भाग 8: दरार
गाँव पहुँचते ही कार के ब्रेक की तीखी आवाज़ गूंज उठी। इंजन की घर्र-घर्र और टायर्स के रगड़ की गूँज ने सन्नाटे को चीर दिया। उस शांत और नींद में डूबे गाँव में जैसे किसी ने बम गिरा दिया हो। घरों के दरवाज़े एक-एक कर खुलने लगे, खिड़कियों से चेहरों ने झाँकना शुरू किया और कुछ ही पलों में दर्जनों लोग रास्ते पर जमा हो गए।
रिया, जो अब तक खुद को जैसे मुश्किल से संभाले हुए थी, गाड़ी से उतरते ही राहुल पर बरस पड़ी। उसकी आँखों में गुस्से और दुख का सैलाब उमड़ रहा था।
"तुमने अपनी जान बचा ली, लेकिन आयुष को छोड़ दिया!" — उसकी आवाज़ कांप रही थी, लेकिन हर शब्द नुकीला था।
राहुल सकपका गया। "रिया, समझने की कोशिश करो..."
"मुझे कुछ नहीं समझना!" रिया चीखी, उसकी आवाज़ भीगी हुई थी। "मैं जा रही हूँ उसे बचाने। मुझे फर्क नहीं पड़ता कि वहाँ कौन है, क्या है। मेरा भाई... मेरा भाई उस दैत्य के पास है!"
गाँव के लोग स्तब्ध खड़े थे। कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था, लेकिन सबका ध्यान उस लड़की की चीखती आवाज़ और उसके आंसुओं से भीगे चेहरे पर था।
राहुल भी गाड़ी से बाहर निकला, उसके चेहरे पर थकान, पश्चाताप और विवशता साफ झलक रही थी। वह रिया के पास आया, उसका हाथ थाम लिया।
"रिया, प्लीज़... तुम वापस नहीं जाओगी, वहाँ बहुत खतरा है। हम सब अभी बचे हैं, किसी तरह... मगर फिर से वहाँ जाना मौत को बुलावा देना है।"
रिया ने गुस्से से राहुल का हाथ झटक दिया। उसकी आंखें जल रही थीं।
"हाथ छोड़ो, राहुल! तुमने मुझे इसलिए बचाया क्योंकि... क्योंकि तुम हमेशा से मुझे इम्प्रेस करने की कोशिश करते आए हो! तुम मुझे पाना चाहते हो, इसलिए मेरी जान की परवाह थी — आयुष की नहीं!" उसकी आवाज़ भरा आई, "अगर सच में आयुष की चिंता होती, अगर तुमने ज़रा भी कोशिश की होती, तब शायद मैं तुमसे इम्प्रेस हो भी जाती... मगर नहीं। तुमने उसे छोड़ दिया।"
राहुल अब चुप नहीं रह सका। उसकी आंखें भीग गईं, मगर आवाज़ सख्त थी।
"रिया, क्या तुम इतनी खुदगर्ज हो कि मेरी हर भावना को इस तरह सस्ता समझ रही हो? हाँ, मुझे तुमसे प्यार है... मैंने कभी छिपाया नहीं। लेकिन तुम्हारी ज़िंदगी बचाने का मतलब यह नहीं कि मैंने आयुष को छोड़ दिया! अगर उस वक्त हम वहाँ रुकते तो हम सब मारे जाते। तुम्हारी माँ... सुनीता आंटी... वो गाड़ी में बेहोश पड़ी थीं, उनका क्या?"
उसने रुककर गहरी सांस ली, "मैं इतना भी नहीं गिरा हूँ, रिया, कि तुम्हें पाने के लिए तुम्हारे भाई को मरने दूं।"
भीड़ अब पूरी तरह उनके चारों तरफ जमा हो चुकी थी। फुसफुसाहटें होने लगी थीं। तभी एक अधेड़ उम्र का ग्रामीण, धोती-कुर्ता पहने, लंबी मूंछों वाला, भीड़ से निकलकर सामने आया और बोला —
"क्या हुआ है भाईसाब? और आप लोग हैं कौन? गाँव में इस तरह तमाशा क्यों कर रहे हो?"
राहुल ने उस व्यक्ति की ओर देखा, फिर हाथ से रिया की ओर इशारा करते हुए बोला, "ये हैं रिया, इस गाँव के पूर्व मुखिया की पोती।"
आदमी चौंका। कुछ सोचकर बोला, "अरे! वो शहर वाली बिटिया? मुखियाजी की नातिन?"
राहुल ने सिर हिलाया, "हाँ।"
"फिर क्या हुआ इसके साथ?" — उस आदमी ने गंभीरता से पूछा।
राहुल ने थोड़ी देर चुप रहकर धीरे-धीरे बताया, "हम रामपुर की ओर ही आ रहे थे... रास्ते में हमारी गाड़ी खराब हो गई... और तभी... उसने हम पर हमला किया। ब्रम्हदैत्य ने। उसने... आयुष को उठा लिया।"
ब्रम्हदैत्य का नाम सुनते ही भीड़ में सनसनी फैल गई। लोग एक-दूसरे की ओर देखने लगे, कुछ पीछे हटने लगे। हवा जैसे भारी हो गई।
"ब- ब्रम्हदैत्य?" — कई लोगों के मुंह से निकला।
फिर एक बूढ़ा चिल्लाया, "भागो! इन्हें यहाँ नहीं रुकना चाहिए। वो पीछे आ गया तो हम सबकी शामत आ जाएगी।"
"हां! हां! इन्हें यहाँ मत रोको, ये अपनी मुसीबत अपने साथ लाए हैं!" — कुछ और लोग चिल्लाए।
भीड़ की आवाज़ बढ़ने लगी। रिया और राहुल एक-दूसरे की ओर घबराकर देखने लगे।
तभी वही अधेड़ आदमी जोर से बोला, "बस करो सब लोग! चुप रहो! वो लड़की हमारे मुखियाजी की पोती है, और उसका भाई उस दैत्य के हाथ लग गया है! शर्म करो — तुम डरकर एक बच्ची को गाँव से भगा रहे हो?"
भीड़ में खामोशी छा गई।
उसी वक्त पीछे से भारी कदमों की धीमी आवाज़ आई। रिया ने पलटकर देखा — सामने ताऊजी खड़े थे, गांव के मुखिया, एक बूढ़ा लेकिन रौबदार चेहरा। उन्हें देखते ही रिया फूट पड़ी। वह दौड़ती हुई उनके पास गई, उनके गले से लग गई और बच्चों की तरह रोने लगी।
ताऊजी का सीना भीग गया। बरसों बाद अपनी पोती को यूं रोते देखा तो आंखें नम हो गईं।
"क्या हुआ बेटा? क्यों रो रही हो?" — उन्होंने कांपती आवाज़ में पूछा।
रिया बमुश्किल बोली, "उसने... आयुष को ले गया..."
"किसने बेटा?" — ताऊजी का चेहरा ज़र्द पड़ गया।
"ब्रम्हदैत्य ने।"
ताऊजी का चेहरा पीला पड़ गया। उनके माथे पर पसीना छलक आया। शब्द उनके गले में अटक गए।
तभी गाँव के ही शंकर नामक व्यक्ति सामने आया, "ताऊजी, दिन के उजाले में उसकी ताकत कम होती है। वो ब्रम्हदैत्य जंगलों में ही रहता है। कल सुबह होते ही हम सब मिलकर आपके पोते को ढूंढने निकलेंगे।"
"हाँ! हम भी चलेंगे!" — कई लोगों ने साथ दिया।
उसी क्षण, सुनीता को होश आ गया। वह गाड़ी से लड़खड़ाते हुए बाहर निकली, उसकी देह पर चोटों के निशान थे। उसने इधर-उधर देखा, तो पाया कि वह गाँव में है — लेकिन आयुष कहीं नहीं था।
"रिया! आयुष कहां है?" — उसकी आवाज़ कंप रही थी।
रिया की आंखें फिर भर आईं। वह कुछ बोल नहीं सकी।
सुनीता लड़खड़ा गई। "नहीं... वो... वो कहाँ है... मेरा बच्चा कहाँ है?" — उसने रिया के कंधे पकड़े।
राहुल आगे आया और बोला, "आंटी... हम सब सुबह होते ही उसे ढूंढने निकलेंगे। वादा है, हम उसे वापस लाएंगे।"
तभी शंकर ने पास आकर कहा, "इन्हें वैद्य जी के पास ले चलो। ये बहुत घायल हैं। पास ही मेरा घर है।"
राहुल ने सहारा देकर सुनीता को उठाया और शंकर के पीछे चलने लगा। तभी ताऊजी, जिन्होंने अब तक सुनीता की ओर देखा तक नहीं था, मुंह फेरकर दूसरी ओर देखने लगे।
भीड़ में से किसी औरत की फुसफुसाहट सुनाई दी, "देखा... कैसा ससुर है? बहू की ये हालत है और पूछ तक नहीं रहा..."
***जारी........