आरव मलिक एक उभरता हुआ लेखक था, लेकिन पिछले छह महीनों से एक ही सपना उसे बार-बार परेशान कर रहा था। हर रात वह एक अजीब सी जगह पर पहुंचता — एक धुंधला जंगल, जहाँ सब कुछ नीला था। पेड़, आकाश, यहाँ तक कि मिट्टी भी। उस जंगल में वह एक बच्चे को देखता — लगभग 10 साल का, घुंघराले बाल, खाली आँखें। बच्चा हर बार उसे कुछ कहने की कोशिश करता, लेकिन उसके होंठ हिलते हुए भी कोई आवाज़ नहीं निकलती।
आरव हर बार चौंककर उठ बैठता, पसीने से भीगा हुआ।
“कौन है वो बच्चा?” वह खुद से पूछता।
समझ नहीं आता।
एक दिन, उसने एक मनोचिकित्सक से मिलने का फैसला किया — डॉ. कियारा सेन। वह न केवल स्वप्न चिकित्सा में माहिर थी, बल्कि ‘लूसिड ड्रीमिंग’ यानी सपनों को समझ और नियंत्रित करने की विशेषज्ञ भी थी।
पहले ही सत्र में कियारा ने पूछा, “क्या तुमने कभी इस सपने में किसी चीज़ को छूने की कोशिश की?”
“नहीं,” आरव ने जवाब दिया। “डर लगता है… जैसे कुछ गलत हो जाएगा।”
कियारा थोड़ी देर तक चुप रही। फिर बोली, “जो डराता है, वही बताता है कि तुम क्या छुपा रहे हो।”
अगली कुछ रातों में आरव ने कोशिश की — सपने में रहते हुए खुद को जागरूक रखने की। और एक रात, उसे कामयाबी मिल गई।
वही जंगल। वही बच्चा।
इस बार उसने बच्चा का हाथ थामने की कोशिश की।
जैसे ही उसने उसे छुआ — एक तेज़ चमक फैली। जंगल बदल गया। एक पुराना घर सामने आ गया। टूटी दीवारें, झूलता हुआ झूमर… और एक दरवाज़ा, जिस पर उसके बचपन की तस्वीर लगी थी।
आरव चौंक गया।
"यह मेरा घर है... बचपन का… लेकिन यह तो जल गया था।"
उसने उस दरवाज़े को छूआ — लेकिन वह बंद था।
अचानक वही बच्चा उसके पास आया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
और पहली बार, उसने कहा: “तुमने मुझे क्यों छोड़ा?”
आरव की साँस रुक गई।
वह जाग गया। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
अगले दिन वह कियारा के पास गया।
“मैं जानता हूँ वो कौन है,” उसने धीरे से कहा। “वो... मेरा छोटा भाई है। नील।”
कियारा की आँखें चौड़ी हो गईं। “लेकिन तुमने तो कभी उसका ज़िक्र नहीं किया...”
आरव की आवाज टूटने लगी। “क्योंकि… मैंने उसे भुला दिया था। जब हमारा घर जला था… मैं उसे नहीं बचा पाया।”
अब आरव जान चुका था — उसका सपना केवल डर नहीं था। वो एक अधूरा सच था, जो उसकी आत्मा के कोने में छिपा बैठा था।
और अब… उसे दरवाज़ा खोलना ही होगा।
2: दरवाज़े के पार
आरव पिछले कुछ दिनों से सो नहीं पा रहा था। जब से उसे याद आया कि वह बच्चा वास्तव में उसका छोटा भाई नील है — जो उस आग में मारा गया था — तब से हर सपना एक दस्तक बन गया था।
लेकिन वह दरवाज़ा अब भी बंद था।
वो जानता था, उसे दोबारा उस सपने तक पहुँचना होगा। लेकिन इस बार केवल देखने के लिए नहीं… दरवाज़ा खोलने के लिए।
रात – 2:13 बजे
वह धीरे-धीरे नींद में डूबा। वही जंगल... वही नीला धुंध... और वह बच्चा... लेकिन इस बार नील उसे दूर से नहीं देख रहा था।
वह दरवाज़े के सामने खड़ा था।
उसकी आँखों में आँसू नहीं थे — अब उनमें सवाल था।
आरव धीरे-धीरे उसके पास पहुँचा।
“क्या तुम अंदर हो?” उसने पूछा।
नील ने सिर हिलाया — नहीं।
“फिर अंदर कौन है?”
बच्चा पलटा, दरवाज़े की ओर इशारा किया। वहाँ एक शब्द उभर आया — “सच”
आरव का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
उसने हैंडल पर हाथ रखा।
दरवाज़ा झनझना उठा — जैसे किसी पुराने ज़ख्म को फिर से खुरच दिया गया हो।
और फिर...
दरवाज़ा खुल गया।
भीतर अंधेरा था।
धीरे-धीरे एक कमरा उभरने लगा — वैसा ही जैसा उनके पुराने घर में था। दीवार पर वही टूटी घड़ी, जो उस रात 8:37 पर रुक गई थी। फर्श पर बिखरे हुए खिलौने। और कोने में एक छोटा बच्चा — जो कांप रहा था।
आरव ने लाइट जलाने की कोशिश की — नहीं जली।
लेकिन वह समझ गया — रोशनी उसे खुद बनानी होगी।
वह धीरे-धीरे उस बच्चे के पास गया।
“नील?”
बच्चा चौंका। उसने सिर उठाया।
पर वह नील नहीं था।
वह आरव था।
6 साल का… डर से काँपता… अकेला।
“ये क्या है?” उसने फुसफुसाया।
नील की आवाज़ पीछे से आई — पहली बार एकदम साफ़।
“तुमने मुझे नहीं छोड़ा था, भैया। तुमने खुद को बंद कर लिया था।”
आरव ने धीरे से अपने छोटे स्वरूप को गले लगा लिया।
आँसू दोनों की आँखों से बह निकले।
और तभी... कमरे में रोशनी फैल गई।
नींद टूटी।
आरव ने देखा — वह अपने बिस्तर पर था, लेकिन इस बार कुछ अलग था।
दिल हल्का था।
और पहली बार छह महीने में, सुबह की पहली किरण उसे छू पाई थी।
अगले दिन, कियारा से मिलते हुए:
“मैंने दरवाज़ा खोल दिया,” आरव ने कहा।
कियारा मुस्कराई। “और क्या मिला?”
“मैं खुद मिला… वो हिस्सा जो मैं छुपा रहा था।”
वो रुक गया।
“…और नील भी। वो अब मुझे दोष नहीं देता।”अंत नहीं... शुरुआत है।
आरव अब वही लेखक नहीं था।
उसने अपने जीवन की सबसे सच्ची कहानी लिखनी शुरू की — "स्वप्न का दरवाज़ा" — जहाँ उसने अपने अतीत से भागना नहीं, उसका सामना करना सीखा।
और अब वह हर उस इंसान को ये कहने लगा जो अपने भीतर बंद था—
“तुम जो छुपा रहे हो… वही दरवाज़ा है। और उस पार, तुम खुद हो।,,