My Dear Professor - 1 in Hindi Love Stories by Vartikareena books and stories PDF | माई डियर प्रोफेसर - भाग 1

Featured Books
  • The Omniverse - Part 5

    (Destruction Cube) அழித்த பிறகு,ஆதியன் (Aethion) பேய்கள் மற்...

  • The Omniverse - Part 4

    தீமையின் எழுச்சி – படையெடுப்பு தொடங்குகிறதுதற்போது, டீமன்களு...

  • அக்னியை ஆளும் மலரவள் - 12

     மலரியின் அக்கா, ஸ்வேதா வருவதைப் பார்த்து, “நீயே வந்துட்ட, எ...

  • அக்னியை ஆளும் மலரவள் - 11

    “நீ கோபப்படுற அளவுக்கு இந்த ஃபைலில் அப்படி என்ன இருக்கு?” என...

  • The Omniverse - Part 3

    வெற்றிட சோதனை - ஒரு தகுதியான வாரிசைக் கண்டுபிடிக்கபல டிரில்ல...

Categories
Share

माई डियर प्रोफेसर - भाग 1

-----------------


बहुत लंबे और थकान भरे दिन के बाद अगर जिंदगी में कहीं सुकून है तो वो है सिर्फ़ ये मसाला चाय! मैं अपने घर की बालकनी में एक खाट पर बैठी थी। पास में एक हुक्का रखा हुआ था जिसे मैं घूरे जा रही थी। मैंने हुक्का उठाया और एक डिब्बे में बंद करके रख दिया। आज ये मसाला चाय भी मुझे सुकून नहीं दे रही थी । कप से निकलती भाप मेरी भावनाओ कि तरह थी । जो जरा ताप पाकर मेरी आंखो से बाहर आ रही थी । 
मन के किसी कोने मे छुपी वो याद..आज उसके अचानक सामने आ जाने से सर उठाने लगी थी ।  

मैने सामने देखा तो शाम के आसमान मे हल्की लाली आ गई थी । लग रहा था अपने प्रियतम को महसूस कर एक लडकी शर्म से लाल हो गई है! कितनी खुबसूरत थी ये शाम ! नजरे फिराने का तो दिल ही नही हुआ।  लेकिन मैने दिल कि सुनना काफी समय पहले ही छोड दिया था ! तो नजरे फेर ली और गुम हो गई आज की याद मे ।




मेरी नजरे फोन पर से तब हट गई जब मैने उसका नाम सुना । स्टेज पर देखने से पहले ,मै मना रही थी की ये वो ना हो ! लेकिन ये वही था । 


" प्लीज वेलकम प्रोफेसर अमर राजपूत फ्रोम दिल्ली यूनिवर्सिटी ! " , एंकर ने कहा और तालियो की गड़गड़ाहट के साथ वो सामने आ गया । 


अमर ! पुरे पांच साल बाद वो मेरे सामने था । उसे देख बहुत कुछ सामने आने लगा । अब मै बस वहा से चली जाना चाहती थी ! नही देखना था मुझे उसे..लेकिन पांच साल के बाद जब वो आज मेरे सामने है तो कैसे नजरे फेर लूं मै ! 
नही हुआ मुझ से ! मै वही रही और उसे देखती रही । 


ज्यादा अंतर नही आया था उसमे । बस दाढी कुछ बड गई थी और उन्हे सवांरा नही गया था । बालो का भी यही हाल था । 

"अब भी बालो को नही संवारते ये ! " 
अचानक ही ये ख्याल आया और थोडा सा दर्द का एहसास और भी तेजी से महसूस किया । 



मै अपना शौल ठीक करते हुए उठी और एक गाना चला दिया ' कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यू है ' 

कोई ये कैसे बताए के, वो तन्हा क्यूँ है?
वो जो अपना था वो ही, और किसी का क्यूँ है?
यही दुनिया है तो फिर, ऐसी ये दुनिया क्यूँ है?
यही होता है तो आख़िर, यही होता क्यूँ है?

इक ज़रा हाथ बढ़ा दे तो, पकड़ लें दामन
उसके सीने में समा जाए, हमारी धड़कन
इतनी क़ुर्बत है तो फिर, फासला इतना क्यूँ है?
दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं, अब तक कोई
इक लुटे घर पे दिया करता है, दस्तक कोई
आस जो टूट गई फिर से, बंधाता क्यूँ है?

तुम मसर्रत का कहो या, इसे ग़म का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता है, जनम का रिश्ता
है जनम का जो ये रिश्ता तो, बदलता क्यूँ है?

मै गाने के हर एक बोल को सुन रही थी और खोती जा रही थी अपने कॉलेज के दिनो मे । 





क्रमश: 

नई कहानी , नया सफर , नई दुनिया ! स्वागत है आप सबका ।