Trikaal - 6 in Hindi Adventure Stories by WordsbyJATIN books and stories PDF | त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 6

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त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 6

पुनर्पाठ (Recap):
पिछले अध्याय में रुद्र ने त्रिलोक-सेतु के दरवाज़े पर खड़े होकर “काल के पार” की एक झलक देखी थी—वहां समय थमा नहीं था, बल्कि बह रहा था उल्टी दिशा में। ब्रह्मांडीय ऊर्जा की झंकार ने न केवल रुद्र को भीतर तक हिला दिया, बल्कि उसे “दृष्टा” बनने का संकेत भी दिया। एक नई यात्रा शुरू हुई, लेकिन यह यात्रा केवल स्थानों की नहीं, बल्कि चेतना की थी।

कथा आरंभ:
अरण्यखंड के गहनतम क्षेत्र में, जहाँ सूर्य की किरणें भी पेड़ों की छाँव से हार मान लेती थीं, रुद्र, वेदिका और प्रोफेसर ईशान वर्मा एक रहस्यमयी ऊर्जा स्रोत की ओर बढ़ रहे थे। यह वही क्षेत्र था जहाँ वैदिक ऋषियों ने “ब्रह्म संकेत” की स्थापना की थी—ऐसे संकेत, जो अंतरिक्ष से संवाद करने के लिए बनाए गए थे।

"प्रोफेसर, क्या आप यकीन से कह सकते हैं कि हमें जो संकेत मिले थे, वे मानव-निर्मित नहीं हैं?" वेदिका ने पूछा, उसकी आँखों में संशय नहीं, बल्कि जिज्ञासा थी।

ईशान वर्मा ने अपने उपकरण पर नज़र डाली, जो बार-बार एक ही रेखा दोहरा रहा था—
शून्य, एक, एक, शून्य, तीन, पाँच...
"यह संकेत फिबोनाच्ची सीरीज़ का परिवर्तित रूप है," उन्होंने कहा। "पर इसकी ध्वनि तरंगें ऐसी फ्रीक्वेंसी पर हैं जो पृथ्वी पर आम नहीं हैं।"

रुद्र का मन बेचैन था। उसे वह सपना याद आ रहा था जिसमें उसने एक नेत्रहीन ब्रह्मर्षि को देखा था जो बार-बार कह रहा था—
"जो तुम देख रहे हो, वो संकेत नहीं है। वो तो ब्रह्म की पुकार है।”

संकेतों की भाषा:
तीनों एक अर्ध-ध्वस्त यज्ञमंडल तक पहुँचे जो भूमि में बहुत गहराई तक खुदा हुआ था। चारों ओर वैदिक लिपि में कुछ उकेरा गया था:

“त्रयो लोकाः न संयुज्यन्ते यावत् संकेतं न प्राप्नोति”
(तीनों लोक तब तक नहीं जुड़ सकते जब तक संकेत पूर्ण रूप से नहीं प्राप्त होता।)

वेदिका झुकी और लिपि के बीच में एक उभरा हुआ चिह्न देखा—एक उल्टा स्वास्तिक जिसमें त्रिशूल और एक आंख बनी थी।

“ये क्या है?” वेदिका ने पूछा।

रुद्र ने धीरे से जवाब दिया, “ये त्रिनेत्र संकेत है... शिव का। ये बताता है कि जो संवाद हो रहा है, वो ‘दैविक चेतना’ और ‘ब्रह्मांड’ के बीच है।”

आकाशीय घटना:
अचानक आकाश गड़गड़ाने लगा। तारों का एक घेरा बन गया और उनमें से एक उज्जवल प्रकाश रुद्र के माथे पर गिरा। एक आवाज़ उसके भीतर गूंज उठी:

“संकेत केवल देखे नहीं जाते, जिए जाते हैं। तुम्हें केवल त्रिलोक नहीं, पंचलोकों के मध्य संतुलन बनाना है।”

प्रोफेसर घबरा गए। “रुद्र, तुम्हारी धड़कनें बहुत तेज़ हो गई हैं!”

रुद्र हँसा नहीं, बस उसकी आँखें स्थिर हो गईं। “मुझे कुछ समझ में आया है… ये जो कोड है, ये वैदिक मंत्रों से मेल खाता है।”

प्राचीन भविष्यवाणी:
वेदिका ने अपने लैपटॉप में पुरानी वेदांग लाइब्रेरी खोली और कहा, “यहाँ एक श्लोक है—”

"यदा त्रिनेत्रो चिन्हं ब्रह्मे च अर्पयति, तदा भूः, भुवः, स्वः, महः च एकत्वं लभन्ते।”
(जब त्रिनेत्र संकेत ब्रह्म में समर्पित होता है, तब पृथ्वी, अंतरिक्ष, स्वर्ग और महलोक एक हो जाते हैं।)

रुद्र ने ध्यान लगाया। उसकी चेतना गहरी होने लगी। उसे अपने भीतर जलता हुआ ब्रह्मांड दिखा, एक जगह जो स्थिर भी थी और गतिमान भी।

एक अनकहा रहस्य:
प्रोफेसर ईशान की नज़र ज़मीन के एक गड्ढे पर पड़ी। वहाँ एक धातु की प्लेट छिपी थी, जिस पर लिखा था:
"संकेत संख्या 108 तक पहुँचते ही, ब्रह्म सूत्र सक्रिय होगा।"

रुद्र धीरे से फुसफुसाया—“और तभी... द्वार खुलेगा जो काल से भी परे है।”

Cliffhanger:
अचानक एक तीव्र कंपन हुआ, और ज़मीन दरकने लगी। उस गड्ढे के भीतर से एक नीली रोशनी निकलने लगी। रुद्र आगे बढ़ा, लेकिन तभी आकाश में एक काले ग्रह की आकृति दिखी—वह धीरे-धीरे पृथ्वी की ओर बढ़ रही थी।

वेदिका चीखी, “वो क्या है?”

रुद्र की आँखें बंद हो गईं, और उसने कहा—
“वो जो आ रहा है, वही है... जिसने संकेत भेजे थे।”

स्थान: अज्ञात समय क्षेत्र, ब्रह्मांड के परे

रुद्र धीरे-धीरे उस नीले प्रकाश की ओर बढ़ा, जहां समय स्थिर था और गति की कोई परिभाषा नहीं थी। वहां कोई दिशा नहीं थी—न उत्तर, न दक्षिण—सिर्फ एक धड़कन थी, जो ब्रह्मांड के कण-कण में प्रतिध्वनित हो रही थी।

उसके सामने, शून्य की कोख से एक आकृति आकार ले रही थी—एक अर्ध-पारदर्शी चेहरा, जिसके माथे पर सप्तऋषियों का चिह्न झिलमिला रहा था। आवाज आई, “तुम वो हो, जो समय से बाहर पैदा हुआ… और समय को दोबारा परिभाषित करेगा।”

रुद्र शांत था। उसने धीरे से कहा, “मैं सिर्फ उत्तर खोजने आया हूँ। मैं आरंभ नहीं हूँ, न ही अंत। मैं वो हूँ जिसे तुमने देखा भी नहीं, पर खोजते रहे।”

🌌 पृथ्वी पर – वैदिक अनुसंधान संस्थान, भारत
प्रोफेसर ईशान वर्मा, जो अब तक आर्यन और वेदिका की ट्रिप का डेटा विश्लेषण कर रहे थे, अचानक हड़बड़ाकर खड़े हो गए।

“ये क्या है…?” उनके कंप्यूटर स्क्रीन पर एक सिंक्रोनाइजेशन वेव दिखी—एक wave जो काल चक्र की सीमाओं को पार कर रही थी।

आर्यन ने तुरंत दौड़कर स्क्रीन पर नज़र डाली।

“सर… ये coordinate धरती के नहीं हैं… ये कोई higher dimension के हैं।”

प्रोफेसर ईशान की आँखें चमक उठीं—“ये… ये वही है… त्रिलोक सिंक्रोनाइज़र का अगला चरण। कोई... कोई दूसरी सत्ता है जो इससे जुड़ गई है!”

वेदिका जो अब तक शांत थी, बुदबुदाई — “रुद्र…”

आर्यन चौंका, “क्या कहा तुमने?”

“कुछ नहीं…” वेदिका ने सिर झुका लिया। पर वो जानती थी, कुछ ऐसा था जिसे वो साझा करने से डर रही थी। क्योंकि रुद्र, कोई साधारण नाम नहीं था — वो एक रहस्य था, जो उसके पूर्वजों से जुड़ा था।

शून्य क्षेत्र – रुद्र का परीक्षण
अचानक रुद्र के चारों ओर शब्दों का ब्रह्मांड फूट पड़ा।

ॐ शून्याय नमः।
ॐ कालातीताय स्वाहा।
ॐ त्रिलोक-विध्वंसाय च।

ये मंत्र हवा में नहीं, उसके चेतन में गूंज रहे थे।

हर बार जब कोई मंत्र गूंजता, रुद्र के शरीर के चारों ओर ध्वनि तरंगे और ऊर्जा की आकृतियाँ बनने लगतीं। वो अब सिर्फ शरीर नहीं था — वो एक ब्रह्माण्डीय कम्पन में बदल रहा था।

उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन वो देख रहा था—एक युवा लड़का, जो पृथ्वी पर एक लैब में बैठा है, उसकी आँखों में अग्नि है, उसका नाम है… आर्यन।

रुद्र मुस्कराया। “अब वो जाग गया है।”

🧭 फिर एक ध्वनि आई… एक बुलावा।
“तुम दोनों एक हो।
तुम अलग नहीं,
तुम दो समय धाराओं के बिंदु हो।
एक ही वृत्त के दो छोर।
आर्यन और रुद्र।”

रुद्र के चारों ओर के तत्व एकत्र हुए और एक द्वार बना — जो समय और ब्रह्मांड के बीच सबसे अदृश्य मार्ग था। एक द्वार जो केवल एक सच्चा सिंक्रोनाइज़र ही पार कर सकता था।

🌍 धरती पर उसी समय
आर्यन के माथे पर अचानक जलन हुई। वेदिका ने देखा — वहाँ एक चमकता हुआ चिन्ह उभर आया था — "ॐ" के बीच त्रिकोणाकार धारा।

प्रोफेसर ईशान अवाक थे। “आर्यन… ये चिन्ह तो कथाओं में वर्णित ‘द्वैती आत्मा’ का है!”

वेदिका फुसफुसाई — “अब सब जुड़ रहा है… रुद्र और आर्यन…”

💠 क्लाइमेक्स दृश्य
रुद्र द्वार से एक कदम पीछे हटा।

“मुझे उस तक पहुँचना होगा… नहीं, उसे मेरे पास आना होगा… जब समय पूर्ण होगा।”

वहीं दूसरी ओर आर्यन की आँखें बंद थीं… लेकिन उसने देखा—नीले प्रकाश में एक आकृति खड़ी है। वही, जिसकी आँखें शून्य में देख रही थीं। वही, जिसका नाम… रुद्र।

🎬
एक नई यात्रा आरंभ हो रही थी।
जहां समय और चेतना के बीच सेतु बन रहा था।
जहां दो आत्माएँ—रुद्र और आर्यन—दो युगों से चल रही थीं एक ही लक्ष्य की ओर।

🔚 अध्याय समाप्त।
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