💖 मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है — एपिसोड 21
सुबह की हल्की धूप हवेली की टूटी खिड़कियों से अंदर झाँक रही थी।
राज़ और अनाया छत पर खड़े थे — कल की रात की वो नीली-सुनहरी लपटें अब सिर्फ़ याद बन चुकी थीं, पर हवेली की हवा में अब भी एक अजीब-सी नमी थी।
अनाया ने आसमान की ओर देखा — वही निशान अब दो हिस्सों में बँटा हुआ था।
एक हिस्सा सुनहरी चमक लिए हुए, तो दूसरा काली लपटों से भरा।
राज़ ने धीरे से कहा,
“ये संकेत है… रूहानी की कही बातों का। चुनाव का समय आ चुका है।”
अनाया ने उसकी ओर देखा — उसकी आँखों में थकान थी, पर साथ ही एक अजीब-सी चमक भी।
“अगर चुनाव मुझे करना है, तो मैं प्रेम चुनूँगी। चाहे उसके बदले पूरी दुनिया क्यों न छिन जाए।”
राज़ मुस्कुराया — वो वही मुस्कान थी, जो उसने सदियों पहले अन्विका को दी थी…
पर अब उस मुस्कान में रूह का सुकून नहीं, बल्कि इम्तिहान की आहट थी।
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🌫 हवेली की गहराई में
दोनों तहखाने की ओर बढ़े।
वहाँ अब सब कुछ शांत था — लेकिन दीवारों पर सुनहरे प्रतीक के नीचे एक नया चिन्ह उभरा था — “सत्य–द्वार”।
राज़ ने हाथ बढ़ाया।
जैसे ही उसकी उँगलियाँ दीवार को छुईं, ज़मीन कांप उठी। दीवार खुली और एक लंबा गलियारा सामने आ गया।
वो गलियारा किसी रूह की साँसों जैसा लग रहा था — ठंडा, नम और अदृश्य कंपन से भरा।
अनाया ने कहा, “राज़, ये वही जगह है ना जहाँ से हवेली की असली शक्ति शुरू हुई थी?”
राज़ ने सिर हिलाया, “हाँ… और शायद अब यही हमें बताएगी कि रूहानी ने आख़िरी चेतावनी क्यों दी थी।”
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💫 रूह की छवि
गलियारे के आखिर में एक चाँदी का आईना था।
आईने में कोई परछाईं नहीं दिख रही थी, लेकिन जैसे ही अनाया उसके पास गई, उसका प्रतिबिंब खुद से अलग होकर आईने के भीतर खड़ा हो गया।
वो वही चेहरा था — मगर आँखों में काली धुंध।
आईना हिला, और अंदर की “दूसरी अनाया” ने कहा —
> “प्रेम तुम्हारी ताक़त है, लेकिन वही तुम्हारा बंधन भी बनेगा।”
अनाया पीछे हटी, “तुम… तुम कौन हो?”
> “मैं वही, जो तुम्हारे दिल के अंदर छिपा डर हूँ। जो हर बार राज़ को खोने से डरता है… और इसी डर से शक्ति जन्म लेती है।”
राज़ ने बीच में आकर कहा, “अनाया! उसकी बातों में मत पड़ो। ये सिर्फ़ भ्रम है।”
आईने के भीतर की अनाया मुस्कुराई, “भ्रम? या सच का दूसरा चेहरा?”
फिर उसने हाथ बढ़ाया और आईने से एक चमकदार किरण निकली — जो राज़ के सीने पर पड़ी।
राज़ वहीं गिर पड़ा।
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💔 राज़ की चेतना
राज़ की साँसें तेज़ हो गईं।
उसकी आँखों के सामने पुराना समय घूमने लगा — वो रात जब अन्विका हवेली में जली थी, और उसने वादा किया था “मृत्यु के पार भी साथ दूँगा।”
उसी पल एक आवाज़ आई,
> “तुमने वादा तो किया था, पर निभाया नहीं। अब प्रेम नहीं, न्याय होगा।”
राज़ ने आँखें बंद कीं। “अगर पाप मेरा है, तो दंड भी मैं ही भुगतूँगा।”
उसके सीने पर से सुनहरी रोशनी उठी और हवा में घुलने लगी।
अनाया ने घबराकर उसका सिर अपनी गोद में रखा,
“राज़… आँखें खोलो, मुझे छोड़कर मत जाओ…”
राज़ ने फीकी मुस्कान के साथ कहा,
“प्रेम की रुमानियत तभी सच्ची होती है, जब उसमें त्याग शामिल हो…”
और वो चुप हो गया।
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🌹 रुमानियत का अर्थ
अनाया के आँसू हवेली की फर्श पर गिर रहे थे।
हर आँसू सुनहरी लपट बनकर चमक उठता।
फिर उन लपटों से एक आकृति बनी — राज़ की आत्मा।
राज़ मुस्कुरा रहा था, मगर अब उसके चेहरे पर कोई दर्द नहीं था।
उसने कहा,
> “अनाया, अब वक्त है कि तुम अपने भीतर की शक्ति को पहचानो।
मोहब्बत सिर्फ़ किसी को पाने का नाम नहीं — बल्कि उसे उसकी सच्चाई के साथ स्वीकार करने का साहस भी है।”
अनाया काँपती आवाज़ में बोली, “और मैं वही करूँगी… तुम्हारे साथ, हर जन्म में।”
राज़ की रूह ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया।
जैसे ही उसने उसका हाथ पकड़ा, हवेली की दीवारें चमक उठीं।
सुनहरी और काली लपटें अब एक-दूसरे में मिलकर एक नई रौशनी बन गईं — रुमानियत की रौशनी।
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🌒 सत्य-द्वार का खुलना
आईने की दरारें मिटने लगीं।
वो आवाज़ फिर गूंजी — रूहानी की:
> “प्रेम ने शक्ति को परास्त किया…
और अब समय है कि हवेली अपने रक्षक को चुने।”
राज़ की रूह ने अनाया की ओर देखा,
“अब तुम इस हवेली की नई रखवाली हो, अनाया।
सत्य और प्रेम दोनों तुम्हारे भीतर हैं।”
अनाया ने आँखें बंद कीं।
उसके चारों ओर हल्की सुनहरी आभा फैल गई।
वो हवेली की पहली स्त्री थी, जिसने प्रेम से न सिर्फ़ एक रूह को मुक्त किया, बल्कि खुद को भी पा लिया।
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🌅 नए युग की शुरुआत
सूरज निकल आया। हवेली के ऊपर से नीली और काली लपटें गायब हो गईं।
अब बस हल्की धूप थी और दीवारों पर सुनहरी चमक — जैसे किसी रूह ने आख़िरी बार मुस्कुराया हो।
अनाया ने आसमान की ओर देखा,
“राज़… अब मेरी हर सांस में तुम्हारा नाम रहेगा।
क्योंकि मेरे इश्क़ में अब सिर्फ़ दर्द नहीं — रुमानियत शामिल है।”
हवा में वही खुशबू थी — जो अन्विका और राज़ के वादे के वक्त थी।
वो हवेली, जो कभी दर्द की गवाह थी, अब मोहब्बत का मन्दिर बन चुकी थी।
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✨ हुक लाइन (Suspense Ending)
जब अनाया हवेली के बाहर निकलने लगी,
पीछे से एक धीमी आवाज़ आई — रूहानी की नहीं, किसी और की…
> “अनाया… तुमने परीक्षा तो पार की,
पर क्या जानती हो — प्रेम का दूसरा चेहरा अब भी जिंदा है…”
अनाया मुड़ी,
हवेली की खिड़की पर वही “काला प्रतीक” फिर से चमक उठा।
उसके होंठों से बस एक शब्द निकला —
“राज़…?”
और हवेली की हवा फिर से ठंडी हो गई —
मानो किसी अधूरी रूह ने फिर दस्तक दी हो।