🌫️ एपिसोड 11 : "दिलों की पुकार और परछाइयों का रहस्य"
(अधूरी किताब – भुतिया कहानी)
⏳ सुबह की नई दस्तक
सवेरे की हल्की किरणें हवेली की खिड़कियों से भीतर झाँक रही थीं। रातभर तहखाने की लड़ाई और अरविंद देव की परछाई को हराने के बाद भी किसी की आँखों में नींद नहीं थी। हवा में अब भी अजीब सी ठंडक और बेचैनी थी।
काव्या ने खिड़की से बाहर देखा। आसमान पर हल्का कुहासा छाया था।
“मुझे लगता है हवेली अभी भी हमें देख रही है,” उसने धीमे स्वर में कहा।
रीया ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में थकान थी, लेकिन दिल में अटूट दृढ़ता।
“हाँ… अंधेरा खत्म नहीं हुआ है। अरविंद देव की परछाई नष्ट हुई, लेकिन उसकी जड़ें अभी भी इस हवेली में कहीं छिपी हैं।”
राहुल ने अपना बैग खोला और उसमें से वही पुरानी डायरी निकाली। पन्ने पीले हो चुके थे, लेकिन उनमें एक रहस्यमय खिंचाव था।
“देखो,” उसने कहा, “यह किताब अधूरी है। कल रात के मंत्र से हमने साया हराया, लेकिन किताब में और भी संकेत हैं।”
उसने किताब पलटी। अगले पन्ने पर स्याही से धुंधले शब्द लिखे थे –
> “जब आत्माओं की चीख सुनाई दे, तो समझो अगला द्वार खुल चुका है। वह द्वार हवेली के पूर्वी कक्ष में है।”
काव्या ने गहरी सांस ली।
“मतलब अब हमें हवेली के पूर्वी हिस्से में जाना होगा।”
रीया ने काँपती आवाज़ में कहा –
“पर वहाँ… बहुत दिनों से कोई नहीं गया। गाँव वाले कहते हैं, उस हिस्से में रात को चीखें गूँजती हैं।”
राहुल ने किताब बंद कर दी और गंभीर स्वर में बोला –
“यही तो हमें जानना है। अगर यह किताब हमें रास्ता दिखा रही है, तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए।”
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🚪 पूर्वी कक्ष की ओर कदम
तीनों भारी मन से हवेली के पूर्वी हिस्से की ओर बढ़े। गलियारे लंबे और सुनसान थे। जाले हर ओर फैले हुए थे, और दीवारों से पुराने चित्र टंगे थे जिनकी आँखें मानो उनका पीछा कर रही हों।
जैसे ही वे एक मोड़ पर पहुँचे, अचानक ठंडी हवा का झोंका आया। एक पुराना झूमर खुद-ब-खुद हिलने लगा।
काव्या ने डर से फुसफुसाया –
“तुम्हें… किसी की आवाज़ सुनाई दे रही है?”
रीया ने कान लगाया।
धीरे-धीरे एक दर्द भरी चीख गूँजने लगी।
“बचाओ… कोई है… मुझे यहाँ से निकालो…”
राहुल ने मशाल जलाकर आगे कदम बढ़ाया।
“यह आवाज़ इसी तरफ से आ रही है। सावधान रहना।”
तीनों उस दिशा में बढ़े और सामने एक बड़ा लकड़ी का दरवाज़ा दिखा। दरवाज़ा टूटा-फूटा था, लेकिन उस पर लाल निशान बने थे।
दरवाज़े पर लिखा था –
> “जो यहाँ प्रवेश करेगा, उसकी आत्मा कभी लौटकर नहीं आएगी।”
काव्या ने डर से पीछे हटना चाहा।
“नहीं… हम अंदर नहीं जा सकते।”
रीया ने उसका हाथ थामा।
“काव्या… अगर हम पीछे हटे, तो कभी सच्चाई तक नहीं पहुँच पाएंगे।”
राहुल ने दोनों को देखा और गंभीर आवाज़ में कहा –
“यह हमारी परीक्षा है। चलो।”
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🕯️ भूतिया कक्ष का रहस्य
दरवाज़ा खुलते ही अंदर घुप्प अंधेरा था। धूल और सड़ांध की गंध से सांस लेना मुश्किल हो रहा था।
कमरे के बीचों-बीच एक पुरानी झूली हुई कुर्सी रखी थी। उस पर किसी बूढ़ी औरत की धुंधली परछाई बैठी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे और आँखें खोखली।
जैसे ही वे अंदर गए, परछाई ने धीरे से सिर उठाया और कराहती आवाज़ में बोली –
“आख़िर तुम लोग आ ही गए…”
रीया काँप गई।
“त… तुम कौन हो?”
परछाई धीरे-धीरे उठी। उसके हाथ हड्डियों जैसे पतले और नीले थे।
“मैं… सावित्री देवी हूँ। इस हवेली की असली मालकिन।”
काव्या ने चौंककर कहा –
“क्या? लेकिन लोग कहते हैं कि सावित्री देवी सालों पहले मर चुकी हैं।”
परछाई ने दर्द भरी हँसी हँसी –
“हाँ… मैं मर चुकी हूँ। पर मेरी आत्मा इस हवेली की दीवारों में बंधी है। अरविंद देव ने मुझे धोखा दिया था। उसने मेरे खून से अपनी काली शक्ति को अमर बनाने की कोशिश की थी। और तब से मैं… इस हवेली में कैद हूँ।”
राहुल ने किताब खोली और पन्ना मिलाया। सचमुच, उसमें एक जगह लिखा था –
> “सावित्री की आत्मा ही वह चाबी है, जिससे हवेली का अगला रहस्य खुलता है।”
रीया ने सावित्री की ओर देखा।
“तो… हमें क्या करना होगा?”
सावित्री की आँखों से काली धुंध निकलने लगी।
“मुझे मुक्ति दिलाओ। लेकिन याद रखना… मेरी मुक्ति आसान नहीं होगी। पहले तुम्हें मेरे दर्द को समझना होगा।”
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🌑 दर्द की परछाई
अचानक कमरे की दीवारें बदलने लगीं। सब कुछ घूमता हुआ सा लगा। वे तीनों जैसे किसी और समय में पहुँच गए।
उन्होंने देखा – सावित्री देवी ज़िंदा थीं। वह हवेली में पूजा कर रही थीं। तभी अरविंद देव अंदर आया। उसकी आँखों में लाल चमक थी।
“सावित्री, तुम्हारा खून ही मेरी शक्ति को अमर करेगा।”
सावित्री चीख उठीं –
“नहीं अरविंद! तुम पागल हो गए हो।”
पर उसने निर्दयता से सावित्री को घायल कर दिया। उनकी चीखें हवेली में गूँज उठीं। खून से उसने दीवारों पर काले मंत्र लिखे और सावित्री की आत्मा को कैद कर दिया।
रीया की आँखें भर आईं।
“हे भगवान… कितना दर्द सहा है इन्होंने।”
सावित्री की आत्मा फिर उनके सामने आई।
“अब तुमने सब देख लिया। अगर मुझे मुक्ति देनी है, तो मेरी राख हवेली के उत्तर कोने में रखे हुए कलश में डालो। वही कलश मेरी कैद की जंजीर है।”
राहुल ने दृढ़ स्वर में कहा –
“हम यह करेंगे।”
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🔥 खौफनाक हमला
तीनों कलश की तलाश में उत्तर कोने की ओर बढ़े। जैसे ही वे उस हिस्से में पहुँचे, दीवारों से काले धुएँ के साये निकलने लगे। वे भयानक आकार लेकर उनका रास्ता रोकने लगे।
काव्या चीख पड़ी –
“ये… ये हमें रोकना चाहते हैं!”
रीया ने मंत्र पढ़ना शुरू किया –
“ॐ प्रकाशाय नमः… ॐ सत्याय नमः…”
मंत्र की गूँज से साये पीछे हटने लगे।
राहुल ने मशाल उठाकर आगे रास्ता साफ़ किया। अंततः उन्हें एक बंद अलमारी मिली। उसे खोलने पर अंदर एक मिट्टी का पुराना कलश रखा था।
जैसे ही उन्होंने कलश उठाया, पूरा कमरा हिलने लगा। दीवारों से आवाज़ आई –
“नहीं! सावित्री की आत्मा कभी मुक्त नहीं होगी!”
काले साये उन पर टूट पड़े। मशाल की लौ कांपने लगी।
रीया ने ज़ोर से कहा –
“राहुल! जल्दी करो, राख बाहर ले चलो।”
काव्या ने दोनों को ढँकते हुए बहादुरी से मशाल घुमाई। उसके दिल की धड़कन तेज़ थी, लेकिन उसकी आँखों में साहस था।
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🌠 आत्मा की मुक्ति
आख़िरकार, वे हवेली के आँगन में पहुँचे। सूरज की रोशनी हल्की-हल्की अंदर आ रही थी।
राहुल ने सावधानी से कलश खोला और राख ज़मीन पर फैलाई।
रीया और काव्या ने मिलकर किताब से मंत्र पढ़ा।
“सत्य की शक्ति… प्रकाश की ज्योति… आत्मा को मुक्ति दो।”
अचानक हवा तेज़ चलने लगी। राख चमक उठी और आकाश की ओर उठने लगी। सावित्री देवी की आत्मा उनके सामने प्रकट हुई। इस बार उसका चेहरा शांत था।
“धन्यवाद… तुमने मुझे वह दिया, जिसकी प्रतीक्षा मैं सदियों से कर रही थी। अब मैं शांति से जा सकती हूँ।”
उसकी आत्मा रोशनी में बदलकर आसमान में विलीन हो गई।
तीनों ने राहत की सांस ली।
रीया की आँखों से आँसू बह रहे थे।
“हमने एक और आत्मा को मुक्ति दी।”
काव्या ने हल्की मुस्कान दी।
“लेकिन हवेली का अंधेरा… अब भी बाकी है।”
राहुल ने किताब के अगले पन्ने खोले। उसमें एक नया संकेत लिखा था –
> “जब दिलों की पुकार सुनी जाएगी, तभी हवेली का सबसे बड़ा रहस्य खुलेगा।”
तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। सन्नाटा छा गया।
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🔔 अगला अध्याय जल्द ही…
👉 दिलों की पुकार किसकी है?
👉 क्या हवेली अब अपने सबसे गहरे राज़ की ओर उन्हें ले जाएगी?
👉 या यह पुकार… किसी नए भूत की चाल है?
🌫️ अधूरी किताब – हर कदम पर और भी डरावनी, और रहस्यमयी…