मंदिर के अंदर का वातावरण बदल चुका था।
पत्थर की दीवारों पर जली हुई मशालें अब अजीब लाल आभा बिखेर रही थीं।
मानो हर लौ अपनी परछाई से मिलकर एक रहस्यमय मार्ग बना रही हो।
आर्यन, वेदिका, डॉ. ईशान और ईशा सावधानी से आगे बढ़ रहे थे।
पीछे छूटे हर कदम के साथ उन्हें लग रहा था कि कोई अनदेखी शक्ति उनकी चालों पर नज़र रख रही है।
“यही है… अग्नि का द्वार।” — डॉ. ईशान की आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें भय की थरथराहट साफ़ झलक रही थी।
उनकी आँखें सामने बने विशाल पत्थर के द्वार पर टिक गईं।
वह द्वार साधारण नहीं था।
पूरा दरवाज़ा लाल पत्थर से तराशा हुआ, जिस पर तीन वृत्त बने थे।
हर वृत्त के भीतर अग्नि की लपटों जैसी नक्काशी थी, जो देखने में मानो सचमुच जल रही हों।
वेदिका ने द्वार की ओर देखते हुए कहा —
“ये सिर्फ एक दरवाज़ा नहीं है… ये एक यंत्र है। इसे खोलने के लिए हमें त्रिकाल शास्त्र की विधि अपनानी होगी।”
आर्यन ने गहरी साँस ली —
“मतलब हमें वही परीक्षा देनी होगी, जिसके बारे में पंडित सोमेश्वर ने चेतावनी दी थी?”
वेदिका ने सिर हिलाया —
“हाँ, यह परीक्षा त्रिकाल जागरण की पहली कसौटी है। अगर हम असफल हुए… तो ये अग्नि हम सबको भस्म कर देगी।”
द्वार के सामने अचानक ज़मीन हिली।
पत्थर की फर्श के बीचों-बीच एक गोल चक्र घूमने लगा।
उस पर प्राचीन लिपि में लिखा था —
“अग्नि सत्य की रक्षा करती है।
जिसके हृदय में छल है, वह यहीं नष्ट होगा।”
ईशा डरते हुए पीछे हट गई —
“मतलब… अगर किसी के मन में झूठ या धोखा होगा, तो ये अग्नि उसे जला देगी?”
डॉ. ईशान ने गंभीर स्वर में कहा —
“बिलकुल। यही इस द्वार की शक्ति है। ये हमें परखेगा… हमारे भीतर के सत्य और असत्य को। अगर हम भीतर से निर्मल नहीं हुए… तो ये द्वार हमें कभी पार नहीं करने देगा।”
आर्यन ने आगे बढ़ते हुए अपनी हथेली द्वार के पत्थर पर रखी।
तुरंत ही पत्थर तपने लगा, मानो किसी ने उसके नीचे धधकते अंगारे रख दिए हों।
आर्यन ने दाँत भींचते हुए हाथ नहीं हटाया।
लपटें उसके हाथ को झुलसा रही थीं, मगर उसकी आँखों में दृढ़ता थी।
वेदिका ने मंत्रोच्चार शुरू किया —
“ॐ अग्नये नमः…
ॐ सत्यं शिवं सुंदरम्…”
जैसे ही मंत्र की ध्वनि गूँजी, द्वार के वृत्त चमक उठे।
तीनों वृत्तों से अग्नि की लपटें उठकर आपस में जुड़ गईं और बीच में एक अग्नि-शिला प्रकट हुई।
ईशान ने धीमे स्वर में कहा —
“यही है… अग्नि-परीक्षा की कुंजी।
हमें सबको मिलकर इस पर हाथ रखना होगा।”
चारों ने धीरे-धीरे अपने हाथ उस अग्नि-शिला पर रख दिए।
और तभी —
पूरे कक्ष में अग्नि की लपटें भड़क उठीं, मानो किसी ने चारों ओर आग लगा दी हो।
हर लपट उनके चारों ओर घूम रही थी, और अचानक…
हर किसी को अपने मन की गहराइयों में खिंचाव महसूस होने लगा।
वो अग्नि केवल बाहर नहीं जल रही थी…
वो उनके भीतर उतर रही थी।
गुफा की गहराइयों में, अग्नि का द्वार अब धीरे-धीरे अपनी शक्ति प्रकट करने लगा था। चारों ओर तपन और अग्नि की लपटें मानो किसी अदृश्य ऊर्जा से संचालित हो रही थीं। आर्यन, वेदिका और डॉ. ईशान उस प्राचीन प्रतीक को समझने की कोशिश कर रहे थे, जो द्वार के ऊपर उकेरा गया था।
वेदिका ने अपनी हथेलियों को पत्थर की दीवार पर रखा। अचानक पत्थरों से एक अजीब ध्वनि गूंजी—
“ॐ अग्नये नमः, यत्र सत्यं तत्र मार्गः।”
उसके उच्चारण के साथ ही पूरा कक्ष कांपने लगा। द्वार के चारों ओर अग्नि की रेखाएं जीवित सर्पों की तरह लहराने लगीं।
डॉ. ईशान ने गंभीर स्वर में कहा—
“ये कोई साधारण द्वार नहीं है। ये ‘त्रिकाल तपस्या’ का अगला चरण है। जिसने भी इस द्वार को पार करना चाहा होगा, उसे अग्नि की परीक्षा से गुजरना पड़ा होगा।”
आर्यन की आंखों में दृढ़ता चमकी—
“अगर यही मार्ग हमें सत्य तक ले जाएगा, तो हमें ये अग्नि पार करनी होगी।”
वेदिका ने तुरंत बीच में टोका—
“लेकिन ये सिर्फ आग नहीं है आर्यन… ये ‘चेतना की अग्नि’ है। इसमें कदम रखते ही तुम्हारे भीतर का हर झूठ, हर डर, हर मोह जलने लगेगा। अगर तुम टिके रहे तो शुद्ध होकर निकलोगे… और अगर हार गए तो ये अग्नि तुम्हें भस्म कर देगी।”
कक्ष का तापमान अचानक और बढ़ गया। द्वार के सामने तीन छोटे-छोटे पत्थर के स्तंभ उठे, जिन पर अलग-अलग मंत्र लिखे थे।
“भय त्यागो।”
“मोह त्यागो।”
“अहंकार त्यागो।”
डॉ. ईशान ने इन्हें पढ़ते ही कहा—
“ये तीन स्तंभ ही अग्नि द्वार की कुंजी हैं। अगर हम सही मंत्र को सक्रिय कर सके, तभी ये अग्नि हमें पार करने देगी।”
आर्यन ने स्तंभों के चारों ओर घूमते हुए गहरी सांस ली। अचानक उसके मन में बचपन की एक याद कौंधी—जब वह अपने पिता को खो बैठा था और खुद को कमजोर समझने लगा था। उस समय भय ने उसे तोड़ा था। आर्यन ने अपने हाथ से पहला स्तंभ छुआ—
“भय त्यागो।”
अचानक अग्नि ने गरज कर प्रतिक्रिया दी। उसकी लपटें और ऊंची हो गईं, मानो उसकी परीक्षा ले रही हों।
आर्यन ने आंखें बंद कर धीमे स्वर में कहा—
“मैं डर से बड़ा हूं। मेरा मार्ग सत्य है।”
जैसे ही उसने ये कहा, अग्नि का एक भाग शांत हो गया और पहला स्तंभ चमक उठा।
वेदिका ने दूसरा स्तंभ छुआ—“मोह त्यागो।”
उसकी आंखों में अपने परिवार, अपने खोए हुए लोगों की झलक आई। उसने कांपते हुए कहा—
“मुझे पता है… जो चला गया वो वापस नहीं आएगा। अब मेरी राह बस सत्य की है।”
अग्नि की दूसरी परत तुरंत पीछे हट गई।
अब शेष था—अहंकार त्यागो।
ये स्तंभ डॉ. ईशान के सामने था। वह स्तब्ध खड़ा रहा। उसकी आंखों में अपने पुराने शोध, अपने नाम और अपने गौरव का भार चमकने लगा। उसने गहरी सांस ली और धीरे से कहा—
“ज्ञान सिर्फ मेरा नहीं… ये युगों का है। मैं बस एक साधक हूं, स्वामी नहीं।”
जैसे ही ये शब्द निकले, तीसरा स्तंभ भी उज्ज्वल हो उठा।
पूरा द्वार कांपने लगा। अग्नि की लपटें धीरे-धीरे एक मार्ग का रूप लेने लगीं। उनके सामने अब एक लंबा अग्नि-सुरंग था, जिसके अंत में गहरे अंधेरे में एक सुनहरी रेखा चमक रही थी।
आर्यन ने दृढ़ स्वर में कहा—
“यही है अग्नि का मार्ग। यही हमें त्रिकाल के रहस्य तक ले जाएगा।”
लेकिन तभी, गुफा की दीवारों से एक गूंजती हुई आवाज़ आई—
“सावधान साधको! जो अग्नि के द्वार को पार करेगा, उसे अपने ही भीतर के शत्रु से सामना करना होगा।”
वेदिका की सांसें तेज हो गईं।
डॉ. ईशान ने गंभीर स्वर में कहा—
“इसका मतलब है… असली परीक्षा अभी शुरू हुई है।”
और तीनों ने अग्नि के मार्ग में कदम रख दिया…