"वो जो मेरा था..."
📖 Episode 7 – Chapter Café में छुपा राज़
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कभी-कभी कुछ ठिकाने सिर्फ मुलाक़ातों के लिए नहीं होते…
वो अधूरी कहानियों की आख़िरी सांसें भी बन जाते हैं।
काव्या और आरव अब रिया के छोड़े हर संकेत के पीछे चल रहे थे — जैसे कोई अदृश्य डोर उन्हें उस अधूरे अंत तक खींच रही थी।
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🌤️ सुबह – Chapter Café का वो कोना
“Chapter Café” मुंबई के सबसे पुराने बुक कैफे में से एक था।
दीवारें किताबों से ढकी हुईं… खिड़कियों से हल्की धूप अंदर आती… और हवा में कॉफी के साथ स्याही की भी खुशबू घुली रहती।
काव्या और आरव जब वहाँ पहुँचे, तो वो कोना उन्हें तुरंत मिल गया।
एक छोटी सी टेबल… जिसके किनारे उकेरे हुए थे:
> “Ria – 12th March”
आरव के चेहरे पर भावुक मुस्कान आ गई।
“यही वो जगह है, जहाँ रिया अपने हर नए कहानी की शुरुआत करती थी।”
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📜 रिया की आख़िरी निशानी
टेबल के नीचे लकड़ी के एक फट्टे में हल्की सी दरार थी।
काव्या ने जैसे ही वहाँ हाथ डाला, एक छोटा सा नोटबुक बाहर निकला।
उस पर लिखा था:
> "अगर तुमने यहाँ तक पढ़ लिया है,
तो मेरी अधूरी कहानी अब तुम्हारी है।"
काव्या की उंगलियाँ काँप रही थीं।
वो जानती थी कि ये सिर्फ रिया की डायरी नहीं… ये आरव के दिल का वो हिस्सा था, जो अब तक किसी को नहीं मिला था।
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📖 डायरी के पन्नों पर रिया के शब्द
> “मैं नहीं चाहती थी कि आरव मुझे बीमार देखे।
मैंने उसे हमेशा अपनी हँसी में देखा था… और मैं चाहती थी कि वो तस्वीर कभी न बदले।”
> “पर शायद मैं गलत थी…
क्योंकि मोहब्बत में खुद को छुपाना, धोखा देने जैसा होता है।”
> “अगर काव्या मेरी कहानी पढ़ रही है,
तो जान लो…
कि तुम्हारे शब्दों में वो सच्चाई है,
जो मैंने कभी खुद के लिए नहीं लिखी।”
काव्या की आँखें भर आईं।
उसने डायरी को सीने से लगा लिया।
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🧩 एक अनजान पन्ना – "The Letter Never Sent"
डायरी में एक फोल्ड किया हुआ पन्ना था, जिस पर लिखा था:
> “To Aarav – The Letter I Could Never Send”
काव्या ने वो पन्ना आरव की तरफ बढ़ाया।
उसके हाथ काँप रहे थे। शायद वो शब्द, जो सालों पहले कहे जाने थे, अब सामने थे।
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📜 रिया का अधूरा खत
> “प्रिय आरव,
मुझे नहीं पता कि ये खत तुम कभी पढ़ पाओगे या नहीं।
पर मैं चाहती हूँ कि तुम जानो —
कि मैंने तुम्हें कभी इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि मैं तुमसे दूर जाना चाहती थी।
मैंने तुम्हें इसलिए छोड़ा, क्योंकि मुझे लगा तुम मुझसे बेहतर deserve करते हो।”
> “पर सच तो ये है कि मोहब्बत में कोई ‘deserve’ नहीं करता।
हम बस पा जाते हैं… या खो देते हैं।”
> “अगर कभी तुम्हें कोई ऐसा मिले,
जो तुम्हारे शब्दों को, तुम्हारी चुप्पियों को समझे…
तो प्लीज़, उसे अपने दिल की वो जगह देना,
जो तुमने मेरे लिए खाली रखी थी।”
> “और हाँ…
कभी सोचना मत कि तुमने मुझे खो दिया।
मैं तुम्हारे हर लफ्ज़ में ज़िंदा रहूँगी।”
> – रिया
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🕊️ आरव का टूटना… और खुद को फिर से जोड़ना
आरव ने वो खत पढ़ते हुए खुद को बिल्कुल नंगे महसूस किया।
इतने सालों से जो शब्द उसने दिल में दबा रखे थे,
वो आज रिया की लिखावट में उसके सामने थे।
उसकी आँखों से आंसू गिर रहे थे…
मगर इस बार वो आंसू रुकने के लिए नहीं थे —
वो बहकर उसके दिल के बोझ को हल्का कर रहे थे।
काव्या ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा।
कोई शब्द नहीं कहे — बस एक साथ बैठकर उस चुप्पी को महसूस किया, जो दोनों के बीच अब समझ में बदल चुकी थी।
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🌌 “वो जो मेरा था…” – अब उसकी कहानी थी
काव्या ने धीरे से कहा:
“शायद रिया चाहती थी कि तुम उसे किसी किताब की तरह मत रखो…
बल्कि किसी अधूरी कविता की तरह जीओ।”
आरव ने पहली बार सीधा कहा:
“और शायद मैं चाह रहा हूँ कि कोई मेरी अधूरी कहानी को पूरा करे… बिना रिया बने।”
काव्या ने मुस्कराकर कहा:
“तो फिर चलिए, आपकी कहानी को एक नई शुरुआत देते हैं।”
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📚 ब्लू बेल पब्लिकेशन – प्रोजेक्ट लॉन्च मीटिंग
अगले दिन ऑफिस में एक बड़ा इवेंट था —
“वो जो मेरा था...” के लॉन्च की अनाउंसमेंट।
काव्या और आरव ने मिलकर प्रेजेंटेशन तैयार किया।
इस बार ये सिर्फ एक किताब नहीं थी —
ये उन सभी अधूरी मोहब्बतों की आवाज़ थी, जो कभी कह न सकीं।
मीटिंग के दौरान काव्या ने सबके सामने कहा:
“ये कहानी रिया की है… पर ये कहानी किसी भी उस इंसान की हो सकती है,
जो कभी अपनी मोहब्बत को पूरा नहीं कर पाया।
और शायद, कहानियाँ अधूरी ही सबसे ज़्यादा खूबसूरत होती हैं।”
सारा हॉल तालियों से गूंज उठा।
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🌃 इवेंट के बाद – Rooftop पर आरव और काव्या
रात को ऑफिस की छत पर दोनों बैठे थे।
शहर की रौशनी, हल्की हवा, और दोनों के बीच वो सुकून… जो सिर्फ समझदारी से आता है।
आरव ने पूछा:
“तुम्हें कभी डर नहीं लगता? कि कहीं मैं अब भी रिया में ही अटका हूँ?”
काव्या ने मुस्कराकर कहा:
“डर लगता है… पर उससे ज़्यादा यकीन है कि मैं तुम्हारे अगले पन्ने पर हूँ।”
ये पहली बार था जब आरव खुलकर मुस्कराया।
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📷 एक तस्वीर – यादों की किताब के लिए
आरव ने अपने मोबाइल से एक तस्वीर ली —
काव्या की, उस रौशनी में, उस हवा में।
“ये तस्वीर शायद मेरी कहानी का नया कवर बनेगी।”
काव्या ने भी झूठी नाराजगी में कहा:
“बस? बिना पूछे मेरी तस्वीर लगा दोगे?”
आरव ने उसकी आँखों में देखकर कहा:
“तुम्हारे बिना अब इस कहानी का कोई कवर हो ही नहीं सकता।”
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📩 और तभी – एक और मेल आया
Late night, काव्या के फोन में एक मेल आया:
Subject: “The Last Chapter – Scheduled Delivery”
मेल में लिखा था:
> “Chapter Café के सामने वाले पुराने पोस्ट ऑफिस में,
रिया ने एक लिफाफा छोड़ा था — तुम्हारे लिए।”
> “जाने का समय आ गया है।”
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🔍 Chapter Café – The Final Clue
अगली सुबह, काव्या और आरव सीधे उस पोस्ट ऑफिस पहुँचे।
वहाँ एक बूढ़ा कर्मचारी था, जिसने दोनों को पहचान लिया।
“रिया मेहता… हाँ, उसने एक लिफाफा छोड़ा था। कहा था कि जब कोई ‘काव्या’ आकर मांगे, तभी देना।”
उसने एक हल्का सा पीला पड़ा लिफाफा निकाला।
लिफाफे पर लिखा था: “For Kavya – The End That’s A Beginning”
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📜 रिया का आख़िरी खत
> “प्रिय काव्या,
जब तुम ये पढ़ रही होगी,
तब तक तुम समझ चुकी होगी कि ये कहानी तुम्हारी है।”
> “मैंने अपनी कहानी आधी छोड़ दी थी —
ताकि कोई उसे अपने तरीके से पूरा कर सके।”
> “तुमने वो कर दिखाया है।”
> “आरव सिर्फ मेरा नहीं है…
वो हर उस इंसान का है, जो किसी के खोने के बाद भी प्यार करने की हिम्मत रखता है।”
> “अब जाओ… और अपनी कहानी लिखो।”
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🌇 अंत... या एक नई शुरुआत?
काव्या और आरव पोस्ट ऑफिस के बाहर खड़े थे।
हवा में रिया की आवाज़ गूंज रही थी…
जैसे वो कह रही हो — “Finally… तुमने मेरी कहानी जी ली।”
आरव ने काव्या से कहा:
“तो, क्या हम अपनी किताब लिखें?”
काव्या ने उसकी तरफ देखा…
अब उसकी मुस्कान में कोई डर, कोई छुपाव नहीं था।
सिर्फ सच्चाई थी।
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To Be Continued...
अगला एपिसोड (Episode 8):
"जब आरव ने काव्या के लिए पहली बार लिखा…"
(अब उनकी कहानी सिर्फ रिया की नहीं रहेगी — एक नया मोड़ कल)
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