Trikaal - 10 in Hindi Adventure Stories by WordsbyJATIN books and stories PDF | त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 10

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त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 10

भूमिगत मार्ग के अंत में, पत्थरों की नमी से टपकती बूंदों की गूंज अब धीरे-धीरे शांत हो रही थी। आगे एक विशाल दरवाज़ा खड़ा था—काले धातु का, जिस पर जटिल चिन्ह उकेरे गए थे। उन चिन्हों में आग, नाग और त्रिशूल की आकृतियाँ दिखाई देती थीं, मानो वे कोई जीवित रहस्य हों।

आर्यन, वेदिका और ईशान तीनों दरवाज़े के सामने खड़े थे। उनके चेहरे पर उत्सुकता के साथ एक अजीब-सा भय भी था।

ईशान ने दरवाज़े को छूने की कोशिश की—जैसे ही उसकी उंगलियाँ धातु से टकराईं, एक चिंगारी-सी निकली और उसकी हथेली जल उठी।
“आह!” ईशान पीछे हट गया।
आर्यन ने तुरंत उसका हाथ पकड़ा और देखा। कोई गहरी चोट नहीं थी, लेकिन लाल निशान साफ झलक रहा था।

वेदिका ने दीवार पर बने मंत्र-जैसे चिन्हों को गौर से देखा। उसके होंठ खुद-ब-खुद हिले—
“ये साधारण दरवाज़ा नहीं है… यह अग्नि संस्कार की पहली परीक्षा है।”

तीनों के बीच खामोशी पसर गई।

आर्यन ने गहरी सांस ली, “मतलब हमें यहां से गुजरने के लिए परीक्षा देनी होगी?”
वेदिका ने सिर हिलाया—“हाँ, और यह परीक्षा केवल शक्ति से नहीं, बल्कि आत्मा की पवित्रता से पूरी होगी। यहाँ जो भी झूठा, डरपोक या असत्यप्रिय होगा… अग्नि उसी को भस्म कर देगी।”

उनकी सांसें भारी हो गईं। यह कोई साधारण खेल नहीं था—यह उनके जीवन का सवाल था।

🔥 अग्नि का आह्वान

अचानक दरवाज़े के चिन्ह चमकने लगे। अंगारे-से लाल उजाले में पूरी गुफा नहा उठी। धरती कांपने लगी। दरवाज़े के बीच एक जलता हुआ अग्निकुंड प्रकट हुआ। उसमें से आवाज़ आई—गंभीर, गूंजदार, मानो खुद समय बोल रहा हो:

“त्रिकाल जागरण की ओर पहला कदम बढ़ाने वाले… अपनी आत्मा अग्नि में अर्पित करो। सत्य को प्रकट करो, अन्यथा तुम यहीं भस्म हो जाओगे।”

तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। यह स्पष्ट था—हर किसी को अपने भीतर का सबसे गहरा रहस्य अग्नि के सामने उजागर करना होगा।

ईशान काँप उठा।
“क्या… अगर हमने कुछ छिपाया, तो?”
आर्यन की आवाज़ कठोर थी—“तो मौत तय है।”

🕉 पहली स्वीकारोक्ति – ईशान

सबसे पहले ईशान आगे बढ़ा। उसके पैरों के नीचे पत्थर गरम हो रहे थे। उसने काँपते हुए हाथ जोड़े।
“मैं… मैं स्वीकार करता हूँ कि इस यात्रा पर मैं केवल ज्ञान पाने के लिए नहीं आया। मेरे भीतर महत्वाकांक्षा है—मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे याद करें, मुझे पूजें, मुझे मान दें। मैं डरता हूँ… कि कहीं मैं अपने अहंकार में अंधा न हो जाऊँ।”

उसके शब्द अग्नि में घुल गए। पलभर के लिए लपटें ऊँची उठीं, जैसे उसका अहंकार जल रहा हो। लेकिन तुरंत बाद लौ शांत हो गई।

आवाज़ गूंजी—
“सत्य स्वीकार किया गया। अग्नि तुझे क्षमा करती है।”

ईशान का शरीर हल्का हो गया। उसने गहरी सांस ली। उसके माथे पर पसीना था, लेकिन आँखों में राहत।

🕉 दूसरी स्वीकारोक्ति – वेदिका

अब वेदिका की बारी थी। उसके चेहरे पर भय नहीं था, लेकिन भीतर गहरा द्वंद्व था।
वह अग्निकुंड के सामने खड़ी हुई और बोली—
“मैं… अपने दिल में एक छुपा बोझ लेकर चल रही हूँ। मैं सिर्फ ज्ञान की साधक नहीं हूँ… मेरे परिवार की पीढ़ियाँ इस रहस्य की रक्षा करती आई हैं। परंतु… मैं डरती हूँ कि कहीं मैं असफल न हो जाऊँ। मैं डरती हूँ कि मैं उस विरासत के योग्य नहीं हूँ, जो मुझ तक पहुँची है।”

उसकी आवाज़ काँप गई।
अग्नि की लपटें भयंकर रूप से उठीं। एक क्षण को लगा कि वे उसे निगल लेंगी। पर अगले ही पल अग्नि शांत हो गई।

आवाज़ आई—
“तेरा भय तुझे कमजोर बनाता है, पर सत्य तुझे बचाता है। अग्नि तुझे आशीर्वाद देती है।”

वेदिका की आँखों में आँसू आ गए। उसने महसूस किया जैसे कोई भारी बोझ उसके कंधों से उतर गया हो।

🕉 तीसरी स्वीकारोक्ति – आर्यन

अब सबकी निगाहें आर्यन पर थीं।
आर्यन चुपचाप आगे बढ़ा। उसका चेहरा कठोर था। वह अग्नि के सामने खड़ा हुआ और उसकी आँखें लपटों से टकराईं।

“मैं… सत्य कहता हूँ। मेरे दिल में बदले की आग है। मैंने यह यात्रा केवल कर्तव्य के लिए नहीं चुनी। मैं उन शक्तियों को ढूँढना चाहता हूँ जिन्होंने मेरे पिता की हत्या की। मैं चाहता हूँ उन्हें नष्ट करना। यह प्रतिशोध मेरी आत्मा में गहराई से बसा है। और मुझे डर है… कि कहीं यह प्रतिशोध ही मेरी आत्मा को निगल न ले।”

गुफा में सन्नाटा छा गया।

अग्नि अचानक बेकाबू होकर उठी। उसकी लपटें इतनी प्रचंड थीं कि लगा गुफा ध्वस्त हो जाएगी।
वेदिका और ईशान चीख उठे—“आर्यन!”

पर आर्यन दृढ़ खड़ा रहा। उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

आवाज़ गूंजी—
“तेरा क्रोध तुझे जला सकता है, पर तेरा सत्य तुझे बचा सकता है। अग्नि तुझे चेतावनी देती है—अपने प्रतिशोध को साध ले, अन्यथा वही तेरा विनाश होगा।”

लपटें धीरे-धीरे शांत हुईं। अग्निकुंड बुझ गया।

🚪 दरवाज़े का खुलना

जैसे ही अग्नि बुझी, विशाल धातु का दरवाज़ा अपने आप धीरे-धीरे खुलने लगा। अंदर से सुनहरी रोशनी बाहर फैली—मानो किसी और ही लोक का आह्वान हो रहा हो।

तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। यह सिर्फ एक दरवाज़ा नहीं था—यह उनकी यात्रा की पहली असली जीत थी।

आर्यन ने गहरी सांस ली और कहा—
“यह तो सिर्फ शुरुआत थी… असली युद्ध अभी बाकी है।”

गुफा के भीतर की गूंज अब भी जारी थी—मानो समय स्वयं चेतावनी दे रहा हो। आर्यन, वेदिका, डॉ. इशान और ईशा उस गुप्त कक्ष के केंद्र में खड़े थे, जहाँ पत्थरों पर खुदे हुए चिह्न त्रिकाल परीक्षा की ओर संकेत कर रहे थे।

आर्यन ने गहरी साँस ली।
“यह सिर्फ शक्ति की परीक्षा नहीं है, बल्कि आत्मा और साहस की भी है। हमें अब तक जो मिला, वो सिर्फ प्रस्तावना थी… असली संघर्ष अब शुरू होगा।”

डॉ. इशान ने अपनी जेब से एक पुराना लाल धागा निकाला।
“ये धागा मुझे उस साधु ने दिया था, जिससे हम अध्याय 3 में मिले थे। उसने कहा था—‘जब अग्नि और छाया दोनों रास्ते में खड़ी हों, तो इसे जलाकर राह देख लेना।’ शायद इसका समय अब आ गया है।”

वेदिका ने मंत्रों से भरे शिलालेखों को छूते हुए कहा—
“यहाँ लिखा है, ‘त्रिकाल परीक्षा में प्रवेश करने से पहले, साधक को अपने भीतर की सबसे बड़ी कमजोरी का सामना करना होगा।’

मतलब… हमें अपनी भीतरी सच्चाई से जूझना पड़ेगा।”

ईशा घबराकर बोली—
“तो क्या… हमें एक-दूसरे के रहस्यों का भी सामना करना होगा? अगर ऐसा हुआ… तो कई बातें उजागर हो सकती हैं।”

आर्यन ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में एक पल को संदेह तैर गया, लेकिन उसने तुरंत उसे दबा दिया।
“सच्चाई चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, हमें इसका सामना करना होगा। यही त्रिकाल का नियम है।”

🔥 अग्नि का प्रांगण

गुफा का पत्थरीला रास्ता धीरे-धीरे एक विशाल प्रांगण में खुला। वहाँ सात अग्नि-स्तंभ जल रहे थे। हर स्तंभ से अलग रंग की लपटें उठ रही थीं—लाल, नीली, काली, सुनहरी, हरी, सफेद और बैंगनी।

वेदिका ने मंत्र पढ़ते हुए बताया—
“ये सात अग्नि-स्तंभ सात मनोभावों का प्रतिनिधित्व करते हैं—भय, लालच, क्रोध, प्रेम, करुणा, ज्ञान और अहंकार।
जो भी साधक परीक्षा में प्रवेश करेगा, उसे इन अग्नियों में से होकर गुजरना होगा। तभी असली द्वार खुलेगा।”

डॉ. इशान ने हँसकर कहा—
“मतलब… अगर हममें से कोई अपनी कमजोरी में फँसा, तो यहीं खत्म हो जाएगा।”

🌑 छाया की दस्तक

अचानक अग्नि-स्तंभों की लपटें तेज हो गईं। और उसी क्षण छाया से ढकी आकृतियाँ प्रकट हुईं।
वो वही पुरानी अंधकार की छायाएँ थीं, जिन्हें आर्यन ने पहले देखा था।

लेकिन इस बार… उनमें से एक आकृति ने बोलना शुरू किया—
“आर्यन… तू सोचता है कि तू अपनी नियति का स्वामी है? तेरे भीतर जो लालसा है, वही तेरा विनाश बनेगी। परीक्षा से पहले ही तेरी सच्चाई सामने आ जाएगी।”

ईशा ने काँपते हुए आर्यन की ओर देखा।
“आर्यन… वो किस लालसा की बात कर रहे हैं?”

आर्यन ने होंठ भींच लिए। जवाब देने ही वाला था कि अचानक एक और छाया डॉ. इशान के पास आ गई।
“इशान… तेरे विज्ञान का घमंड ही तुझे निगल जाएगा। तू सोचता है कि तू ज्ञान का मालिक है… लेकिन असल में तू सिर्फ सत्य से भाग रहा है।”

अग्नि-स्तंभ गरजने लगे। छायाएँ उनके चारों ओर घूमने लगीं।
आर्यन, वेदिका, डॉ. इशान और ईशा… सबके सामने अपने-अपने भीतर के राक्षस प्रकट होने लगे।

वेदिका ने तलवार निकाली और बोली—
“अब खेल शुरू हो चुका है। अगर हमें त्रिकाल परीक्षा देनी है… तो पहले हमें खुद से लड़ना होगा।”

🔥 और इसी के साथ, अग्नि के द्वार धीरे-धीरे खुलने लगे…