आरव और उसके तीन दोस्त—नेहा, कबीर और राहुल—ने तय किया कि इस बार की छुट्टियों में वे किसी ऐसी जगह जाएंगे जहाँ भीड़ न हो, बल्कि असली रोमांच हो। इंटरनेट पर बहुत खोजने के बाद उन्हें उत्तराखंड के एक अनजाने ट्रैक का ज़िक्र मिला। लिखा था—“अगर हिम्मत है तो इस रास्ते पर कदम रखो।”
पहाड़ों के बीच, घने देवदार के जंगल में उनकी यात्रा शुरू हुई। शुरू में सब आसान था, ठंडी हवा, पंछियों की आवाज़ और चारों तरफ़ हरियाली। लेकिन जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, रास्ता संकरा होता गया। अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई। उनके मोबाइल पर नेटवर्क नहीं था। नक्शा भी बेकार हो चुका था।
कबीर बोला:“यार, मुझे लग रहा है हम गलत रास्ते पर आ गए हैं।”
नेहा ने जवाब दिया:“अब पीछे जाना भी मुश्किल है, हमें आगे ही बढ़ना होगा।”
कुछ दूरी पर उन्हें एक पुराना लकड़ी का पुल दिखाई दिया, जो एक गहरी खाई पर बना था। लकड़ी की कई पट्टियाँ टूटी हुई थीं। अगर कोई ज़रा सा फिसला तो सीधा खाई में। सबके दिल की धड़कन तेज़ हो गई। आरव ने सबसे पहले कदम बढ़ाया और सावधानी से पुल पार करने लगा। हवा तेज़ थी, और नीचे बहती नदी का शोर डर और बढ़ा रहा था।
पुल पार करते ही वे एक खुली जगह पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक पुराना पत्थर का मंदिर मिला। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने सदियों से उसे छुआ भी न हो। दरवाज़ा आधा टूटा था, लेकिन अंदर सूखा था। सबने वहीँ रात बिताई। चारों तरफ़ सिर्फ़ जंगल की आवाज़ें थीं—भेड़ियों की हूक, पत्तों की सरसराहट, और अनजाने खड़क।
सुबह जब वे उठे, तो देखा कि एक अद्भुत नज़ारा सामने था—बर्फ से ढकी चोटियाँ, उगता सूरज और एक ऐसी घाटी, जिसका कोई ज़िक्र इंटरनेट पर नहीं था। लगता था जैसे वे किसी छुपी हुई दुनिया में पहुँच गए हों।
ठीक है। यहाँ Part 2 है:“जंगल के उस पार – भाग 2”
सुबह का दृश्य जितना खूबसूरत था, उतना ही अजीब भी। घाटी में धुंध छाई थी, और ऐसा लग रहा था जैसे कोई उन्हें देख रहा हो। आरव ने सबसे पहले नोटिस किया कि रात में जहाँ उनके बैग रखे थे, उनमें से एक का ज़िप खुला हुआ था।
राहुल ने घबराकर कहा:“कहीं यहाँ कोई और तो नहीं है?”
नेहा बोली:“या फिर… कोई जंगली जानवर।”
उन्होंने जल्दी-जल्दी सामान समेटा और घाटी के दूसरी तरफ़ बढ़ने लगे। रास्ते में उन्हें पेड़ों पर अजीब निशान दिखे—तीर के जैसे कटे हुए चिन्ह। कबीर ने अंदाज़ा लगाया कि ये शायद किसी पुरानी जनजाति के निशान हों।
कुछ घंटों की चढ़ाई के बाद वे एक गुफा के पास पहुँचे। गुफा के अंदर से हल्की रोशनी आ रही थी। चारों ने हिम्मत करके अंदर कदम रखा। अंदर दीवारों पर चित्र बने थे—शिकारी, पहाड़, और एक सोने जैसी चमकती आकृति।
आरव ने धीरे से कहा:“शायद ये कोई पुराना खज़ाना है… या फिर कोई कहानी।”
तभी गुफा के पीछे से एक आवाज़ आई। किसी ने बहुत धीमे स्वर में कहा—“वापस लौट जाओ…”
चारों के रोंगटे खड़े हो गए। कबीर ने टॉर्च का फोकस उधर डाला, लेकिन कोई नहीं दिखा। अचानक गुफा का एक हिस्सा हिला और एक छुपा रास्ता खुल गया। डर और रोमांच, दोनों एक साथ। उन्होंने फैसला किया कि अब पीछे मुड़ना बेकार है—जो भी है, उसका सामना करना ही होगा।
वे उस रास्ते पर आगे बढ़े। अचानक उनके पैरों के नीचे की ज़मीन फिसली और वे एक ढलान पर लुढ़कते हुए नीचे जा गिरे। जब होश आया, तो उन्होंने खुद को एक भूमिगत दुनिया में पाया—जहाँ झीलें थीं, चमकते पत्थर थे और दूर कहीं से ढोल जैसी आवाज़ आ रही थी।
अगर चाहो तो मैं Part 3 लिख सकती हूँ जिसमें असली खतरा और बड़ा ट्विस्ट आएगा।क्या मैं आगे लिखूँ?
काजल ठाकुर