Sone ka Pinjra - 20 in Hindi Adventure Stories by Amreen Khan books and stories PDF | सोने का पिंजरा - 20

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सोने का पिंजरा - 20

हवेली की रात जैसे किसी अनजाने उत्सव से निकलकर गहरी खामोशी में बदल चुकी थी. सितारे आसमान पर टिमटिमा रहे थे, लेकिन हवेली की ऊँची छतों के साए में हर चमक बुझी हुई लग रही थी. सभी मेहमान जा चुके थे, मगर हवेली का वैभव अब भी वहाँ खडा था—दीवारों पर लगी सुनहरी झूमरों की परछाईं, फर्श पर बिछे रेशमी कालीनों की नरमी, और हवा में मिली इत्र की हल्की खुशबू.

कबीर अकेला अपने महलनुमा कमरे में खडा था. उसके चारों ओर वही दौलत थी जिसके चर्चे पूरे शहर में थे. एक तरफ स्वर्ण जडित अलमारियाँ, जिनमें दुर्लभ शराबों की बोतलें सजी थीं. दूसरी ओर हाथीदाँत पर नक्काशीदार कुर्सियाँ और पुरानी पेंटिंग्स—हर पेंटिंग की कीमत कई करोडों में आँकी जाती थी. कमरे के बीचोंबीच बिछा पर्शियन कालीन, जिस पर चलने भर से लोग अपने आपको किसी दूसरे युग में पाते.

कबीर ने खिडकी से बाहर देखा. नीचे हवेली का आँगन था जहाँ दर्जनों कारें खडी थीं—लैम्बॉर्गिनी, रोल्स- रॉयस, बेंटली. वह जानता था, शहर की आधी आबादी उसके नाम पर दीवानी है. खासकर लडकियाँ.

लडकियों की दीवानगी

अगली सुबह जब वह हवेली से बाहर निकला तो नजारा देखने लायक था. गेट के बाहर भीड लगी थी. कई Collage की लडकियाँ, अमीर घरानों की बेटियाँ, हाथों में फूल और उपहार लिए उसका इंतजार कर रही थीं.

कबीर भैया! बस एक तस्वीर ले लीजिए।
कबीर सर, मैं आपकी सबसे बडी फैन हूँ।
कबीर. प्लीज एक बार हाथ मिलाइए।

उनकी आवाजें हवेली की ऊँची दीवारों से टकराकर गूंज उठीं. कुछ लडकियाँ तो आँसू तक पोंछ रही थीं, जैसे भगवान के दर्शन हो गए हों.

कबीर हल्की मुस्कान के साथ रुका, और अपने बॉडीगार्ड्स को इशारा किया. वह धीरे- धीरे आगे बढा और भीड में से कुछ हाथ थामे.

कबीर( धीमे स्वर में)
खुश रहो. सबकी दुआएँ मुझे चाहिए।

लडकियाँ चीख उठीं, मानो उनका सपना सच हो गया हो. कैमरे चमके, सोशल मीडिया पर तुरंत उसकी तस्वीरें वायरल होने लगीं.

लेकिन इस चमक के पीछे कबीर की आँखों में एक अजीब सा खालीपन था. उसके चेहरे पर शानो- शौकत की मुस्कान थी, मगर भीतर कोई राज उसे कुरेद रहा था.

विराज और वेरिका की चिंता

उसी दौरान हवेली के भीतर विराज और वेरिका बैठकर बातें कर रहे थे.

वेरिका:
पापा, आपको नहीं लगता ये सब. कुछ ज्यादा ही परफेक्ट है? लोग कहते हैं कबीर ने सब अचानक पाया. पर कोई आदमी एक रात में इतनी दौलत का मालिक कैसे बन सकता है?

विराज( सोचते हुए)
तुम सही कह रही हो, बेटा. दौलत की ये रफ्तार, ये शोहरत. ये सब किसी कहानी का हिस्सा लगता है. और कहानियों के पीछे हमेशा कोई राज होता है।

वेरिका( धीमे स्वर में)
पर अगर वो राज हमारे खिलाफ हुआ तो?

विराज कुछ कह पाता, तभी बाहर से फिर लडकियों की चीखें सुनाई दीं.

कबीर की शानो- शौकत का जलवा

उस दिन कबीर ने पूरे शहर में अपनी नई प्रॉपर्टी का उद्घाटन किया. एक गगनचुंबी इमारत—पचास मंजिला—जिसे उसने अपने नाम पर बनाया था. उद्घाटन समारोह में हजारों लोग जमा हुए. चमचमाती लाइट्स, लाल कालीन, और म्यूजिक बैंड की धुनें माहौल को और भी शाही बना रही थीं.

जैसे ही कबीर कार से उतरा, कैमरों की फ्लैश लाइटें आसमान छूने लगीं. लडकियाँ उसके ऊपर फूल बरसाने लगीं.

एक लडकी चिल्लाई:
कबीर, आप हमारे लिए सिर्फ इंसान नहीं. एक ख्वाब हैं!

दूसरी ने कहा,
अगर आप मुस्कुरा दें तो हमारी जिंदगी संवर जाए।

कबीर मुस्कराया, भीड दीवानी हो गई. पर इस भीड के बीच उसकी आँखें कहीं और खोज रही थीं. जैसे कोई अतीत की परछाईं उसकी ओर खिंच रही हो.

अलविना का ताना

समारोह खत्म होते ही अलविना ने कबीर को घेर लिया.

अलविना( तंज कसते हुए)
वाह! क्या तमाशा है कबीर. सच में, तूने तो पूरे शहर को अपना दीवाना बना दिया. पर बताना जरा—ये दौलत आई कहाँ से? या फिर ये भी कोई नया खेल है?

कबीर ने ठंडी नजर डाली.
कबीर:
अलविना, तुम्हारे सवालों का जवाब मैं दूँगा. लेकिन जब वक्त सही होगा. अभी बस इतना समझ लो, ये दौलत किसी तिजोरी से नहीं निकली. ये मेरे जख्मों से निकली है।

अलविना हंस पडी.
अलविना:
जख्मों से दौलत? क्या शायरी सुना रहे हो! सच बोल कबीर—तू भिखारी से राजा कैसे बना?

कबीर चुप रहा, लेकिन उसकी आँखों में दर्द की एक झलक दिखाई दी.

राज का पहला परदा

रात को कबीर अपने कमरे में लौटा. उसने अलमारी खोली और भीतर से एक पुरानी थैली निकाली. थैली से फटे- पुराने कपडे गिरे—वही कपडे जो वह भिखारी रहते पहनता था.

उसने धीरे- धीरे कपडों को अपने सामने बिछाया. उसकी आँखों में आँसू आ गए.

कबीर( खुद से)
याद है, उन गलियों की ठंडी रातें. जब कोई रोटी तक नहीं देता था. लोग मुझे गालियाँ देते थे. और आज वही लोग मेरे लिए लाइन में खडे हैं. पर अगर वे जान गए. कि मैं भिखारी क्यों बना था. तो ये सारी चमक मिट्टी हो जाएगी।

फिर उसने मेज से एक पुरानी डायरी उठाई. उसमें दर्ज था—
उस रात. जब सबने मुझे धोखा दिया. मैंने कसम खाई कि मैं सब छीनकर रहूँगा. और उसी कसम ने मुझे भिखारी बना दिया।

डायरी के पन्ने पलटते ही कैमरा जूम करता है—वहाँ कुछ नाम लिखे हैं, और हर नाम के पास एक लाल निशान.

विराज की जिज्ञासा

अगले दिन विराज ने कबीर से सीधा सवाल कर डाला.

विराज:
कबीर, सच- सच बता. ये सब तेरा खेल क्या है? दौलत, शोहरत, ये तिजोरियाँ. तू आखिर चाहता क्या है?

कबीर ने मुस्कुराकर जवाब दिया.
कबीर:
मैं वो चाहता हूँ, जो मुझसे छीना गया था. और जब तक मैं सब वापस नहीं ले लेता, तब तक मैं चैन से नहीं बैठूँगा।

विराज( गुस्से में)
ये किससे छीना गया था? कौन तेरा दुश्मन है?

कबीर ने सीधे उसकी आँखों में देखा.
कबीर:
कभी- कभी दुश्मन वही होता है. जो दोस्त बनकर पास बैठा हो. और कभी सच्चाई इतनी पास होती है. कि उसे देखना सबसे मुश्किल हो जाता है।

विराज के चेहरे का रंग उड गया.

वेरिका और कबीर का सामना

उसी रात वेरिका ने कबीर को रोका.

वेरिका:
कबीर, सब लोग तुम्हें लेकर उलझन में हैं. मुझे बताओ. तुम भिखारी क्यों बने थे? मैं जानना चाहती हूँ।

कबीर ने लंबी सांस ली.
कबीर:
वेरिका, जब सच सामने आएगा. तुम्हें लगेगा कि जिंदगी ने मजाक किया है. लेकिन मैं वादा करता हूँ—तुम्हें आखिरी लम्हे तक सच का हिस्सा बनाऊँगा।

वेरिका( काँपती आवाज में)
और अगर वो सच. हमें अलग कर दे तो?

कबीर चुप हो गया.

छिपा हुआ खतरा

हवेली के अंधेरे हिस्से में कोई और मौजूद था—एक शख्स, जो उनकी बातें सुन रहा था. उसके हाथ में वही पुराना टेप रिकॉर्डर था, जिस पर सुनीता आंटी की आवाज दर्ज थी.

वह धीरे से हंसा और बोला,
कबीर. तेरा सच मैं सबके सामने लाऊँगा. और जब वो दिन आएगा, तेरी ये दौलत तेरा सबसे बडा बोझ बन जाएगी।




अध्याय का अंत

कहानी यहाँ ठहर जाती है. कबीर का सच अभी पूरी तरह सामने नहीं आया, लेकिन उसके भिखारी बनने की परछाई साफ दिखने लगी है. हवेली में हर कोई उलझन और शक के जाल में फँसता जा रहा है.



सोने का पिंजरा – अगला अध्याय

हवेली के आँगन में चाँदनी बिखरी हुई थी. बाहर सडक पर अभी भी कबीर की शाही पार्टी की चर्चा चल रही थी. शहर का हर नुक्कड, हर कैफे, यहाँ तक कि Collage की गलियों तक में आज बस एक ही नाम गूंज रहा था—कबीर.

वो लडका जिसकी कारों का काफिला देखो तो लगता है किसी राजा की बारात निकल रही है.
उसकी हवेली के गेट पर ही इतने गार्ड खडे रहते हैं जितने किसी मंत्री के घर नहीं.
और सुना है, उसने कल रात हीरे की बनी हुई घडी एक लडकी को गिफ्ट की, बस इसलिए कि वो उससे हँसकर मिली थी.

लोगों के बीच तरह- तरह की बातें उड रही थीं. लेकिन एक बात सबमें समान थी—कबीर शहर का सबसे बडा रईस बन चुका था.




हवेली का नजारा

अगली सुबह हवेली का नजारा ही देखने लायक था. जैसे ही गेट खुलते, महँगी गाडियों का सिलसिला शुरू हो जाता. शहर की नामी लडकियाँ, मॉडल्स, Collage की टॉपर तक, सब एक ही बहाने से वहाँ पहुँचतीं—कबीर से मिलने.

सर, हमें बस इंटरव्यू करना है.
कबीर जी, आपसे बिजनेस की सलाह चाहिए.
ओह प्लीज, बस एक कॉफी आपके साथ.

सच ये था कि हर कोई उसके करीब आना चाहता था. उसके कपडे, उसके जूते, उसके इत्र की खुशबू तक चर्चा का विषय बन चुके थे. हवेली के बाहर खडे गार्ड्स को कई बार लडकियों की भीड को संभालने के लिए पुलिस बुलानी पडती.




कबीर का एंट्री

उस दिन भी कबीर सीढियों से नीचे उतरा. सफेद सिल्क का कुर्ता, काले ब्लेजर के साथ और हाथ में सुनहरी घडी. जैसे ही उसने बालकनी पर कदम रखा, नीचे खडी भीड से तालियों और चीखों की आवाज गूंज उठी.

लडकियाँ एक दूसरे से फुसफुसाईं:
देखो. देखो, कबीर आ गया!
आज तो उसकी मुस्कान ही दिल ले गई.

कबीर ने हल्की मुस्कान दी और हाथ हिलाया.

कबीर( धीरे से, अपने मैनेजर से)
इन सबको समझाओ. ये शोर मेरे काम के लिए अच्छा है, लेकिन कभी- कभी भारी भी पड सकता है।

मैनेजर( हँसते हुए)
सर, आपकी पॉपुलैरिटी कम होने का नाम ही नहीं ले रही. अब तो पूरा शहर आपके पीछे है।

कबीर ने कुछ सोचते हुए गहरी साँस ली.
कबीर( खुद से)
पूरा शहर मुझे चाहता है. लेकिन ये शहर नहीं जानता, मैंने खुद को Kiss कीमत पर बेचा है।




विराज की नजर

हवेली के भीतर विराज खडा सब देख रहा था. उसकी आँखों में ईर्ष्या और शक का मिश्रण था.

विराज( धीमे स्वर में)
ये कबीर आखिर चाहता क्या है? जिस तरह से हर कोई इसके पीछे भाग रहा है, कहीं ये दौलत किसी और की न हो. कहीं ये सब दिखावा न हो.

सारा पास आकर बोली—
सारा: विराज, तुझे लग रहा है न कि कबीर के आस- पास सबकुछ असली नहीं है?

विराज: हाँ. कुछ तो है. ये दौलत, ये शोहरत, इतनी आसानी से नहीं मिलती. मैं कबीर की आँखों में देख रहा हूँ—वो कुछ छुपा रहा है।




अलविना का खेल

इसी बीच अलविना हवेली में दाखिल हुई. गहरे लाल गाउन में, हाथ में वाइन ग्लास लिए. उसकी चाल में आत्मविश्वास और होंठों पर तिरछी मुस्कान थी.

अलविना:
वाह कबीर. आज तो पूरा शहर तेरे नाम का जादू गा रहा है. लेकिन बता. तू कब तक इस सोने के पिंजरे में बंद रह पाएगा?

कबीर ने उसकी तरफ देखा, बिना कोई भाव दिखाए.
कबीर:
अलविना, ये पिंजरा सोने का ही सही. लेकिन इसके ताले की चाबी सिर्फ मेरे पास है. कोई इसे खोल नहीं सकता।

अलविना( हँसते हुए)
देखते हैं. राज कितने दिन तक छुपे रहते हैं. एक न एक दिन, तेरे पिंजरे का सच दुनिया के सामने आएगा।




लडकियों की दीवानगी

शाम होते ही हवेली में फिर से गाडियों की कतार लग गई. इस बार Collage की लडकियाँ केक लेकर आईं, किसी ने फूलों के गुलदस्ते, तो किसी ने महँगे गिफ्ट.

लडकी एक:
कबीर जी, ये मेरी तरफ से छोटी सी गिफ्ट।
लडकी दो:
कबीर, बस एक फोटो प्लीज. मेरी फ्रेंड्स यकीन ही नहीं करेंगी।
लडकी तीन( धीमे स्वर में)
काश. मुझे भी कबीर का साथ मिल जाए।

कबीर सबको मुस्कुराकर देखता, पर उसके दिल में अजीब सी खालीपन की लकीर थी.




सच की झलक

रात को जब सब सो गए, कबीर अपने कमरे में अकेला बैठा था. उसने अलमारी खोली और एक पुरानी झोली निकाली. उसी झोली में कुछ सिक्के, फटे कपडे और सडक पर बिताई रातों की तस्वीरें थीं.

उसने उन्हें हाथ में लेकर देर तक देखा.

कबीर( धीमे स्वर में)
ये वही सिक्के हैं. जब मैं सडकों पर बैठकर भीख माँगता था. लोग मुझ पर थूकते थे, गालियाँ देते थे. और आज. वही लोग मेरी झलक पाने के लिए पागल हो रहे हैं।

अचानक दरवाजा खटखटाया. विराज अंदर आया.

विराज:
कबीर. ये सब क्या है? तू भिखारी क्यों बना था? अगर तेरे पास दौलत थी तो फिर.

कबीर ने उसकी ओर देखा, आँखों में गहरी पीडा थी.

कबीर:
विराज. जब वक्त जहर घोल देता है न, तो दौलत भी काम नहीं आती. मुझे सडकों पर फेंक दिया गया था. उस शख्स ने, जिसे मैंने अपना सबकुछ समझा था।

विराज( हैरान)
कौन था वो शख्स?

कबीर चुप हो गया. उसकी चुप्पी ही सबसे बडा जवाब थी.




क्लाइमेक्स की ओर

कहानी अब और गहरी हो रही थी. कबीर की दौलत चमक रही थी, लेकिन उसके अतीत की परछाइयाँ हर रोज और गहरी होती जा रही थीं. विराज की शंका बढ रही थी, अलविना चालें चल रही थी, और पूरा शहर उसके नाम के पीछे पागल था.

लेकिन कबीर जानता था—ये सब एक दिन ढह जाएगा.



अगला सीन —“ भिखारी का राज”

हवेली के भीतर सब सो चुके थे, लेकिन कबीर अपने कमरे में जागा था. उसकी आँखें अधखुली थीं और दिल में एक पुराना दर्द गूंज रहा था. वह खिडकी के पास खडा था और बाहर की हवाओं को महसूस कर रहा था. अचानक उसका चेहरा बदल गया—उसकी आँखों में एक ऐसी झलक आई जैसे किसी पुराने जख्म ने उभर कर आ जाए.

वह कमरे के कोने में रखी पुरानी डायरी की तरफ बढा. हाथों में हल्की कांप के साथ उसने उसे खोला. डायरी के पन्ने पुराने, मुरझाए और दागदार थे. पहली लाइन पढते ही उसका चेहरा और भी गंभीर हो गया.

फ्लैशबैक शुरू)

साल कई साल पहले.
कबीर उस वक्त एक युवा था, खुश और सरल. लेकिन किस्मत की मार ने उसे एक रात में सब कुछ छीन लिया. उसका परिवार, उसका घर, उसकी पहचान—सब कुछ एक झटके में समाप्त हो गया.

वो दिन शहर की गलियों में उसके जीवन का सबसे काला दिन था. उसके पास कपडे भी नहीं थे, न खाने के पैसे, न कोई आसमान के नीचे बैठने की जगह. उसने पहली बार महसूस किया था कि भूख कितनी निर्दयी होती है.

गली में एक पुरानी किताब का टुकडा हाथ में लेकर वह बैठा था. चारों तरफ से लोग उसे गालियाँ दे रहे थे—" भिखारी! खुद को बचा ले वरना मर जाएगा! —ये शब्द उसकी रगों में घुस गए थे.

एक बूढा आदमी, जो उसी गली में रहता था, उसके पास आया. उसकी आँखों में वही दर्द था जो कबीर के अंदर था.
बूढा आदमी:
लडके, दौलत कभी किसी को बचा नहीं पाती. भूख इंसान को उसकी जड तक ला देती है. तू जिंदा रहना चाहता है तो भूख का दोस्त बन।

कबीर ने उस आदमी को नहीं सुना, लेकिन उसकी बातें उसके दिमाग में घर कर गईं. उसी रात उसने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह भूख से हार नहीं मानेंगे. और यही सोच उसने उसे एक भिखारी बनने का रास्ता दिखाया.

वो भिखारी बनकर शहर की गलियों में घूमने लगा. दिन भर भीख मांगता, रात को पुराने कोनों में सोता. लेकिन धीरे- धीरे उसने देखा—भिखारी बनकर वह शहर की हर कहानी सुन सकता था, हर रहस्य पा सकता था. लोगों की बातें, उनके डर, उनके राज—सब उसके सामने खुलते चले गए.

एक दिन उसने एक बडी साजिश के बारे में सुना—एक ऐसा राज जो उसकी जिंदगी बदल सकता था. और तभी उसने फैसला किया—भिखारी की शक्ल में वह शहर के दिल में घुसकर सबसे बडा खेल खेलेगा.

फ्लैशबैक खत्म)

कबीर डायरी बंद करके खामोशी से कमरे में बैठ गया. उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी ठंडक थी—एक तय करने वाली ठंडक.

कबीर( धीमे स्वर में)
इस दौलत के पीछे मेरा सच है. और ये सच मैं दुनिया को कभी नहीं बताऊँगा. नहीं. जब तक मेरा आखिरी खेल खत्म न हो जाए।

वो खिडकी से बाहर देखता रहा—हवेली की रोशनी में शहर की गलियाँ जैसे उसके कदमों का इंतजार कर रही हों.




वहीं हवेली के बाहर.
विराज और वेरिका उस गली की ओर बढ रहे थे जहाँ कबीर की पुरानी डायरी में जिक्र था. वे सोच रहे थे कि कबीर का सच क्या है और क्या वह इसे उन्हें बताएगा.

वेरिका:
पापा, अगर कबीर का सच सच में वैसा है जैसा उसने लिखा है. तो हमें सावधान रहना होगा।

विराज:
हाँ बेटा. क्योंकि कभी- कभी सच से भी बडा खतरा होता है।




इस तरह कहानी आगे बढती है—कबीर का अतीत धीरे- धीरे सामने आ रहा है, लेकिन उसका असली मकसद अभी भी रहस्य बना हुआ है. हवेली में हर कोई उसकी अगली चाल का इंतजार कर रहा है.



शुरुआत – हवेली के कमरे में]

हवेली की रात ठंडी और गंभीर थी. कबीर खिडकी के पास खडा था. कमरे में चुप्पी थी, लेकिन उसके मन में तूफान. उसने पुराने कपडों की थैली खोली और उसमें रखी डायरी निकाली. पन्ने पुरानी गंध और धूल से भरे हुए थे. हर पन्ने पर खून के हल्के धब्बे और फटे किनारे थे.

कबीर ने धीरे- धीरे पहला पन्ना खोला और पढना शुरू किया—जैसे कोई पुराना जख्म याद कर रहा हो.

उसकी आवाज कमरे में गूंज उठी:
हर दौलत की कहानी. भूख से शुरू होती है।

और तभी. उसका चेहरा बदल गया. आँखें धुंधली सी हो गईं, और वह बीते समय में खो गया.




फ्लैशबैक – वह दिन जब कबीर भिखारी बना

कई साल पहले का शहर एकदम अलग था. गली के कोने पर कबीर बैठा था—कपडे फटे हुए, जूते टूटे हुए, हाथ में एक खाली कटोरा और आँखों में गहरी भूख.
उस दिन उसने पहली बार महसूस किया था कि जिंदगी कितनी बेरहम है.

लोग उसे चिढाते—" भिखारी! भाग यहाँ से! —और बच्चे पत्थर फेंकते. वह बस चुप रहता. उसका दिल भीतर से टूट रहा था.

तभी एक बूढा आदमी उसके पास आया. चेहरे पर गहरी झुर्रियाँ, आँखों में अनुभव और दर्द.
बूढा आदमी:
लडके. दौलत कभी किसी को बचा नहीं पाती. भूख इंसान को उसकी जड तक ला देती है।

कबीर ने उसे नजरअंदाज किया, लेकिन बूढा मुस्कुराया और कहा—
अगर तू जिंदा रहना चाहता है तो भूख का दोस्त बन।

कबीर ने उस रात पहली बार यह सोचा कि भूख केवल शरीर को नहीं मारती—ये आत्मा को भी तोड देती है. और उसी रात उसने तय किया—वह भूख से लडने के लिए भिखारी बनेगा.




भिखारी की जिन्दगी

कबीर ने अपने पुराने कपडे पहन लिए. वो रात को गली में सोता, दिन में भीख मांगता. हर मोड पर वह लोगों की बातें सुनता—उनकी खुशियाँ, दुःख, राज और डर. वह जानता था—भिखारी बनकर वह सबसे बडी ताकत पा सकता है: गली के राज.

वो धीरे- धीरे एक कहानी में घुस गया. शहर की सत्ता, पैसा, धोखा—सब उसके लिए किताब की तरह खुल रहे थे. वह सीख रहा था कि कैसे एक इंसान को गिरा कर उठाया जाता है, कैसे लोग विश्वास तोडते हैं, और कैसे दौलत केवल एक छलावा है.




पहला बडा रहस्य

एक दिन कबीर ने सुना कि शहर के सबसे ताकतवर आदमी—एक नाम जो किसी के जबान पर नहीं था—एक साजिश रच रहा है. यह साजिश किसी की जिन्दगी बदल सकती थी. उस दिन से कबीर ने ठान लिया कि वह सिर्फ भिखारी नहीं रहेगा—वह खिलाडी बनेगा.

लेकिन इसके लिए उसे सबसे पहले खुद को मिटाना होगा. अपनी पहचान, अपनी दौलत, अपना सबकुछ छोडना होगा. और इसी मिट्टी में उसने खुद को भिखारी बना लिया.




भिखारी से शाही बनने की राह

वर्षों तक कबीर ने भिखारी का रूप अपनाया. गलियों में रहते- रहते उसने शहर की राजनीति, कारोबार, और जालसाजियों को करीब से देखा. उसने नाम और पहचान तो खो दी थी, लेकिन जो सबसे कीमती चीज थी—जानकारी—वो जुटा ली थी.

एक रात, उसे एक गुप्त दस्तावेज मिला. दस्तावेज में लिखा था—“ जो सत्ता को जानता है, वही दौलत को जानता है। यह लाइन कबीर के दिल में घर कर गई. उसने तय किया—वह सब कुछ हासिल करेगा. लेकिन उसके लिए एक खेल शुरू करना था, एक ऐसा खेल जिसमें कोई हार और जीत की गारंटी नहीं थी.

वह भिखारी बना रहा. ताकि एक दिन जब वह अपने अतीत को तोडकर लौटे, तो शहर उसके कदमों पर झुके.




वापसी का पहला कदम

कबीर ने अपनी भिखारी जिन्दगी का आखिरी दिन तय किया. उस दिन उसने अपने पास जमा किए सारे राज, दस्तावेज और संपर्क इकठ्ठा किए. उसने गली की आखिरी रात को रोते हुए कहा—
मुझे फिर कभी भूखा नहीं देखना चाहिए।

और अगली सुबह, उसने शहर में अपनी नई पहचान बनाई—कबीर, दौलत का नया नाम.

वो रात, जब उसने पहली बार अपने पुराने कपडे उतारे और नए कपडे पहने, उसी दिन उसने अपनी कहानी को बदल दिया. और वही दिन था जब कबीर भिखारी से राजा बन गया.




वापस हवेली में

वास्तव में यह कहानी केवल कबीर की दौलत की नहीं थी—यह उसकी आत्मा का खेल था. हवेली में लौटकर भी, कबीर अपने अतीत को भूल नहीं पाया. हर रात वह उस बूढे आदमी की बात याद करता था—“ भूख का दोस्त बन। यही भूख उसे आगे बढाती थी, यही भूख उसे बताती थी कि उसका असली मकसद क्या है.

कबीर डायरी बंद कर देता है. उसकी आँखों में अब न दर्द था, न ख्वाब. बस एक ठंडी, लेकिन तयशुदा आग थी.

कबीर( धीमे स्वर में)
मैं भिखारी था. और अब मैं वह आदमी हूँ जिसे कोई रोक नहीं सकता।




कहानी का नया मोड

उस रात हवेली में एक और साया घूम रहा था—कोई जिसे कबीर नहीं जानता था. एक आदमी, जो उसकी कहानी का अगला हिस्सा लिखने वाला था. उस आदमी के हाथ में वही पुराना टेप रिकॉर्डर था, जिसमें सुनीता आंटी की आवाज थी.

वो आदमी धीरे- धीरे मुस्कुराया और बोला—
कबीर. तेरा खेल अब शुरू हुआ है. और जब ये सच सामने आएगा. तेरी दौलत तेरे लिए सबसे बडा खतरा बन जाएगी।



कहानी यहीं नहीं रुकी—यह अभी शुरू हुई है. कबीर का भिखारी बनने का राज सामने आ चुका है, लेकिन उसका खेल अभी बाकी है. हवेली, दौलत, साजिशें और परछाइयाँ. सब मिलकर एक नई लडाई की तैयारी कर रहे हैं.

अगला सीन —“ भिखारी की पहली रात”

कबीर के लिए वो रात सबसे अलग थी. वह एकदम खाली हाथ था—ना पैसा, ना पहचान, ना कोई भविष्य. हवेली की खिडकियों के पार से चाँद की हल्की रोशनी उस गली में उतर रही थी जहाँ कबीर पहली बार भिखारी बना था.

गली में हल्की ठंडी हवा थी, और कबीर अपने टूटे कपडों में कांप रहा था. चारों तरफ से लोगों की हँसी और गालियाँ आ रही थीं. एक छोटा बच्चा पत्थर फेंकता और चीखता—“ भिखारी भाग यहाँ से!

कबीर चुपचाप एक दीवार के किनारे बैठ गया. उसका हाथ खाली कटोरे पर पडा था, और आँखों में एक अजीब सी झुरझुरी हुई ठहराव थी.

तभी पास से एक बूढा आदमी आया. उसने कबीर को देखा, और बिना कुछ कहे उसके पास बैठ गया. उसकी आँखों में जीवन के कई अनुभव थे—कठिन, दर्दभरे और सिखाने वाले.

बूढा आदमी:
लडके. तू भूखा है, पर तू भूख का सामना कैसे करता है, यही तेरा असली इम्तिहान है।

कबीर ने बिना कुछ कहे सिर झुकाया. बूढा आदमी उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला—
भूख इंसान को सिर्फ मारती नहीं, बदलती है. अगर तू इस शहर में जीना चाहता है, तो भूख को अपना हथियार बना ले।

कबीर ने पहली बार महसूस किया कि यह सिर्फ खाना माँगने का समय नहीं था—यह एक परीक्षा थी.




पहला कदम

कबीर ने अगले दिन अपने कपडे बदले—पुराने, फटे हुए कपडे पहन लिए. उसने गली के एक कोने में छोटे- छोटे सिक्के इकट्ठा किए, और खुद को भीख माँगने के लिए तैयार किया. उसने देखा कि लोग कितनी आसानी से किसी भिखारी को नजरअंदाज कर देते हैं, और कितनी जल्दी उसे नीचा समझते हैं.

लेकिन इसी में उसकी ताकत छुपी थी—क्योंकि भिखारी का जीवन उसे किसी भी दरवाजे तक पहुँचाने वाला था.

वह दिन से लेकर हफ्तों तक कबीर गली में भिखारी बना रहा. उसने शहर के राज जाने—कौन किसके पीछे है, कौन किसका दुश्मन है, और कौन किसका साथ छोड सकता है.




पहली सीख

एक दिन कबीर गली में बैठा था कि एक अमीर व्यापारी वहां आया. व्यापारी ने उसे देखा और मुस्कुराया.
व्यापारी:
लडके, तू रोज भीख माँगता है. पर क्या तूने कभी सोचा है कि ये क्यों है?

कबीर ने सिर झुकाकर कहा—“ मैं सिर्फ जी रहा हूँ।

व्यापारी ने गंभीर स्वर में कहा—“ जीना आसान नहीं है. अगर तू सच में जीना चाहता है, तो अपनी पहचान बदल, और खेल में उतर।

कबीर ने पहली बार उस दिन सोचा कि दौलत और सत्ता के पीछे जाने का रास्ता भिखारी बनने से होकर गुजरता है.




फैसला

वो रात कबीर के लिए निर्णायक थी. उसने अपने पुराने कपडे उतार दिए और गली में आखिरी बार भीख मांगी. उसने खुद से कहा—
मैं अब भिखारी नहीं, खिलाडी बनूँगा।

अगले दिन से उसने शहर में एक नई पहचान बनाई—कबीर, एक ऐसा नाम जो जल्द ही सबको जानना पडेगा.




वापसी हवेली में

वापस हवेली में, कबीर के चेहरे पर अब जीत और ठंडक दोनों थी. वह जानता था—उसने जो रास्ता चुना है, वह सिर्फ दौलत का नहीं, बल्कि शहर पर राज करने का है.

लेकिन उसका भिखारी बनने का राज अभी सिर्फ उसकी डायरी में लिखा था. हवेली के बाकी लोग इस राज से अनजान थे.



अगला सीन —" कबीर का खेल और हवेली का खतरा"

हवेली के भीतर रात गहरी हो चुकी थी. ठंडी हवाएँ खिडकियों से टकरा कर कमरे में दस्तक दे रही थीं. कबीर अपने कमरे में बैठा था, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी—जैसे कोई रहस्य खुलने ही वाला हो. डायरी उसके हाथ में थी, और पन्नों की खुरदरी आवाज उसके कानों में गूंज रही थी.

वह चुपचाप पढ रहा था—हर शब्द उसकी सोच को और गहरा कर रहा था. हवेली में बाकी लोग सो चुके थे, लेकिन कबीर की नींद टूट चुकी थी. वह जाने- अनजाने खुद से कह रहा था—
सब कुछ अब बदलने वाला है.




हवेली की तहखाने में एक योजना

वहीं दूसरी ओर, हवेली के तहखाने में वेरिका और कबीर के करीबी—कबीर के भरोसेमंद लोग—चुपके से इकट्ठे थे. वेरिका के चेहरे पर चिंता थी, लेकिन उसका मन तय था कि कबीर के खेल में उसका साथ रहेगा.

वेरिका:
कबीर. अगर यह सब सच है, तो हमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।

कबीर ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया—
सच का रास्ता हमेशा सीधा नहीं होता, वेरिका. यह एक जाल है जिसमें कदम रखते ही तू फँस जाएगी।

जैसे ही वे आगे बढे, तहखाने में एक पुरानी लोहे की दरवाजा खुली. उसके पीछे एक अंधेरी गलियारा था, जिसमें धूल और समय की गंध थी.

कबीर ने हाथ में मशाल पकड ली और धीमे स्वर में कहा—
आगे जाने से पहले याद रखो—जो इस रहस्य को जान लेगा, वही जीत सकता है. लेकिन कीमत चुकानी होगी।




भिखारी का रहस्य सामने आता है

तहखाने में कदम रखते ही कबीर का चेहरा गंभीर हो गया. उसके मन में पुरानी यादें ताजा हो रही थीं—वो दिन जब उसने भिखारी बनने का फैसला किया था.

वो याद आया—किस तरह वह भूखा, बेबस और अकेला था. कैसे उसने गली में बैठकर खुद को मिटा दिया और भिखारी बनने का रास्ता चुना. यह उसके लिए सिर्फ अस्तित्व नहीं था—यह उसकी ताकत बन गई थी.

वह वेरिका से धीरे से कहता है—
मैंने दौलत के लिए नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के लिए यह खेल चुना था. और अब. यह खेल हवेली के दिल में है।

वेरिका उसकी बात समझती थी, लेकिन उसकी आँखों में एक सवाल था—“ क्या कीमत इतनी बडी होगी?

कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा—
हर बडी जीत की कीमत बडी होती है।




तहखाने में एक पुराना खुलासा

वे तहखाने में आगे बढते हैं, और एक पुराने दरवाजे पर पहुँचते हैं. दरवाजा पुराना, जर्जर और खिडकी के बिना था. कबीर उसे धीरे से खोलता है—और सामने एक कमरा खुलता है जिसमें पुरानी किताबें, दस्तावेज और एक टूटा हुआ रिकॉर्डर रखा था.

वह कमरे में प्रवेश करते हैं. वेरिका ने धीमे स्वर में कहा—
यह जगह. किसी राज की गवाही दे रही है।

कबीर किताबों में से एक दस्तावेज उठाता है. उस दस्तावेज पर लिखा था—“ जो खेल समझेगा, वही अंत में बचेगा।

कबीर के हाथ कांप रहे थे—उस दस्तावेज में हवेली के भीतर छिपे बडे खेल की जानकारी थी.




खतरे की चेतावनी

जैसे ही वे दस्तावेज पढ रहे थे, तहखाने में हल्की खडखडाहट हुई. एक अजीब सी आवाज गूँज उठी—जैसे किसी ने धीमी हँसी के साथ कहा हो—
खेल अब शुरू हो चुका है।

वेरिका चौंक कर कबीर की ओर देखती है—
कबीर. यह आवाज किसकी है?

कबीर सिर झुकाकर कहता है—
वेरिका. यह हवेली हमें खामोशी में चेतावनी दे रही है. हमें अब और सावधान रहना होगा।




कबीर की योजना

कबीर तहखाने से बाहर आते ही अपने भरोसेमंद लोगों को इकट्ठा करता है. उसका स्वर गंभीर और ठंडा था—
अब हमें अगले कदम की तैयारी करनी है. यह केवल हवेली का खेल नहीं है—यह हमारी पहचान, हमारी ताकत और हमारी दौलत का खेल है।

वेरिका पूछती है—
तो हमारा अगला कदम क्या होगा?

कबीर मुस्कुराता है—
अगला कदम. उन्हें दिखाना है कि भिखारी भी राजा बन सकता है।




अंतिम दृश्य

रात गहरी होती चली जाती है. हवेली की दीवारें चुपचाप उनकी योजना को सुन रही हैं. कबीर, वेरिका और बाकी लोग तहखाने से बाहर निकलते हैं. उनके कदम भारी थे—पर उनमें एक अजीब सी ठान लेनी की शक्ति थी.

कबीर बाहर खडा होकर धीरे से कहता है—
यह केवल शुरुआत है. और जब यह खेल पूरा होगा, तो हवेली खुद मेरी कहानी गाएगी।

हवेली की खिडकियों से बाहर एक साया गुजरता है—और वहाँ, अंधेरे में, एक नाम फुसफुसाया जाता है—“ R.



अगला सीन —" भिखारी का पहला कदम"

रात हवेली में और भी गहरी थी. कबीर एक कमरे में अकेला बैठा था, हाथ में पुरानी डायरी थी और आँखें दूर किसी अंधेरे में खोई हुई थीं. उसकी यादें धीरे- धीरे जी उठीं—वो दिन जब उसने भिखारी बनने का फैसला किया था.

गली के कोने में फटे कपडों में बैठा, खाली कटोरा हाथ में लिए, वह दुनिया की बेरहम सच्चाई देख रहा था. लोग उसे नीचा समझते थे—लेकिन उसने अपने दर्द को हथियार बना लिया. उसने तय किया था—भूख को अपना दोस्त बना कर वह सत्ता तक पहुँचेगा.

अगले दिन उसने अपने कपडे बदले और गली में भीख माँगनी शुरू की. वह सिर्फ रोटी नहीं मांग रहा था—वह शहर की हकीकत को पढ रहा था. हर मुस्कान, हर नजर, हर शब्द उसके खेल की कडी बन गया.

वही भूख उसे आज हवेली में वापस लेकर आई थी—एक नए खेल के लिए. कबीर वेरिका के पास आया, उसकी आवाज ठंडी और गंभीर थी—
वेरिका. अब हम सिर्फ हवेली का राज नहीं खोज रहे, हम अपनी ताकत की कहानी लिख रहे हैं।

वेरिका ने डर भरी नजरें उसे दीं—
कबीर, क्या हम तैयार हैं इसका सामना करने के लिए?

कबीर मुस्कुराया—
तय है. भिखारी की रात अब खत्म हुई. और राजा की कहानी शुरू हो रही है।

उस रात हवेली की दीवारों ने धीरे से एक नाम फुसफुसाया—“ R.



क्यों कबीर ने खुद को भिखारी बनाया?
R का राज क्या है?
वेरिका कबीर के खेल का हिस्सा बनेगी या नहीं?
हवेली में छुपा सच क्या है?
क्या कबीर जीत पाएगा?
अगला कदम क्या होगा?
कैसे होगा पर्दाफाश.

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए Matrubharti का Most Favorite Show — सोने का पिंजरा.