Adhuri Kitaab - 14 in Hindi Horror Stories by kajal jha books and stories PDF | अधुरी खिताब - 14

Featured Books
  • Cristal Miraaj - 1

     क्रिस्टल मिराज — अध्याय एक: एरीना की दुनियासूरज की पहली हल्...

  • क्या हे प्यार

    हाय गाईस आज मी कुछ बताणे नाही आता हू बल्की आज कुछ समजणे और स...

  • तोते की गवाही

    ---शीर्षक: “तोते की गवाही”️ लेखक – विजय शर्मा एरी---भाग 1 –...

  • Intaqam-e-Aalam

    रुहानी ने आवेश में कहा, “तुम कहाँ जा रही हो? ऐसे कदम मत उठाओ...

  • बारिश वाली ब्रेकअप स्टोरी

    बारिश हमेशा रोमांटिक नहीं होती।कभी-कभी, वो सिर्फ़ याद दिलाती...

Categories
Share

अधुरी खिताब - 14


⏳ अंधेरे की दस्तक

दरवाज़े के पास खड़ा राहुल जैसे पत्थर बन गया था।
दीवारों से निकलती ठंडी हवा उसके चेहरे को छूकर फुसफुसा रही थी —
"मत जाओ… वापस लौट जाओ…"

लेकिन उसके भीतर कुछ और था — एक खींचाव, जो उसे दरवाज़े के पार खींच रहा था।
उसने काँपते हाथों से मशाल उठाई और दरवाज़े पर उकेरे शब्दों को पढ़ा –

> “जहाँ अंत लिखा है, वहीं से शुरुआत होती है।”



राहुल के होंठों से बस इतना निकला –
“तो फिर… यही शुरुआत होगी।”

उसने दरवाज़े को धक्का दिया।
कर्र… कर्र… कर्र…
भारी दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा और भीतर से काली धुंध का झोंका बाहर आया।


---

🏚️ अंदर की रूहें

दरवाज़े के पार एक विशाल कक्ष था।
बीचोंबीच एक पुराना लकड़ी का तख्त रखा था, जिस पर अधजली किताबें बिखरी थीं।
और चारों ओर दर्जनों आकृतियाँ – आधी धुएँ, आधी छायाओं से बनीं – दीवारों पर घूम रही थीं।

राहुल ने काँपते स्वर में कहा – “ये… रूहें हैं?”

एक ठंडी, खुरदुरी आवाज़ गूँजी – “हाँ… वो रूहें, जिन्हें अरविंद देव ने अधूरी किताब में कैद कर रखा है…”

राहुल ने आवाज़ की दिशा में देखा।
वहाँ एक औरत खड़ी थी — सफ़ेद साड़ी में, चेहरा अधछिपा, और आँखों में पीड़ा।

“तुम कौन हो?” राहुल ने पूछा।

उसने धीमे स्वर में कहा – “मैं अनन्या हूँ… इस हवेली की पहली रूह।
कभी मैं भी इंसान थी, इस तहख़ाने की सच्चाई जानना चाहती थी…
पर किताब ने मुझे निगल लिया।”


---

🕯️ किताब का रहस्य

अनन्या धीरे-धीरे तख़्त की ओर बढ़ी।
उसने एक जली हुई किताब उठाई और बोली – “यह वही किताब है, जिसे तुम अधूरी किताब कहते हो।
अरविंद देव ने इसे पूरा करने की कोशिश की थी —
लेकिन हर बार कोई न कोई पन्ना खुद-ब-खुद गायब हो जाता।”

राहुल ने किताब के पन्ने पलटे।
एक पन्ने पर अजीब-सी भाषा में लिखा था:

> “जो सच्चाई को जान लेता है, वो इस हवेली का हिस्सा बन जाता है।”



राहुल की आँखें फैल गईं।
“मतलब… जो सच जानता है, वो मर जाता है?”

अनन्या ने धीरे से कहा – “नहीं… मरता नहीं। बस जिंदा रहकर भी रूह बन जाता है।”


---

⚡ सन्नाटे की चीख़

अचानक पूरा कक्ष हिल उठा।
दीवारों से वही काले साए फिर निकलने लगे — पर इस बार ज़्यादा गुस्से में।
अरविंद देव की आवाज़ गूँजी –

“मैंने चेताया था, राहुल!
यह किताब तुम्हारे लिए नहीं बनी!”

राहुल ने मशाल को कसकर पकड़ा और ज़मीन पर ठोकी।
लपटें चारों ओर फैल गईं।

“मैं डरने नहीं आया, अरविंद देव!
मैं जानना चाहता हूँ, आखिर ये किताब किसका अंत लिखती है।”

अंधेरे में अरविंद का चेहरा उभरा —
आधी हड्डियाँ, आधा धुआँ, और आँखों में जलता हुआ लाल नूर।

“यह किताब… हर उस इंसान का अंत लिखती है, जो सच्चाई खोजता है!”


---

🌑 आत्मा की परीक्षा

अरविंद ने अपनी छड़ी उठाई।
तुरंत फर्श पर एक गोल चक्र बन गया, जिसमें लाल ज्वालाएँ उठने लगीं।
“अगर तुम सच चाहते हो, तो इस चक्र में कदम रखो,” वह बोला,
“लेकिन याद रखना – यहाँ तुम्हारा शरीर नहीं, तुम्हारी रूह की परीक्षा होगी।”

राहुल ने गहरी साँस ली और कदम बढ़ा दिए।

जैसे ही वह चक्र में पहुँचा, उसका शरीर जमने लगा।
उसके सामने उसके ही तीन रूप प्रकट हुए –
एक भयभीत राहुल,
एक स्वार्थी राहुल,
और एक साहसी राहुल।

तीनों आवाज़ें गूँजी – “हमें हराकर ही तुम आगे बढ़ सकोगे।”

राहुल ने काँपते हाथों से किताब उठाई।
उसने वही मंत्र दोहराया जो उसे याद था –

> “आत्मबल से बढ़कर कोई शस्त्र नहीं…”



तेज़ रोशनी फैली।
भयभीत और स्वार्थी रूप राख में बदल गए।
सिर्फ़ साहसी राहुल रह गया – और उसी क्षण चक्र की ज्वालाएँ बुझ गईं।


---

💀 अरविंद का अंत

अरविंद गरजा – “असंभव! किसी ने अब तक ये परीक्षा पूरी नहीं की!”

राहुल ने दृढ़ स्वर में कहा – “क्योंकि वे डरते थे। लेकिन मैंने अपने डर को जला दिया है।”

उसने किताब को उठाकर हवा में खोला।
किताब के पन्ने चमकने लगे, और उनमें से एक काली रूह निकली –
वही अरविंद देव की आत्मा!

राहुल चिल्लाया – “यही तुम्हारा सच है, अरविंद!
तुम खुद किताब का हिस्सा बन चुके हो!”

अरविंद की आत्मा चीख़ उठी –
“नहीं… नहीं… यह किताब मेरी है!”

लेकिन देर हो चुकी थी।
किताब की चमक बढ़ती गई और अरविंद देव उसी में समा गया।
अगले ही पल किताब ज़मीन पर गिर गई — पूरी तरह शांत।


---

🌘 अधूरी किताब – अब भी अधूरी

राहुल घुटनों के बल बैठ गया।
कक्ष की दीवारों से रूहें धीरे-धीरे गायब होने लगीं।
अनन्या मुस्कुराई –
“तुमने हमें मुक्ति दी है…”

और फिर वह भी धुएँ में बदल गई।

राहुल ने राहत की साँस ली, लेकिन तभी किताब के आख़िरी पन्ने पर नई लकीरें उभरने लगीं:

> “कहानी यहीं खत्म नहीं होती…
जिसने किताब को जगाया, अब वही इसका अगला अध्याय बनेगा।”



राहुल की आँखें चौड़ी हो गईं। किताब अचानक खुली और उसकी रोशनी ने पूरा कक्ष निगल लिया।


---

🔔 एपिसोड 14 समाप्त

👉 क्या राहुल अब खुद अधूरी किताब का हिस्सा बन चुका है?
👉 क्या हवेली सच में शांत हो गई या एक नई रूह ने जन्म लिया?
👉 और अब किसके हाथ लगेगी ये श्रापित किताब?

अगला भाग – “एपिसोड 15 : परछाइयों का पुनर्जन्म” – जल्द ही… 👁️‍🗨️


---