शहर से क़रीब 30 किलोमीटर दूर एक पुरानी कोठी थी, जिसे लोग "विरासत हाउस" के नाम से जानते थे। चारों ओर घना जंगल, पहाड़ियों से घिरा इलाका, और बीचों-बीच अकेली खड़ी वो कोठी — मानो किसी भूले हुए वक़्त की निशानी हो। गांव वालों का कहना था कि रात को उस कोठी से चीख़ें आती हैं, खिड़कियों से अजीब रोशनी दिखती है, और कोई परछाईं बार-बार झांकती है।
गांव के बुजुर्गों के मुताबिक, कई लोग वहां गए, लेकिन ज़िंदा वापस कोई नहीं आया। कुछ की लाशें मिलीं, कुछ ऐसे ही गायब हो गए। लेकिन पुलिस को कभी कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। धीरे-धीरे मामला ठंडा पड़ गया… सिवाय अफ़वाहों और डर के।
रवि शर्मा, 28 वर्षीय एक जुझारू पत्रकार, जो "रहस्यों के पीछे की सच्चाई" को उजागर करने के लिए जाना जाता था, इस कोठी के बारे में सुनकर उत्सुक हो गया। उसका मानना था कि दुनिया में हर डर, हर भूत, हर अफ़वाह के पीछे कोई न कोई सच जरूर होता है।
एक शाम रवि ने तय कर लिया — वो विरासत हाउस जाकर रहस्य की तह तक पहुंचेगा। अगले दिन रात 9 बजे के करीब, कैमरा, टॉर्च और अपनी डायरी के साथ रवि गांव पहुंचा। वहां कुछ बुजुर्गों ने उसे रोकने की कोशिश की।
“बेटा, मत जा उस कोठी में… जो गया, वो लौटा नहीं,” एक बूढ़े किसान ने कांपती आवाज़ में कहा।
रवि ने मुस्कुराकर कहा, “अगर सब डर के पीछे भागते रहेंगे, तो सच्चाई कौन सामने लाएगा?”
वह कार में बैठा और विरासत हाउस की ओर चल पड़ा। रास्ते में जंगल घना होता जा रहा था, मोबाइल नेटवर्क गायब, और हवा में एक अजीब सन्नाटा था। कोठी पहुंचते-पहुंचते रात के 10:30 बज चुके थे।
कोठी बाहर से पूरी तरह टूटी-फूटी लग रही थी — दीवारों से प्लास्टर उखड़ा हुआ, खिड़कियों के शीशे टूटे हुए, और छत से झाड़ियाँ लटक रही थीं। रवि ने कार पार्क की और टॉर्च जलाकर धीरे से कोठी के दरवाज़े की ओर बढ़ा।
अजीब बात ये थी कि दरवाज़ा जंग लगा नहीं था — जैसे कोई रोज़ खोलता हो। उसने धक्का दिया तो दरवाज़ा खुद-ब-खुद कराहता हुआ खुल गया। अंदर एकदम सन्नाटा था। दीवारों पर मकड़ी के जाले, फर्श पर धूल की मोटी परत, और हर कोना सड़ी हुई लकड़ी की बदबू से भरा।
अचानक उसे ऊपर से किसी के चलने की हल्की आवाज़ सुनाई दी। वो चौंका। आवाज़ फिर आई — मानो कोई लकड़ी की सीढ़ियों पर चुपचाप नीचे उतर रहा हो। रवि ने टॉर्च ऊपर घुमाई — कोई नहीं था।
उसने हिम्मत जुटाई और धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ा। वहां एक पुराना लकड़ी का दरवाज़ा था, जिस पर जंग लगी ताले की छाप दिख रही थी — मगर ताला नहीं था। उसने दरवाज़ा खोला।
कमरे के अंदर घुप्प अंधेरा था, लेकिन दीवारों पर कुछ हल्का-सा चमक रहा था। जब रवि ने टॉर्च मारी, तो उसके होश उड़ गए।
कमरे की सारी दीवारें पुराने अखबारों की कतरनों से भरी थीं — लापता लोगों की खबरें, गांव के रहस्यमय किस्से, और फिर... एक कोने में एक कतरन दिखी जिसमें रवि की खुद की तस्वीर छपी थी।
उसके ठीक नीचे हेडलाइन थी:
“युवा पत्रकार रवि शर्मा की रहस्यमयी मौत — लाश नहीं मिली।”
उसकी सांसें रुक गईं। उसने कतरन को छूकर देखा, और देखा कि उसकी तारीख तीन दिन पुरानी थी।
“ये… कैसे हो सकता है… मैं तो ज़िंदा हूं…” वो बड़बड़ाया।
तभी कमरे के कोने से एक ठंडी हवा चली और एक दरवाज़ा धीरे से खुल गया। अंदर से एक परछाईं निकली। धुंधली, लेकिन साफ़ थी। रवि ने देखा — वो चेहरा उसे जाना-पहचाना लगा।
वो… उसी का चेहरा था — थोड़ा बूढ़ा, थका हुआ, डर से भरा।
“तुम… तुम कौन हो?” रवि ने कांपती आवाज़ में पूछा।
“मैं… वही हूं जो तुम बनने जा रहे हो,” वो बोला। “तीन साल पहले मैं यहां आया था… तुम्हारी ही तरह… और तब से यहीं हूं।”
रवि एक कदम पीछे हट गया। “ये बकवास है! ये सब सपना है!”
“काश सपना होता,” वो मुस्कराया, “विरासत हाउस एक जाल है… जो यहां आता है, वो यहीं फँस जाता है। वक्त थम जाता है, बाहर की दुनिया तुम्हें मरा हुआ समझती है, और यहां… तुम बस एक और परछाईं बन जाते हो।”
रवि ने भागने की कोशिश की। वो सीढ़ियों की तरफ दौड़ा, लेकिन सीढ़ियाँ अब वहाँ नहीं थीं। फर्श खिसक रहा था, दीवारें सिकुड़ रही थीं, और कोठी का नक्शा बदल रहा था — मानो वो उसे निगलने को तैयार हो।
चीखता हुआ रवि अंधेरे में समा गया।
अगले दिन स्थानीय अख़बार में खबर छपी:
> “प्रसिद्ध पत्रकार रवि शर्मा लापता — अंतिम बार विरासत हाउस के पास देखा गया। पुलिस जांच कर रही है।”
पुलिस को कोठी में कुछ नहीं मिला। न कोई सुराग, न कैमरा, न गाड़ी। मानो वो कभी वहां आया ही न हो।
समय बीतता गया। गांव फिर से चुप हो गया। लोग डर के मारे उस कोठी की तरफ देखना भी बंद कर चुके थे। मगर कोठी की खिड़कियों में रात को अब दो परछाइयाँ दिखती थीं।
पाँच साल बाद एक नया पत्रकार, नील, विरासत हाउस की कहानी के पीछे की सच्चाई जानने आया। वो खुद भी साहसी था, और रवि शर्मा का बहुत बड़ा प्रशंसक।
जब वह कोठी के दरवाज़े के पास पहुँचा, तो दरवाज़ा पहले से खुला हुआ था। अंदर एक व्यक्ति खड़ा था — सफेद बाल, झुकी हुई पीठ, और आंखों में अजीब चमक।
नील ने चौंकते हुए पूछा, “आप… आप रवि शर्मा हैं?”
वो मुस्कराया… और कुछ नहीं बोला। बस धीमे से कहा:
“अब तुम भी बहुत पास आ गए हो…”
दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद हो गया।
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