secret of the ruins in Hindi Horror Stories by Radhika books and stories PDF | खंडहर का राज़

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खंडहर का राज़

रात का अंधेरा घना था, और हवा में एक सर्द ठंडक थी। हिमाचल के पहाड़ों में बसा एक छोटा-सा गाँव, कालापुर, जहाँ लोग सूरज ढलते ही अपने घरों में दुबक जाते थे। गाँव के बाहर, एक ऊँची पहाड़ी पर खड़ा था वह पुराना खंडहर किला, जिसे लोग 'भूतिया किला' कहते थे। कोई नहीं जानता था कि यह किला कब और किसने बनवाया था, लेकिन इसके बारे में कहानियाँ ऐसी थीं कि सुनकर रूह काँप उठती थी। गाँववाले कहते थे कि रात में किले से चीखें सुनाई देती हैं, और जो भी वहाँ गया, वह कभी वापस नहीं लौटा।

राहुल, एक युवा पत्रकार, जो रहस्यों को सुलझाने का शौकीन था, ने इस किले के बारे में सुना। वह अपने दो दोस्तों, माया और विक्रम, के साथ कालापुर पहुँचा। माया एक इतिहासकार थी, जो पुरानी इमारतों और उनके रहस्यों की खोज में माहिर थी, जबकि विक्रम एक फोटोग्राफर था, जिसे डरावनी जगहों की तस्वीरें लेने का जुनून था। तीनों ने ठान लिया कि वे किले के रहस्य को उजागर करेंगे।

गाँववालों ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की। एक बूढ़ी औरत, जिसके चेहरे पर झुर्रियों का जाल था, ने राहुल को चेतावनी दी, "बेटा, उस किले में कुछ ऐसा है जो इंसान के बस का नहीं। जो भी वहाँ गया, उसकी आत्मा वहाँ कैद हो गई।" लेकिन राहुल ने उसकी बात को हँसी में उड़ा दिया। "ये सब अंधविश्वास है, अम्मा," उसने कहा और अपने दोस्तों के साथ किले की ओर चल पड़ा।

शाम के चार बजे थे जब तीनों किले के विशाल लोहे के दरवाजे के सामने खड़े थे। दरवाजा जंग खा चुका था, और उस पर नक्काशी की गई आकृतियाँ अब धुंधली पड़ चुकी थीं। हवा में एक अजीब-सी सनसनाहट थी, जैसे कोई फुसफुसा रहा हो। माया ने अपनी डायरी में कुछ नोट्स लिए, जबकि विक्रम ने अपनी कैमरे से तस्वीरें खींचना शुरू किया। "यह जगह वाकई रहस्यमयी है," माया ने कहा, उसकी आवाज़ में उत्साह था।

किले के अंदर का दृश्य और भी भयावह था। दीवारें टूटी-फूटी थीं, और हर कोने से मकड़ियों के जाले लटक रहे थे। फर्श पर धूल की मोटी परत थी, जिसमें उनके कदमों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। हवा में एक अजीब-सी गंध थी, जैसे सड़ांध और पुरानी किताबों की मिली-जुली महक। राहुल ने अपनी टॉर्च जलाई और आगे बढ़ा। "चलो, देखते हैं ये किला हमें क्या दिखाता है," उसने हल्के हँसी के साथ कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक हल्का-सा डर था।

वे एक लंबे गलियारे में पहुँचे, जिसके दोनों ओर पुराने चित्र लटके थे। चित्रों में कुछ रियासत के लोग थे, लेकिन उनकी आँखें ऐसी थीं जैसे वे जीवित हों और उन्हें घूर रही हों। माया ने एक चित्र की ओर इशारा किया, जिसमें एक औरत थी, जिसके चेहरे पर दर्द और क्रोध का मिश्रण था। "ये शायद इस किले की रानी थी," माया ने कहा। "लगता है उसकी कहानी में कुछ दुख छिपा है।"

अचानक, विक्रम का कैमरा अपने आप बंद हो गया। "ये क्या हुआ?" उसने हैरानी से कहा। उसने कैमरा चालू करने की कोशिश की, लेकिन वह काम नहीं कर रहा था। तभी, गलियारे के अंत में एक हल्की-सी रोशनी दिखी। तीनों उस ओर बढ़े, लेकिन जैसे ही वे पास पहुँचे, रोशनी गायब हो गई। राहुल ने टॉर्च घुमाई, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था। "शायद ये हमारा वहम है," उसने खुद को तसल्ली दी।

वे एक बड़े हॉल में पहुँचे, जहाँ बीच में एक पुराना झूमर लटक रहा था। हॉल की दीवारों पर खून के धब्बे जैसे निशान थे, जो धूल और समय के साथ फीके पड़ चुके थे। माया ने हॉल के एक कोने में एक पुराना दर्पण देखा। वह उसके पास गई और उसमें अपना चेहरा देखा। लेकिन दर्पण में उसका प्रतिबिंब नहीं था। उसने डर से पीछे हटते हुए राहुल को पुकारा, "राहुल, यहाँ आओ! ये दर्पण... ये कुछ ठीक नहीं है।"

राहुल और विक्रम दर्पण के पास आए। लेकिन जैसे ही राहुल ने दर्पण में देखा, उसमें एक औरत का चेहरा उभरा। वही औरत, जो चित्र में थी। उसकी आँखें लाल थीं, और उसके चेहरे पर एक भयानक मुस्कान थी। "तुमने मुझे जगाया," एक ठंडी, भारी आवाज़ गूँजी। तीनों डर से पीछे हटे। दर्पण में औरत का चेहरा धीरे-धीरे गायब हो गया, लेकिन हॉल में हवा और ठंडी हो गई।

अचानक, झूमर जोर-जोर से हिलने लगा, और फर्श पर रखी धूल उड़ने लगी। "यहाँ से निकलना होगा!" विक्रम चिल्लाया। लेकिन जैसे ही वे दरवाजे की ओर भागे, दरवाजा अपने आप बंद हो गया। अब वे उस हॉल में फँस चुके थे। हवा में फुसफुसाहट तेज हो गई, जैसे सैकड़ों लोग एक साथ बोल रहे हों। "तुम यहाँ से नहीं जा सकते," एक आवाज़ बार-बार गूँज रही थी।

माया ने अपनी डायरी खोली और उसमें लिखे कुछ नोट्स पढ़ने लगी। "यहाँ कोई अभिशाप है," उसने काँपती आवाज़ में कहा। "शायद इस रानी की आत्मा यहाँ कैद है। हमें इसका कारण ढूँढना होगा।" राहुल ने हिम्मत जुटाई और हॉल के एक कोने में रखे एक पुराने सन्दूक की ओर बढ़ा। सन्दूक पर एक ताला था, लेकिन वह इतना पुराना था कि राहुल ने उसे आसानी से तोड़ दिया।

सन्दूक में एक पुरानी डायरी थी। माया ने उसे खोला और पढ़ना शुरू किया। डायरी में लिखा था कि रानी को उसके पति ने धोखा दिया था। उसने रानी को इस किले में कैद कर दिया था और उसकी हत्या कर दी थी। मरने से पहले, रानी ने श्राप दिया था कि जो भी इस किले में आएगा, वह उसकी आत्मा का गुलाम बन जाएगा।

तभी, हॉल में एक भयानक चीख गूँजी। तीनों ने देखा कि दीवारों पर खून के धब्बे फिर से ताजा हो गए थे। रानी की आत्मा अब उनके सामने थी। उसका चेहरा विकृत था, और उसकी आँखों से खून बह रहा था। "तुमने मेरा सन्दूक खोला," उसने चीखते हुए कहा। "अब तुम मेरे हो!"

विक्रम ने डरते हुए अपनी जेब से एक ताबीज निकाला, जो उसकी दादी ने उसे दिया था। उसने ताबीज को रानी की ओर फेंका। ताबीज ने रानी की आत्मा को छुआ, और वह चीखते हुए गायब हो गई। लेकिन हॉल का दरवाजा अब भी बंद था। तीनों ने पूरी ताकत लगाकर दरवाजा खोला और बाहर भागे।

जब वे गाँव पहुँचे, तो सुबह हो चुकी थी। गाँववालों ने उन्हें देखकर राहत की साँस ली, लेकिन राहुल, माया, और विक्रम अब पहले जैसे नहीं थे। उनकी आँखों में एक अजीब-सी खामोशी थी। उन्होंने कसम खाई कि वे कभी उस किले के बारे में बात नहीं करेंगे। लेकिन रात को, जब वे सोने की कोशिश करते, उन्हें वही फुसफुसाहट सुनाई देती थी। "तुम मेरे हो..."