भाग 9: पर्दे
सुनीता को वैद्य के पास लाया गया। राहुल पास ही खड़ा था। वैद्य ने जड़ी-बूटियाँ लीं और सुनीता के जख्मों पर लगाने लगा। उधर ताऊजी रिया को हवेली ले गए।
हवेली में पहला कदम रखते ही रिया की बचपन की यादें ताज़ा हो गईं—कैसे वह अपने पिताजी रोहित के साथ खेला करती थी, दादाजी यानी ताऊजी हर शाम उसे गाँव में घुमाने ले जाते थे, चॉकलेट्स दिलाते थे।
वो जैसे ही अंदर आई, उसने देखा कि एक बूढ़ी औरत, उसकी ओर पीठ किए खड़ी है, और किसी चीज़ में मग्न है। जैसे ही उस औरत ने पलटकर देखा, रिया समझ गई—वो उसकी दादी हैं। रिया की आंखों में आँसू झलक आए। वह दौड़ती हुई उनके गले लग गई।
दादी ने आश्चर्य और ममता से उसे गले लगाते हुए कहा,
"कैसे आना हुआ, बेटा? बड़े दिनों बाद दिखी तू। जब गुड़िया-सी लगती थी, तब देखा था तुझे बचपन में। और छोटू आयुष और माँ किधर हैं?"
रिया के चेहरे का तेज एक पल में उतर गया। वह कुछ बोल नहीं पा रही थी।
तभी पीछे से ताऊजी ने दर्द भरे स्वर में कहा,
"आयुष को वो दैत्य ले गया…"
यह सुनते ही दादी के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं।
"क्या?"
रिया ने धीरे से कहा, "हाँ दादी… और मम्मी… बहुत ज़ख्मी हैं। वो वैद्य के पास गई हैं… मेरे दोस्त के साथ।"
दादी ने सिर पकड़ लिया।
"हाय राम! ये दैत्य मेरे परिवार का पीछा क्यों नहीं छोड़ रहा? पहले मेरे बेटे को मुझसे छीन लिया… अब इन बच्चों के पीछे पड़ा है…"
रिया जैसे ही ये सुना कि "मेरे बेटे को छीन लिया," वह चौंक गई।
"डैडी को… इस ब्रह्मदैत्य ने मारा था?"
तभी ताऊजी का ग़ुस्सा फूट पड़ा।
"हाँ, उसी ब्रह्मदैत्य ने मेरे बेटे की जान ली! ना वो लड़की उसे शहर ले जाती… ना वो दैत्य उसके पीछे पड़ता…"
"कौन लड़की?" — रिया ने पूछा।
ताऊजी बोले,
"तुम्हारी माँ! शादी के बाद रोहित को यहाँ रुकने ही नहीं दिया। मुझे पता था कि बुरी शक्तियों का असर हमारे परिवार पर कई सदियों से रहा है। मगर ना उस लड़की ने मेरी बात मानी… और रोहित भी उसके बहकावे में उसके साथ दिल्ली चला गया।"
रिया को अब समझ आने लगा कि ताऊजी मम्मी से हमेशा नाराज़ क्यों रहते हैं, और क्यों दोनों की नहीं बनती।
रिया ने धीरे से पूछा,
"मगर… आख़िर डैडी के साथ हुआ क्या?"
दादाजी कुछ कहने ही वाले थे कि दादी ने बीच में बात काट दी।
"बेटा, तूने कुछ खाया नहीं होगा न? मैंने खीर बनाई है… खाएगी?"
रिया ने धीरे से ‘हाँ’ में सिर हिलाया।
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इधर वैद्य के पास…
रिया की माँ सुनीता ज़ख्मी हालत में खाट पर लेटी हुई थी। वैद्य उसे दवाई लगा रहा था। सुनीता ने पास खड़े राहुल की तरफ देखा और काँपती आवाज़ में कहा,
"बेटा, कुछ भी करके आयुष को ढूंढ के लाना। मैं पहले ही अपने पति को खो चुकी हूँ। अब मेरे बेटे की जान भी दाँव पर लगी है… उसे किसी भी हालत में बचाना होगा बेटा…"
राहुल ने उसकी ओर झुकते हुए दिलासा दिया,
"आंटी, इतना टेंशन मत लो। कल पूरा गाँव आयुष को ढूंढने निकलेगा… मैं भी जाऊँगा उनके साथ।"
सुनीता ने थोड़ी राहत की साँस ली, मगर उसकी आँखें अब भी नम थीं—दिल अब भी वहीं अटका था।
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इधर — अजय का घर
अजय के पिताजी रामकिशन घर आए। अजय उस वक़्त खाट पर लेटा हुआ, ताऊजी की दी हुई किताब पढ़ रहा था। उसने किताब एक ओर रखी और पिताजी की ओर देखकर कहा,
"क्या बात है बाबूजी? आज बड़े थके हुए लग रहे हो।"
"हाँ अज्जू… आज बहुत काम था सेठ जी के यहाँ।" — रामकिशन ने थकान के साथ कहा।
फिर बोले, "क्या बताऊँ तुम्हें… आज घर आते हुए क्या हुआ…"
तभी अजय की माँ आ गईं।
"अजी, बता भी दो क्या हुआ? काहे नहीं बता रहे?"
रामकिशन ने कहा,
"ताऊजी की बहू… जानती हो न? जिसके बारे में मैंने बताया था—जो ताऊजी के बेटे के साथ हमेशा के लिए शहर चली गई थी—वो आज वापस आई है!"
अजय की मां बोली,
"तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है? आई होगी अपनी सास और ससुर से मिलने।"
रामकिशन ने कहा,
"अरे भाग्यवान… वो बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात ये है कि आज जब वो गाँव आ रहे थे, तब उन पर इस दैत्य ने हमला किया!"
अजय बीच में बोला,
"वो ब्रह्मदैत्य?"
"हाँ वही!" — रामकिशन बोले —
"उसने उनके एक बच्चे को अगवा कर लिया। पता नहीं ज़िंदा भी है या नहीं… बेचारा। ताऊजी की बहू भी बेचारी बहुत ज़ख्मी थी, और वो लड़की… वो भी बहुत दुखी थी।"
अजय ने पास रखी किताब उठाई और रामकिशन के पास आया।
"ये देखो बाबूजी, ये किताब ताऊजी ने मुझे दी थी। वो उनके पुराने राजवाड़े में संदूक में मिली थी। उन्हें पढ़ना नहीं आता, इसलिए कहा कि मैं पढ़ूँ और बताऊँ इसमें क्या है। ये किताब उनके बेटे रोहित ने ही लिखी थी। इसमें साफ लिखा है कि पुराने ज़माने से ही उनके परिवार पर ब्रह्मदैत्य नामक एक प्राचीन दैत्य का साया है।"
"मैंने तो अभी पढ़ना शुरू ही किया है… न जाने क्या-क्या लिखा होगा आगे…"
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उधर राहुल…
रिया की वो बातें राहुल को अंदर ही अंदर खाए जा रही थीं। उसकी सोच में एक ही बात चल रही थी —
"मैंने तो सबकी भलाई के लिए गाड़ी नहीं रोकी… अगर रुकते तो शायद हम सब भी फँस जाते… और आयुष को भी नहीं बचा पाते…"
सोचते-सोचते कब उसकी आँख लग गई, उसे पता ही नहीं चला।
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…सुबह…
सुबह की पहली कोमल किरण खिड़की से होकर राहुल के चेहरे पर पड़ी। उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि सुनीता वैद्य के घर से जा चुकी हैं। राहुल उठकर हवेली की ओर बढ़ा।
तभी दूर से उसने कुछ शोर सुना…
हवेली के सामने बहुत सारे लोग इकट्ठा थे। सबके हाथ में हथियार थे — किसी के हाथ में डंडा, किसी के पास कुल्हाड़ी, तो कोई लोहे की रॉड लिए खड़ा था। वे सब ताऊजी के सामने खड़े थे और कह रहे थे —
"आप चिंता मत कीजिए ताऊजी… हम सब मिलकर ढूंढ लाएँगे आपके पोते आयुष को।
आख़िर वो इसी बड़े जंगल में कहीं न कहीं ज़रूर मिलेगा!"
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•••जारी•••