⏳ रात का सन्नाटा – पुस्तकालय के भीतर
पुरानी पुस्तकालय की हवा और गहरी होती जा रही थी। धूल से ढकी अलमारियों में रखी किताबें मानो सदियों से किसी रहस्य की रखवाली कर रही थीं।
चारों आत्माओं को मुक्त करने के बाद भी कमरे में बेचैनी कायम थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने अभी भी उन्हें घूर रखा हो।
काव्या ने धीरे से फुसफुसाया –
“क्या तुम्हें लगता है… वो दरवाज़ा सचमुच हमें चुनेगा?”
राहुल ने अपनी मशाल की लौ ऊपर उठाई।
“अगर किताब झूठ नहीं बोल रही, तो अब हमें हवेली लौटकर तहख़ाने तक पहुँचना ही होगा।”
रीया ने काँपते हुए चारों ओर देखा।
“लेकिन, अगर सचमुच एक बार अंदर गए तो लौटना नामुमकिन हुआ…?”
राहुल ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में वही दृढ़ता थी –
“तो हम मरकर भी सच जानेंगे।”
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🏚️ हवेली की ओर वापसी
रात गहरी हो चुकी थी। आसमान पर बादल थे, चाँद बीच-बीच में झलकता और फिर अंधकार में छिप जाता।
घोड़ागाड़ी जब हवेली के बाहर आकर रुकी, तो उसकी दीवारें और भी खंडहर लग रही थीं।
जैसे ही वे गेट पार कर भीतर आए, हवेली की पुरानी घड़ी अपने आप बजने लगी – टन… टन…
बारह का समय हो चुका था।
काव्या ने घड़ी की ओर देखा –
“यह घड़ी दिन में कभी नहीं बजती… ये सिर्फ़ आधी रात को ही क्यों?”
राहुल ने धीरे से कहा –
“क्योंकि यही वो वक़्त है, जब हवेली जागती है।”
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🔦 तहख़ाने का रास्ता
चारों ने हवेली की सीढ़ियाँ उतरनी शुरू कीं। सीढ़ियाँ अंधेरे में डूबी थीं, और दीवारों से टपकते पानी की बूंदें किसी अजीब लय में गिर रही थीं।
रीया ने काँपती आवाज़ में कहा –
“मुझे लग रहा है कोई हमारे साथ चल रहा है।”
तभी अचानक पीछे से भारी सांसों की आवाज़ आई। सबने मुड़कर देखा – वहाँ कोई नहीं था।
सिर्फ़ टूटी दीवारों पर अपनी परछाईयाँ हिलती हुई दिख रही थीं।
वे आगे बढ़े। और सामने आया – एक विशाल लोहे का दरवाज़ा।
दरवाज़े पर ताले नहीं थे। सिर्फ़ उसके बीचो-बीच एक अजीब सी आकृति बनी हुई थी – आधा इंसान, आधा जानवर।
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⚔️ दरवाज़े की परीक्षा
राहुल ने दरवाज़े पर हाथ रखा। अचानक दरवाज़े की आकृति चमक उठी।
दीवार से गहरी, खुरदुरी आवाज़ आई –
“तुममें से सिर्फ़ एक को अंदर जाने की इजाज़त है। बाकी लौट जाओ… वरना मौत।”
काव्या घबरा गई –
“मतलब हम सब साथ नहीं जा सकते?”
रीया ने धीरे से कहा –
“लेकिन किताब ने कहा था, दरवाज़ा चुनेगा… यानी यह खुद तय करेगा।”
तभी दरवाज़े की आकृति से काले धुएँ का गोला निकला और तीनों के चारों ओर घूमने लगा।
कुछ ही पल बाद वह रुककर राहुल पर आकर ठहर गया।
दरवाज़ा अपने आप कराहते हुए खुलने लगा – चर्र… चर्र…
काव्या चीख पड़ी –
“राहुल! इसका मतलब… दरवाज़े ने तुम्हें चुना है।”
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🌑 अंदर का अंधकार
जैसे ही दरवाज़ा पूरी तरह खुला, भीतर से ठंडी हवा का झोंका आया। ऐसा लगा मानो सदियों से बंद कोई साँस बाहर निकली हो।
भीतर पूर्ण अंधकार था।
राहुल ने मशाल उठाई और भीतर कदम रखा।
“तुम लोग बाहर ही रहो। अगर मैं नहीं लौटा… तो समझ लेना, सच यहीं दबा है।”
रीया ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया।
“नहीं राहुल! हम तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकते।”
लेकिन दरवाज़ा अचानक खुद-ब-खुद बंद होने लगा।
काव्या ने चीखकर कहा –
“राहुल! जल्दी अंदर जाओ वरना कुचल जाओगे!”
राहुल ने खुद को दरवाज़े के भीतर धकेल दिया। और अगले ही पल दरवाज़ा तेज़ आवाज़ के साथ बंद हो गया।
रीया और काव्या बाहर रह गईं।
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🕯️ राहुल का सामना
अंदर की हवा भारी थी।
राहुल ने मशाल ऊँची की, लेकिन लौ काँप रही थी – जैसे डर गई हो।
सामने फैला हुआ था – एक लंबा गलियारा। दीवारों पर खून जैसे धब्बे और पुराने तांत्रिक चिन्ह उकेरे हुए थे।
धीरे-धीरे गलियारे के अंत में एक आकृति दिखाई दी।
वह एक बूढ़ा आदमी था – लंबे बाल, लाल आँखें और हाथ में लोहे की छड़ी।
उसकी आवाज़ गूँजी –
“आख़िरकार… मेरी हवेली में कोई आया भी तो।”
राहुल का दिल तेज़ धड़कने लगा।
“तुम कौन हो?”
बूढ़ा आदमी हँस पड़ा –
“लोग मुझे अरविंद देव कहते हैं। लेकिन असली राज़ अभी बाकी है।”
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⚰️ अरविंद देव की चुनौती
अरविंद ने अपनी छड़ी ज़मीन पर पटकी। अचानक पूरा तहख़ाना हिलने लगा।
दीवारों से दर्जनों परछाइयाँ बाहर निकल आईं।
“ये हैं मेरे बनाये प्रहरी। इनसे बच सको, तो आगे बढ़ना।”
राहुल ने डर को दबाकर मशाल आगे बढ़ाई।
परछाइयाँ उस पर टूट पड़ीं।
उसने किताब के पन्ने खोले और जोर से पढ़ा –
> “सच्चाई के नाम पर झूठ टूटेगा। और अंधकार को हराएगा सिर्फ़ आत्मबल।”
जैसे ही उसने पढ़ा, मशाल की लौ अचानक बहुत बड़ी हो गई और परछाइयाँ एक-एक कर जलने लगीं।
अरविंद की हँसी पूरे गलियारे में गूँज उठी –
“अच्छा है… तुममें दम है। लेकिन असली दरवाज़ा अभी आगे है।”
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🌙 दरवाज़े के भीतर दरवाज़ा
राहुल थका हुआ आगे बढ़ा।
गलियारे के अंत में एक और दरवाज़ा था। यह दरवाज़ा पिछले दरवाज़े से भी बड़ा और अजीब था – उस पर लिखा था –
> “यहाँ से लौटना नामुमकिन है।”
राहुल के हाथ काँप रहे थे। लेकिन उसकी आँखों में डर से ज्यादा दृढ़ता थी।
उसने धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए…
और तभी उसके पीछे अरविंद की आवाज़ आई –
“सोच लो! एक बार ये दरवाज़ा पार किया… तो तुम्हारी रूह भी कभी आज़ाद नहीं होगी।”
राहुल ठिठक गया। उसके सामने मौत और सच दोनों खड़े थे।
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🔔 एपिसोड 13 समाप्त
👉 क्या राहुल हिम्मत जुटाकर दूसरा दरवाज़ा खोलेगा?
👉 क्या सचमुच अरविंद देव की अमर आत्मा वहीं कैद है?
👉 या यह सब सिर्फ़ हवेली का एक और भ्रम है?
अधूरी किताब – अब और गहरी, अब और डरावनी…