भाग 2 | अध्याय :5
रचना:बाबुल हक़ अंसारी
“वो आख़िरी रात”
पिछले अध्याय से…
युवराज ने धीमी लेकिन ठंडी आवाज़ में कहा—
“उस रात का सच सिर्फ़ हवेली जानती है। और अब… तुम्हें भी जानना होगा।”
युवराज ने काँपते हाथों से डायरी का एक पन्ना खोला।
उस पन्ने के किनारों पर धब्बे थे, जैसे उन पर आँसू गिरे हों या फिर खून के निशान जम गए हों।
नायरा ने पास झुककर पढ़ा।
"आज हवेली की हवाओं में कुछ अलग है।
श्रेया ने कहा कि आज वो सुरों को आख़िरी बार छुएगी।
उसकी आँखों में अजीब सा डर है… जैसे कोई हमें देख रहा हो।"
पन्ना पढ़ते ही नायरा का कलेजा धड़कने लगा।
“तो… उस रात वाक़ई कुछ हुआ था?”
युवराज की आँखें गहरी हो गईं।
“हाँ, नायरा। वो रात हवेली की सबसे ख़ौफ़नाक रात थी।
श्रेया हारमोनियम बजा रही थी, आर्यन उसके साथ था।
लेकिन तभी हवेली का दरवाज़ा ज़ोर से खुला—और कोई तीसरा उनके बीच आ गया।”
“कौन…?” नायरा की आवाज़ फटी।
युवराज ने धीमी साँस छोड़ी।
“डायरी उस नाम को साफ़ नहीं बताती। बस इतना लिखा है—
‘वो जिसे श्रेया सबसे ज़्यादा भरोसा करती थी… उसी ने धोखा दिया।’”
नायरा का दिल सिहर गया।
“मतलब… श्रेया का ग़ायब होना किसी ग़द्दारी का नतीजा था?”
कमरे में अचानक हवा तेज़ चलने लगी।
पुराने हारमोनियम की टूटी हुई चाबियाँ अपने आप बज उठीं, और सुरों से दर्द भरी धुन फूटने लगी।
नायरा ने घबराकर चारों ओर देखा।
युवराज बुदबुदाया—
“यही वो धुन है… जो हर रात गूंजती है।
ये श्रेया की आख़िरी पुकार है।”
नायरा की रूह काँप उठी।
उसने काँपते होंठों से कहा—
“तो… आगे डायरी में क्या लिखा है?”
युवराज ने अगला पन्ना खोला।
उस पर धुंधले अक्षरों में सिर्फ़ इतना लिखा था—
"अगर ये पन्ना किसी अजनबी के हाथ लगे… तो समझ लेना, श्रेया का ख़ून अभी तक हवेली की दीवारों से धुला नहीं है।"
नायरा के हाथ से लिफ़ाफ़ा छूटकर ज़मीन पर गिर गया।
हवेली की दीवारों से सिसकियों जैसी आवाज़ आने लगी—
जैसे कोई अदृश्य चेहरा रो रहा हो।
धोखे की परछाईं”
नायरा के गले में शब्द अटक गए।
उसकी नज़रें बार-बार दीवारों पर दौड़ रही थीं, जैसे हर ईंट में कोई दबा हुआ राज़ साँस ले रहा हो।
युवराज ने डायरी का अगला पन्ना खोला।
इस बार उस पर शब्द साफ़ लिखे थे—
"उसने हमें रोका नहीं… हमें बेच दिया।
और जिसकी आवाज़ को मैंने अपना हमसफ़र माना था, वही सबसे बड़ा धोखा निकला।"
नायरा ने सिहरकर पूछा—
“क्या मतलब? श्रेया को किसने बेचा?”
युवराज की आँखों में अँधेरा उतर आया।
“डायरी में सिर्फ़ एक इशारा है… ‘वो जिसकी पायल हवेली में गूँजती थी।’
आर्यन ने लिखा है कि श्रेया के सबसे क़रीबी इंसान ने ही उनके राज़ को दुनिया के सामने उघाड़ने की क़सम खाई थी।”
अचानक, कमरे में वही पायल की आवाज़ गूँजी—
इस बार और भी साफ़, जैसे कोई दरवाज़े के ठीक पीछे खड़ा हो।
नायरा ने हिम्मत जुटाकर दरवाज़ा खोला।
बाहर का गलियारा सुनसान था।
लेकिन ज़मीन पर एक पुरानी चिट्ठी रखी थी।
नायरा ने काँपते हाथों से उसे उठाया।
उस पर लिखा था—
"अगर सच्चाई तक पहुँचना है, तो हवेली के तहख़ाने में उतरना होगा।
वहीं मिलेगा तुम्हें उस शख़्स का नाम… जिसने मोहब्बत को ग़द्दारी बना दिया।"
नायरा की धड़कनें बेक़ाबू हो गईं।
“तहख़ाना…?”
युवराज ने धीमे स्वर में कहा—
“हाँ, हवेली के नीचे का तहख़ाना। लेकिन वहाँ उतरना आसान नहीं।
कहा जाता है, जो भी वहाँ गया… उसकी परछाईं वापस नहीं लौटी।”
नायरा ने ठंडी साँस ली।
“अगर सच वहीं है… तो मुझे जाना ही होगा।”
उसकी आँखों में डर नहीं, बल्कि जिद थी।
क्योंकि अब ये दास्तान सिर्फ़ आर्यन और श्रेया की नहीं रही…
इसमें उसका अपना अतीत भी कहीं गुँथा हुआ था।
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अगले अध्याय में नायरा हवेली के तहख़ाने में उतरेगी। वहाँ उसे मिलेगा धोखे की परछाईं का पहला ना
म—और हवेली की अलौकिक ताक़त उसका इम्तिहान लेगी।