मुझे ठाकुर साहब कि बातें सुन कर क्रोध आने लगा जो उन्होंने मेरे चेहरे पर स्पष्ट देख लिया और सहम गए। मैं भी वहीं एक कुर्सी खींच कर बैठ गया।
थोड़ी देर मैं शांत भाव से आत्म मंथन करता रहा और अचानक मुस्कुरा कर बोला। ठाकुर साहब आपको क्या लगता है कि आपके समधी सिंह साहब के पास कितने की जायदाद होगी?
थोड़ी देर सोचने के बाद वो बोले कि ज़मीन ज़मीन सिर्फ 1 करोड़ के आस पास की होगी। फिर मैने उनसे संक्षिप्त में पूछा कि नगद और ज़ेवरात वगैरह मेरे इस सवाल के जबाब में वो बोले कि लगभग वो भी 1 करोड़, फिर मैंने उनसे पूछा कि आपके पास कितने की जायदाद और कितना नगद होगा। उन्होंने बोला कि लगभग मेरे पास भी इतने का ही होगा।
ठाकुर साहब का जबाब सुनकर मैं बोला कि मतलब आप दोनों के ज़ायदाद और नगद वगैरह मिला कर लगभग 4 करोड़ तो उन्होंने मेरी बात सुनकर हामी भरी।
उनकी हामी सुनकर मैंने मोबाईल निकाला और एक फोन लगाया और मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया ताकि हमारी होने वाली बातें सभी को सुनाई दे। घंटी जा रही थी तभी अचानक हेल्लो की आवाज मेरे कानों में आयी तो मैंने प्रणाम पिताजी बोला।
उन्होंने मुझे अपना आशीर्वाद दिया और खैरियत पूछा तो मैंने बोला कि ठीक है उन्होंने पूछा कि अचानक तुमने दोपहर में फ़ोन कैसे किया तब मैंने उनसे बोला कि 4 करोड़ रुपये नगद में कितने देर में व्यवस्था हो पाएंगे उन्होंने कहा 30 मिनट में ।
फिर मैंने पिताजी से बोला कि शाम को बात करतें हैं। इतना बोलकर मैने फोन काट दिया और उठकर अंदर गया और चेकबुक बाहर ले कर निकला और उनसे बोला कि मेरे खाते में अभी 50 लाख रुपये हैं और 4 करोड़ आप लोग बोलोगे तो कल तक आ जायेंगे। महीने की मेरी कमाई डेढ़ लाख रुपये है खर्चा काट कर। मुझे आपकी सोच पर तरस आ रहा है।
ठाकुर साहब उठे और मुझसे हाथ जोड़कर कर बोले कि बेटा मुझे माफ़ कर देना। मैने तुम्हारे बारे में गलत धारणा बना ली थी। मेरा स्वभाव देख कर तो तुम्हें लगता होगा कि मैं स्वार्थी व्यक्ति हूँ लेकिन ऐसा नही है बेटा। अपनी बेटी से मैं इसलिए नहीं मिला कि उसका दुःख और आँसू मैं नहीं देख सकता था नहीं तो मैं भी टूट जाऊंगा।
मैने इसलिए उनके घर मे इस तरीके का व्यवहार किया कि वो मुझसे नफ़रत रखे। और रही बात तुम्हारी तो वो भी मैने अपनी बेटी की भलाई के बारे में सोच कर तुमसे प्रश्न किया।
मैं कुर्सी से उठकर उनके दोनों हाथ पकड़ कर बोला नहीं नहीं आप ये सब क्या कर रहें है उम्र में आप मुझसे बड़े हैं और आपने मुझसे ज्यादा जीवन जिया है तो आप भी अपनी जगह पर सही हैं, लेकिन मैं आप लोगों से एक बात बोलना चाहूँगा की ऋचा आपकी बेटी है उसे अभी सहारे की जरूरत है। अगर उसे अभी आप सहारा नही देंगे तो कौन देगा और उस घर मे कौन है उसकी सास जो अपने पुत्र के वियोग में जी रही है कि सिंह साहब जो अपने हृदय पर पत्थर रखकर अपने ही पुत्र का क्रिया और कर्म दोनों मिटा रहे हैं।
मैं इस बात पर आपसे सहमत नहीं हूं। क्योंकि उस परिवार को अभी सहारे की जरूरत है और अगर आप सहारा नही दे सकते तो कम से कम उनकी मुसीबतों में ईजाफ़ा मत करिए।
इतना बोलकर मैं उठा और उनसे बोला कि ठाकुर साहब अभी मैं जा रहा हूं पण्डितजी आने वाले होंगें। मेरी बात सुनकर ठाकुर साहब बोले कि हम भी चलते हैं, और वो मेरे साथ सिंह साहब के घर की ओर चल पड़े।
ठाकुर साहब और उनके बेटे को अपने घर आता देखकर सिंह साहब के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ गए। सिंह साहब उठ खड़े हुए,उनकों खड़ा देखकर ठाकुर साहब हाथ जोड़कर बोले कि सिंह साहब मेरे द्वारा किये गए व्यवहार के लिए मुझे माफ़ कर दीजिए। राहुल जी ने मुझे हकीकत से मिलवा दिया। तब तक ऋचा और उसकी सास भी बाहर आ गए, अपनी बेटी को सफेद लिबाज़ में लिपटी देखकर ठाकुर साहब की ऑंखेभर आयी और उन्होंने अपने दोनों हाथ बढ़कर ऋचा को गले से लगा लिया और बोले कि बेटी मुझे माफ़ कर देना और फिर दोनों सिसक सिसक कर रोने लगे उन दोनों को रोता देखकर घर के सभी लोगों की आंख नम हो गयी।
और बलभद्र भी एक कोने में जा कर रोने लगा।
क्रमशः