Ishqadhura _ Another God of Sin - 2 in Hindi Moral Stories by archana books and stories PDF | इश्क़अधूरा _ एक और गुनाह का देवता - 2

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इश्क़अधूरा _ एक और गुनाह का देवता - 2




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एपिसोड ३ — “एक मुलाक़ात और मंज़ूरी”


"कभी-कभी दो अनजाने लोग एक ही कमरे में बैठते हैं… और बिना ज़्यादा शब्द कहे, ज़िंदगी का सबसे बड़ा फ़ैसला कर लेते हैं।"


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घर में हलचल थी, जैसे कोई त्योहार आ गया हो।
निधि की माँ सुबह से ही बार-बार शीशे में देख रही थीं, कहीं बिंदी टेढ़ी तो नहीं, कहीं बाल उलझे तो नहीं। बुख़ार की हल्की-सी तपिश के बावजूद उनके चेहरे पर एक ही चिंता थी—
"मेरी निधि की शादी मेरी आँखों के सामने हो जाए।"

रूपा चाची लखनऊ से आई थीं। बातें करते-करते उन्होंने कहा था,
"दीदी, अगर आप कहें तो एक लड़का है… सरकारी नौकरी करता है, पढ़ा-लिखा है, और आपकी निधि जैसी सुसंस्कारित लड़की ही चाहता है।"

सीता (निधि की माँ) ने गहरी सांस ली,
"ठीक है, पिताजी से बात करके बताऊँगी।"


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कुछ ही दिनों में बात आगे बढ़ गई। आज सुधांशु और उसका परिवार निधि को देखने आने वाला था।

दोपहर का वक़्त था। बैठक में सुधांशु के पिताजी, माँ, उसका छोटा भाई और एक दोस्त बैठे थे। निधि ने गोल्डन कलर का सूट पहना था—सीधा-सादा, पर उसमें एक अल्हड़-सी गरिमा थी। सिर पर दुपट्टा, चेहरे पर हल्की-सी घबराहट। हाथ में ट्रे में चाय लेकर वह बैठक में पहुँची।

सुधांशु की माँ ने मुस्कुराकर पूछा,
"बेटा, तुम्हारा नाम?"
"जी… निधि।"

बस इतना ही कहा, और फिर उसे अंदर भेज दिया गया।


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परिवार में हल्की फुसफुसाहट शुरू हो गई।
देवांश (निधि का बड़ा भाई) बोला,
"अरे, ऐसे कैसे! पहले लड़के-लड़की को अकेले में बात करने दो।"
सबने हामी भरी।

थोड़ी देर बाद सुधांशु को अंदर भेजा गया।


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कमरे में निधि पलंग के कोने पर बैठी थी। सुधांशु अंदर आया, कुर्सी खींचकर बैठा। कुछ पल दोनों चुप रहे—सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी।

सुधांशु उसे देखता रहा… पर निधि की नज़रें झुकी हुई थीं। वो पलकों को ऊपर उठाती, फिर झट से नीचे कर लेती।

"आपको कुछ पूछना है?" — सुधांशु ने हल्के स्वर में कहा।
निधि ने धीरे से सिर हिलाया,
"नहीं… दीदी ने मना किया है।"

सुधांशु के होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
"तो बस एक सवाल—क्या आपको मैं पसंद हूँ?"

निधि ने पल भर को नज़र उठाई, सुधांशु की आँखों में देखा, फिर शर्म से सिर झुका लिया… और हल्के-से ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।


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इतना काफी था।
कुछ देर बाद सुधांशु बाहर निकला। उसकी माँ ने आँखों में चमक के साथ कहा,
"हमें लड़की पसंद है।"

और फिर… एक हफ्ते बाद, घर में शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं।


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"कभी-कभी रिश्तों को शब्दों की नहीं, बस एक पल की ज़रूरत होती है… और वह पल, ज़िंदगी बदल देता है।"

एपिसोड ४ — “पहली बात, पहला स्पर्श”

हुक:
"कभी-कभी एक अनजाने नंबर से आई कॉल… ज़िंदगी की सबसे यादगार आवाज़ बन जाती है।"


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सितंबर में सुधांशु ने पहली बार निधि को देखा था… और फरवरी में शादी की तारीख़ तय हो गई थी।
दो महीने का समय था—पर इसी बीच उनकी प्रेम कहानी की शुरुआत हो गई।

सुधांशु ने एक दिन हिम्मत करके फोन लगाया।
"हैलो… निधि?"
"जी…" — निधि की आवाज़ में झिझक और हल्की-सी कंपकंपी थी।
उसे पहली बार किसी लड़के से, वो भी अपने होने वाले पति से, बात करनी थी।

निधि सोच रही थी—"क्या बोलूँ? क्या पूछूँ? क्या बताऊँ?"
उधर सुधांशु लगातार सवाल पूछ रहा था—
"कैसी हो? कॉलेज कैसा चल रहा है? तुम बहुत क्यूट हो… बहुत प्यारी हो।"

धीरे-धीरे झिझक कम हुई। सुधांशु की तारीफों में एक सच्चाई थी, जो निधि के दिल को छू रही थी।


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एक दिन सुधांशु ने ज़िद की,
"मैं निधि से बाहर मिलना चाहता हूँ।"

निधि ने माँ को बताया। सीता माँ पुरानी सोच की थीं—
"शादी के बाद जो करना हो करो, अभी हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता।"

काफी समझाने के बाद वे तैयार हुईं, और निधि को मिलने की इजाज़त मिली।


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उस दिन सुधांशु अपनी गाड़ी लेकर आया था।
निधि ने अपने हाथों से खाना बनाया—प्याज का पराठा, आलू की सब्ज़ी और हलवा। एपिसोड episode 2
टिफिन लेकर वो गाड़ी में बैठी। नजरें झुकी हुईं, सुधांशु की तरफ़ देख भी नहीं पा रही थी।

सुधांशु प्यार भरी नज़रों से देखता रहा।
"तुम बहुत अच्छी हो… तुम्हें क्या पसंद है? क्या खाना पसंद है?"

उसने निधि के हाथ का खाना खाया और मुस्कुराकर कहा—
"बहुत टेस्टी है… मैं ये घर ले जाऊँगा और माँ को भी खिलाऊँगा।"


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खाना खत्म होने के बाद, सुधांशु ने गाड़ी की स्पीड थोड़ी बढ़ाई और धीमे स्वर में बोला—
"मेरा हाथ पकड़ो।"

निधि ने झिझकते हुए हाथ नहीं बढ़ाया… तो सुधांशु ने खुद उसका हाथ थाम लिया।
"तुम वैसी ही हो जैसी मैंने सोचा था… तुम मुझे बहुत पसंद हो।"

उस दिन सुधांशु ने सच में माँ को खाना खिलाया और सबने तारीफ़ की।
निधि मन ही मन खुश हो रही थी—"ईश्वर ने मुझे मेरे मन जैसा पति दे दिया।"


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दीपावली के दिन सुधांशु ने एक सरप्राइज़ भेजा—चॉकलेट, शायरी वाला कार्ड और एक नया मोबाइल।
निधि का छोटा भाई पैकेट लेकर आया।
"दीदी, देखो जीजा जी ने क्या भेजा है!"

जैसे ही फोन खोला, उसी वक़्त कॉल आ गई—
"कैसा लगा मेरा तोहफ़ा?… होने वाली पत्नी को खुश रखना मेरा हक है।"

निधि का चेहरा खिल उठा।
धीरे-धीरे उनकी बातें लंबी होती गईं।

एक दिन सुधांशु ने कहा—
"मुझे कॉलेज में बहुत-सी लड़कियाँ मिलीं, लेकिन किसी से प्यार नहीं हुआ। प्यार तो मुझे तुमसे हुआ है। तुम पहली लड़की हो जिसने मेरा दिल छुआ।"

उस रात निधि मुस्कुराते हुए सोई…
"सच में, मैं खुशक़िस्मत हूँ।"


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"कभी-कभी सच्चा रिश्ता शादी के बाद नहीं… बल्कि ‘हाँ’ कहने के पल से ही शुरू हो जाता है।"