भाग-10
रचना: बाबुल हक़ अंसारी
“वो चुप्पी जो अब गवाही बनेगी…”
पिछली झलक:
"अब कोई आवाज़ दबी नहीं रहेगी…" — अन्वी
बारिश की हल्की बूँदें खिड़की से टकरा रही थीं।
स्टूडियो में उस रात सिर्फ़ एक लाइट जल रही थी,
बाकी हर कोना अंधेरे में डूबा हुआ था — जैसे वक्त भी इस सच्चाई के बोझ से झुक गया हो।
आर्यन, अयान, आयशा और अन्वी — चारों मेज़ के चारों ओर बैठे थे।
सामने फैले काग़ज़, फ़ोटो, और पुरानी रिकॉर्डिंग्स…
हर चीज़ जैसे अपनी जगह से चीख़-चीख़ कर कह रही थी —
"मुझे सुना दो, मुझे बोलने दो।"
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अचानक, अन्वी ने एक पुराना पेंड्राइव मेज़ पर रख दिया।
"ये… श्रेया की आख़िरी रिकॉर्डिंग है," उसने धीमी आवाज़ में कहा।
"मौत से दो दिन पहले उसने मुझसे कहा था —
अगर मेरे साथ कुछ हो जाए, तो ये आर्यन को दे देना।"
प्ले बटन दबाया गया।
स्पीकर से श्रेया की थकी हुई, लेकिन दृढ़ आवाज़ गूँजी —
"अगर मैं कल तुम्हें कॉल न करूँ…
तो समझ जाना, वो आ गया है।
समर मुझसे मिलने आया था।
उसने कहा — तुम्हारी मोहब्बत तुम्हारे लिए ज़हर बन जाएगी।
मैं डर रही हूँ, पर मैं भागूँगी नहीं…"
रिकॉर्डिंग अचानक रुक गई।
कमरे में सन्नाटा छा गया।
अयान ने मुट्ठी भींच ली —
"ये… गवाही है। और इसे छुपाया गया था!"
उसी वक़्त युवराज अंदर आया, हाथ में एक और काग़ज़ लिए।
"पुलिस फाइल से ये पन्ना मुझे गुमनाम तरीके से मिला है।"
सबने देखा —
उसमें एक गार्ड का बयान था, जिसे आधिकारिक रिपोर्ट में कभी शामिल नहीं किया गया:
"हादसे की रात, छत पर मैंने एक आदमी को श्रेया से बहस करते देखा।
उसने उसे ज़ोर से पकड़ा और किनारे की तरफ़ धक्का दिया…
मैं डर गया, और अगले दिन मेरी ड्यूटी बदल दी गई।"
गार्ड का नाम था — राजीव मिश्रा।
आर्यन ने गहरी सांस ली —
"तो यही वो चश्मदीद है… वो चुप्पी जो अब गवाही बनेगी।"
फैसला लिया गया:
सुबह होते ही वे राजीव मिश्रा को ढूंढेंगे,
और उसके बयान को रिकॉर्ड करके अनकही चिट्ठियाँ के अगले एपिसोड में चलाएँगे।
लेकिन उसी रात…
अयान के फोन पर एक अज्ञात नंबर से संदेश आया:
"अगर तुम सच के इतने भूखे हो… तो कल शाम पुराने गोदाम पर आना।
वो भी होगा… जिसने श्रेया की आख़िरी सांस देखी थी।"
आयशा ने हैरान होकर पूछा — "ये जाल भी हो सकता है!"
अयान की आँखों में एक ठंडी चमक थी —
"हाँ… पर अगर हम वहाँ नहीं गए,
तो शायद सच हमेशा के लिए खो जाएगा।"
“पुराना गोदाम — सच या साज़िश?”
शाम के छह बज रहे थे।
सूरज की आख़िरी किरणें शहर के धूल भरे आसमान में कहीं खो चुकी थीं।
पुराना गोदाम, जो सालों से वीरान पड़ा था, आज फिर किसी इंतज़ार में जाग रहा था।
आर्यन और अयान, दोनों एक ही कार में पहुँचे।
साथ में आयशा भी थी, लेकिन अन्वी को उन्होंने स्टूडियो में ही छोड़ा —
क्योंकि यह मुलाक़ात, शायद ख़तरनाक भी हो सकती थी।
गोदाम के टूटे दरवाज़े से अंदर कदम रखते ही
एक ठंडी सी सड़ांध ने उनका स्वागत किया।
दीवारों पर चिपके पुराने पोस्टर, आधी फटी बोरियां, और बीच में पड़ा टूटा पियानो…
जैसे किसी भूली हुई कहानी के गवाह हों।
"लगता है हमसे पहले कोई यहाँ आ चुका है," अयान ने धीमे से कहा।
फर्श पर ताज़ा पैरों के निशान थे —
और कुछ दूर, एक कुर्सी पर बैठा एक बूढ़ा आदमी।
उसने सिर उठाया,
"तुम लोग वही हो न… जो श्रेया के बारे में सच जानना चाहते हो?"
अयान आगे बढ़ा — "आप राजीव मिश्रा हैं?"
आदमी ने धीमी हँसी हँसी —
"नहीं बेटा… मैं वो हूँ, जिसने सब अपनी आँखों से देखा था,
पर नाम बदलकर ज़िंदा हूँ।"
वो आगे झुका, और फुसफुसाकर बोला —
"उस रात सिर्फ़ समर ही नहीं था… एक और शख़्स था, जो सब देख रहा था… और चुप रहा।"
आर्यन का दिल धड़क उठा — "कौन?"
बूढ़ा आदमी कुछ कहने ही वाला था कि…
अचानक बाहर से टायरों की तेज़ चीख़ सुनाई दी।
गोदाम के दरवाज़े धड़ाम से बंद हो गए,
और अँधेरे में एक आवाज़ गूँजी —
> "सच जानने की कीमत… जान देकर चुकानी पड़ेगी।"
आयशा ने अयान का हाथ पकड़ लिया,
आर्यन ने जेब से अपना फोन निकाला — लेकिन नेटवर्क ग़ायब।
बूढ़ा आदमी डर से कांप रहा था —
"मैंने कहा था, वो हमें ढूंढ लेंगे… अब देर हो चुकी है।"
और उसी पल…
गोदाम के पीछे का शटर खुला,
और एक काले हुड पहने आदमी ने अयान की तरफ़ इशारा किया —
"चलो… वो तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।"
(जारी है…)
अगला अध्याय: "चेहरे के पीछे छुपा नाम"
जहाँ समर के सबसे क़रीबी राज़ सामने आएंगे, और एक सच ऐसा होगा,
जो न सिर्फ़ मोहब्बत को बल्कि दोस्ती को भी तोड़ सकता है।