*अदाकारा 25*
सुनीलने जैसे ही उर्मिला के गाउन की चेन खींची और तभी......
बेडरूम के दरवाज़े पर दस्तक हुई
"अभी कौन हो सकता है?"
सुनील हैरान रह गया।
उस दस्तक के जवाब में,वह अभी भी सोच में था कि क्या करे या क्या न करे,तभी दरवाज़े पर फिर से दस्तक हुई और उसके साथ एक आवाज़ आई।
"सुनील,दरवाज़ा खोलो।"
सुनील यह आवाज़ सुनकर झट से उर्मिला के शरीर से उठ खड़ा हुआ।और काँपती हुवी आवाज़ में पूछा।
"क.क.कौन?"
कौन?क्या मैं उर्मि हूँ।दरवाज़ा खोलो।"
सुनील ने चौंककर बिस्तर पर लेटी उर्मिला को देखा।
तो वह बोली।
"लगता है वो शर्मी है।उसे मज़ाक करने की आदत है।वो अभी अपने आप चली जाएगी। तुम हमारी सुहागरात पर ध्यान दो।"
बाहर से फिर आवाज़ आई।
"सुनील क्या कर रहा है?सो गया क्या?जल्दी से दरवाज़ा खोलो।"
और अब सुनील को लगा कि जरूर दाल में कुछ काला है।वह जंप मारकर बिस्तर से नीचे कूद गया।उसने जल्दी से अपनी पैंट और कमीज़ पहन ली।उर्मिला ने उसे फिर रोकने की कोशिश की।
"सुनील क्या कर रहा है?रुको तो अभी वह चली जाएगी।"
सुनील ने उर्मिला की आँखों में देखा और फिर दाँत पीसते हुए बोला।
"ये क्या नाटक है?एक बार उससे निपट तो लेने दो।"
सुनील दरवाज़े की ओर गया।उर्मिला भी उसके पीछे-पीछे गई।जैसे ही सुनील ने दरवाज़ा खोला तो वह चौंक कर दो कदम पीछे हट गया।उसके मुँह से एक हैरानी से चीख़ निकल गई।
"ओ माय गॉड!"
उर्मिला उसी दुल्हन के लिबास में दरवाज़े पर खड़ी थी जो उर्मिला ने शादी और रिसेप्शन में पहना हुआ था।तो ये कौन है?शर्मिला?उसने शर्मिला को गुस्से से घूरा।
लेकिन शर्मिला चुपचाप वहाँ से खिसक ने लगी मानो कुछ हुआ ही न हो।लेकिन सुनील ने गुस्से से शर्मिला का हाथ पकड़ लिया और क्रोध से कंपकपाते हुए चिल्लाया।
"बेशर्म!तुम्हें ज़रा भी शर्म नहीं है?।"
जवाब में शर्मिला ने ऐसे कंधे उचका दिए जैसे कुछ हुआ ही न हो।
"इसमें शर्म की क्या बात है?मैं तो बस ये देख रही थी कि तुम मुझमें और उर्मि में फ़र्क़ कर पा रहे हो या नहीं।"
शर्मिला का बेबाक जवाब सुनकर उर्मिला भी समझ गई कि शर्मिला अपनी सुहागरात के लिए सजे सजाए मुलायम बिस्तर तक पहुँच चुकी है।अब तक उसने शर्मिला की हर जोहुक्मी को बर्दाश्त किया था।वो हमेशा शर्मिला की हर जिद्द के आगे झुक गई थी। लेकिन आज उसे लगा कि शर्मिला ने हद कर दी है।
उसने शर्मिला के गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ दे मारा।
"तुम... तुम... तुम बहन के नाम पर कलंक हो।दूर जाओ मेरी नज़रों के सामने से आज से मैं तुमसे सारे रिश्ते तोड़ रही हूँ।आज के बाद मैं तुम्हारा चेहरा भी नहीं देखूँगी।चलो सुनील यहां से।"
यह कहकर सुनील का हाथ खींच कर वो उसी वक्त घर से बाहर निकल गई ...........
.........
"चलो रिक्शे में ही बैठे रहना है या उतरना भी है?"
बीमानगर पहुँचकर सुनील रिक्शे से उतर गया, लेकिन उर्मिला अभी भी अपने अतीत में खोई हुई थी।इसलिए सुनील को उसे संबोधित करना पड़ा।
"ओह!सॉरी।"
यह कहकर उर्मिला रिक्शे से उतर गई।
सुनील और उर्मिला दोनों चुपचाप घर में दाखिल हुए।
उसी रात शर्मिला से ज़गड़े के बाद,सुनील और उर्मिला उस छोटे से कमरे में चले गए जो मरोल मे उनके लिए ले रखा था। यहाँ मुनमुन और उत्तम ने भी शर्मिला को उसकी हरकतों के लिए खूब डाँटा लेकिन शर्मिला तो यही कहती रही कि उसकी अपनी कोई गलती नहीं है और वह बस अपने जीजा का मज़ाक उड़ा रही थी।
इस घटना के एक साल बाद,उत्तम और मुनमुन कंचनजंगा एक्सप्रेस से कलकत्ता जा रहे थे,तभी रंगपानी स्टेशन के पास उनकी ट्रेन एक मालगाड़ी से टकरा गई और दोनों की उस हादसे में मौत हो गई।उस समय,दोनों बहनें अपने माता पिता के अंतिम संस्कार के लिए एक-दूसरे से मिलीं थी लेकिन चुपचाप।और उसके बाद,दोनों बहनें उत्तम और मुनमुन की संपत्ति के बंटवारे के लिए मिलीं थी।
उस संपत्ति से मिले पैसों से उर्मिला ने बीमानगर में दो बेडरूम का फ्लैट और शर्मिला ने पिकनिक पॉइंट वर्सोवा में दो बेडरूम का फ्लैट खरीदा।लेकिन उसके बाद दोनों बहनें कभी नहीं मिलीं।ओर ना उन्होंने कभी बात भी की।
आज तीन साल बाद अपने जन्मदिन पर, शर्मिला ने चुप्पी तोड़कर बात करने की पहल की।
(क्या दोनों बहनें पहले की तरह सामान्य रूप से एक-दूसरे से मिलेंगी? क्या दोनों बहनों मे सब कुछ ठीक हो जायेगा?पढ़ते रहिए।)