silant love jo Kabi kha Nahi in Hindi Love Stories by kajal Thakur books and stories PDF | साइलेंट लव - वो जो कभी कहा नहीं

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साइलेंट लव - वो जो कभी कहा नहीं

: "साइलेंट लव - वो जो कभी कहा नहीं

भाग 1: अनदेखा एहसास

कॉलेज का पहला दिन था। भीड़ थी, शोर था, और सब कुछ नया-नया लग रहा था। पर एक चेहरा था जो भीड़ में भी अलग दिखता था — अनन्या। शांत, किताबों में खोई हुई, जैसे उसकी अपनी एक दुनिया हो।उधर आरव, कॉलेज का सबसे फ्रेंडली लड़का, लेकिन अंदर से बेहद अकेला। उसने कभी किसी लड़की से सीरियस होकर बात नहीं की थी — पर अनन्या में कुछ अलग था।

पर कहानी में ट्विस्ट ये था कि अनन्या बोल नहीं सकती थी। हाँ, वो मूक-बधिर थी। ये बात जब आरव को पता चली, वो चौंका… पर वो पीछे नहीं हटा।

भाग 2: इशारों की ज़ुबान

आरव ने साइन लैंग्वेज सीखनी शुरू की — बस इसलिए कि वो अनन्या से बात कर सके। बाकी दोस्त उसे पागल समझते थे। लेकिन आरव को फर्क नहीं पड़ता था।

धीरे-धीरे अनन्या की दुनिया में आरव ने कदम रखा। वो दोनों लाइब्रेरी में मिलते, एक-दूसरे को चिट पर बातें लिखते, और इशारों में हँसते।

एक दिन अनन्या ने हाथ से दिल का निशान बनाकर उसकी ओर इशारा किया। आरव की आँखों में आँसू थे। ये पहली बार था जब किसी ने उसे बिना शब्दों के प्यार किया था।

भाग 3: लव लैटर जो कभी नहीं पढ़ा गया

कॉलेज का आखिरी दिन आया। आरव ने एक लव लैटर लिखा — हाथ से, पूरे दिल से। उसने अनन्या को देने का प्लान बनाया। लेकिन वो दिन कभी नहीं आया।

अचानक, अनन्या का परिवार दूसरे शहर शिफ्ट हो गया। बिना बताए। बिना अलविदा कहे।

आरव टूट गया।

पर हर साल, उसी तारीख को वो लाइब्रेरी की उसी सीट पर बैठता है। वही चिट, वही लव लैटर साथ लेकर।

भाग 4: दस साल बाद…

एक दिन, लाइब्रेरी में वही चिट पड़ी मिली — अनन्या की हैंडराइटिंग में —"तुम्हारा प्यार मेरी आवाज़ बन गया था… मैं अब वापस आ गई हूँ।"

और पीछे खड़ी थी अनन्या, आँखों में आँसू, होंठों पर मुस्कान।अंत नहीं… एक नई शुरुआत

कभी कभी प्यार आवाज़ नहीं मांगता… सिर्फ एहसास चाहिए।

बहुत बढ़िया! तो चलिए हम इस कहानी "साइलेंट लव – वो जो कभी कहा नहीं" को विस्तार से एक उपन्यास के रूप में आगे बढ़ाते हैं।मैं इसे भागों में पेश करूँगा, ताकि हर भाग एक गहराई और भावनात्मक जुड़ाव के साथ सामने आए।

अब हम भाग 5: "दूसरी शुरुआत" से कहानी को आगे बढ़ाते हैं —भाग 5: दूसरी शुरुआत

लाइब्रेरी की वही पुरानी खामोशी... किताबों की वो सुगंध... और बीच में खड़ा आरव, हाथ में वही लव लैटर।

पीछे से एक नर्म सी थाप उसके कंधे पर पड़ी।आरव ने मुड़कर देखा — वही चेहरा… वही मुस्कान… अनन्या!उसकी आँखों में वही चमक, पर अब कुछ और भी था — आत्मविश्वास।

अनन्या ने साइन लैंग्वेज में कहा:"मैंने तुम्हें बहुत मिस किया। हर दिन तुम्हारे खत पढ़े जो तुम मुझे कभी दे नहीं पाए।"

आरव कुछ कह नहीं पाया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

अब अनन्या बोल सकती थी।हां, उसने वॉयस थेरेपी और सर्जरी के ज़रिए थोड़ा-बहुत बोलना सीख लिया था — सिर्फ एक इंसान के लिए — आरव।भाग 6: अधूरे पन्नों की कहानी

वो दोनों साथ बैठते हैं, हर दिन की यादें एक-दूसरे से साझा करते हैं।आरव को आज भी विश्वास नहीं होता कि ये सब हकीकत है।

पर जिंदगी आसान नहीं होती।

अनन्या की शादी तय हो चुकी है। किसी और से। एक अरेंज मैरिज।पर वो शादी करना नहीं चाहती।

अब सवाल ये है — क्या वो अपने परिवार के खिलाफ जाकर आरव को चुन पाएगी?

बहुत बढ़िया!तो अब पेश है भाग 7 — जहाँ कहानी लेती है एक भावनात्मक और निर्णायक मोड़:भाग 7: दो राहें – एक फैसला

अनन्या के पिता, रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर, बहुत सख्त इंसान थे। उन्हें "कमज़ोरी" पसंद नहीं थी — और प्यार? उनके लिए वो सिर्फ किताबों की बात थी।

अनन्या जब घर पहुँची, तो उसने पहली बार अपने पापा से बात की — वो भी आवाज़ में, लड़खड़ाते शब्दों में…

"पापा... मैं आरव से प्यार करती हूँ।"

घर में सन्नाटा छा गया।माँ की आँखें नम थीं — वो जानती थीं, ये पहली बार था जब अनन्या ने बोलकर कुछ माँगा था।

पिता ने गुस्से में कहा,"तुम जैसी हो, तुम्हें जिसने स्वीकारा वो लड़का या तो झूठा है या बेवकूफ़।"

अनन्या का दिल टूट गया… लेकिन वो चुप नहीं रही।उसने साइन लैंग्वेज और बोल दोनों में जवाब दिया:

"अगर वो बेवकूफ़ है, तो मैं उसी की दुनिया बनना चाहती हूँ। उसने मेरी खामोशी को आवाज़ दी… आपने तो कभी सुना ही नहीं।"भाग 8: इज़्ज़त का सवाल

पिता ने शर्त रख दी —"अगर आरव एक महीने में तुम्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से सुरक्षित ज़िंदगी दे सकता है, तभी हम इस रिश्ते को मानेंगे।"

आरव एक साधारण परिवार से था। उसका सपना था — एक ऑनलाइन लर्निंग ऐप बनाना, जहाँ दिव्यांग बच्चों को फ्री शिक्षा मिले। पर वो अभी भी संघर्ष कर रहा था।

अब मामला सिर्फ प्यार का नहीं रहा —अब सवाल था:क्या आरव साबित कर पाएगा कि वो अनन्या के लायक है?

अब ये कहानी एक और मोड़ पर आ गई है।

बहुत अच्छा! तो अब हम कहानी को उस दिशा में आगे बढ़ाते हैं जहाँ संघर्ष, जुनून और एक पुराना राज — तीनों मिलकर इसे और भी खास बनाते हैं।🌟 भाग 9: आवाज़ जो इतिहास से आई

आरव ने अनन्या के पिता की शर्त स्वीकार कर ली।उसके पास सिर्फ 30 दिन थे — अपने ऐप को सफल बनाने के लिए, खुद को साबित करने के लिए।

दिन-रात मेहनत शुरू हुई। अनन्या भी उसके साथ थी — अपने ज्ञान और अनुभव से वह ऐप की डिज़ाइन और यूज़र इंटरफ़ेस में मदद करती।

लेकिन एक रात…जब वो ऐप का डेमो तैयार कर रहे थे, अनन्या को अपने पापा की पुरानी डायरी मिल गई।

उसमें एक पेज पर लिखा था:

"1947 में मेरे दादा की बहन भी बोल नहीं पाती थी… और उसने भी एक लड़के से प्यार किया था। पर उस लड़के को समाज ने ठुकरा दिया। उस दिन मैंने ठान लिया कि मेरी बेटी कभी किसी 'कमज़ोरी' वाले के साथ नहीं जाएगी।"

अनन्या समझ गई — उसके पिता का सख्त रवैया सिर्फ वर्तमान से नहीं, अतीत की एक अधूरी प्रेम कहानी से जुड़ा हुआ है।🌠 भाग 10: जब प्यार ने इतिहास बदला

अनन्या ने अपने दादा-दादी के पुराने दोस्तों को ढूँढा, उनसे उस कहानी का सच जाना।वो लड़का, जो उस वक्त ठुकरा दिया गया था — बाद में एक मशहूर डॉक्टर बना, जिसने दिव्यांगों के लिए एक फाउंडेशन खोला।

अनन्या ये सारी बातें लेकर अपने पिता के सामने खड़ी हुई।

"पापा, आपने इतिहास में जो खोया… क्या आप चाहते हैं कि मैं भी वही खो दूँ?"

पिता की आँखें भर आईं।

उधर, आरव का ऐप लॉन्च हो चुका था।पहले दिन ही हजारों दिव्यांग बच्चों ने उसे डाउनलोड किया।एक इंटरनेशनल NGO ने उस प्रोजेक्ट को फंडिंग ऑफर की।

और फिर…

पिता ने पहली बार आरव की आँखों में देख कर कहा — "मैं गलत था।"💍 भाग 11: जब खामोशी ने 'हां' कहा

क्लाइमेक्स में, कॉलेज की उसी लाइब्रेरी में, उसी टेबल पर…आरव ने अनन्या को प्रपोज किया — साइन लैंग्वेज में।

"क्या तुम मेरी आवाज़, मेरी ज़िंदगी बनोगी?"

अनन्या ने मुस्कुराकर कहा…"मैं तो कब से हूँ..."

और कहानी वही नहीं, एक नई ज़िंदगी की शुरुआत बन गई।