एक छोटे से गाँव में, जहाँ गरीबी और संघर्ष हर घर का हिस्सा थे, वहीं एक गरीब लड़की, जिसका नाम रूखसार था, अपनी बीमार माँ के साथ रहती थी। उसकी उम्र बीस साल थी, परंतु गरीबी और तकलीफों ने उसे समय से पहले ही बूढ़ा कर दिया था। उसकी माँ गंभीर रूप से बीमार थी और उनके पास इलाज के पैसे नहीं थे। गाँव के लोग उसे मदद का भरोसा दिलाते, परंतु मदद कभी नहीं आती।
रूखसार के पास एक पुरानी लकड़ी की संदूक थी, जो उसकी माँ की शादी के समय मिली थी। माँ ने उसे बताया था कि इस संदूक में एक ऐसा रहस्य छुपा है जो उन्हें मुसीबतों से बचा सकता है, लेकिन इसे खोलना बहुत खतरनाक हो सकता है। माँ ने उसे बार-बार चेताया था कि कभी भी इसे खोलने की कोशिश न करे, क्योंकि संदूक में एक जिन्न बंद है, जो किसी भी आम इंसान की कल्पना से परे शक्तिशाली है।
माँ की तबियत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। दवाओं का कोई इंतजाम नहीं था, और रूखसार को माँ को खोने का डर सताने लगा था। एक रात, जब माँ दर्द से कराह रही थी और किसी तरह से खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी, रूखसार ने दिल से एक निर्णय लिया। वह किसी भी तरह से माँ को ठीक करना चाहती थी, चाहे कुछ भी हो जाए। उसके पास कोई और रास्ता नहीं था।
उसने धड़कते दिल से उस संदूक को खोला। संदूक खुलते ही एक ठंडी हवा का झोंका कमरे में फैला, और अचानक से अंधेरा छा गया। हवा में कुछ अनजानी सी हलचल हुई और उसके सामने एक साया प्रकट हुआ। वह साया धीरे-धीरे आकार लेने लगा, और देखते ही देखते एक लंबा, काला जिन्न उसके सामने खड़ा हो गया। जिन्न की आँखें लाल थीं, और उसकी काली परछाईं जैसे पूरे कमरे को निगलने की कोशिश कर रही थी।
जिन्न ने अपनी भारी आवाज़ में कहा, "तुमने मुझे आज़ाद किया है। अब मैं तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी कर सकता हूँ, परंतु कीमत तुम्हें चुकानी पड़ेगी।"
रूखसार घबराई, लेकिन माँ की हालत देखकर उसने हिम्मत जुटाई। उसने जिन्न से कहा, "मेरी माँ बहुत बीमार है। मैं चाहती हूँ कि तुम उसे ठीक कर दो। उसके बाद जो कीमत चुकानी हो, मैं चुकाऊँगी।"
जिन्न ने एक ठंडी मुस्कान दी और कहा, "ठीक है, लेकिन याद रखना, तुम्हारी आत्मा की कीमत माँगी जाएगी।"
रूखसार ने सिर हिलाया। उसकी माँ धीरे-धीरे ठीक होने लगी, और कुछ ही समय में वो पहले जैसी स्वस्थ हो गई। गाँव के लोग इसे चमत्कार मानने लगे, लेकिन रूखसार के मन में डर और घबराहट का साया मंडराने लगा था। उसने जिन्न को देखा था, उसकी आँखों की चमक और उसकी खतरनाक मुस्कान उसे चैन से सोने नहीं देती थी।
कुछ दिन बाद, जब माँ पूरी तरह ठीक हो गई थी, जिन्न फिर से रूखसार के सामने प्रकट हुआ। इस बार वह और भी भयानक लग रहा था। उसने कहा, "अब वक्त आ गया है तुम्हारी आत्मा लेने का।"
रूखसार ने डरते हुए कहा, "क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं है? क्या मैं कुछ और नहीं कर सकती?"
जिन्न हंसा और बोला, "एक ही रास्ता है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारा आशिक बन सकता हूँ। तुम मेरी बन जाओ, और तुम्हारी आत्मा को मैं कभी नुकसान नहीं पहुँचाऊंगा। मैं तुम्हें वो सबकुछ दूँगा, जो तुम्हारी गरीबी ने तुमसे छीन लिया है—धन, संपत्ति, सुख। पर इसके बदले तुम सिर्फ मेरी हो जाओगी, एक जिन्न की दुल्हन।"
रूखसार के सामने एक कठिन फैसला था। जिन्न की दुल्हन बनने का मतलब था अपनी आजादी खो देना, एक अमर और शक्तिशाली प्राणी के साथ बंध जाना। लेकिन उसने सोचा कि अगर उसने इंकार किया, तो वह अपनी आत्मा खो देगी। उसके पास और कोई विकल्प नहीं था।
आखिरकार, उसने हाँ कह दी। जिस रात उसने अपनी स्वीकृति दी, जिन्न ने एक अजीब सी शादी रचाई। कोई इंसानी गवाह नहीं था, केवल परछाइयाँ और जिन्न की अनदेखी दुनिया के प्राणी थे। शादी के बाद, जिन्न ने उसे एक बड़े महल में ले गया, जहाँ सोने और चाँदी का अंबार था। लेकिन रूखसार का दिल उदास था, वह जानती थी कि वह इस महल की कैदी बन गई थी।
दिन बीतते गए, लेकिन रूखसार कभी खुश नहीं हो पाई। उसे हर दिन जिन्न की भयानक उपस्थिति सहनी पड़ती थी। वह महल में बंद थी, और उसके पास लौटने का कोई रास्ता नहीं था। जिन्न उसकी हर इच्छा पूरी करता, परंतु वह कभी भी उसे छोड़ने की इजाजत नहीं देता था।
एक रात, रूखसार ने देखा कि जिन्न गहरी नींद में है। उसने मौका देखा और महल से भागने की कोशिश की। जैसे ही वह महल के दरवाजे तक पहुँची, जिन्न जाग गया। उसकी आँखों में क्रोध की ज्वाला जल उठी। उसने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर रूखसार को महल में वापस खींच लिया और कहा, "तुम मुझसे भाग नहीं सकतीं। अब तुम मेरी हो और हमेशा मेरी रहोगी।"
रूखसार की जिंदगी अंधकार में डूब गई थी। वह जिन्न की दुल्हन बन चुकी थी, और अब उसके पास कोई रास्ता नहीं था। उसकी आत्मा हमेशा के लिए उस जिन्न के साथ बंध गई थी, और वह कभी भी अपनी आजादी नहीं पा सकी।
गाँव में लोग कहते हैं कि कभी-कभी रात के समय, अगर आप ध्यान से सुनें, तो आप रूखसार की दर्द भरी चीखें सुन सकते हैं, जो महल की गहराई से आती हैं।