Adhuri Kitaab - 16 in Hindi Horror Stories by kajal jha books and stories PDF | अधुरी खिताब - 16

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अधुरी खिताब - 16

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🌙 एपिसोड 16 : “हवेली की वापसी”




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🌑 1. धुंध की दहलीज़

दरभंगा की पुरानी हवेली फिर उसी तरह चुप थी —
जैसे सदियों से किसी का इंतज़ार कर रही हो।
दीवारों पर उगी काई अब और गहरी हो चुकी थी,
खिड़कियों से झाँकती धुंध में बस एक परछाईं चल रही थी — तनिषा।

वह टैक्सी से उतरी, हाथ में वही किताब थी।
उसकी आँखें अब इंसानी नहीं लग रहीं थीं —
कुछ अजीब, जैसे वो किसी और के इशारों पर चल रही हो।

गाँव के लोग दूर से देख रहे थे।
रमाकांत ने अपने पड़ोसी से कहा —

> “ए भइया, ई तो उहे किताब वाली औरत है… जेकरा हाथ में रउआ देख रहे बानी।”



“भगवान! फिर से आफत आ गइल!”
किसी ने धीरे से कहा और दरवाज़े बंद कर लिए।

तनिषा ने हवेली के जर्जर गेट को छुआ —
गेट अपने आप खुल गया।
एक ठंडी हवा का झोंका आया और उसके साथ किताब ने हल्की-सी चमक छोड़ी।

> “घर वापिस आ गए हम…”
एक मद्धम आवाज़ तनिषा के कानों में गूँजी — राहुल की।




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🕯️ 2. किताब की आत्मा

रात होते ही हवेली के भीतर दीये अपने आप जल उठे।
कोई इंसान नहीं था, लेकिन कदमों की आहट हर ओर थी।

तनिषा धीरे-धीरे उस पुराने तख़्त की ओर बढ़ी जहाँ राहुल को आखिरी बार देखा गया था।
वहीं पर उसने किताब रखी।
तुरंत हवा भारी हो गई, दीवारों से राख झरने लगी।

किताब अपने आप खुली —
पहले पन्ने पर अक्षर जलने लगे, और फिर आवाज़ आई —

> “तनिषा… अब तू सिर्फ़ पाठक नहीं, लेखक भी है।”



तनिषा ने काँपते हुए पूछा, “तुम मुझसे क्या चाहते हो?”

> “अधूरी कहानियाँ पूरी करना… जिनकी रूहें अब भी यहाँ भटक रही हैं।”



उसके सामने एक धुंधली परछाई बनी —
वो राहुल था।
लेकिन अब उसका चेहरा इंसानी नहीं था —
आँखों में नीली चमक, शरीर पर धुएँ की परतें।

“राहुल… तुम ज़िंदा हो?”
तनिषा ने फुसफुसाया।

“ज़िंदा नहीं… लेकिन खत्म भी नहीं हुआ,” उसने मुस्कुराकर कहा।
“मैं किताब का हिस्सा बन चुका हूँ।”


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🌫️ 3. हवेली के नीचे का कक्ष

राहुल ने हाथ उठाया —
फर्श हिला, और एक गुप्त दरवाज़ा खुल गया।
नीचे अंधेरा था, लेकिन एक सीढ़ी उतरती जा रही थी धरती की गहराइयों में।

“यहाँ क्या है?”
तनिषा ने पूछा।

“यहाँ वो रूहें कैद हैं जिनकी कहानियाँ किताब में अधूरी हैं,” राहुल ने कहा।
“हर पन्ना एक आत्मा की कहानी है।
और अब, उन्हें मुक्त करने का समय है।”

तनिषा ने किताब उठाई।
हर पन्ना जैसे धड़क रहा था,
हर अक्षर में किसी की आह थी।

सीढ़ियों के नीचे पहुँचते ही उन्होंने देखा —
दीवारों पर कई चेहरे उभर रहे थे।
कुछ औरतों के, कुछ बच्चों के, कुछ ऐसे जो आधे जल चुके थे।

“इन सबकी कहानी?” तनिषा ने धीमे से कहा।

राहुल ने सिर झुकाया —
“अरविंद देव ने इन सबको धोखा दिया था।
किताब का प्रयोग उसने अमरता के लिए किया था,
पर उसकी गलती से इनकी आत्माएँ फँस गईं।”


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🕸️ 4. पहला पन्ना खुला

तनिषा ने पहला पन्ना खोला —
एक लड़की की तस्वीर उभरी, नाम था “मालिनी”।

तुरंत हवेली में ठंडी हवा का भँवर उठा।
मालिनी की रूह उनके सामने आ खड़ी हुई —
सफेद साड़ी में, आँखों में सन्नाटा।

“मुझे मेरा अंत याद नहीं…”
उसकी आवाज़ टूटी हुई थी।

राहुल ने कहा — “तू झील में डूब गई थी, क्योंकि तेरे प्रेमी ने तुझे धोखा दिया था। अब तू आज़ाद हो सकती है — अगर तू उसे माफ़ कर दे।”

मालिनी ने तनिषा की ओर देखा —
“क्या माफ़ कर पाऊँगी?”

तनिषा की आँखें किताब की चमक से भर उठीं —
उसने पन्ने पर हाथ रखा और कहा —
“तेरी कहानी पूरी हो गई।”

मालिनी की रूह मुस्कुराई और धुएँ में बदलकर गायब हो गई।

दीवारों से जंजीरें गिर पड़ीं।
किताब का पन्ना खुद-ब-खुद बंद हुआ।


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🔥 5. किताब का बदलता रंग

राहुल ने तनिषा की ओर देखा —
“अब तू समझ गई, ये किताब सिर्फ़ श्राप नहीं, वरदान भी है।
पर हर कहानी को पूरा करने की कीमत है — तेरे जीवन का एक अंश।”

तनिषा चौंकी — “मतलब?”

“हर रूह को मुक्त करने के साथ तू अपना थोड़ा हिस्सा खो देगी।”

तनिषा की साँसें भारी हो गईं।
लेकिन किताब अब खुद उसे बुला रही थी।

> “जो शुरू किया है, उसे खत्म करना होगा…”



तनिषा ने अगला पन्ना खोला।


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🌒 6. दरभंगा का श्राप

दूसरे पन्ने पर लिखा था —

> “वो जिसने हवेली को शाप दिया — अरविंद देव।”



राहुल ने कहा —
“यही वो आदमी था जिसने किताब बनाई थी।
वो चाहता था कि उसकी आत्मा कभी न मरे,
पर किताब ने उसे ही निगल लिया।”

तनिषा ने कहा — “तो उसे भी मुक्त करना होगा?”

“नहीं,” राहुल बोला, “उसे मुक्त करना मतलब इस हवेली का विनाश!”

लेकिन किताब ने जैसे उनकी बात सुनी ही नहीं।
पन्ने पर स्याही हिलने लगी, और दीवार से एक परछाई उभरी —
लंबा चोगा, जलती आँखें — अरविंद देव!

“कौन मेरी शांति भंग करने आया है!”
उसकी आवाज़ बिजली जैसी थी।

राहुल आगे बढ़ा —
“तेरा श्राप खत्म होगा आज!”

अरविंद हँसा —
“तू तो मेरी किताब का हिस्सा है, राहुल!
तेरी रूह मेरी कलम से लिखी गई थी!”

हवेली काँपने लगी, हवा में राख उड़ी।
तनिषा ने किताब बंद करने की कोशिश की,
लेकिन पन्ने खुद फड़फड़ाने लगे।

> “अब कहानी खुद लिखी जाएगी…”




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🌘 7. रूहों का संग्राम

कक्ष में न जाने कितनी रूहें उभर आईं।
कुछ किताब से, कुछ दीवारों से।
अरविंद देव हँस रहा था —
“मेरे शब्दों से कोई भाग नहीं सकता!”

तनिषा ने आँखें बंद कीं,
और किताब को अपने दिल से लगाया।

> “अगर तूने ये किताब बनाई है,
तो मैं इसे ख़त्म करूँगी…”



किताब की रोशनी तेज़ हो गई।
राहुल ने उसका हाथ पकड़ा,
“तनिषा, अगर तू ऐसा करेगी तो हम दोनों…”

“हाँ,” उसने कहा, “हम दोनों मिट जाएँगे।
पर हवेली आज़ाद होगी।”

एक तेज़ धमाका हुआ।
रोशनी हर दिशा में फैल गई।
रूहों की चीखें, दीवारों की दरारें, और फिर — सन्नाटा।


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🌕 8. सुबह की नयी शुरुआत

सूरज की पहली किरण हवेली की टूटी खिड़कियों से अंदर आई।
सब कुछ शांत था।
न दीवारें टूटीं, न धुआँ, न कोई आवाज़।

रमाकांत और गाँव वाले धीरे-धीरे अंदर आए।
उन्होंने देखा —
तख़्त पर किताब अब नहीं थी।
बस राख का एक ढेर पड़ा था,
और राख के बीच दो नाम जले हुए अक्षरों में दिखे —

> “राहुल – तनिषा”



गाँव वाले एक-दूसरे को देखने लगे।
“ई लोग हवेली के श्राप से मुक्त कर गइलन…”
किसी ने कहा और सिर झुका लिया।

हवेली अब शांत थी —
शायद सदियों के बाद सच में पहली बार।

लेकिन दूर, हवा में एक हल्की-सी फुसफुसाहट गूँजी —

> “हर किताब कभी न कभी… फिर खुलती है…”




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🔔 एपिसोड 16 समाप्त

👉 क्या वाक़ई किताब का अंत हो गया या राख के नीचे कोई नया पन्ना छिपा है?
👉 क्या राहुल और तनिषा अब भी हवेली की हवा में हैं?
👉 या “अधूरी किताब” का अगला अध्याय फिर किसी नई आत्मा को बुला रहा है?

अगला भाग – “एपिसोड 17 : राख के नीचे लिखा नाम”
जल्द ही… 🌑