Shaheed ki Vidhwa - Season 1 - 3 in Hindi Love Stories by Dhananjay dwivedy books and stories PDF | शहीद की विधवा - सीजन 1 - भाग 3

Featured Books
  • Operation Mirror - 4

    अभी तक आपने पढ़ा दोनों क्लोन में से असली कौन है पहचान मुश्कि...

  • The Devil (2025) - Comprehensive Explanation Analysis

     The Devil 11 दिसंबर 2025 को रिलीज़ हुई एक कन्नड़-भाषा की पॉ...

  • बेमिसाल यारी

    बेमिसाल यारी लेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००१गाँव...

  • दिल का रिश्ता - 2

    (Raj & Anushka)बारिश थम चुकी थी,लेकिन उनके दिलों की कशिश अभी...

  • Shadows Of Love - 15

    माँ ने दोनों को देखा और मुस्कुरा कर कहा—“करन बेटा, सच्ची मोह...

Categories
Share

शहीद की विधवा - सीजन 1 - भाग 3

ऋचा जी के पिताजी का व्यवहार देख कर मैं अचंभित रह गया, कि आज के जमाने मे भी ऐसी दकियानूसी सोच वो भी अपनी ही बेटी के लिए, लेकिन मैं इसके लिए उनको दोषी भी नही मानता हूँ, असल मे ये हमारे समाज का ही बुना हुआ एक ताना बाना है जो पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। शायद उनकी जगह मेरे पिताजी भी होते तो ऐसा ही व्यवहार करते। 

   ठाकुर साहब का व्यवहार देख कर सिंह साहब भी अवाक रह गए लेकिन उन्होंने मुँह से एक शब्द भी ना बोला, वहां पर मामले की गंभीरता को समझते हुए मैंने ठाकुर साहब से बोला की देखिए मैं तो इस घर का लड़का नहीं हूं और ना ही मेरी सिंह साहब से कोई रिश्तेदारी है, 
तो क्या आप लोग मेरे द्वारा पकाये गए चाय को पी सकते हैं?

    मेरी बात सुन कर उनके व्यवहार में कुछ नरमी आयी और उन्होंने  ठीक है बोल कर मेरी बात का समर्थन किया।

    ठाकुर साहब की बात सुनकर मैं ऋचा जी की तरफ मुड़ा और उनसे रसोई घर के बारे में पूछा, उन्होंने अपने कदम आगे बढ़ाते हुए मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया, मैं अब ऋचा जी के पीछे पीछे उनके रसोई घर की ओर जा रहा था तभी मेरी नजर उनकी सास के उपर पड़ी जो कोने में बैठ कर अपने पुत्र के बचपन् के कपड़ों को अपने सीने से लगा कर रो रही थी ये दृश्य देख कर मेरा हृदय काँप उठा मन मे अब ऐसे क्रांतिकारी विचार उठने लगे जिसमे मुझे वो मंत्री , मीडिया जगत के लोग एवं वो सभी लोग जो अंतेष्टि में आये थे उन सबकी हत्या करने की इच्छा हो रही थी, लेकिन मैं ऐसा कुछ कर नही सकता था।

  मै धीरे से उनके पास गया और उनके पैरोँ के पास बैठ कर उनको प्रणाम किया तभी वो तुरन्त अपने आँसू को पोछते हुए मुझसे बोलीं की अरे बेटा ये क्या कर रहे हो और अपने पैर पीछे खींचने लगीं तो मैंने उनके पैरों को पकड़ कर कहा कि उस माँ के चरणों का स्पर्श करना चाहता हूँ जिसने इस देश की रक्षा के लिए अपने एकलौते बेटे के रूप में सर्वस्व न्योछावर कर दिया हो, अच्छा माँ जी आपके पुत्र ने कभी आपको रोते हुए देखा था।

    मेरा सवाल सूनकर माँ जी ने अपना जबाब नहीं में सर हिला कर दिया, तब मैंने कहा कि माँ बाप के जीवित रहते उनके पुत्र की मृत्यु से बड़ा कोई दुःख इस दुनियां में नही है, लेकिन आप लोग ऐसे रोकर अपने पुत्र की आत्मा को मोक्ष प्राप्त नहीं होने दोगे, मेरी बातों को ध्यान से सुनती हुई माँ जी ने आँसू पोछते हुए मुझसे कहा कि मैं रसोई की तरफ क्यों जा रहा हुँ उनके सवाल के जबाब में मैने उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया।

  इस घटना के पश्चात अब मैं रसोई घर में पहुंच चुका था और चाय बनाने की तैयारी कर ही रहा था तभी मुझे किसी की बुदबुदाहट सुनाई दी , मैने पलट कर आवाज वाली दिशा में देखा तो वो कोई और नहीं---

क्रमशः---