Chaar Din ka Pyar - 1 in Hindi Thriller by Jaidev chawariya books and stories PDF | चार दिन का प्यार - भाग 1

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चार दिन का प्यार - भाग 1

रविवार का दिन हैं आज का दिन हमारे लिए बहुत ज्यादा खुशी का हैं। क्योंकि मेरी बड़ी बहन संजना की आज सगाई हैं। सभी रिश्तेदार व जानने वाले आ चुके हैं। पूरा घर किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ हैं। में अपने सभी दोस्तों के साथ घर के कामकाजो में लगा हुआ हूं। घर के हॉल में डी.जे लगे हुए हैं, जिनमे सभी लोग नाच रहे थे। छत पर पीने का प्रोग्राम चल रहा हैं। बड़ी उम्र के लोग जिन्हें कोई डर नहीं हैं, वह आराम से टेबल पर बैठकर शराब पी रहे हैं और दूसरी तरफ जो लोग चोरी चुपके पीने वाले हैं । वह किसी कोने में छुपे से शराब पी रहे हैं, वह शराब का आनंद अवश्य लेना चाहते हैं। पर किसी के आगे ओपन नहीं होना देना चाहते , की उनके परिवार वाले व जानकारों को पता ना चल सके।

मैं अपने कमरे में था सारा कमरा फैला हुआ था। मैंने सफेद रंग का कोट पेंट पहन रखा था। मैंने टेबल पर रखी ब्लैक डॉग की शराब की बोतल उठाई व एक दम से बोतल का ढक्कन खोला और अगले ही पल बोतल मुंह से लगा ली। ब्लैक डॉग शराब बहुत ज्यादा कड़वी थी। जिसे पीना बहुत मुश्किल हो रहा था। लेकीन ना जाने मुझे कहां से इतनी हिम्मत आ गई। बिना किसी गिलास के व बिना किसी सोडा न बिन पानी के, में पूरी बोतल पी गया। 

अगले दिन दो मिनट में मेरा सिर घूमने लगा। ऐसा लगा की जैसे मेरा सिर पर किसी ने कुछ भरी सा पत्थर रख दिया हो। में बाथरूम जा रहा था की पर मेरे पैर मुझे दरवाजे के पास ले जा रहें । 

जिंदगी में मैंने कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया था और आज पहली बार सीधा पूरी बोतल गटक गया। 

घर में हर तरफ खुशी का माहौल था दूसरी तरफ मेरे दिमाग की सभी नसे फटी जा रही थी। मुझसे अब यह दर्द सहन नहीं हो रहा था। मेरे बेड की साइड पर एक छोटा स्टूल रखा था , उसपे कोल्ड ड्रिंक्स, चिप्स व फल फ्रूट के साथ एक साथ तेजदार चाकू रखा हुआ था। 

एक तरफ मेरे  दिमाग की सभी नसे फटी जा रही थी और मेरा जी घबरा रहा था। में बस इस दर्द से छुटकारा चाहता था, कैसे भी हो मुझे इस दर्द से छुटकारा मिल जाएं? अंत मैंने स्टूल पर चाकू उठाया और अपनी दाएं हाथ की कलाई पर चला दिया। जैसे ही चाकू कलाई से टकराया अगले ही पल हाथ से खून की धारा बहने लग गई। सफेद रंग का कोट पेंट लाल रंग तब्दील हो गया था । अब में हर दर्द से आजाद था, फिर ना जाने कब मेरी आंख बंद हो गई। मुझे कुछ भी पता नहीं चला।

अगले दिन जब मेरी आंख खुली तो में किसी अस्पताल में था। मेरी कलाई पर पट्टी बंधी हुई थी, शरीर में ऐसा लग रहा था की मानो शरीर में जान ही नहीं हो। मुझे वीकनेस सी महसूस हो रही थी। मेरी बगल में मेरी बहन पूजा बैठी हुई थी।

मेरी बहन की पूजा की आंखे सुजी हुई थी। कल दिन मेरी बहन के जीवन का सबसे यादगार दिन था पर मैंने सबसे मनहूस बना दिया। मेरी बहन के भी कुछ सपने थे, एक अच्छा पति मिले व एक छोटा सा परिवार। मेरी बहन को सब मिल गया, पर कल का दिन मैंने अपनी बहन का खराब कर दिया। 

"देव ! अब तुम ठीक हो ।"  

मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी की अपनी बहन से नजर मिला सकू, मेरी बहन मुझे बहुत प्यार करती हैं। मैंने सोचा कि मेरी बहन मुझे डांटे की पर, उसने सिर्फ यह पूछा की देव अब तुम ठीक हो ना। सच में मेरी बहन मुझसे बहुत प्यार करती हैं।

"बहन बस थोड़ी वीकनेस महसूस हो रही हैं।"

"देव ! एक बात कहूं अगर बुरा ना मानो तो?"

"क्या बहन ?" में बड़ी मुश्किल से कह पाया।

"तुम ! मुझसे और पापा से बिलकुल भी प्यार नहीं करते ना।

इतने सुनते ही मेरे सिर पर बिजलियां सी गिर गई । क्या बहन सही कह रही हैं ?

मेरी आंखों में एकदम से आंसू आ गए। ऐसे मत कहो बहन, "तुम और पापा मेरी जिंदगी हो।" तुम्हारे बिना में जीने के बारे में एक पल भी नहीं सोच सकता। 

पूजा भी रोने लगी थी मेरे भाई तुम झूठ बोल रहे हो, जो तुम कह रह हो अगर वो सच हैं तो तुम इतना बड़ा कदम भी नहीं उठाते। 

मेरी बहन ने बिलकुल भी गलत नहीं कहा था। में जैसे अपने आप से बात कर रहा था। 

"बहन ! बात दरअसल यह थी की में, अभी में दिल की बात होठों पर ला ही रहा था।" की अचानक डॉक्टर साहब आ गए। देव की हालत में पहले से बहुत सुधार आ गया हैं। हमारे तरफ से आप कभी भी देव को घर ले जा सकते हैं। यह कुछ दवाई हैं लिख रहा हूं जो जख्म को जल्दी भर देगे। बाकी कोई भी दिक्कत आ तो तुरंत मुझे बताएं। 

अगले भाग में जानें की देव ने आखिर इतना बड़ा कदम क्यों उठाया। उसके घर में हर तरफ खुशी का माहौल था फिर देव ने ऐसा क्यों किया।

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