अपने लापता पिता की खोज में आरव एक निषिद्ध वैदिक पांडुलिपि तक पहुँचता है जिसमें "त्रिकाल" नामक एक मुहर का वर्णन है - जिसके बारे में कहा जाता है कि वह काल (समय), आकाश (स्थान) और स्मृति (स्मृति) को नियंत्रित करती है।
आरव की यात्रा के दौरान जैसे ही आरव वाराणसी से हिमालय के एक भूले हुए शहर के बर्फीले खंडहरों की ओर यात्रा करता है, उसे एहसास होता है कि पौराणिक कथाएँ हमेशा तकनीक थीं, और देवों और असुरों के बीच की लड़ाई कभी खत्म नहीं हुई थी - यह थी बस फिर से शुरू होने का इंतजार है।
📖 Adhyay 1: "त्रिकाल की पहली पुकार"
[स्थान: वाराणसी – रात का समय]
चौक के पुराने मोहल्ले की पतली गलियों से होती हुई हवा आज कुछ अलग कहानी कह रही थी। जैसे किसी ने अतीत की साँसों को खींच लिया हो — और अब वो भविष्य को पुकार रही हो।
Aarav Mishra की नींद अचानक टूटी। उसके माथे पर पसीना था, साँसें बेकाबू, और आँखों में डर नहीं – एक अजीब सी जिज्ञासा थी।
“फिर वही सपना…” वो फुसफुसाया।
हर बार की तरह वो अंधेरे में एक गुफा में खड़ा होता है। सामने जलती है एक अग्निशिखा — और किसी की आवाज़ आती है, "त्रिकाल… समय को फिर से बाँधो।”
मगर इस बार कुछ अलग था।
इस बार आग के बीच में एक चेहरा दिखा था – उसके पिता का।
[10 साल पहले: तिब्बत]
Aarav का पिता — डॉ. शशांक मिश्र, एक विख्यात वैदिक आर्कियोलॉजिस्ट — एक शोध यात्रा पर गए थे। उन्होंने कहा था,
“Aarav, अगर मैं लौटूं न सकूं, तो बनारस की गुप्त लाइब्रेरी में 'त्रिकाल' नाम की किताब ढूँढ़ना। बाकी सब उसमें है।”
इसके बाद वो कभी लौटे नहीं।
[वर्तमान – बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]
Aarav अब BSc फिजिक्स का छात्र है, लेकिन असल में वो अपने पिता की बातों, सपनों और अधूरी कहानियों को जोड़ने में लगा हुआ है।
उसके पास बचपन से एक चीज़ है — एक तांबे की गोल पट्टी, जिस पर कुछ अजीब संस्कृत शब्द खुदे हैं और बीच में एक घूमता हुआ त्रिकोणमंत्र चिह्न है।
वो चिह्न कभी-कभी चमकता है – जैसे किसी अदृश्य ऊर्जा से।
[Rare Manuscripts Archive, BHU]
उसे वहाँ मिलती है — डॉ. मीरा रॉय, एक प्राचीन ग्रंथ विशेषज्ञ।
Aarav उसे पट्टी दिखाता है।
मीरा की आँखों में एक पल को हलचल होती है, फिर वो कहती है:
"तुम्हें पता है ये क्या है? ये 'ऋग्वेद का शून्य मंत्र' है।
वो मंत्र जो किसी भी वेद में दर्ज नहीं, लेकिन काल के बाहर मौजूद है।"
Aarav चौंक जाता है।
"मतलब?”
"मतलब... तुम्हारे पिता ने जो खोजा था, वो वेदों से भी प्राचीन है – त्रिकाल यंत्र।
एक ऐसा यंत्र जो ‘काल’, ‘आकाश’ और ‘स्मृति’ को नियंत्रित करता था।
और शायद... उसी के कारण वो गायब हो गए।”
[रात में Aarav का कमरा]
Aarav उस पट्टी को फिर से देखता है। उसे याद आता है – बचपन में जब पापा ने पहली बार उसे दिखाया था, तो उन्होंने कहा था:
“कभी इस पर जलती हुई रेखाएं दिखें, तो समझ लेना — काल ने तुम्हें पुकारा है।”
अचानक, पट्टी पर एक चमकती रेखा उभरती है — और पूरा कमरा गूंज उठता है एक गहरे, कंपकंपाते शब्द से:
“त्रिकालं प्रविश — समय अब स्थिर नहीं है।”
Aarav की आँखें पलटती हैं, शरीर कांपता है। अगले ही पल वो खुद को एक अंधेरी जगह पर पाता है — वही सपना!
मगर इस बार वो सपना नहीं है —
उसकी हथेली पर पट्टी जल रही है, और सामने उसकी आंखों के ठीक सामने कोई खड़ा है…
…उसके पिता?
"आग्रह मत करना पुत्र," वो बोलते हैं,
"…क्योंकि तुमने अब त्रिकाल को छू लिया है। अब पीछे लौटना संभव नहीं…”
अगले अध्याय में:
Aarav को एक coded map मिलेगा – ऋग्वेद मंत्रों की sound frequencies से बना
एक रहस्यमयी गुफा में "यंत्र" खुलेगा
और पहली बार Vedna नाम की AI से संवाद होगा