SiSakati Wafa ek adhuri Mohabbat ki mukmmal Dastan - 3 in Hindi Love Stories by Babul haq ansari books and stories PDF | सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 3

Featured Books
Categories
Share

सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 3

रचना: बाबुल हक़ अंसारी

भाग-3    जिस गिटार से मोहब्बत सांस लेती थी

गिटार की वह अधूरी धुन जब घाट पर गूंजी, तो जैसे हर लहर ने उसे थाम लिया हो।
आदित्य की उंगलियाँ काँप रही थीं, और आयशा की आँखें भी।

धुन पूरी होते-होते रुकी नहीं — बल्कि जैसे वक़्त को भी रोक लिया।
आयशा चुपचाप देखती रही, मानो उसके भीतर कुछ टूटकर फिर से जुड़ गया हो।

वो बोली नहीं —
बस धीरे से घाट की सीढ़ियों पर बैठकर गंगा की तरफ़ देखने लगी।

आदित्य उसके पास आकर बैठा।
"आयशा जी… ये धुन… अब मेरी नहीं रही।
इसमें आपका ग़म, आर्यन की मोहब्बत… और हमारी तलाश है।
कहिए… इसे क्या नाम दूँ?"

आयशा ने धीरे से कहा —
"‘सिसकती वफ़ा’… यही नाम होना चाहिए… क्योंकि ये मोहब्बत भले ही अधूरी थी… पर आज मुकम्मल लग रही है।"

उसी शाम, घाट पर एक पुराना रिकॉर्डिंग माइक लगाया गया।
पुराना दोस्त राज़ी, जो आर्यन के साथ बैंड में बजाता था, अचानक बनारस लौट आया था।

राज़ी ने आदित्य से कहा —
"भाई, तू वही धुन फिर से बजा… और आयशा दी… आप उसमें अपनी चिट्ठियाँ पढ़ें।
आर्यन की कहानी यूँ ही नहीं जानी चाहिए… दुनिया को सुनना होगा।"

रिकॉर्डिंग शुरू हुई।
गिटार पर वही अधूरी धुन…
और आयशा की आवाज़ गूंजने लगी:

> ""तुम्हारे जाने के बाद ये बनारस भी वैसा नहीं रहा…
घाट वही हैं… पर हर किनारा अब खाली लगता है।
मैंने सीखा है — कुछ लोग चले जाते हैं, लेकिन वो धड़कनों में गूंजते रहते हैं..."

लोग रुकने लगे, सुनने लगे।
घाट पर जैसे एक पूरा शहर खामोश था।

रात के अंत में, आदित्य ने कहा —
"आयशा जी… क्या आप चाहती हैं कि मैं आर्यन की अधूरी किताब पूरी करूँ?"

आयशा ने उसकी ओर देखा —
"अगर तुमने उसकी धुन को पूरा कर दिया… तो उसके लफ़्ज़ों को भी ज़िंदा कर सकते हो।
लेकिन एक शर्त है…"

"क्या?" आदित्य ने पूछा।

"उस किताब का नाम वही होना चाहिए…
‘सिसकती वफ़ा – एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान’
क्योंकि यही नाम अब जीना चाहता है।"

कुछ महीने बाद – बनारस की एक पुरानी लाइब्रेरी में
एक किताब लॉन्च हुई।
जिसके पहले पन्ने पर लिखा था:

> "इस किताब की हर स्याही एक सिसकती वफ़ा है…
जिसे तुमने अधूरा छोड़ा, लेकिन किसी और ने पूरा कर दिया..."


और उस शाम, घाट पर फिर वही गिटार बजा —
लेकिन इस बार सिर्फ़ आदित्य नहीं,
आयशा भी साथ थी।

धुन अब पूरी थी…
मोहब्बत अब मुकम्मल थी…
और सिसकती वफ़ा अब सिसक नहीं रही थी, मुस्कुरा रही थी।

सवालों भरी आँखें और अधूरी आवाज़

गंगा की लहरों के बीच बैठी आयशा, बस आर्यन की धुनों में उलझी थी।
हर लहर जैसे कुछ कह रही थी —
कुछ याद दिला रही थी।

तभी... एक अनजानी आवाज़ ने उसकी सोच को काटा।

"आप... आयशा हैं?"

वो चौंकी।
नज़र उठाई —
सामने एक लड़का खड़ा था, हाथ में गिटार... आँखों में सवाल।

लड़का आर्यन जैसा नहीं था, लेकिन उसकी आँखों में वही बेचैनी थी —
जैसी कभी आर्यन की नज़रों में होती थी जब वो कुछ कहकर भी चुप रह जाता था।

आयशा ने धीरे से पूछा,
"तुम कौन हो?"

लड़का एक सांस रोककर बोला —
"मैं आर्यन का छोटा भाई हूँ… आदित्य।"
"आर्यन के जाने के बाद आपकी बहुत तलाश की हमने...
ये गिटार… आपकी चिट्ठियाँ… सब कुछ मेरे पास है।"

ये सुनते ही आयशा का चेहरा बदल गया।
जैसे किसी ने एक पुराना दरवाज़ा खोल दिया हो, जिसमें धूल भी थी और ख्वाब भी।

आयशा ने नज़रें झुका लीं,
"वक़्त लौट आया है... पर आर्यन नहीं..."

आदित्य कुछ देर चुप रहा, फिर बोला —
"क्या... मैं एक धुन सुन सकता हूँ?
आर्यन अधूरी छोड़ गया था...
शायद मैं उसे पूरा कर पाऊँ…"

आयशा कुछ देर तक घाट की सीढ़ियों को देखती रही।
फिर उसने धीरे से सिर हिलाया।

गिटार की वो अधूरी धुन घाट पर फिर गूंज उठी —
इस बार आर्यन नहीं, उसका भाई बजा रहा था।
पर धड़कनें वही थीं।
वही तान… वही दर्द… वही ठहराव।

और जैसे हर राग के साथ,
आयशा की आँखों से वही हँसी बहने लगी —
जो एक ज़माने में आर्यन को सबसे प्यारी लगती थी।


घाट पर बैठी अम्मा ने दूर से देखा,
हल्की मुस्कान के साथ बुदबुदाईं —
"कह दिया था बेटा, कुछ अधूरी चीज़ें लौट आती हैं… बस शक्लें बदल जाती हैं…"


---

(…जारी है… अगला भाग — पहली बार पूरी धुन")