*अदाकारा 29*
शर्मिला सुनील के साथ हुए झगड़े से परेशान थी।वह यहां अपनी बहन के साथ टूटे हुए रिश्ते को सुधारने आई थी।लेकिन सुनील ने उसके साथ किए दुर्व्यवहार से वह दुखी बहुत थी।सुनील ने न सिर्फ़ उसे भला बुरा कहा बल्कि जान से मारने की धमकी भी दी।
वह उन धमकियों से बिल्कुल डरने वालों मे से नहीं थी।हालाँकि उसका ह्रदय जरुर जल रहा था।इस वक़्त उसे किसी के प्यार की। किसी के स्नेह भरे सहारे की बहुत ही ज़रूरत थी।कार चलाते हुए उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे।उसने नटराज स्टूडियो के पास कार किनारे पर खड़ी कर दी।और उसने अपनी आँखों के कोनों को टिशू पेपर से पोंछा।
उसे उस वक्त अचानक बृजेश की याद आई। बृजेश ही उसे ऐसा एक आदर्श व्यक्ति लगा जो उसे सांत्वना दे सकता था।उसे सहारा भी दे सकता था।उसने फ़ोन हाथ में लिया लेकिन बृजेश को फ़ोन करने से पहले उसने कुछ पल सोचने में बिताए कि क्या होगा अगर वह अभी व्यस्त हो?क्या होगा अगर वह उससे मिलने नहीं आ सका?फिर उसने सोचा भले ही वह मिल न सके कम से कम उससे फ़ोन पर बात करने से उसका मन थोड़ा हल्का तो हो ही जाएगा।यही सोचकर उसने बृजेश को फ़ोन मिलाया।
जैसे ही शर्मिला का नाम स्क्रीन पर आया, बृजेश के पूरे शरीर मे मानो बिजली सी कौंध गई।उसे दो ही दिन पहले शर्मिला के साथ बिताई वो रंगीन मुलायम रात की याद आ गई।उसके साथ बिताया हर पल उसकी आँखों के सामने घूमने लगा।उसकी रगों में खून तेज़ी से दौड़ने लगा।उसके दिल में एक झुनझुनी सी दौड़ गई।उसने रोमांटिक लहजे में कहा
"अरे वाह! क्या बात है मैडम आपने मुझ नाचीज़ को याद दिला किया?।"
शर्मिलाने उदास स्वर में पूछा।
"तुम...तुम।बृजेश तुम कहाँ हो?"
"और कहाँ रहूंगा रानी?मैं ड्यूटी पर हूँ।"
"मुझे अभी तुमसे मिलना था।"
शर्मिला के शब्दों में दर्द झलक रहा था। लेकिन बृजेश को उसका दर्द या दुःख दिखाई नहीं दे रहा था।उसे तो अपनी आँखों के सामने बस शर्मिला का सिर्फ सेक्सी शरीर ही दिखाई दे रहा था।वह अपनी ही मस्ती मे मस्त था।
"हूं।शायद तुम्हें मेरी याद सता रही है?तो में आता हु ना साढ़े ग्यारह बजे तक।तब तक थोडा सब्र रख।मेरी जान।"
शर्मिला को इस समय एक मज़बूत साथी की ज़रूरत थी।एक दोस्त के प्यार ओर हुँफ की वात्सल्य की जरूरत।लेकिन जब उसने बृजेश के हर अल्फ़ाज़ में केवल वासना टपकती देखी तो वो करुणा और दर्दसे भरी आवाज़ मे बोली।
"तुम मर्दों की जात औरतों की भावनाओं को कभी नहीं समझ सकते।तुम्हें हमारे दर्द और तकलीफ़ से क्या लेना-देना?तुम्हें तो बस औरतों के जिस्म की चाहत है। तुम्हें... तुम्हें तो बस औरतों के जिस्म से ही लेना देना है।"
यह कहकर शर्मिलाने फ़ोन काट दिया।
शर्मिला की बातें ओर दर्दीली आवाज़ सुनकर बृजेश को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके गाल पर थप्पड़ मार दिया हो।
अब बृजेश समझ गया कि शर्मिला के शब्द निराशा और दर्द से भरे थे।उसे उसका दर्द क्यों नहीं महसूस हुआ?उसे अपनी इस घटिया हरकत पर अब शर्म आ रही थी।
उसने अगले ही पल शर्मिला को कॉल बेक किया।
शर्मिला ने फ़ोन तो उठाया लेकिन वो अब भी गुस्से में थी।
"क्या क्या हुआ फ़ोन क्यों किया?"
"मुझे माफ़ करना शर्मिला।मैं तुम्हारा दर्द समझे बिना ही बकवास करता रहा।तुम अभी कहाँ हो?"
"तुमसे मतलब?"
शर्मिला ने पलटत वार करते हुए कहा।
"मैंने माफ़ी माँगली ना शर्मिला?अब बताओ तुम कहाँ हो?"
"जहाँ भी हु।क्या तुम ड्यूटी से छुट्टी लेकर आने वाले हो?"
"अगर तुम चाहती हो तो मैं ज़रूर आऊँगा।"
"नटराज स्टूडियो के पास।"
"तुम वही रुको।मैं आधे घंटे में आता हूँ।"
यह कहकर बृजेश ने फ़ोन रख दिया और जयसूर्या से कहा।
"जयसूर्या भाई।एक ज़रूरी निजी काम से अभी मुझे जाना है।"
"कोई बात नहीं सर।आप जा सकते हैं।"
"अगर कोई ख़ास अर्जेंट ना हो तो कृपया डिस्टर्ब न करना।"
"आप चिंता न करें सर।"
यह कहकर जयसूर्या ने उसे तसल्ली दी।
बृजेश मात्र बीस मिनट में नटराज स्टूडियो पहुँच गया।बृजेश को देखते ही शर्मिला कार से उतरी और बृजेश के गल लगकर रोने लगी। बृजेश ने सहानुभूतिपूर्वक उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा
"चलो रेस्टोरेंट में बैठ कर बात करते हैं।"
दोनों हाथों में हाथ हाथ पिरोकर स्टूडियो के बगल वाले नटराज रेस्टोरेंट में दाखिल हुए।
वे एक मेज़ पर बैठे और पहले दो कप कॉफ़ी का ऑर्डर दिया।फिर बृजेश ने शर्मिला से पूछा।
"बताओ तुम्हारी आंखों में ये आशु?और ये उदासी का कारण क्या है?क्या हुआ है?"
(क्या शर्मिला बृजेश को अपनी उदासी की असली वजह बता पाएगी?अगले एपिसोड में पढ़ें)