**स्वर्ग और सौंदर्य की सीमा**
**भूमिका:**
कई युगों पहले, जब धरती पर दिव्यता और मानवता के बीच की दूरी कम थी, देवताओं की दृष्टि कभी कभी ऐसी स्त्रियों पर पड़ जाती थी, जिनकी सौंदर्य की छटा स्वयं स्वर्ग को चुनौती देती थी। ऐसी ही एक अद्भुत और अलौकिक सौंदर्य की धनी थी **मधुलिका**।
**भाग 1: सौंदर्य की देवी**
मधुलिका का जन्म एक साधारण गाँव में हुआ था, लेकिन उसमें असाधारण आकर्षण था। उसकी त्वचा चंद्रमा की तरह दमकती थी, उसकी आँखें गहरी रात के रहस्यों को समेटे थीं, और उसके होंठ वसंत की पहली कली की तरह कोमल और गुलाबी थे। जब वह हंसती, तो ऐसा लगता जैसे नदियों में मीठा संगीत घुल गया हो।
गाँव के हर पुरुष, हर युवा, यहाँ तक कि वृद्ध भी उसकी झलक पाने को तरसते। लेकिन मधुलिका किसी को भाव नहीं देती थी। उसे अपने सौंदर्य की ताकत का अहसास था, लेकिन वह किसी क्षणिक प्रेम के लिए नहीं बनी थी। वह चाहती थी कि कोई उसे आत्मा के स्तर पर प्रेम करे, न कि केवल उसके रूप पर मोहित हो।
**भाग 2: देवताओं की सभा में हलचल**
स्वर्ग में बैठे देवताओं तक मधुलिका के सौंदर्य की चर्चा पहुँच गई। सभी देवता और गंधर्व उसकी सुंदरता के चर्चे करने लगे। इंद्र, जो स्वर्ग के राजा थे, तक उसकी खबर पहुँची। उन्होंने अपने दूत को पृथ्वी पर भेजा कि वह जाकर देखे कि यह स्त्री कितनी अनुपम है।
जब दूत पृथ्वी से लौटा, तो उसने जो वर्णन किया, उसे सुनकर इंद्र भी अचंभित रह गए। लेकिन यह बात सुनते ही सबसे अधिक बेचैन हुआ **भगवान शिव**। शिव, जो वैराग्य और ध्यान में लीन रहते थे, उन्हें स्त्रियों के मोह से कोई सरोकार नहीं था। परंतु इस बार कुछ अलग था।
एक दिन कैलाश पर्वत पर ध्यान में बैठे शिव ने जब अपनी दिव्य दृष्टि खोली, तो उनकी आँखों के सामने मधुलिका की छवि कौंध गई। उनकी समाधि भंग हो गई। यह पहली बार था जब शिव किसी नारी के सौंदर्य से विचलित हुए थे।
**भाग 3: जब भगवान ने लिया मानव रूप**
शिव अपने विकट विचारों में उलझ गए। वे जानते थे कि वे योगी हैं, तपस्वी हैं, उन्हें कोई मोह नहीं होना चाहिए। परंतु उनका मन कह रहा था कि वे मधुलिका को स्वयं देखना चाहते हैं।
अंततः, शिव ने मानव रूप धारण किया। एक सामान्य तपस्वी के वेष में वे धरती पर उतरे और उस गाँव में पहुँचे, जहाँ मधुलिका रहती थी।
जब शिव ने पहली बार मधुलिका को देखा, तो वे स्तब्ध रह गए। उसकी चाल में अप्सराओं जैसी लचक थी, उसकी आँखों में रहस्य था, और उसके अंगों में ऐसी मादकता थी कि स्वयं देवता भी उसे देखकर अपने होश खो बैठें।
मधुलिका ने भी उस तपस्वी को देखा, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि यह कोई साधारण पुरुष नहीं, स्वयं भगवान शिव हैं।
**भाग 4: मोह और परीक्षा**
शिव ने मधुलिका के पास जाकर कहा, "हे सुंदरी, कौन हो तुम? ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारे सौंदर्य में स्वयं प्रकृति की सारी सुन्दरता समाहित है।"
मधुलिका मुस्कराई और बोली, "मैं एक साधारण स्त्री हूँ। लेकिन आप कौन हैं, जो मुझे इस प्रकार देख रहे हैं?"
शिव बोले, "मैं एक योगी हूँ, परंतु तुम्हें देखकर मेरे मन में विचित्र हलचल हो रही है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। क्या तुम मुझसे विवाह करोगी?"
मधुलिका को यह सुनकर आश्चर्य हुआ। वह जानती थी कि वह किसी सामान्य पुरुष के सामने नहीं खड़ी, इस तपस्वी के शब्दों में कोई दैवीय प्रभाव था। उसने कहा, "मैं आपसे विवाह कर सकती हूँ, लेकिन मेरी एक शर्त है।"
शिव ने पूछा, "क्या शर्त है?"
मधुलिका ने गंभीरता से कहा, "आपको पहले मेरे प्रेम की परीक्षा देनी होगी। यदि आप मेरे प्रेम के योग्य हैं, तो ही मैं आपको स्वीकार करूँगी।"
शिव मुस्कराए। यह परीक्षा स्वयं उनके लिए भी थी।
**भाग 5: प्रेम या वैराग्य?**
मधुलिका ने शिव के सामने अपनी शर्त रखी— **"यदि आप सच में मुझे प्रेम करते हैं, तो आपको अपना वैराग्य छोड़कर एक सामान्य गृहस्थ की तरह मेरे साथ रहना होगा।"**
शिव असमंजस में पड़ गए। वे प्रेम के बंधन को स्वीकार करें या अपने तप को बनाए रखें?
उन्होंने कुछ क्षणों तक मधुलिका को देखा। उसकी आँखों में प्रेम था, लेकिन वह मोह में नहीं थी। वह चाहती थी कि यदि शिव उसे स्वीकार करें, तो पूर्ण रूप से करें, अधूरे रूप में नहीं।
शिव ने गहरी सांस ली और कहा, "मधुलिका, मैं तुम्हें स्वीकार कर सकता हूँ, लेकिन मैं अपने मूल स्वभाव को नहीं छोड़ सकता।"
मधुलिका मुस्कराई। उसने उत्तर दिया, "तो फिर यह प्रेम नहीं, केवल आकर्षण था। प्रेम में कोई शर्त नहीं होती। मैं किसी ऐसे व्यक्ति से प्रेम करूँगी, जो मुझे पूरी तरह अपना सके।"
यह सुनते ही शिव को बोध हुआ कि वे प्रेम और मोह के बीच अंतर नहीं समझ पा रहे थे। वे मुस्कराए और बोले, "तुम सही कह रही हो, मधुलिका। तुम केवल सुंदर ही नहीं, बुद्धिमान भी हो। मैंने तुमसे बहुत कुछ सीखा।"
इतना कहकर, शिव ने अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर मधुलिका को आशीर्वाद दिया और स्वर्ग लौट गए।
**भाग 6: मधुलिका का निर्णय**
शिव के जाने के बाद, मधुलिका मुस्कराई। उसने स्वंय को और दृढ़ पाया। वह जान गई कि उसका सौंदर्य केवल देह तक सीमित नहीं था, बल्कि उसकी आत्मा की शक्ति में भी था।
इसके बाद, मधुलिका ने अपने जीवन को एक नई दिशा दी। उसने अपनी मादकता और सौंदर्य को केवल आकर्षण का साधन न मानकर, ज्ञान और प्रेम के प्रचार का माध्यम बना लिया। उसने एक आश्रम स्थापित किया, जहाँ वह लोगों को सच्चे प्रेम और आत्मबोध का पाठ पढ़ाने लगी।
**समाप्ति: सौंदर्य, प्रेम और आत्मबोध की यात्रा**
इस कहानी में केवल सौंदर्य की चर्चा नहीं, बल्कि यह भी बताया गया कि प्रेम केवल शरीर तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मा तक पहुँचने का मार्ग है। शिव ने मोह और प्रेम के भेद को समझा, और मधुलिका ने स्वयं को केवल एक आकर्षक स्त्री नहीं, बल्कि एक सशक्त नारी के रूप में स्थापित किया।
**सौंदर्य केवल देखने के लिए नहीं होता, बल्कि उसे समझने और सम्मान देने के लिए भी होता है।**