Adakaar - 1 in Hindi Crime Stories by Amir Ali Daredia books and stories PDF | अदाकारा - 1

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अदाकारा - 1

अदाकारा 1
(प्रिय पाठकों! इस बार मैं आपके लिए अदाकारा* नामक एक सस्पेंस थ्रिलर कहानी लेकर आया हूँ। जो आपको ज़रूर पसंद आएगी। इसे पढ़ने के बाद आप अपनी राय ज़रूर दें।)

               *अदाकारा 1*

इंस्पेक्टर बृजेश।
वह एक लंबा,सुंदर,ऊर्जावान और स्वस्थ अधिकारी था। उनकी उम्र तीस साल के करीब थी,लेकिन अभी तक उनकी शादी नहीं हुई थी।
चेहरे पर पतली दाढ़ी मरोड़दार मूंछे ओर घुंघराले बालों के कारण वह बेहद आकर्षक लगता था।
ब्रिजेश का अभी तक शादी न करने का एकमात्र कारण यह था कि वह एक साधारण परिवार से था। लेकिन वह बहुत महत्वाकांक्षी ओर अपने कार्य के प्रति बेहद ईमानदार भी था। और उनका एक ही लक्ष्य था कि पहले वह जीवन में कुछ नाम और शोहरत कमाएँ और उसके बाद ही अपना घर बसाएँ।
ऐसा नहीं था कि उन्हें शादी के प्रस्ताव नहीं मिल रहे थे। लेकिन उन्होंने तय कर लिया था कि जब तक वह कुछ बन नही जाते, कुछ नाम ओर शोहरत कमा नही लेते तब तक वह शादी का नाम भी नहीं लेंगे।
वह दो साल से सब पुलिस इंस्पैक्टर थे। लेकिन उन्होंने अभी तक उनके हाथ एक भी ऐसा मामला नहीं लग पाया था जिससे उन्हें कोई प्रसिद्धि या प्रतिष्ठा मिलती।
पिछले दो सालों से वह एक ऐसे केस की तलाश में था जिससे उसे शोहरत और प्रतिष्ठा दोनों मिले।
वह पिछले एक साल से वर्सोवा पुलिस स्टेशन में सेवारत था। लेकिन उसने अभी तक एक भी ऐसा केस नहीं संभाला था जिससे उसे शोहरत या प्रतिष्ठा मिलती। वह बेसब्री से ऐसे केस का इंतज़ार कर रहा था।बस वह इंतज़ार कर ही रहा था।

   रात के लगभग साढ़े ग्यारह बज रहे थे। बृजेश की ड्यूटी पूरी हो चुकी थी। और वह घर जाने से पहले हमेशा कॉफ़ी की एक चुस्की जरुर लेता था।
उसने कांस्टेबल जयसूर्या से कहा
"जयसूर्या भाई। कॉफ़ी का इंतज़ाम करो ताकि आज की ड्यूटी पूरी करके घर जा सकु।"
"अरे, मैं अभी ऑर्डर करता हूँ, सर। बस मुझे कुछ मिनट दीजिए।"
यह कहकर जयसूर्याने कॉफ़ी ऑर्डर की। दोनों ने आधी-आधी कॉफ़ी पी ली। कॉफ़ी पीने के बाद के बाद, वह अब घर जाने के लिए तैयार था। उसने पुलिस स्टेशन के द्वार की तरफ अपना कदम अभी बढ़ाया ही था की ठीक उसी वक्त पुलिस स्टेशन का फ़ोन बज उठा।
ट्रिन.. ट्रिन.. ट्रिन।
हवलदार जयसूर्या ने रिसीवर कान पर लगाया और कहा।
"मैं कांस्टेबल जयसूर्या बोल रहा हूँ। वर्सोवा पुलिस स्टेशन। से।"
"इंस्पेक्टर बृजेश को फ़ोन दीजिए प्लीज़?"
दूसरी तरफ़ से एक आदमी की आवाज़ सुनाई दी।
"आप कौन हैं? ओर आपको क्या काम है?"
"बहुत ज़रूरी काम है, कृपया इंस्पेक्टर से बात करवाए ना।"
अब जयसूर्या ने बृजेश की तरफ़ देखा,तो बृजेश चौकी की दहलीज़ पार कर रहा था।
"बृजेश साहब की ड्यूटी खत्म हो गई है। जो भी कहना है, मुझे कहिए।"
"बड़े भाई। मुझे उनसे एक ख़ास काम है, प्लीज़।"
जयसूर्या ने बृजेश को आवाज़ देते हुए कहा।
"साहब। आपके लिए फ़ोन है।"
बृजेश ने थकी हुई आवाज़ में कहा।
"उन्हे कहदो कि कल दोपहर दो बजे के बाद फ़ोन करे।"
"सुना आपने?साहब ने कहा है कि कल दोपहर दो बजे के बाद फ़ोन करना।"
जयसूर्या फ़ोन रखने ही वाले थे कि दूसरी तरफ़ से अजनबी ने जल्दी से कहा।
"उसे बताओ कि मुझे उन्हीके काम के बारे में कुछ ज़रूरी जानकारी देनी है।"
ज़रूरी जानकारी सुनकर जयसूर्या ने कहा।
"एक मिनट रुको।"
रिसीवर मेज़ पर रखकर वह बाहर भागा। तब तक बृजेश अपनी बाइक पर बैठ चुका था। और बाइक को किक मारने ही वाला था कि जयसूर्या जल्दी से लंबे कदमों से उसके पास आया।
"क्या हुआ?"
बृजेश ने पूछा।
"सर,वह कह रहा है कि उसे आपको कुछ ज़रूरी जानकारी देनी है।और वह भी सिर्फ़ आपको।"
"ज़रूरी जानकारी?"
बृजेश ने जयसूर्या की बात दोहराई। बाइक वापस स्टैंड पर रखकर बृजेश चौकी के अंदर लौट आया। और रिसीवर मेज़ परसे उठाकर कान से लगाकर उसने कहा।
"नमस्ते। आप कोन बात कर रहे हैं?"
"एक जागरूक नागरिक।"
सामने से जवाब आया।
"पहेले अपना नाम बताओ।"
"मेरे नाम का क्या करोगे,सर? काम सुनो।"
"अपना नाम बताने में क्या दिक्कत है?"
"मैं नहीं चाहता कि मेरा नाम खबरों में आए। और अब,समय हाथ से निकल जाए इससे पहले,कृपया मे जो खबर दे रहा हूं उसे ध्यान से सुन लीजिए।"
(वह अजनबी कौन था?और इंस्पेक्टर बृजेश को क्या जानकारी देना चाहते था?)