमारी विरासत है.
और इस विरासत को बचाना ही मेरी जिम्मेदारी है।




सीन दो: कबीर की दौलत और शौहरत

कैमरा फ्लैशबैक में जाता है — शहर की बडी- बडी इमारतें, लक्जरी गाडियाँ, अखबारों की हेडलाइन।

वॉइसओवर:
कबीर सिर्फ हवेली का मालिक नहीं था. शहर में उसका नाम दौलत और शौहरत दोनों में गूँजता था.
उसके पास बिजनेस की एक पूरी चेन थी— रियल एस्टेट, होटल, और विदेशी कारोबार.
अखबारों में उसकी तस्वीरें छपतीं, मैगजीन के कवर पर उसकी मुस्कान होती.
लोग उसे सिर्फ कारोबारी नहीं, बल्कि एक शख्सियत मानते थे।

कट— पार्टी सीन. अमीर लोग, चकाचौंध, और बीच में खडा कबीर, शेरवानी और घडी में चमकता हुआ।

लोग कानाफूसी करते—
ये कबीर ही है, जो विराज की हवेली और कारोबार दोनों को संभाल रहा है।
हाँ, और उसकी सोच. किसी राजा जैसी है।




सीन तीन: हीरोइन का प्रवेश

कैमरा स्लो- मोशन में— हवेली के गेट पर एक गाडी रुकती है. दरवाजा खुलता है, और बाहर उतरती है एक लडकी।

उसका नाम था आन्या.
काले लंबे बाल, गोरा चेहरा, गहरी आँखें जिनमें रहस्य छुपा था. उसकी चाल में आत्मविश्वास और चेहरे पर मासूमियत दोनों थे.

वेरिका हैरान रह गई.
भैया. ये लडकी कौन है?

कबीर ने उसकी तरफ देखा, और उसकी आँखें पहली बार कुछ पलों के लिए ठहर गईं.
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आई.
ये. आन्या है. शहर की सबसे कामयाब आर्टिस्ट और. मेरी पुरानी दोस्त।

आन्या ने नर्म आवाज में कहा—
कबीर, बहुत सालों बाद मिल रहे हैं. सुना है हवेली में तूफान आया था. और तुमने अकेले सब संभाला।

कबीर:
हाँ, लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ. और शायद. अब तुम्हें मेरी कहानी का हिस्सा बनना पडेगा।




सीन चार: आन्या की खूबसूरती का असर

कट— हवेली का हॉल. दीवारों पर टंगी मोमबत्तियों की रोशनी में आन्या खडी है।

वेरिका उसकी आँखों में देखती है और सोचती है—
ये लडकी साधारण नहीं है. इसमें कुछ ऐसा है. जो इसे दूसरों से अलग करता है।

आन्या की मुस्कान में नर्मी थी, लेकिन उसकी आँखों में गहराई.
जब वो बोलती, तो हवेली जैसे उसकी आवाज से गूँज उठती.

कबीर उसके पास खडा था.
वो पहली बार थोडा सहज लगा, जैसे उसकी मौजूदगी ने उसके दिल से बोझ हल्का कर दिया हो.

आन्या:
कबीर, तुम्हारे पास दौलत, शौहरत सब कुछ है. लेकिन तुम्हारी आँखें बताती हैं कि तुम अकेले हो.
शायद. मैं उसी खालीपन को भरने आई हूँ।

कबीर ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराया.
शायद. ये हवेली हमें जोड रही है।




सीन पाँच: कस्बे में श्राप की छाया

कैमरा हवेली से बाहर कस्बे की तरफ cut करता है।

रात के अंधेरे में कस्बे के लोग डर से अपने घरों के दरवाजे बंद कर रहे हैं.
एक बुजुर्ग औरत चिल्लाती है—
हवेली का श्राप बाहर आ गया है! दीवारों से आवाजें आती हैं. रात में कोई परछाईं घूमती है!

कस्बे के मंदिर में पुजारी कहता है—
जब तक हवेली का खेल खत्म नहीं होता, ये श्राप पूरे कस्बे को निगल जाएगा।

कबीर ने ये बातें सुनीं.
उसका चेहरा सख्त हो गया.
तो अब लडाई सिर्फ हवेली तक नहीं रही. अब ये पूरे कस्बे की लडाई है. और मुझे ही इसे खत्म करना होगा।




सीन छह: आन्या का रहस्य

कबीर और आन्या हवेली की लाइब्रेरी में बैठे थे.
कबीर दस्तावेज खँगाल रहा था.

आन्या धीरे से बोली—
कबीर, क्या तुम जानते हो कि ये श्राप सिर्फ हवेली का नहीं है?
ये खून की एक पूरी कहानी है. और शायद. मेरा रिश्ता भी इससे जुडा है।

कबीर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा.
तुम्हारा?

आन्या ने अपनी कलाई से कडा हटाया.
उसकी त्वचा पर लाल रंग से खुदा हुआ एक निशान था—" R"

कबीर की साँसें थम गईं.
ये कैसे.

आन्या की आँखें भीग गईं.
मुझे नहीं पता. बचपन से ये निशान मेरे शरीर पर है.
शायद. मैं भी इस खेल का हिस्सा हूँ।




सीन सात: कबीर और आन्या की नजदीकियाँ

कैमरा धीमी रोशनी में दोनों को पास बैठे दिखाता है।

कबीर उसकी आँखों में झाँक रहा था.
अगर तुम सच में इस खेल का हिस्सा हो, तो मैं तुम्हें अकेला नहीं छोडूँगा.
तुम्हारी खूबसूरती से ज्यादा. तुम्हारी हिम्मत मुझे खींच रही है।

आन्या हल्की मुस्कान के साथ बोली—
तो चलो, कबीर. साथ मिलकर इस खेल का अंत करते हैं।




सीन आठ: हवेली का नया खेल

रात को हवेली की दीवारों पर खून से लिखा उभरा—
खेल अभी खत्म नहीं हुआ. असली R लौटेगा।

कबीर ने दीवार पर हाथ रखा और गुस्से से बोला—
चाहे ये R कितनी भी बार लौटे. अब मैं ही इस खेल का अंत बनूँगा।

आन्या उसके बगल में खडी थी.
उसके चेहरे पर आत्मविश्वास था.
और मैं तुम्हारे साथ हूँ. चाहे ये खेल कितना भी डरावना क्यों न हो।




सीन नौ: अंत का संकेत

कैमरा कस्बे के बीच cut करता है।

मंदिर की घंटियाँ अपने आप बजने लगीं.
आसमान में लाल बादल छा गए.
और हवा में एक नाम गूँजा—

R.

कबीर ने हवेली की छत से आसमान की ओर देखा.
उसकी आँखों में आग थी.
आजा. अब खेल खत्म होगा. दौलत, शौहरत और मेरा सब कुछ दाँव पर है. लेकिन ये लडाई मैं जीतकर ही रहूँगा।




एपिसोड अठारह खत्म — To Be Continued.



सीन एक: कस्बे में अंधेरा

कैमरा कस्बे के ऊपर से घूमता है. हवा में धुंध है, लोग अपने घरों में दरवाजे बंद कर चुके हैं. कुछ लोग बाहर निकलते हैं और डर से चारों तरफ देखते हैं।

एक बूढी औरत अपने घर की खिडकी से चिल्लाती है—
श्राप आ गया है! हवेली से निकला है. अब हम सुरक्षित नहीं हैं!

दूसरे तरफ एक लडका दौडते हुए कहता है—
मां, हवेली में फिर से चीखें गूँज रही हैं!

कस्बे में अफरा- तफरी का माहौल है. लोग डर के मारे बाहर नहीं निकल रहे.




सीन दो: कबीर का निर्णय

हवेली का बरामदा. कबीर और आन्या खडे हैं, दोनों गंभीर भाव में सोच रहे हैं।

कबीर:
श्राप सिर्फ हवेली तक सीमित नहीं रहा. अब ये पूरे कस्बे में फैल रहा है. अगर हम इसे नहीं रोकेंगे, तो हर कोई इसकी चपेट में आ जाएगा।

आन्या:
हमारे पास समय नहीं है, कबीर. हमें असली R को ढूंढना होगा. और इसे हमेशा के लिए खत्म करना होगा।

कबीर ने गहरी साँस ली और कहा—
मैं इस लडाई में सिर्फ हवेली नहीं, अपनी दौलत, शौहरत और सब कुछ दांव पर लगा दूँगा.
क्योंकि इस खेल का अंत तभी होगा जब R की छाया मिट जाएगी।




सीन तीन: कस्बे का भय

कट— कस्बे का बाजार. लोग डर से दुकानों को बंद कर रहे हैं।

एक दुकानदार ने डरते हुए कहा—
कल रात हवेली से लाल धुएँ और चीखें आईं. यह श्राप सबको अपनी जकड में ले रहा है।

एक बच्चा रोते हुए बोला—
मां, हवेली में R है. और वो हमें ढूँढ रहा है।

कस्बे में अफवाह फैल रही है— हर कोई डर के साए में जी रहा है.




सीन चार: कबीर और आन्या की योजना

कबीर और आन्या हवेली के गुप्त कक्ष में बैठे हैं।

कबीर दस्तावेज खोलते हुए कहता है—
आन्या. इन दस्तावेजों में लिखा है कि असली R केवल तभी खत्म होगा जब श्राप की जड को तहखाने के अंदर खत्म किया जाए।

आन्या ने पूछा—
क्या इसका मतलब है कि हमें फिर से तहखाने में उतरना पडेगा?

कबीर:
हाँ. लेकिन इस बार हम अकेले नहीं होंगे. मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.
तुम्हारा खून और तुम्हारा साहस इस लडाई को जीतने में हमारी ताकत बनेंगे।

आन्या मुस्कुराई—
तो चलिए, कबीर. इस खेल का अंत करते हैं।




सीन पाँच: तहखाने में उतरना

कैमरा धीरे- धीरे तहखाने के सीढियों पर जाता है. हवेली के अंदर एक डरावनी गूंज है।

कबीर और आन्या हाथ में मशाल लिए नीचे उतर रहे हैं.
दीवारों पर लाल निशान और पुराने चित्र दिख रहे हैं.

आन्या( धीमे स्वर में)
कबीर. यहाँ कुछ तो है. जो सिर्फ हमें ही बुला रहा है।

कबीर:
हाँ. और मैं डरने वाला नहीं.
हम जो खोज रहे हैं, वो हमें यहाँ मिलेगा — चाहे इसके लिए हमें अपनी जान क्यों न देनी पडे।




सीन छह: तहखाने का अंतिम दरवाजा

दोनों एक लोहे के दरवाजे के सामने खडे हैं. दरवाजे पर खून के निशान और" R" लिखा है।

कबीर दस्तावेज खोलता है और उस पर लिखे मंत्र पढता है.
दरवाजा धीरे- धीरे खुलता है.

भीतर अंधेरा है, और एक ठंडी हवा बहती है.
आन्या ने कदम बढाए—
कबीर. यहाँ सच छुपा है।

कबीर ने उसकी आँखों में देखा और कहा—
हाँ. और वो सच हमें खत्म या बचा सकता है।




सीन सात: असली R का सामना

अंदर एक विशाल कक्ष है, जहाँ बीच में एक वेदी है. उस पर लाल रेखाएँ और खून के निशान हैं।

अचानक कमरे में एक परछाईं उभरी.
कबीर और आन्या दोनों हतप्रभ थे.

परछाईं बोली—
तुमने मेरे दरवाजे तक पहुँच लिया है.
लेकिन क्या तुम मेरी परीक्षा पास करोगे?

दरवाजे के पीछे एक आदमी का चेहरा धीरे- धीरे उभरता है.
वो वही असली R है— एक पुराना और शक्तिशाली चेहरा, आँखों में लाल चमक और होंठों पर सर्द मुस्कान.

R:
मैं वो हूँ जिसने इस श्राप को जन्म दिया.
और मैं फिर लौट आया हूँ. तुम्हें खत्म करने।




सीन आठ: कबीर का संकल्प

कबीर ने तलवार उठाई.
मैं तुम्हें रोकूंगा. चाहे इसके लिए मुझे अपनी दौलत, शौहरत और जिन्दगी सब खोनी पडे.
क्योंकि मैं कबीर हूँ. और ये मेरा घर है।

आन्या उसके पास आई और हाथ में एक पुरानी किताब पकडी.
और मैं तुम्हारे साथ हूँ, कबीर.
चाहे अंत कितना भी अंधकारमय क्यों न हो।

दोनों एक- दूसरे की ओर देखते हैं, और फिर R की तरफ बढते हैं.




सीन नौ: श्राप की आखिरी लडाई

कट— तहखाने में तलवारों की टकराहट, आग की लपटें, और हवेली में गूंजती चीखें।

कबीर और R आमने- सामने हैं.
R( हँसते हुए)
तुम मुझे रोक नहीं सकते, कबीर.
श्राप हमेशा रहेगा।

कबीर( गुस्से से)
श्राप झूठा है. सच ही ताकत है।

कबीर ने दस्तावेज से एक पुराना मंत्र पढा.
दरवाजे की वेदी पर चमक फैल गई.
R चीखते हुए गायब हो गया.




सीन दस: श्राप का टूटना

हवेली में हल्की रोशनी फैल गई. दीवारों से लाल निशान मिटने लगे।

कबीर और आन्या बाहर आए. हवेली के बाहर कस्बा धीरे- धीरे सामान्य होता दिख रहा है.

वेरिका ने उनसे पूछा—
क्या श्राप खत्म हो गया?

कबीर ने मुस्कुराकर कहा—
हाँ. लेकिन हमें सतर्क रहना होगा.
क्योंकि R की छाया कहीं भी लौट सकती है।

आन्या ने उसकी आँखों में देखा—
और जब वह लौटेगा, मैं तुम्हारे साथ लडने के लिए तैयार रहूँगी।




सीन ग्यारह: भविष्य का संकेत

कैमरा हवेली की छत पर. सूरज की पहली किरण हवेली पर पडती है।

कबीर ने हवेली की तरफ देखा और धीरे कहा—
ये सिर्फ एक अध्याय था.
लेकिन हमारी लडाई खत्म नहीं हुई।

आसमान में कहीं से एक आवाज गूँजी—
R. लौटेगा।

कबीर और आन्या एक- दूसरे को देख कर मुस्कुराए.
हम तैयार हैं, कबीर ने कहा.




एपिसोड उन्नीस खत्म — To Be Continued.




सीन: कबीर का महल — दौलत और शौहरत का जलवा

कबीर की हवेली कोई आम घर नहीं थी — यह एक राजमहल थी, जो उसकी दौलत और शौहरत का सबसे बडा सबूत थी. हवेली के बरामदे में कदम रखते ही सामने एक giant imported chandelier चमकता था, जो यूरोप से सीधे मंगवाया गया था. उसकी रोशनी में पूरे बरामदे की दीवारों पर सुनहरे और मखमली परदे लहराते थे.

बरामदा Italian marble से बना था — सफेद संगमरमर जिसमें नीले और सोने के डिजाइन उकेरे हुए थे. दीवारों पर French oil paintings लटकी हुई थीं — हर चित्र एक अलग कहानी कहता था. कमरे में mahogany wood furniture था — imported chairs, tables, और cabinets जिनकी नक्काशी इतनी नाजुक थी कि उन्हें देखकर कोई भी हैरान रह जाता.

कबीर का drawing room luxury का असली उदाहरण था. वहाँ Persian rugs बिछे थे, हर एक पर हाथ से बुना हुआ डिजाइन था. वहाँ रखे सोफे Italian leather के थे, जिनमें बैठते ही ऐसा महसूस होता था कि जैसे आराम की परिभाषा बदल गई हो. सोफों के बगल में एक crystal coffee table था — जिस पर imported crockery का सेट रखा था, जिसमें चमचमाते चाय के कप और gold- plated cutlery शामिल थे.

कबीर के घर में imported groceries का अलग ही section था — glass shelves में रखी wine bottles, Swiss chocolates, French cheese, और Italian olive oil। हर एक आइटम उसकी शौहरत का हिस्सा था, ये दिखाने के लिए कि कबीर सिर्फ दौलत का मालिक नहीं, बल्कि उसका सही इस्तेमाल जानने वाला इंसान था.

उसके luxury bedroom का दृश्य और भी भव्य था. कमरे में king- size bed था, जिस पर imported Egyptian cotton के bed sheets और silk pillows रखे थे. कमरे की दीवारों पर Italian mirrors लगे थे, जो पूरे कमरे को और भी विशाल और चमकदार बना रहे थे. एक कोने में imported mahogany wardrobe था — जिसमें designer suits, custom- made shirts और imported leather shoes थे.

कबीर के personal dressing room में imported perfumes की एक पूरी shelf थी — Chanel, Dior, Versace और Tom Ford के bottles, जिनकी खुशबू दूर तक फैली रहती थी. वहाँ एक corner में imported accessories का छोटा सा संग्रह था — watches, cufflinks, leather belts — हर चीज उसकी style और शौहरत का हिस्सा थी.

उसका private study room एक और level की luxury थी. वहाँ एक antique writing desk था, जो England से मंगवाया गया था. desk पर imported stationery का सेट रखा था — leather- bound notebooks, gold pens और imported inks। study की दीवारें पुराने maps और rare manuscripts से सजी हुई थीं. यहाँ कबीर अक्सर बैठकर दुनिया के बडे- बडे deals की योजना बनाता था.

कबीर की ये दौलत सिर्फ material wealth नहीं थी — यह उसकी शौहरत, style और personality का हिस्सा थी. लोग शहर में कहते थे—" कबीर की हवेली महल जैसी है, और उसका जीवन खुद एक कहानी है।

लेकिन इस सबके बीच कबीर जानता था कि उसकी दौलत और शौहरत की असली पहचान उसकी हिम्मत और उसका नाम है.
और हवेली में उस दिन, जब वो imported furniture, luxury groceries और designer कपडों के बीच खडा था, उसने खुद से कहा—
ये सब कुछ मेरा है. लेकिन असली दौलत वो है जो मैं इस हवेली और इस खेल में हासिल करूँगा।



कबीर की हवेली एक महल थी — जहाँ दौलत और शौहरत का हर रंग बिखरा था. बरामदे में चमकता हुआ imported chandelier और Italian marble की फर्श पर सुनहरी रेखाएँ हवेली को राजसी बना देती थीं. दीवारों पर लटकी French oil paintings और mahogany furniture उसकी शान दिखाते थे. Drawing room में Persian rugs, Italian leather के सोफे और crystal coffee table पर gold- plated crockery था. एक अलग कोने में imported groceries — Swiss chocolates, French cheese और Italian olive oil सजे थे.

कबीर का luxury bedroom imported Egyptian cotton के bed sheets, silk pillows और Italian mirrors से सजा था. उसकी designer wardrobe में custom- made suits, imported shoes और luxury accessories थे. Dressing room में Chanel, Dior और Versace के perfumes थे.

कबीर अक्सर अपने antique writing desk पर बैठकर सोचता —
दौलत मेरे पास है, लेकिन असली ताकत हवेली और इस खेल में जीत है।



कबीर की हवेली imported furniture, luxury groceries, designer कपडे और Persian rugs से सजी थी — दौलत और शौहरत का असली एहसास वहीं मिलती थी.
Be Continued.