the searching eyes in Hindi Love Stories by Ritik Sandilya books and stories PDF | ढूंढती नजरें

Featured Books
  • LOVE UNLOCKED - 9

    Love Unlocked :9Pritha :পরিবর্তন! শব্দটা পাঁচ অক্ষরের হলেও জ...

  • ঝরাপাতা - 16

    ঝরাপাতাপর্ব - ১৬দোকানে অনেকক্ষণ শাড়ি নিয়ে নাড়াচাড়া করে শ...

  • তুমি পারবে - 3

    অধ্যায় - ৩                          ব্যর্থতা মানেই শেষ নয়শ...

  • অচেনা আলো - 1

    পর্ব – ১ : প্রথম দেখাকলেজে নতুন সেমিস্টারের প্রথম দিন। চারপা...

  • Mission Indiana - 4

    পর্ব - 4********Invitation***********গাড়ির ভগ্নস্তূপটা পড়ে আ...

Categories
Share

ढूंढती नजरें

कुछ कहानियाँ अधूरी ही अच्छी लगती हैं।

दो ऐसे प्रेमी, जो एक-दूसरे के न हो सके, जीवन भर एक-दूसरे का इंतज़ार करते रहे। ऐसा इंतज़ार कि राह ताकते-ताकते आँखों के आँसू तक सूख गए।

सावन महीने में आयोजित मधुकर महोत्सव के कारण बरसाना सज रहा था। लोगों में हर्ष-उल्लास था, महोत्सव में जाने की उत्तेजना साफ दिखाई दे रही थी। गाँव के सभी लोग सजने-संवरने में व्यस्त थे। बच्चों और युवाओं में विशेष उत्साह था। लोगों के चेहरों पर खुशी झलक रही थी।

वहीं, गाँव की नंदनी अपनी सहेलियों के साथ महोत्सव में जाने के लिए तैयार बैठी थी। किशोर अवस्था के प्रारंभ होने के बाद उसका मन अब खिलौनों से हटकर प्रेम-भाव में अधिक रुचि लेने लगा था। वह स्वभाव से थोड़ी शर्मीली थी, इसी कारण उसकी सहेलियाँ अक्सर उसे चिढ़ाती रहती थीं।

परंतु आज नंदनी के मन का भाव कुछ और ही था। वह मन ही मन सोच रही थी कि आज वह ऐसा पुरुष खोजेगी जो उसके मन के अनुकूल हो।

नंदनी की सहेलियाँ उसे बुलाने उसके घर पहुँचीं और उसे अपने साथ लेकर महोत्सव की ओर चल पड़ीं।

सभी लड़कियाँ आपस में पूछ रही थीं कि आज मेले से उन्हें क्या खरीदना है।

वहीं, नंदनी चुपचाप, खोई-खोई सी चल रही थी।

इसी बीच वह अचानक एक लड़के से टकराकर नीचे गिर गई।

उसकी सहेलियों ने उसे संभाला और उठाया। नंदनी के कपड़े थोड़े गंदे हो गए। वह उन्हें झाड़कर साफ कर ही रही थी कि वह लड़का पीछे मुड़ा और नंदनी के चेहरे की ओर देखने लगा।

नंदनी की आँखों में हल्की नमी और चेहरे पर थोड़ी-सी शिकन थी, फिर भी वह अत्यंत सुंदर लग रही थी। उसकी आँखें मानो कमल की पंखुड़ियों-सी थीं, जिनमें वह लड़का शायद खो गया।

रास्ते में भीड़ बहुत अधिक थी। देखते ही देखते नंदनी उस लड़के की आँखों से ओझल हो गई।

किशोर अवस्था में अक्सर हृदय अपने प्रथम प्रेम की तलाश में होता है। ऐसा ही कुछ आज उस लड़के के साथ भी हुआ। नंदनी की छवि उसकी आँखों के सामने घूमती रही। उसे ऐसा आभास हुआ मानो वह नंदनी की तलाश बरसों से कर रहा हो।

अब उसकी नज़र पूरे महोत्सव में केवल नंदनी को ही ढूँढ रही थी।

हालाँकि टकराने के समय नंदनी ने उसे क्षणभर के लिए अवश्य देखा था, पर एक क्षण में कितना ही देखा जा सकता है।

मधुकर महोत्सव में कृष्ण रासलीला का आयोजन होना था। उस लड़के के मन में विचार आया – “हो न हो, वह लड़की अवश्य यहाँ आएगी।”

लोगों की भीड़ के बावजूद उसकी नज़रें नंदनी को ही तलाशती रहीं।

अचानक उसकी दृष्टि नंदनी पर पड़ी। वह उसके सामने खड़ी रासलीला देख रही थी।

उसके मुस्कुराते हुए चेहरे को देखकर वह लड़का मंत्रमुग्ध-सा रह गया। मानो नंदनी उस भीड़ का केंद्र हो, और जैसे पूरा महोत्सव केवल उसे देखने आया हो।

वह लड़का नंदनी को इतनी प्यार भरी नज़रों से देख रहा था कि उसके लिए बाकी सब कुछ तुच्छ हो गया।

तभी नंदनी की नज़र उस पर पड़ी और दोनों की आँखें एक-दूसरे पर टिक गईं।

ऐसा होते ही नंदनी शर्मा गई और नज़रें फेर लीं, पर उसे आभास हुआ कि अब भी वह लड़का उसे देख रहा है – जैसे वे बरसों से एक-दूसरे को जानते हों।

नंदनी भी बीच-बीच में चुपके से उसे देख लेती और जब भी उनकी नज़रें मिलतीं, उनके चेहरों पर मुस्कान बिखर जाती।

कई घंटे बीत गए। आयोजन समाप्त हो गया और देखते-देखते वे दोनों भीड़ में एक-दूसरे से ओझल हो गए।

उनकी नज़रें भीड़ में एक-दूसरे को तलाशती रहीं, पर अंधेरा हो जाने के कारण वे पुनः मिल न सके।

उनके हृदय में बस गया तो केवल एक-दूसरे के लिए वह नया भाव,

जो अभी-अभी जन्मा था…

और जिसे उनकी नज़रें शायद उन्हें तलाशती रहेंगी।